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एक महीने बाद तहसीलदारों, नायब तहसीलदारों को प्रॉपर्टी रजिस्ट्री की जिम्मेदारी सौंप दी गई। लेकिन पहले दिन अफसर 4 घंटे तक लेट पहुंचे। तहसील-1 में सब-रजिस्ट्रार की वीआईपी ड्यूटी लगने से 6 घंटे तक लोग परेशान हुए। रजिस्ट्री क्लर्क व दूसरे कर्मचारी सीट से गायब रहे। लेकिन कोई अफसर सुनने वाला नहीं था।
वहीं एडिश्नल चार्ज के कारण भी लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है। पहले दिन रजिस्ट्री दफ्तरों में इस तरह सिस्टम फेल रहा कि रात 8 बजे तक रजिस्ट्री का काम होता रहा। नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए रिकॉर्ड रूम में अनाधिकृत लोगों की एंट्री होती रही तो वीआईपी सिस्टम से एडवोकेट-वसीका भी तंग हुए।
3 तहसीलों में 318 पार्टियों ने रजिस्ट्री करवाने को अप्वाइंटमेंट लिया था। जिनमें 60 की रजिस्ट्री नहीं हुई। तहसील-2 में 156 अप्वाइंटमेंट थे, 129 रजिस्ट्री हुई। तहसील वन में 102 अप्वाइंटमेंट थे, 82 रजिस्ट्री हुई। सब-रजिस्ट्रार-3 60 अप्वाइंटमेंट थे। 47 तस्दीक हुए।
सरकार-रेवेन्यू अफसरों का आपसी मनमुटाव सॉल्व होने के बाद रजिस्ट्री का काम तो सौंप दिया। लेकिन सिस्टम भगवान भरोसे ही चला आ रहा है। सब-रजिस्ट्रार-1 दफ्तर आए लेकिन अचानक ही काम छोड़कर चले गए। रजिस्ट्री करने के लिए कहा तो कोई जवाब नहीं दिया।
वीआईपी ड्यूटी लगी थी तो दूसरे अफसर को चार्ज देकर जाते। पार्टियां करोड़ों की रजिस्ट्री कराती है, लेकिन अफसरशाही हावी है। हर कोई सीएम की हाव-भगत में जुट गया। जबकि आप पार्टी वीआईपी कल्चर का विरोध करने की बात करती है।-” राकेश शर्मा, सीनियर एडवोकेट ^लाखों-करोड़ों रुपए खर्च करके लोग रजिस्ट्री कराते हैं।
दूसरे राज्यों-जिलों और विदेशों तक से आते हैं। जनता के पैसे से ही नेता वीआईपी ट्रीटमेंट लेकर घूम रहे। लेकिन पब्लिक को सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। एक तरफ सरकार कहती है कि सब-रजिस्ट्रारों को रजिस्ट्री के अलावा कोई दूसरा काम नहीं सौंपा जाएगा। दूसरी तरफ वीआईपी ड्यूटी लगा दी जाती है।
प्रशासन को चाहिए कि किसी दूसरे अफसर को चार्ज देकर जाएं। एसडीएम-2 को रजिस्ट्री का काम शुरू करवाने के लिए कहा, तो देर सायं लोगों की रजिस्ट्रियां तस्दीक हुईं। – महिंदरपाल गुप्ता, सीनियर एडवोकेट एसडीएम-2 मनकंवल सिंह सब-रजिस्ट्रार दफ्तर में मीटिंग करने पहुंचे तो उनसे रजिस्ट्री का काम शुरू करवाने के लिए कहा गया। जिसके बाद देर सायं दस्तावेज तस्दीक होने लगे।
कई लोगों ने दस्तावेज तो जमा करा दिए लेकिन तस्दीक कराए बिना ही निराश होकर घरों को चले गए।हर कोई कहता रहा कि प्रशासन का कोई सिस्टम नहीं रह गया है। सरकार लोगों की मुश्किलें प्राथमिकता पर हल कराने के दावे करती है, लेकिन ग्राउंड लेवल पर हकीकत नेताओं को वीआईपी सुविधाएं देना रह गया है।
2 तहसीलों में रजिस्ट्री करने की पुरानी टाइमिंग गेट पर चस्पा रही। लेकिन तहसील-1 में कोई पब्लिक नोटिस नहीं लगाया गया। डीसी-एसडीएम से लेकर तहसीलदार व दूसरे अफसर वीआईपी ड्यूटी में ही रहेंगे तो लोगों की सुनवाई कौन करेगा। सिस्टम सुधारने के लिए सूबे के 235 तहसीलदारों-नायब तहसीलदारों का तबादला किया गया लेकिन फिर सबकुछ पुराने ढर्रे पर चल पड़ा है।