आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। पुराणों में बताया जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार मास तक पाताल लोक में निवास करते हैं और कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकदशी को प्रस्थान करते हैं। इसी कारण इसे देवशयनी एकादशी और कार्तिक मास की एकादशी को
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एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में शुक्रवार को यह बात कही।
इस दिन भगवती लक्ष्मी का पूजन भी माना जाता है श्रेष्ठ
महाराजश्री ने बताया मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे, इसलिए इसे ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप का श्रृंगार करके उनके लिए विशेष रूप से सजाए गए डोल में नगर भ्रमण कराया जाता है। इस दिन भगवती लक्ष्मी का पूजन भी श्रेष्ठ माना जाता है। लक्ष्मी पूजा से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, क्योंकि वे इन दिनों निरंतर उनकी सेवा में लगी रहती हैं। जो भगवान की सेवा में लगा रहता है, वह भगवान को प्रिय होता है। रामायण में कहा गया है कि मुझसे भी अधिक मुझे पूजने वाले मेरे साधु-संत की जो सेवा करता है, वह मुझे प्रिय होता है। इस दिन भगवान का पूजन-अर्चन करके बाल रूप श्रीकृष्ण को झूला झुलाया जाता है। संभवत: इसी कारण इसे डोल ग्यारस कहा जाता है।इन दिनों व्यक्ति भगवान के करवट बदलने की खुशी में नाचते-गाते पूजन कर भक्तिमय हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है जिससे उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है।