जमीन–जायदाद और दो गांवों की रियासत होने के बाद भी एक दिन पूरा परिवार बिखर गया। दांगी परिवार ने संपन्नता से लेकर गरीबी और फिर शिक्षा के बल पर नई राह बनाने तक का सफर तय किया। परदादा के समय परिवार हर तरह से संपन्न था, लेकिन एक हादसे ने सब कुछ बदल दिया।
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सबकुछ होने के बाद भी एक दुर्भाग्यपूर्ण दिन ऐसा आया, जब परदादा उकार जी, उनके दोनों भाई और तीनों पत्नियां असमय इस दुनिया से विदा हो गए। उस घटना के बाद पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा और संपन्नता के स्थान पर गरीबी ने घर कर लिया।
परिवार की यह कहानी दादी धापू दांगी ने पोते युवराज को सुनाई तो उसने भी उसे कहानी का रूप दे दिया। इसी दौरान दादी की बातों को आत्मसात करते हुए राइजिंग फार्म द रूट किताब को लिखा। यह पुस्तक न सिर्फ भारत, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस सहित 13 देशों में प्रकाशित हो चुकी है। यह सिर्फ एक किताब की कहानी नहीं है, बल्कि उस साहस और आत्मबल की दास्तान है, जो हर उस युवा के भीतर मौजूद है, जो खुद को परिस्थितियों से हारा हुआ समझ बैठता है।
दादी धापू दांगी के साथ पोता युवराज।
परिवार में दो छोटे बच्चे ही बचे थे
“राइजिंग फ्रॉम द रूट बुक” में बताया गया है कि परिवार में केवल दो छोटे बच्चे बचे– रतनलाल और रामलाल बचे थे। वे इतने छोटे थे कि उन्हें अपने माता-पिता की शक्ल भी ठीक से याद नहीं थी। इन्हीं दो भाइयों ने परिवार की नई शुरुआत की। मेहनत-मजदूरी करके जीवन-यापन किया और जैसे-तैसे अपने परिवार को संभाला। कठिन हालातों के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया और उन्हें एक अच्छा भविष्य देने का प्रयास किया।
रतनलाल के बेटे रामगोपाल दांगी ने न केवल खुद मेहनत से पढ़ाई की, बल्कि दूसरों बच्चों को भी पढ़ाने का बीड़ा उठाया। वे घर-घर जाकर बच्चों को पढ़ाते थे। आज रामगोपाल दांगी का पुत्र युवराज, 16 वर्ष का है और वह 12वीं कक्षा में पढ़ाई कर रहा है।

लेखक युवराज दांगी माता-पिता के साथ।
एक सामान्य यात्रा, जिससे जिंदगी की दिशा बदल गई
युवराज ने बताया कि वर्ष 2024 की बात है। परिवार के साथ एक निजी कार्य से दिल्ली गए थे। सीढ़ियों से उतरते समय अचानक उनका पैर फिसला और वे बुरी तरह गिर पड़े। शुरुआत में लगा कि हल्की चोट है, जब वे राजगढ़ लौटे तो धीरे-धीरे दर्द असहनीय हो गया। तो परिजन इलाज के लिए भोपाल के एक अस्पताल में ले गए, जहा जांच करवाई गई, तो पता चला कि उनके दाहिने पैर के कूल्हे की हड्डी में गंभीर फ्रैक्चर है।
डॉक्टर ने ऑपरेशन या तीन महीने के बेड रेस्ट में से एक विकल्प चुनने को कहा। परिवार ने बिना ऑपरेशन, आराम का रास्ता चुना। परिजनों का कहना है कि इसके बाद युवराज को एक कमरे में, एक ही जगह तीन महीनों तक रहना पड़ा। एक होनहार छात्र, जो हर समय कुछ सीखने और करने को उत्सुक था, उसके लिए यह समय मानसिक रूप से बेहद कठिन था।

दिल्ली में घायल होने के बाद युवराज तीन महीने तक बिस्तर से नहीं उठ पाए थे।
संघर्ष की जड़ों से निकला लेखन का अंकुर
शारीरिक दर्द से जूझते हुए युवराज मानसिक थकावट का भी शिकार होने लगे थे। लेकिन तभी उनकी दादी धापू बाई एक दिन उनसे मिलने आईं। उन्होंने युवराज को अपनी और उनके दादीजी की जिंदगी के संघर्षों की कहानी सुना कि कैसे उन्होंने परिवार की गरीबी और चुनौतियों का सामना करते हुए सभी को संभाला। दादी की ये बातें युवराज के भीतर कुछ तोड़ने की बजाय कुछ नया जगाने लगीं।
युवराज ने कहा, “जब दादी ने अपनी बातें साझा कीं, तो लगा जैसे मैं अकेला नहीं हूं, जैसे मेरे परिवार की जड़ें ही मेरी सबसे बड़ी ताक़त हैं।” उसी क्षण उन्होंने ठान लिया कि वे इस संघर्ष की कहानी को लिखेंगे, ताकि दुनिया जाने कि साधारण लोग कैसे असाधारण हालात में भी हार नहीं मानते।

स्वयं के द्वारा लिखी गई राइजिंग फार्म द रूट बुक को पढ़ते हुए युवराज।
एक कमरे से निकलकर दुनिया की नजरों में
लेखन की शुरुआत छोटे नोट्स से हुई। कभी डायरी, कभी मोबाइल के नोट्स- जैसे-जैसे शब्द जुड़ते गए, युवराज का आत्मविश्वास बढ़ता गया। तीन महीनों में उन्होंने 100 पन्नों की एक किताब तैयार कर दी—“Rising from the Roots”।
इस किताब को उनके पिता रामगोपाल दांगी ने प्रकाशन के लिए भेजा, और देखते ही देखते, इसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना ली। यह किताब अब भारत समेत अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, स्पेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पोलैंड, नीदरलैंड और स्वीडन में प्रकाशित हो चुकी है। इस पुस्तक में युवराज ने न केवल अपने परिवार की कहानी कही है, बल्कि उन मूल्यों की बात की है जो हर संघर्षरत परिवार को आगे बढ़ने का हौसला देते हैं—साहस, उम्मीद, मेहनत और आत्म-विश्वास।

युवराज इसी घर में रहते हैं। कभी इनके परदादा दो रियायत के जमींदार हुआ करते थे।
युवाओं के लिए उम्मीद की रोशनी
Rising from the Roots एक किशोर द्वारा लिखा गया साहित्यिक प्रयास जरूर है, लेकिन इसकी आत्मा कहीं ज़्यादा गहराई लिए हुए है। यह किताब बताती है कि जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणाएं अक्सर हमारे ही घरों में, हमारे बुजुर्गों की कहानियों में छुपी होती हैं।
जब युवा पीढ़ी उन जड़ों से जुड़ती है, तब वह सिर्फ फल-फूल नहीं सकती, बल्कि पूरी दुनिया को प्रेरणा भी दे सकती है। युवराज अब 12वीं कक्षा के छात्र हैं और आगे चलकर लेखक बनना चाहते हैं। वे कहते हैं, “मैंने किताब इसलिए नहीं लिखी कि प्रसिद्ध हो जाऊं, बल्कि इसलिए कि मैं बताना चाहता था—हर मुश्किल समय में भी कुछ रचनात्मक किया जा सकता है।”