तारीख थी 3 जून 2017, वक्त रात के 8 बजे। जगह अहमदाबाद का ओढव सिटी। कंधे पर झोला टांगे 34-35 साल के दुबले-पतले शख्स ने मकान नंबर D/147 की घंटी बजाई। 55 साल की महिला दरवाजा खोलते ही बोली- ‘तुम…अब क्या है तुम्हारा यहां, जो आए हो।’
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आदमी ने महिला को धक्का दिया और अंदर घुस गया। कहने लगा- ‘बहुत बीमार रहती हो न अम्मा। मैंने सोचा घर आकर इलाज कर देता हूं।’
उसने झोले से कुल्हाड़ी निकाली और महिला के सिर पर एक के बाद एक कई वार किए। महिला का सिर टुकड़ों में बंट गया। फिर उसने गड़ासे से लाश के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। हॉल से साड़ी लेकर आया और उसमें लाश समेटकर बांध दी। उसके हाथ खून से सने हुए थे। दोनों हाथ झटकते हुए बुदबुदाया, ‘जब भी उससे संबंध बनाता, ये #@$%b बीच में आ जाती थी।’
इसी बीच दरवाजे की घंटी बजी। दरवाजा खोला, तो सामने 36 साल का एक आदमी खड़ा था। उसने अंदर घुसते ही देखा कि फर्श पर खून ही खून फैला है। सकपकाते हुए बोला-‘ये खून किसका है। तुमने मां को मार दिया… नहीं, नहीं।’
ठहाके लगाते हुए कातिल बोला- ‘तुम्हारी मां तो गई, चलो तुझे भी उसके पास भेज देता हूं।’
उसने कुल्हाड़ी उठाई और उसके सिर पर दे मारी। वह तड़पते हुए गिर पड़ा। अब कातिल दौड़कर हॉल में गया और गड़ासा लेकर आया। उसकी गर्दन पर गड़ासा से तीन-चार वार किया। गर्दन कटकर लटक गई। दौड़कर हॉल से एक बोरी लाया और लाश उसमें ठूंस दी।
कातिल अब पूरी तरफ थक चुका था। वह बेड रूम में गया और पलंग पर फैलकर लेट गया। अचानक उसे नींद लग गई। 3.30 बजे वह जागा। झट से उठा, कुल्हाड़ी, गड़ासा और चाकू को झोले में रखा और दरवाजा खोलकर दबे पांव निकल गया।
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘मृत्युदंड’ में ओढव डबल मर्डर केस के पार्ट-1 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-2 में आगे की कहानी…
कंचनबेन और उनके बेटे विपुलभाई का कत्ल करने के बाद आरोपी ने झोले में औजार रखे और चुपचाप निकल गया। स्केच- संदीप पाल
डबल मर्डर के 3 दिन बाद यानी 6 जून 2017 की सुबह 8 बजे का वक्त। मकान नंबर D/147 के ठीक सामने रहने वाले अशोकभाई प्रजापति अपने घर से बाहर निकले। उन्होंने महसूस किया कि बुजुर्ग महिला के घर से सड़े हुए मांस की बदबू आ रही है।
वे थोड़ा और आगे बढ़े। बदबू तेज आने लगी। उन्होंने दरवाजे पर लगी घंटी बजाई, लेकिन कोई आवाज नहीं आई। अशोकभाई सोचने लगे कि कुछ तो गड़बड़ है। उन्होंने आवाज देकर आसपास के लोगों को बुला लिया। मोहल्ले वाले मकान नंबर D/147 के बाहर जुट गए।
भीड़ में से एक ने कहा, ‘इस मकान में तो कंचनबेन, उसका बेटा विपुलभाई और बहू सुजाताबेन रहते थे। तीन-चार दिनों से किसी की आवाज नहीं सुनी। न कोई आ-जा रहा है। मामला गड़बड़ लगता है। मकान मालिक को फोन करो।’
अशोकभाई ने जेब से मोबाइल निकाला। एक नंबर डायल किया। बोले- ‘दिव्येशभाई… आपके मकान से तेज बदबू आ रही। लग रहा है कि अंदर सड़ा हुआ मांस है। कब से दरवाजे की घंटी बजा रहा, कोई जवाब नहीं दे रहा।’
दिव्येश अपनी दुकान जाने के लिए तैयार हो रहे थे। वे अहमदाबाद के पुरुषोत्तमनगर सोसाइटी से भागे-भागे सिंगरवा बस्ती पहुंचे। देखा, पूरे मोहल्ले के लोग उनके मकान के बाहर जुटे हुए थे। घबराते हुए उन्होंने अशोक से कहा, ‘बदबू तो तेज आ रही है। फिर से घंटी बजाओ न।’
‘कब से तो घंटी बजा रहा। मुझे नहीं लगता कि कोई अंदर है।’ कहते हुए अशोक दरवाजे तक गए और फिर से घंटी बजाने लगे, पर कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद दिव्येश ने भी आवाज लगाई- ‘ओ विपुलभाई, कंचनबेन, सुजाताबेन कोई है क्या?’ इस बार भी कोई जवाब नहीं मिला।

अशोकभाई मोहल्ले के लोगों को बता रहे हैं कि सामने वाले घर से सड़े मांस की बदबू आ रही है। स्केच- संदीप पाल
अशोकभाई बोले- ‘वक्त जाया न करो। जल्द पुलिस को फोन करो।’
दिव्येश ने थाने में फोन किया। एक घंटे के भीतर ओढव थाने की पुलिस पहुंच गई। इंस्पेक्टर एनएल देसाई ने वहां मौजूद लोगों से पूछा, ‘किसका मकान है ये?’
‘साहब मेरा है। मैंने रेंट पर दूर के चाचा के बेटे विपुलभाई को दिया था। 2500 रुपए महीने के किराए पर। ’ घबराए हुए दिव्येश ने कहा।
इंस्पेक्टर एनएल देसाई ने अपनी टीम से कहा, ‘दरवाजा तोड़ दो।’
पुलिस ने जोर-जोर से धक्का देकर दरवाजा तोड़ दिया। इंस्पेक्टर देसाई और बाकी लोग अंदर घुसे। हॉल में हल्का अंधेरा था। कहीं कोई नजर नहीं आ रहा था। बेड रूम में भी कोई नहीं था। अब इंस्पेक्टर उस तरफ बढ़े, जहां से बदबू आ रही थी। बाथरूम तक पहुंचते-पहुंचते पुलिस वालों को उबकाई आने लगी।
पुलिस ने जल्दी-जल्दी घर के सभी कमरे और खिड़की खुलवाए। बाथरूम एरिया में खून से सनी एक गठरी और एक बोरी रखी थी। पुलिस वाले गठरी और बोरी खींचकर हॉल में ले गए। एनएल देसाई ने एक कॉन्स्टेबल से कहा- ‘खोलो इसे। देखो क्या है अंदर?’
दो पुलिस वालों ने गठरी खोलनी शुरू की। एक इंसान की लाश मिली। पूरी तरह से सड़ चुकी। कीड़े बजबजा रहे थे। दूसरे कॉन्स्टेबल ने बोरी फाड़ दी। उसमें भी एक कटी-फटी लाश थी।

पुलिस को कंचनबेन के घर दो लाश मिली। दोनों लाश सड़ चुकी थीं। स्केच- संदीप पाल
इंस्पेक्टर देसाई ने इधर-उधर नजर दौड़ाई। कहीं कोई हथियार या औजार नहीं दिख रहा था। उन्होंने दिव्येश से कहा- ‘किसकी लाश है, पहचानते हो?’ दिव्येशभाई बोले, ‘साहब ये दोनों लोग कौन हैं, मुझे नहीं पता।’
दरअसल, लाश इतना सड़ चुकी थी कि पहचान पाना मुश्किल था।
इंस्पेक्टर देसाई ने फिर पूछा, ‘कंचनबेन के परिवार में और कोई है क्या?’
‘हां साहब, सतारा में उसका परिवार रहता है। नयनभाई और उसकी भाभी कृष्णाबेन।’ दिव्येश बोला।
‘उन्हें खबर करो।’, एनएल देसाई बोले।
दोनों लाश की तस्वीर ली गई। कुछ ही देर में फोरेंसिक और पोस्टमार्टम टीम भी वहां पहुंच गई। कमरे में फर्श पर खून के हल्के-हल्के निशान थे। फोरेंसिक टीम उसके सैंपल लेने लगी। तभी उनकी नजर दीवार पर पड़ी। कुछ-कुछ जगहों पर दीवार रगड़ी हुई थी।
फोरेंसिक टीम ने सभी सैंपल लेने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए गांधीनगर भेज दिया।
ओढव पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 यानी हत्या, 201 यानी साबूत मिटाना और गुजरात पुलिस एक्ट 135 (1) के तहत अज्ञात शख्स के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। इंस्पेक्टर देसाई, मकान मालिक दिव्येशभाई को भी थाने ले गए।

थाने में मकान मालिक दिव्येशभाई से पूछताछ करते इंस्पेक्टर देसाई। स्केच- संदीप पाल
इंस्पेक्टर देसाई ने दिव्येशभाई से पूछा, ‘जो लोग इस मकान में रहते थे, उनके बारे में जो भी जानते हो, आराम से बताओ।’
दिव्येश ने बताना शुरू किया, ‘डेढ़ साल पहले दूर के चाचा सुरेशभाई ने कॉल किया था। उन्होंने बताया कि उनके बेटे विपुलभाई की अहमदाबाद की एक कंपनी में नौकरी लगी है। उसे किराए पर अपना मकान दे दीजिए। मैंने हां कर दी।
वेरिफिकेशन के लिए जब मैं आया तो देखा कि विपुल, उनकी मां कंचनबेन, पत्नी सुजाताबेन और सात साल की बेटी वैष्णवी कमरे में रह रहे थे।’
पुलिस के लिए यह केस एक पहली की तरह था। न कोई चश्मदीद गवाह था और ना ही किसी आरोपी का नाम सामने आया था। उधर, कंचनबेन के दूसरे बेटे नयनभाई को जैसे ही यह खबर मिली वे पत्नी कृष्णाबेन के साथ सतारा से अहमदाबाद के लिए निकल गए।
रास्ते में नयनभाई ने पत्नी से कहा, ‘पता नहीं दोनों लाश किसकी है। दिव्येशभाई भी नहीं पहचान पाए। मां, भाई भी नहीं मिल रहे हैं। मुझे तो बड़ी चिंता हो रही है।’
अहमदाबाद पहुंचते ही दोनों ओढव पुलिस स्टेशन पहुंचे। इंस्पेक्टर देसाई उनका इंतजार कर रहे थे। देसाई ने उन्हें लाश की फोटो दिखाई। फोटो देखते ही नयनभाई के चेहरे पर पसीने आ गए। लगभग चीखते हुए बोले, ‘ये तो मां कंचनबेन और भाई विपुल है। किसने मारा, हमारी तो किसी कोई दुश्मनी भी नहीं थी।’

अपने भाई और मां की लाश की फोटो देखकर नयनभाई थाने में रोने लगे। स्केच- संदीप पाल
‘इसकी पत्नी सुजाता और बेटी वैष्णवी कहां है?’, इंस्पेक्टर देसाई ने पूछा।
कृष्णाबेन बोली, ‘सुजाता बेटी के साथ मायके में है।’
‘मायके क्यों, कब गई?’
कृष्णाबेन बोली- ‘साहब, मां से कुछ दिन पहले बात हुई थी। वो बता रही थी कि सुजाता का किसी के साथ चक्कर है। वो आदमी बार-बार घर पर आ जाता है। विपुलभाई घर पर नहीं होते हैं, तो वह सुजाता के साथ गलत काम करता है। मां ने दोनों को कई बार पकड़ भी लिया था। ये बात जब विपुल को पता चली, तो उसने सुजाता की पिटाई कर दी। उसे सतारा के शिवनगर में पिता के घर भेज दिया। वह वैष्णवी को भी लेकर चली गई।’
चक्कर किसके साथ था?
‘अब किसके साथ चक्कर था। मुझे ये नहीं पता। बस मां इतना कहती थी कि जिस हॉस्पिटल में वो इलाज कराने के लिए जाती हैं, उसी के कंपाउंडर से सुजाता फंसी हुई है।’
इंस्पेक्टर देसाई नयनभाई से बोले, ‘सुजाता को बुलावा भेजो कि वो जल्द से जल्द थाने पहुंचे।’
‘साहब, हमारी उससे बातचीत नहीं होती। जब मां ने अवैध संबंध के बारे में बताया था, तो मैंने उसे समझाया, लेकिन वह मुझसे ही लड़ने लगी। उसके बाद से कभी हमारी बात नहीं हुई।’
सुजाता कहां रहती है, कुछ पता है?
नयनभाई ने इंस्पेक्टर देसाई को उसका पता लिखवा दिया। देसाई ने फौरन एक टीम सतारा के शिवनगर के लिए भेज दी।
इधर, इंस्पेक्टर देसाई फिर से उस मकान में गए, जहां दो सड़ी हुई लाशें मिली थीं। पूरे कमरे को छान मारने के बाद एक पर्ची मिली। इसमें पता था, डॉ. योगेश, श्रीराम हॉस्पिटल, ओढव।
7 जून 2017 की सुबह पुलिस श्रीराम हॉस्पिटल पहुंची। डॉ. योगेश अपने केबिन में थे। इंस्पेक्टर देसाई ने कंचनबेन और विपुलभाई की फोटो दिखाते हुए उनसे पूछा, ‘इन्हें पहचानते हो।’
डॉ. योगेश ने कुछ देर सोचने के बाद कहा, ‘सर, ये तो कंचनबेन है। मेरे यहां इलाज करवाने के लिए आती थी।’
‘इसके साथ और कौन आता था यहां?’
‘सर… इसकी बहू।’ डॉ. ने जवाब दिया।

श्रीराम हॉस्पिटल में डॉ. योगेश को कंचनबेन की फोटो दिखाते हुए इंस्पेक्टर देसाई। स्केच-संदीप पाल
डॉक्टर के केबिन के बगल में बने काउंटर पर 34-35 साल एक शख्स दवा पैक कर रहा था। पुलिस को देखते ही वह सकपका गया। इंस्पेक्टर देसाई ने कंपाउंडर को कंचनबेन और विपुलभाई की फोटो दिखाते हुए पूछा- ‘इसे पहचानते हो?’
‘हां साहब, ये तो कंचनबेन है। कुछ ही दिन पहले इलाज करवाने के लिए आई थी। बाकी मुझे कुछ नहीं पता।’, कंपाउंडर का चेहरा उतरा हुआ था।
इसके बाद इंस्पेक्टर देसाई थाने पहुंचे। उन्हें बताया गया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई है। जिसमें बताया गया है कि लाश मिलने के 72 घंटे पहले दोनों का मर्डर किया गया था।
इंस्पेक्टर देसाई अपनी टीम के साथ एक बार फिर से मकान नंबर D/147 के पास पहुंचे। आसपास के लोगों से पूछताछ करनी शुरू की। पूछते-पूछते वे पड़ोस के अमित राणा के घर पहुंचे। इंस्पेक्टर देसाई ने अमित से पूछा- ‘तीन-चार दिन पहले इस घर में किसी को आते हुए देखा है क्या?’
अमित राणा कुछ याद करते हुए बोले, ‘साहब, 3 जून की रात करीब 3-4 बजे मैं पेशाब करने के लिए घर से बाहर निकला, तो एक दुबला-पतला आदमी जल्दी-जल्दी उस मकान से बाहर निकल रहा था। उसके हाथ में झोला भी था। अंधेरा था, मैं चेहरा तो नहीं पहचान पाया।’
इंस्पेक्टर ने आसपास के इलाकों की सीसीटीवी फुटेज निकलवाई। बस्ती के एंट्री गेट पर 3 जून की रात करीब साढ़े 8 बजे एक आदमी पैदल चलते हुए दिखा। उसके हाथ में झोला था। उसी कैमरे में सुबह 4 बजे उसी आदमी का चेहरा दिखा। हाथ में अभी भी एक झोला था।

पुलिस को सीसीटीवी फुटेज में आरोपी दिखा। उसके हाथ में झोला भी था। स्केच- संदीप पाल
सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद इंस्पेक्टर देसाई को ध्यान आया- इसका हुलिया तो श्रीराम हॉस्पिटल के कंपाउंडर जैसा मिल रहा। कंचनबेन की बहू कृष्णाबेन भी बोल रही थी कि सुजाता का कंपाउंडर के साथ चक्कर था। उसे पकड़ना पड़ेगा।
अगले दिन इंस्पेक्टर देसाई सुबह-सुबह हॉस्पिटल पहुंच गए, लेकिन काउंटर पर कंपाउंडर नहीं था। इंस्पेक्टर देसाई ने डॉक्टर योगेश से पूछा- कहां है कंपाउंडर?
‘सर…आज तो उसने छुट्टी ली है। कह रहा था कि महाराष्ट्र जाना है।’
तभी इंस्पेक्टर देसाई का फोन बजा। उधर से आवाज आई- ‘सर… इस हुलिया का आदमी कालूपुर रेलवे स्टेशन पर दिखा है।’
इंस्पेक्टर जीप में बैठे और कालूपुर रेलवे स्टेशन के लिए निकल गए।
श्रीराम हॉस्पिटल का कंपाउंडर कौन था? अगले दिन वह गायब क्यों हो गया? पुलिस कातिल तक कैसे पहुंची? पूरी कहानी ओढव डबल मर्डर केस पार्ट-3 में…
आरोपी बोला- मैं सुजाता के साथ उसके कमरे में था, तभी उसका पति आ गया

‘एक शाम मैं सुजाता के साथ उसके कमरे में था। अचानक उसका पति विपुल आ गया। मैं पीछे की दीवार फांदकर भाग गया, लेकिन सुजाता पकड़ी गई। विपुल ने उसकी जमकर पिटाई कर दी। तब उसकी सास ने भी विपुल से बता दिया कि अस्पताल के कंपाउंडर के साथ इसका चक्कर है। उसने कई बार इसके साथ गलत किया है। उसके बाद विपुल ने सुजाता को मार पीटकर उसके मायके भेज दिया। इसी के बाद मैंने उनकी हत्या का प्लान बना लिया।’ पूरी कहानी पढ़िए ओढव डबल मर्डर केस पार्ट-3 में…
(नोट- यह सच्ची कहानी, पुलिस चार्जशीट, केस जजमेंट, एडवोकेट आर एफ पटानी और रजनीश पटानी, रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर एनएल देसाई से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा है।