ड्रिप सिंचाई तकनीक में बूंद -बूंद पानी से पौधों की सिंचाई होती है।
नोएडा में इजराइल की तकनीक से पेड़ों की सिंचाई की जाएगी। इसे ड्रिप तकनीक कहते हैं। इसी के जरिए नोएडा एक्सप्रेस के सेंट्रल वर्ज पर सिचाई का काम किया जाएगा। ये काम सीएसआर के तहत होगा। इसके लिए प्राधिकरण ने अपने सलाहकार को एस्टीमेट बनाने के लिए कहा है। बत
.
ये तस्वीर सेक्टर-6 स्थित नोएडा प्राधिकरण के प्रशासनिक खंड कार्यालय की है।
नोएडा ग्रेटरनोएडा एक्सप्रेस का अधिकांश हिस्सा नोएडा में आता है। वर्तमान में यहां टैंकर के जरिए सिंचाई की जाती है। इस तरह से सिंचाई करना पेड़ पौधों को नुकसान पहुंचाता है साथ हाइ स्पीड एक्सप्रेस वे पर ये अन्य वाहनों के लिए घातक है। इसलिए यहां ड्रिप सिंचाई कराने पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए सर्विस लेन पर एक टैंकर बनाया जाएगा।
जिसमें एसटीपी से लाया गया पानी स्टोर होगा। इस पानी को फिल्टर किया जाएगा। फिल्टर पानी दूसरी पाइप लाइन के जरिए एक्सप्रेस वे की सेंट्रल वर्ज तक जाएगा। इस पाइप में कुछ-कुछ दूरी पर छेद होते है। इन छेदों से पानी ड्राप-ड्राप करके जमीन पर पानी जाता है। जिससे पौधों को पानी मिलता है। साथ ही पानी की बर्बादी नहीं होती।

ड्रिप सिंचाई कुछ इस तरह से खेतों में होती है।
कैसे करता है काम ड्रिप सिंचाई की एक आधुनिक तकनीक है । जिसमें पानी पौधों की जड़ों तक बूंद-बूंद करके पहुंचाया जाता है। इसे टपक सिंचाई या बूंद-बूंद सिंचाई भी कहा जाता है। ड्रिप सिंचाई में पानी की बर्बादी कम होती है और पौधों को ज़रूरी मात्रा में पानी मिलता है। इसमें खर्चा सिर्फ टैंकर और पानी सप्लाई के पाइप की आवश्यकता होती है। इस टैंकर से पानी सप्लाई का काम मशीनों से किया जाता है। इसे इको फ्रेंडली बनाने के लिए मशीन आपरेशन का सारा काम सोलर एनर्जी से किया जाएगा।

इस तरह से पाइप लाइन बिछाई जाती है। जिसके जरिए होती है सिंचाई।
ड्रिप सिंचाई से जुड़ी कुछ खास बातें ड्रिप सिंचाई में पानी और पोषक तत्वों को पाइपों के ज़रिए खेत में पहुंचाया जाता है। इन पाइपों को ड्रिपलाइन कहा जाता है। ड्रिपलाइन में छोटे-छोटे एमिटर होते हैं, जो पानी और उर्वरक की बूंदें छोड़ते हैं। पानी की मात्रा और दबाव को नियंत्रित किया जा सकता है। पानी का रिसाव कम होता है और वाष्पीकरण भी कम होता है। पौधों की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार होता है।