Tuesday, June 17, 2025
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धनखड़ बोले- न्यायपालिका को संविधान में बदलाव का अधिकार नहीं: राष्ट्रवाद सबसे बड़ा धर्म, इसमें राजनीति न हो


नई दिल्ली1 घंटे पहले

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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को संविधान जागरूकता वर्ष समारोह का उद्घाटन किया।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कहा कि संविधान में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद को है, और किसी को नहीं। यहां तक की न्यायपालिका को भी नहीं।

अगर कोई परिभाषा बनाने की जरूरत है तो सुप्रीम कोर्ट इस पर अपना विचार रख सकता है। कुछ मामलों में राज्य विधानसभाओं के संविधान में परिवर्तन करने का अधिकार है।

संविधान जागरूकता वर्ष समारोह का उद्घाटन करते हुए धनखड़ ने कहा- संविधान के मौलिक अधिकार को हम जितना जानेंगे, उतना ही हम लोग राष्ट्रवाद की ओर आगे बढ़ेंगे।

धनखड़ के संबोधन की 4 बड़ी बातें….

बाहरी फंडिंग से देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपवित्र किया जा रहा

उपराष्ट्रपति ने भारत में वोट परसेंटेज बढ़ाने के लिए USAID के फंडिंग के खुलासे पर कहा कि देश के सामने कई चुनौतियां है। बाहर से फंडिंग करके देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपवित्र बनाया जा रहा है। इन फंडिंग का उपयोग पसंदीदा लोगों को चुनाव जिताने के लिए किया जा रहा है। यह खतरनाक है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

संविधान की जागरुकता आज की सबसे बड़ी जरूरत

धनखड़ ने कहा, “हमारे संविधान के बारे में जागरूकता आज की सबसे बड़ी जरूरत है। हमारे संविधान निर्माता तपस्वी थे जिन्होंने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।

वे ऐसा संविधान बनाना चाहते थे जो सभी की एक्सपेक्टेशन को पूरा करे। उन्होंने चुनौतियों का समाधान सार्थक बातचीत और हाई लेवल बहस के जरिए किया, न कि बहिष्कार के जरिए। उन्होंने लोकतंत्र के मंदिर की प्रतिष्ठा को कभी कम नहीं होने दिया।”

लोकतंत्र के मंदिरों पर इतना दबाव क्यों है?

संसद की कार्यवाही में डिस्टरबेंस को लेकर कहा कि यदि सदन चलने नहीं दिया गाय तो लोगों के पास चर्चा के माध्यम से मुद्दों को हल करने का कोई रास्ता नहीं होगा।

उन्होंने कहा, “जब बातचीत से हर समस्या का समाधान हो सकता है तो लोकतंत्र के मंदिरों पर इतना दबाव क्यों है? लोगों द्वारा चुने गए लोगों को अपने कर्तव्यों का सही से पालन करना चाहिए। राष्ट्रवाद को अपना धर्म और भारतीयता को अपनी पहचानी बनानी चाहिए।

इमरजेंसी से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन

उन्होंने कहा कि इस दिवस को मनाना उस काले क्षण को याद करने के लिए भी है, जब 25 जून 1975 को तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी की घोषणा की थी। जिससे देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ था।

धनखड़ ने कहा, “देश के 9 हाई कोर्ट ने एक आवाज में कहा था कि आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों पर रोक नहीं लगाई जा सकती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन 9 अदालतों के फैसलों को पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार तय करेगी कि इमरजेंसी कब तक लागू रहेगा। इसलिए 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाया जाता है।”

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