डॉक्टरों के वेतन निर्धारण को लेकर चिकित्सा शिक्षा और वित्त विभाग के बीच भ्रम की स्थिति बन गई। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने 2016 के कैबिनेट के निर्णय को आधार मानकर डॉक्टरों के वेतन निर्धारण का आदेश जारी कर दिया। विभाग का कहना था कि यह आदेश वित्त विभाग की
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इस विवाद के चलते ट्रेजरी ने तुरंत चिकित्सा शिक्षा विभाग के तमाम भुगतानों पर रोक लगा दी। मामले में चिकित्सा शिक्षा विभाग ने सारे तथ्य और दस्तावेज सौंपे, जिसके बाद शुक्रवार को वित्त विभाग ने दोबारा अनुमति दे दी। यह पहली बार हुआ है जब दो विभागों के बीच इस तरह की गफलत सामने आई है।
ऐसे हुई गड़बड़ी
डॉक्टरों के वेतन निर्धारण में गड़बड़ी की वजह यह थी कि वित्त विभाग का कहना था कि बिना अनुमति के ही वेतन बढ़ा दिया गया। इस पर सख्त कदम उठाते हुए वित्त विभाग ने मेडिकल कॉलेजों के लेन-देन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। मामले को गंभीर वित्तीय अनियमितता माना गया।
वित्त विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी के अनुमोदन के बाद शुक्रवार को कोष एवं लेखा विभाग ने भुगतान पर रोक हटाने का आदेश जारी कर दिया। दरअसल, 24 फरवरी को डॉक्टरों के वेतनमान को लेकर जो आदेश जारी किया गया, उसमें लिखा गया था कि वित्त विभाग की सहमति ली गई है, जबकि वित्त विभाग की ओर से ऐसी कोई स्वीकृति जारी नहीं की गई थी। न ही डॉक्टरों के वेतन निर्धारण से जुड़ा कोई मामला वित्त विभाग के पास विचार के लिए भेजा गया था।
जांच और रिकवरी के निर्देश
मामले की जानकारी जब सरकार को लगी तो जांच में यह सामने आया कि वेतन निर्धारण की प्रक्रिया में वित्त विभाग की कोई भूमिका ही नहीं रही थी। इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश और बढ़े वेतन की रिकवरी करने का भी आदेश दिया गया है।
बिना अनुमति कोई निर्णय नहीं
अब सरकार ने निर्देश दिए हैं कि चिकित्सा शिक्षा विभाग की मांग संख्या 052 के तहत किए जाने वाले सभी भुगतान और वित्तीय गतिविधियां तब तक रोक दी जाएं, जब तक कि वित्त विभाग से अनुमोदन प्राप्त न हो जाए। इस संबंध में मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा और कमिश्नर मेडिकल एजुकेशन को भी जानकारी दे दी गई है।