नई दिल्ली8 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

जिस बीजे मेडिकल कॉलेज की हॉस्टल बिल्डिंग पर गिरा, उसमें हादसे के वक्त 60 से ज्यादा डॉक्टर, स्टूडेंट्स और कुछ अन्य लोग मौजूद थे। इनमें से 34 की मौत हुई है। इससे मरने वालों का आंकड़ा 275 पहुंच गया।
12 जून 2025 का दिन। एअर इंडिया की फ्लाइट AI-171 ने दोपहर 1 बजकर 38 मिनट 40 सेकेंड पर अहमदाबाद एयरपोर्ट से लंदन के लिए टेकऑफ किया। प्लेन 625 फीट की ऊंचाई तक पहुंचता है और 174 नॉट्स की टॉप स्पीड हासिल करता है, फिर तेजी से नीचे आने लगता है। पायलट सुमीत सभरवाल और को-पायलट क्लाइव कुंदर एयर ट्रैफिक कंट्रोल यानी ATC को “मेडे” कॉल करते हैं।
सुमित सभरवाल कहते हैं- मेडे, मेडे, मेडे… थ्रस्ट नहीं मिल रहा, प्लेन उठ नहीं रहा। नहीं बचेंगे। सुमित को 8,200 घंटे से ज्यादा का फ्लाइंग एक्सपीरियंस था। को पायलट को भी 1,100 घंटे का फ्लाइंग एक्सपीरियंस था। फिर ऐसा क्या हुआ कि चंद सेकेंड में ही एअर इंडिया की ये फ्लाइट एक बड़ा आग का गोला बन गई। ये पायलट की किसी गलती से हुआ यो बोइंग के प्लेन में आई किसी तकनीकी दिक्कत से।
इस हादसे में 242 यात्रियों और क्रू मेंबर्स में से 241 की मौत हो गई। सिर्फ एक भारतीय मूल के ब्रिटिश यात्री की जान बची। यह बोइंग 787-8 के इतिहास का पहला क्रैश था। हादसे की जांच शुरू हो चुकी है और शुरुआती अनुमानों में इस क्रैश लेकर एक्सपर्ट्स की 4 तरह की थ्योरी है…
1. दोनों इंजन में खराबी
2. फ्यूल कंटेमिनेशन यानी दूषित ईंधन
3. बिना फ्लैप्स के टेकऑफ
4. पायलट ने गलती से फ्लैप्स उठा दिए
इन चारों थ्योरीज में कितना दम है इसका एक्सपर्ट के साथ बारी-बारी से एनालिसिस करते हैं। लेकिन इसे आसानी से समझने के लिए प्लेन के उड़ने की साइंस को भी समझना होगा। इसलिए सबसे पहले हवाई जहाज के मुख्य हिस्से और उनका काम जान लेते हैं…
- सबसे आगे जहाज की नोज होती है। इसके पीछे कॉकपिट है, जहां पायलट बैठकर स्टीयरिंग, पेडल और इंस्ट्रूमेंट्स से जहाज कंट्रोल करता है।
- विंग्स यानी पंख जिससे लिफ्ट मिलती है। इनमें फ्यूल टैंक भी होते हैं। पंखों के नीचे टर्बोफैन इंजन लगे होते हैं, जो जहाज को रफ्तार देते हैं।
- बीच के हिस्से को फ्यूजलाज कहते हैं। ये हवाई जहाज का वो हिस्सा है, जिसमें बाकी सारे हिस्से जैसे पंख, पूंछ, इंजन जोड़े जाते हैं। इसमें पैसेंजर्स और उनका सामान रहता है।
- भारी सामान नीचे कार्गो होल्ड में रखते हैं। सबसे पीछे टेल होती है, जो जहाज को ऊपर-नीचे और दाएं-बाएं मोड़ने में काम आती है।

अब समझिएं टेकऑफ, क्रूज और लैंडिंग…
टेकऑफ:
प्लेन के विंग्स में एयरफॉइल होते हैं, जो ऊपर से कर्व और नीचे से थोड़े फ्लैट होते हैं। इस शेप के कारण जब जहाज रनवे पर तेजी से दौड़ता है, तो हवा विंग्स के ऊपर और नीचे से गुजरती है। विंग्स के ऊपर की हवा तेजी से निकलती है, जिससे वहां कम एयर मॉलिक्यूल्स जमा होते हैं और प्रेशर भी कम बनता है।
विंग्स के नीचे की हवा धीमी होती है, इसलिए वहां ज्यादा एयर मॉलिक्यूल्स जमा हो जाते हैं और प्रेशर भी ज्यादा बनता है। ये प्रेशर का फर्क और नीचे की तरफ जमा ज्यादा एयर मॉलिक्यूल्स जहाज को ऊपर धकेलते हैं।

विंग्स के ऊपर की हवा तेजी से निकलती है, और प्रेशर भी कम बनता है। विंग्स के नीचे की हवा धीमी होती है, और प्रेशर ज्यादा बनता है। ये प्रेशर का फर्क और जहाज को ऊपर धकेलता है।
इसे न्यूटन के नियम से भी समझ सकते हैं। न्यूटन का तीसरा नियम कहता है: “हर क्रिया की बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” यानी, अगर कोई वस्तु दूसरी वस्तु पर बल लगाती है, तो दूसरी वस्तु भी पहले पर उतना ही बल, लेकिन उल्टी दिशा में लगाती है। प्लेन के विंग्स हवा के मॉलिक्यूल्स को नीचे दबाते हैं और ये मॉलिक्यूल्स विपरीत दिशा में बल लगाते हैं, जिससे प्लेन ऊपर उठ जाता है। आसान भाषा में कहे तो जहाज के पंख हवा को नीचे दबाते है जिससे जहाज ऊपर उठता है और फ्लाई कर पाता है।

प्लेन के विंग्स में एयरफॉइल होते हैं, जो ऊपर से कर्व और नीचे से थोड़े फ्लैट होते हैं। इन्हीं एयरफॉइल्स से मिलकर विमान का पूरा विंग बनता है।
यहां एक और बात समझना जरूरी है कि जहाज की स्पीड जितनी ज्यादा होगी उतने ही ज्यादा एयर मॉलिक्यूल जमा होंगे और जहाज को उतना ही लिफ्ट मिलेगा। टेकऑफ के दौरान पायलट टर्बोफैन इंजन को फुल थ्रॉटल देता है, जिससे जहाज रनवे पर तेज दौड़ता है।
इसके अलावा जहाज को ऊपर उठाने में एंगल ऑफ अटैक यानी विंग्स का हवा से टकराने के कोण का भी बड़ा रोल है। एंगल ऑफ अटैक के ज्यादा होने से लिफ्ट बढ़ जाती है। इसे टेक ऑफ के समय टेल में लगे एलिवेटर से बढ़ाया जाता है। एलिवेटर को ऊपर उठाने से प्लेन की टेल नीचे और नोज ऊपर हो जाती है।

हवाई जहाज के फ्लैप्स और स्लैट्स यानी, विंग्स के पीछे और आगे की मूविंग प्लेट्स भी लिफ्ट जनरेट करने में मदद करते हैं। जहां रनवे छोटे होते हैं वहां इनकी मदद से ही प्लेन को ज्यादा लिफ्ट मिलती है।

क्रूज:
हवाई जहाज को हवा में टिके रहने के लिए लगातार तेजी से चलना पड़ता है, ताकि विंग्स से लिफ्ट मिलती रहे। अगर स्पीड कम हुई, तो वजन की वजह से जहाज नीचे गिर जाएगा।
हवा में टर्न करने के लिए टेल काम आती है। एलिवेटर ऊपर-नीचे की मूवमेंट के लिए है। दाएं-बाएं टर्न के लिए रडर होता है, जो हवा के दबाव से जहाज को मोड़ता है। पायलट कॉकपिट से ये सब कंट्रोल करता है।
लैंडिंग:
पायलट इंजन की स्पीड कम करता है, जिससे लिफ्ट कम हो और जहाज धीरे-धीरे नीचे आए। फ्लैप्स और स्लैट्स खोलकर कम स्पीड में भी कंट्रोल बनाए रखा जाता है। स्पॉइलर्स (विंग्स पर छोटी प्लेट्स) खुलते हैं, जो लिफ्ट कम करते हैं और हवा का रेजिस्टेंस बढ़ाते हैं। इंजन में रिवर्स थ्रस्ट लगाकर हवा को आगे फेंका जाता है, जिससे जहाज धीमा होता है। टायरों में ब्रेक्स भी लगते हैं और जहाज रनवे पर रुक जाता है।
एअर इंडिया के बोइंग 787-8 विमान क्रैश की 4 थ्योरी को एविएशन एक्सपर्ट और कॉमर्शियल पायलट कैप्टन स्टीव से समझतें है। कैप्टन स्टीव ने बोइंग 777 और बोइंग 787 दोनों उड़ाए हैं…
1. दोनों इंजन में खराबी: कुछ लोगों का मानना है कि विमान के दोनों इंजनों ने एक साथ काम करना बंद कर दिया, जिसके कारण विमान की लिफ्ट खत्म हो गई। लेकिन कैप्टन स्टीव के मुताबिक, यह थ्योरी कमजोर है।
वीडियो में इंजनों से कोई आग, धुआं या चिंगारी नहीं दिख रही, जो आमतौर पर इंजन फेल होने पर दिखती है। अगर पक्षियों का झुंड इंजनों में घुस गया होता, तो भी कुछ निशान दिखते, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है।
कैप्टन स्टीव ने यह भी कहा कि बोइंग 787 एक इंजन पर भी उड़ सकता है, और अगर एक इंजन फेल भी होता, तो विमान इतनी जल्दी क्रैश नहीं होता। दोनों इंजनों का एक साथ फेल होने की संभावना काफी कम है।

इंजनों से कोई आग, धुआं या चिंगारी नहीं दिख रही, जो आमतौर पर इंजन फेल होने पर दिखती है।
2. दूषित ईंधन: अगर फ्यूल कंटेमिनेशन होता, तो टेकऑफ से पहले, जब पायलट्स ने इंजनों की शक्ति बढ़ाई तो इंजनों में खराबी के संकेत मिलते। उदाहरण के लिए, इंजन “स्पटरिंग” यानी, रुक-रुक कर चलने की आवाज करते या असामान्य व्यवहार करते। लेकिन वीडियो फुटेज और प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, विमान ने सामान्य गति से रनवे पर दौड़ लगाई, सामान्य रोटेशन स्पीड पर नोज ऊपर उठाया, और टेकऑफ शुरू किया। इससे पता चलता है कि टेकऑफ के शुरुआती चरण में इंजनों में कोई स्पष्ट खराबी नहीं थी।
3. बिना फ्लैप्स के टेकऑफ: तीसरी थ्योरी यह है कि विमान ने बिना फ्लैप्स के टेकऑफ किया। लेकिन यह भी लगभग असंभव है। बोइंग 787 में इलेक्ट्रॉनिक चेकलिस्ट होती है, जो सुनिश्चित करती है कि फ्लैप्स सही पोजीशन में हों। अगर फ्लैप्स न लगे होते, तो कॉकपिट में लाल बत्तियां जलतीं, जोरदार हॉर्न बजता, और पायलट्स को तुरंत पता चल जाता। इतनी सारी चेतावनियों को नजरअंदाज कर टेकऑफ करना नामुमकिन है।
4. गलती से फ्लैप्स उठा लिए गए: कैप्टन स्टीव की सबसे संभावित थ्योरी यह है कि टेकऑफ के बाद को-पायलट ने गलती से लैंडिंग गियर यानी, पहिए उठाने की बजाय फ्लैप्स उठा लिए। स्टीव कहते हैं कि टेकऑफ के बाद पायलट ने अपने को-पायलट से लैंडिंग गियर उठाने को कहा होगा, लेकिन को-पायलट ने गलती से फ्लैप्स उठा दिए जिससे वमान की लिफ्ट अचानक कम हो गई।
वीडियो में दिखता है कि लैंडिंग गियर टेकऑफ के बाद भी नीचे ही रहे, जो सामान्य नहीं है। गियर को टेकऑफ के 50 फीट बाद उठा लिया जाता है, लेकिन इस केस में विमान के 600 फीट की ऊंचाई तक जाने के बाद भी ऐसा नहीं हुआ। इस केस में लैंडिंग गियर की जगह फ्लैप्स के अचानक उठने से विमान की स्पीड कम हुई, वह संतुलन खो बैठा। पायलट ने नोज ऊपर खींचकर लिफ्ट बनाने की कोशिश की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। पायलट के पास रिकवरी का समय नहीं था। ये सब कुछ ही सेकेंड में हुआ।

इस तस्वीर में विमान के लैंडिंग गियर नीचे नजर आ रहे हैं। विमान की नोज ऊपर होने के बाद भी ये नीचे की तरफ गिर रहा है।
अब आगे क्या होगा?
कैप्टन स्टीव ने कहा- यह थ्योरी अभी केवल एक अनुमान है। आने वाले दिनों में ब्लैक बॉक्स (फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर) की जांच से सच्चाई सामने आ सकती है।
प्लेन हादसे की जांच में 8 एजेंसियां कर रहीं है। इसमें नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी, गुजरात पुलिस, एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो (AAIB) डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA), यूनाइटेड किंगडम की एयर एक्सीडेंट्स इन्वेस्टीगेशन ब्रांच (UK-AAIB) यूनाइटेड स्टेट्स की नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड (NTSB), फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) शामिल है।
