नई दिल्ली14 मिनट पहले
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भारतीय रुपया अपने ऑल टाइम लो यानी सबसे निचले स्तर पर आ गया है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बुधवार (6 नवंबर) को रुपया में करीब 0.1141 पैसे की गिरावट आई है। दिनभर के कारोबार के बाद यह 84.2366 रुपए प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ।
10 अक्टूबर के बाद से ही रुपए में लगातार छोटी-बड़ी गिरावट हो रही है। इससे पहले कल यानी 5 अक्टूबर को रुपया अपने सबसे निचले स्तर 84.1225 प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ था। 10 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी 83.9685 के स्तर पर था। 17 अक्टूबर को डॉलर के मुकाबले यह 84.03 के स्तर पर आ गया था।
रुपया के गिरने के तीन कारण
- अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों के चलते डॉलर में तेजी रही।
- भारतीय बाजार में विदेशी निवेशकों की 16,358 करोड़ रुपए की बिकवाली।
- उम्मीद है कि फेडरल रिजर्व इस हफ्ते के आखिर में रेट्स में कटौती करेगी।
- अमेरिकी बाजार डाओ जोन्स में 1300 अंक या 3% से ज्यादा की तेजी।
शेयर बाजार में 901 अंक की तेजी रही
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव वोटिंग और नतीजों के बीच सेंसेक्स बुधवार को 901 अंक (1.13%) की तेजी के साथ 80,378 के स्तर पर बंद हुआ। निफ्टी में भी 270 अंक (1.12%) की तेजी रही, ये 24,484 के स्तर पर बंद हुआ। वहीं, BSE स्मॉलकैप 1,077 अंक (1.96%) की तेजी के साथ 56,008 के स्तर पर बंद हुआ।
सेंसेक्स के 30 शेयरों में से 25 में तेजी और 5 में गिरावट रही। निफ्टी के 50 शेयरों में से 41 में तेजी और 9 में गिरावट रही। NSE के सभी सेक्टोरल इंडेक्स में बढ़त रही। IT सेक्टर में सबसे ज्यादा 4.05% की तेजी रही।
इंट्रा डे में 84.31 के निचले स्तर पर पहुंचा
इंट्रा-डे में रुपया 84.23 के स्तर पर ओपन हुआ। जो 84.15 से 84.31 के बीच ट्रेड करता रहा। 4 अक्टूबर को मार्केट एक्सपर्ट्स ने अनुमान लगाया था कि आने वाले दिनों में रुपया 84.25 के सबसे निचले स्तर पर पहुंच सकता है।
इंपोर्ट करना होगा महंगा रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 84.23 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।
करेंसी की कीमत कैसे तय होती है? डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है।
अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।
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