इस साल भैयाजी सरकार ने नर्मदा संरक्षण शुद्धीकरण का संदेश लेकर 3300 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा की थी।
इन दिनों नर्मदा परिक्रमा चल रही है। रोजाना करीब 500 से 600 श्रद्धालु पैदल जय नर्मदा मैय्या करते निकल रहे हैं। यह देवउठनी ग्यारस से अक्षय तृतीया तक चलती है। श्रद्धालुओं की यह परिक्रमा बड़वानी में मुश्किलभरी साबित हो रही है। कारण- कच्ची पगडंडियां, झाड़िय
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दरअसल, 7 साल पहले सरदार सरोवर बांध के बैक वॉटर में नर्मदा परिक्रमा पथ डूब गया था। साल 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान नया परिक्रमा पथ बनाने की घोषणा भी की, लेकिन आज तक यह मूर्त रूप नहीं ले सका। बड़वानी से कांग्रेस विधायक राजन मंडलोई के मुताबिक इसका प्रस्ताव ही नहीं तैयार हो सका। नतीजा, परिक्रमा करने वालों को अब भी दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है।
बता दें कि धार, खरगोन, और बड़वानी में नर्मदा परिक्रमा पथ के 178 गांव डूबा गए हैं। ऐसे में लोगों को दुर्गम रास्तों से होकर जाना पड़ रहा है। दैनिक भास्कर ने इसे लेकर परिक्रमा करने वालों, नर्मदा समिति के अध्यक्ष और अफसरों से बात की। पढ़िए रिपोर्ट….
नर्मदा परिक्रमा करने वालों को इस तरह दुर्गम रास्तों से होकर निकलना पड़ता है।
पहले जानिए, यात्रियों की व्यथा
घाट-घाट पहुंचने में होती है दिक्कत
नरसिंहपुर के अनिलाल ठाकुर भी मां नर्मदा की परिक्रमा पर निकले हैं। अनिलाल बताते हैं, ‘सागर घाट से नर्मदा परिक्रमा शुरू की थी। घाट-घाट पहुंचने में दिक्कत आ रही है। बहुत घूमना पड़ रहा है। 12 किलोमीटर से ज्यादा घूमने के बाद मां नर्मदा के दर्शन होते हैं, जबकि पूरी नर्मदा परिक्रमा किनारे से होकर की जाती है। अब कई किलोमीटर तक दर्शन नहीं हो पाते। सरदार सरोवर के बांध के बैकवाॅटर के कारण घाट डूब चुके हैं। रास्ते डूब गए। कठिन पहाड़ी, पगडंडी से गुजरते हुए परिक्रमा करना पड़ रही है।’
कठिन रास्तों से गुजरना पड़ रहा
असम के रहने वाले सुकु बोस प्राइवेट अस्पताल के डायरेक्टर हैं। वह भी परिक्रमा के लिए निकले हैं। सुकु बोस कहते हैं कि परिक्रमा पर निकले एक महीना हो गया। ओरिजनल नर्मदा किनारे बसे तीर्थ स्थल, प्राचीन मंदिर, प्राचीन घाट कुछ भी दिखाई नहीं दिया। सभी पानी में डूब चुका है। परिक्रमा मार्ग भी नर्मदा किनारे नहीं है। हाइवे से होकर बड़वानी जिले में प्रवेश किया था
। मगर, अब आगे ऊबड़-खाबड़ रास्ते, पगडंडी और झाड़ियों से होकर गुजरना पड़ रहा है। पुराने मार्ग सब डूब चुके हैं। नए मार्ग बने नहीं हैं। कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ रहा है।
नर्मदा समिति से जुड़े लोग भी बेबस
शूलपाणी मार्ग पर सबसे ज्यादा परेशानी
नर्मदा समिति के अध्यक्ष संजय पुरोहित का कहना है कि बड़वानी मुख्यालय से भवति गांव के बाद शूल पाणी क्षेत्र शुरू होता है। इसमें बिजासन, बोरखेड़ी, कुली, घोंगसा, खेरवानी, सेमलेट, भादल गांव आता है। इसके बाद झरकल नदी पार करते ही महाराष्ट्र की सीमा लग जाती है।
संजय बताते हैं कि इन गांवों में भवति से बोरखेड़ी तक पहाड़ी रास्तों पर भी डामर की सड़क है। बोरखेड़ी से कुली गांव तक कच्चा मार्ग और कुली, घोंगसा से खेरवानी तक केवल पगडंडी है। कई श्रद्धालु इन पहाड़ी रास्तों से गिरकर घायल हो चुके हैं। कुछ की मौत भी हो चुकी है। संजय के मुताबिक, इस मार्ग को प्रधानमंत्री सड़क योजना से जोड़कर बनाया जा सकता है। इन ग्रामों में परिक्रमा वासियों के रुकने की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है।
प्रशासन ने ठहरने तक का इंतजाम नहीं किया
सामाजिक कार्यकर्ता राहुल यादव बताते हैं कि बड़वानी जिले में नर्मदा का आगमन ब्राह्मण गांव से होता है, जो कि भादल तक रहता है। खेरवानी गांव के तुकाराम पटेल बताते हैं– बड़वानी जिले में नर्मदा भक्त ठीकरी से प्रवेश करते हैं। दुर्भाग्य यह है कि प्रशासन की ओर से इन भक्तों के ठहरने के लिए कहीं पर भी व्यवस्था नहीं की गई है। बड़वानी के राजघाट पर धर्मशाला बैकवॉटर में डूब गया। इस कारण परिक्रमा यात्री मंदिर या निजी संसाधन जुटाकर रात गुजारते हैं। हर साल यही स्थिति देखने को मिलती है। श्रद्धालु ठीकरी से अंजड़–ठीकरी हाईवे होते हुए अंजड़ तक आते हैं। यहां से बड़वानी के राजघाट पहुंचते हैं।
इस तरह पहाड़ों पर बैठकर भोजन करते हैं परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु।
स्थानीय लोग करते हैं खाने- ठहरने की व्यवस्था
नर्मदा सेवा करने वाले सुनील बताते हैं– सरकार व्यवस्थित परिक्रमा मार्ग या पथ आज तक नहीं बना पाई। ऐसे में परिक्रमा करने वालों को खेतों, जंगलों, ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों व पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है। खाने–पीने बैठने के उचित इंतजाम नहीं होने से नर्मदा तटों पर रहने वाले लोग ही परिक्रमा करने वालों के लिए सभी व्यवस्थाएं नि:स्वार्थ भाव से जुटा रहे हैं।
सरकारी संस्थाएं भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहीं। पूरी परिक्रमा जन सहयोग, जंगल एवं गांव आश्रमों के भरोसे होती है। परिक्रमा वासियों के ठहरने के इंतजाम सदियों से आश्रम, समाजसेवी, नर्मदा परिक्रमा मार्ग में रहने वाले गृहस्थों के भरोसे ही चल रही है। कई बार विपरीत परिस्थितियों में खासकर महिलाओं को परेशानी का सामना उठाना पड़ता है। स्वास्थ्य संबंधित मदद के लिए भी ग्रामीण या अन्य समाजसेवी ही आगे आते हैं।
श्रद्धालुओं को ऐसे दुर्गम पहाड़ी रास्तों से होकर गुजरना होता है।
सैकड़ों आश्रम, अन्न क्षेत्र भी खत्म हो गए
पहले बड़वानी जिले में नर्मदा परिक्रमा पथ पर हर 5 से 7 किमी की दूरी पर नर्मदा किनारे बसे गांवों में संतों के आश्रम, अन्न क्षेत्र बनाए गए थे। परिक्रमा करने वालों के लिए आश्रम, अन्न क्षेत्र में रात रुकने और भोजन की व्यवस्था भी की जाती थी, लेकिन बैकवॉटर कई आश्रम और अन्न क्षेत्र जलमग्न हो गए।
बड़वानी जिले के ठीकरी से लेकर भादल तक नर्मदा पथ पर अन्न क्षेत्र और आश्रम डूबने से परिक्रमा करने वालों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि नर्मदा के बैकवॉटर किनारे आज भी कई आश्रम और अन्न क्षेत्र में सेवा दी जा रही हैं।
मेधा पाटकर बोलीं- विस्थापितों को पुनर्वास भी नहीं
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने बताया, ‘बड़वानी जिले में मंदिरों का संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है। जैसे रोहिणी तीर्थ स्थल अन्य सुरपनेश्वर की झाड़ियाें में मंदिर अन्य मंदिर जिनका संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ है। नर्मदा किनारे जो रास्ते बनाए गए थे, वह 2023 में कुछ डूब गए, उनका भी कुछ नहीं हुआ। नर्मदा सेवा यात्रा 2017 में चुनाव के लिए की गई घोषणा थी। आज तक नर्मदा किनारे मंदिरों का निर्माण या पर्यावरण संरक्षण या अवैध खनन या शराबबंदी का काम चालू है। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा सिर्फ घोषणाएं की गई हैं। घाेषणाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया गया।
तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने विश्व रिकाॅर्ड बनाने के लिए करीब 8 करोड़ पौधे लगाने की घोषणा की थी। ये पौधे कहां हैं, किसी को नहीं पता। सभी पौधे नष्ट हो चुके या गांव के पंचायत द्वारा या किसानों द्वारा लगाकर कागजी कार्रवाई की गई है।
जिन्हें बाहर बताया, फिर वे डूब में आए
प्रशासन ने 2018-19 में प्रशासन ने सर्वे किया था। इसमें नर्मदा किनारे के कई तीर्थस्थल, मार्ग और गांव डूब से बाहर बताए गए थे। 2019 में वॉटर लेवल बढ़कर 138 मीटर हो गया। इसके बाद प्रशासन का सर्वे फेल हो गया। कारण डूब से बाहर बताए गए गांव और धार्मिक स्थल डूब में आ गए। इसके बाद प्रशासन ने सभी के पुनर्वास की बात कही। आज तक इसमें कुछ नहीं हुआ। अफसरों की मानें, तो नए परिक्रमा पथ का प्रस्ताव ही नहीं बन सका।
CM मोहन यादव भी दे चुके आश्वासन
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 2 दिसंबर 2024 को ओंकारेश्वर में आयोजित ब्रह्मपुरी घाट पर आयोजित “अमृतस्य मां नर्मदा पद परिक्रमा कार्यक्रम” में कहा था कि नर्मदा परिक्रमा का पथ विकसित किया जाएगा। यात्रा मार्ग में आश्रय भी बनाए जाएंगे, ताकि यात्री यहां आराम कर सकें। मां नर्मदा पद परिक्रमा बड़ी यात्रा होती है। ऐसे में नर्मदा परिक्रमा पथ को सुदृढ़ किया जाएगा। इसके लिए पांच मंत्रियों की समिति बनाई जाएगी, ताकि यह काम तेजी से किया जा सके।
पूर्व मुख्यमंत्री सहित कई बड़े नेता, संत कर चुके परिक्रमा
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत कई बड़े नेता और संत नर्मदा परिक्रमा के दौरान यहीं से निकले। 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इसी मार्ग से होकर नर्मदा परिक्रमा के लिए निकले थे। शिवराज सरकार में कृषि मंत्री रहे कमल पटेल ने तीन बार नर्मदा परिक्रमा की। पहली बार 1999, दूसरी बार 2021 और तीसरी बार 2023 में इसी मार्ग से नर्मदा परिक्रमा की थी। प्रह्लाद पटेल ने सांसद व केंद्रीय राज्यमंत्री रहते हुए 2020 में नर्मदा परिक्रमा की थी। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी 2017 में गाड़ियों से नर्मदा जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से नर्मदा परिक्रमा की थी। विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले नर्मदा सेवा यात्रा निकाली थी। इसी दौरान घोषणा की थी।
नर्मदा परिक्रमा की महिमा
मान्यता है कि गंगा किनारे मृत्यु और नर्मदा किनारे तप करने से सीधे मोक्ष मिलता है। नर्मदा पुराण में भी नर्मदा परिक्रमा का महत्व बताया गया है। नर्मदा परिक्रमा भी कई तरह की होती है। कोई पंचक्रोशी नर्मदा परिक्रमा करता है, तो कोई जनेरी नर्मदा परिक्रमा। संत 3 साल 3 महीने और 13 दिन की परिक्रमा करते हैं। इस यात्रा में अमरकंटक से लेकर कस्तूर (भरूच) गुजरात तक एक ही दिशा में (उत्तर या दक्षिण) तटों पर पहुंचकर वहां से वापस उसी दिशा में यात्रा करनी होती है। इस नर्मदा परिक्रमा यात्रा में संत नर्मदा तटों पर निश्चित समय के लिए चातुर्मास कर तप भी करते हैं।