छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सुकमा वनमंडल में आदिवासी तेन्दूपत्ता संग्राहकों के बोनस घोटाले को लेकर राज्यपाल रामेन डेका को पत्र लिखा है।
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उन्होंने इसे “गरीब आदिवासियों के हक पर डाका” बताते हुए गंभीर चिंता जताई और राज्य सरकार की लापरवाही पर सवाल उठाए। और बोनस की राशि आदिवासी संग्राहकों को जल्द भुगतान करने की बात कही।
पत्र में उन्होंने बताया कि सुकमा वनमंडल में 67,732 आदिवासी संग्राहकों को वर्ष 2021-22 के लिए मिलने वाली ₹8.21 करोड़ की बोनस राशि का गबन कर लिया गया है, लेकिन अब तक सिर्फ एक अधिकारी को ही निलंबित कर कार्रवाई की खानापूर्ति की गई है।
वन विभाग से जुड़े अफसरों ने मिलकर गबन किया
महंत ने आरोप लगाया कि 25 प्राथमिक लघु वनोपज सहकारी समितियों के प्रबंधकों, पोषक अधिकारियों और डीएफओ समेत वन विभाग के अधिकारियों ने मिलकर यह गबन किया।
उन्होंने मांग की कि भारतीय न्याय संहिता, 2023 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1980 के तहत सभी आरोपियों पर आपराधिक केस दर्ज कर गिरफ्तारी होनी चाहिए। साथ ही, सभी दोषियों को निलंबित कर विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए।
वन मंत्री ने विधानसभा में झूठी जानकारी दी
उन्होंने कहा कि वन मंत्री ने विधानसभा के बजट सत्र में सदन के पटल पर शत-प्रतिशत बोनस वितरण की झूठी जानकारी दी, जबकि हकीकत में संग्राहकों को पैसा मिला ही नहीं।
महंत ने कहा, कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सतर्कता से ही यह घोटाला सामने आ पाया। छापों के बाद मामला उजागर हुआ, लेकिन सरकार अब भी लीपापोती में लगी है।
महंत ने यह भी लिखा कि वर्ष 2023-24 में बोनस की यह राशि नगद रूप में संग्राहकों को दी जानी थी, जिसके लिए बजट भी जारी हुआ, लेकिन वितरित करने की बजाय उसे गबन कर लिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि यह बोनस राज्य सरकार के खजाने से नहीं, बल्कि तेन्दूपत्ता विक्रय से प्राप्त लाभ का 80% होता है, जिसे संग्राहकों में बांटा जाता है।
महंत ने राज्यपाल से की ये 8 प्रमुख मांगें:
- ₹8.21 करोड़ की पूरी राशि लघु वनोपज संघ द्वारा फिर से जारी कर पात्र संग्राहकों को तत्काल वितरित की जाए।
- गबन में संलिप्त सभी प्रबंधक, पोषक अधिकारी और कर्मचारी निलंबित हों और गिरफ्तार किए जाएं।
- विधानसभा में गलत जानकारी देने वाले अफसरों पर भी हो कार्रवाई।
- वर्तमान सीजन में घोटालेबाज अधिकारियों को तत्काल हटाया जाए।
- बोनस वितरण का सत्यापन वन विभाग से इतर विभाग के अफसरों से कराया जाए।
- बोनस वितरण में विलंब की जांच कराई जाए।
- विष्णुदेव साय की सरकार में इतना बड़ा आदिवासी बोनस घोटाला पहली बार हुआ है।
- बोनस की यह राशि राजस्व नहीं, बल्कि आदिवासियों का अधिकार है—इसे लूटा गया है।
डॉ. महंत ने अंत में लिखा कि आदिवासी मुख्यमंत्री के प्रदेश में आदिवासियों के साथ इतना बड़ा अन्याय चौंकाने वाला है और इस पर राज्यपाल को व्यक्तिगत रूप से संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करना चाहिए।