Thursday, December 26, 2024
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पिंडदान करने छुपकर आए वरना हमला हो जाता: गया पहुंचे बांग्लादेशी हिंदू बोले- कैमरे पर बात मत करिए, पहचान नहीं बता सकते – Gaya News


दूसरे देशों से भी हिंदू पितृपक्ष में पिंडदान के लिए गया पहुंचते हैं।

‘हम गया में पिंडदान करने आए हैं, ये बात वहां के लोगों को पता चली तो हमारे परिवार को मार देंगे। घर पर उपद्रवियों का हमला हो जाएगा। प्लीज हमारी पहचान किसी को मत बताना।’ ये कहना है बांग्लादेश से पिंडदान के लिए गया आए चार हिंदू युवकों का।

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वो इतने डरे हुए हैं कि कैमरे पर आने को तैयार नहीं। किसी से खुलकर बात करने से भी कतरा रहे हैं। यहां तक कि भारत आने का वीजा पाने के लिए झूठ बोला। बताया कि बिजनेस के सिलसिले में कोलकाता जाना है।

उन्होंने बताया कि बांग्लादेश हिंसा को काफी वक्त बीत गए, लेकिन वहां हिंदुओं के लिए अभी भी हालात ठीक नहीं हैं। बांग्लादेश में अभी भी हिंदू खौफ में जी रहे हैं, वो डरे हुए हैं। वहां के हालत ठीक नहीं हैं। दिखावे के लिए स्थिति शांत होने का दावा किया जा रहा है। हिंदुओं को सरकारी नौकरी से निकाला जा रहा है। शाम होते ही हिन्दू कारोबारी दुकानें बंद कर देते हैं।

भास्कर ने गया में बांग्लादेश से पिंडदान करने पहुंचे चारों युवकों से बात की। हमने उस पंडे से भी बात की जिन्होंने ये पिंडदान करवाया था… बांग्लादेश के चटगांव से आए ये चारों युवक इतने डरे हुए हैं कि वो कैमरे पर पर नहीं आना चाहते। उनका कहना है ‘अगर हमारी गया आने या मीडिया से बात करने की बात सामने आ गई तो उनके घर पर उपद्रवी हमला कर देंगे।’

वो इससे भी दहशत में हैं कि वापस लौटने के दौरान बॉर्डर से ही परेशानी न शुरू हो जाए। उन्होंने बताया कि ‘उन्हें गया आने के लिए झूठ बोलना पड़ा। जिस वीजा में महज 15 हजार रुपए खर्च करने पड़ते थे, उसे लेने में 25 हजार रुपए लगे। उन्हें झूठ बोलना पड़ा कि वे कोलकाता बिजनेस लिए जा रहे हैं।’

प्रेतशिला में किया पिंडदान चारों युवक एक ही परिवार से हैं। उन्होंने बताया कि ‘प्रेतशिला के पिंडवेदियों पर अपने बड़े भाई की मृत आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया। उनकी जाति सोनार है। वे एक दिन का श्राद्ध करने के लिए गया आए थे।

उन्होंने आगे बताया कि चटगांव में बड़ी संख्या में हिन्दू रहते हैं। वे अपने पूर्वजों का अर्पण-तर्पण श्राद्ध करने के लिए गया आते हैं।

गया के पंडा गोपेश बारीक ने बताया कि ‘शुक्रवार की दोपहर चटगांव जिले से आए युवक काफी भयभीत दिख रहे थे। वे वहां डर के साए में जी रहे हैं। उन्हें अपने घर परिवार की चिंता काफी सता रही थी। उन्होंने कई बातें शेयर की हैं।’

युवकों ने बताया कि ‘हमारे भाई की मौत जनवरी में एक हादसे में हुई थी। इसके बाद से हमारा पूरा परिवार सभी तरह के संकट से जूझ रहा है। वहां के ब्राह्मणों और गया के अपने पंडा गुरु कनक बारी से बात की तो उन्होंने भाई की आत्मा की शांति के लिए प्रेतशिला वेदी पर पिंडदान करने की सलाह दी थी। इसी बीच बांग्लादेश में सरकार विरोधी हिंसक आंदोलन शुरू हो गया। हिंदुओं के खिलाफ भी हिंसा भड़क गई। हिंदुओं के साथ अत्याचार होने लगा। हिंदू भी सड़क पर उतर गए। काफी हिंसा हुई। इसके बाद से किसी तरह से हिंदू अपनी जान बचा रहे हैं।’

हिंदुओं से जबरन वापस ली जा रही सरकारी नौकरी पिंडदान करने आए युवकों ने बताया कि ‘वहां के हिंदुओं से जबरन सरकारी नौकरी से इस्तीफा लिया जा रहा है। प्राइवेट फर्म में शक की निगाह से देखा जा रहा है। किसी तरह डरे-सहमे हिंदू कारोबार कर रहे हैं। शाम ढलने के पहले ही सभी कारोबारी दुकान बंद कर घर चले जाते हैं। दुकान भी सुबह में देर से खोलते हैं।

वहां के लोग फेसबुक और यूट्यूब से स्थानीय हिन्दू लोगों की जानकारी ले रहे हैं कि हम लोग कहीं उनकी पोल तो नहीं खोल रहे हैं। बस हम तो अब यही चाहते हैं किसी तरह से माहौल पटरी पर आ जाए।’

पंडा गोपेश कटरियार ने बताया कि ‘बीते 20 साल से लगातार बंग्लादेश से हिन्दू अपने पूर्वजों का पिंडदान करने के लिए गया आ रहे हैं। खासकर कार्तिक और चैत मास में वे आते हैं। बाकी महीने में कम लोग आते हैं। लेकिन बीते दिनों वहां हिंदुओं के साथ हुई हिंसा ने चिन्ता बढ़ा दी है। अब लोग बहाने बना कर आ रहे हैं। पहले वे अपने रिश्तेदार के यहां आते हैं। फिर वहां से किसी एक को लेकर गया धाम आ रहे हैं।

प्रेतशिला पहाड़ी पर अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं का होता है श्राद्ध और पिंडदान वायु पुराण के अनुसार यहां अकाल मृत्यु को प्राप्त लोगों का श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है। इस पर्वत पर पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों तक पिंड सीधे पहुंच जाते हैं जिनसे उन्हें कष्टदायी योनियों से मुक्ति मिल जाती है। इस पर्वत को प्रेतशिला के अलावा प्रेत पर्वत, प्रेतकला और प्रेतगिरि भी कहा जाता है।

प्रेतशिला पहाड़ी की चोटी पर एक चट्टान है। जिस पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश की मूर्ति बनी है। श्रद्धालुओं द्वारा पहाड़ी की चोटी पर स्थित इस चट्टान की परिक्रमा कर के उस पर सत्तू से बना पिंड चढ़ाया जाता है। प्रेतशिला पर सत्तू से पिंडदान की पुरानी परंपरा है। प्रेतशिला के पुजारी मनोज धामी के अनुसार इस चट्टान के चारों तरफ 5 से 9 बार परिक्रमा कर सत्तू चढ़ाने से अकाल मृत्यु में मरे पूर्वज प्रेत योनि से मुक्त हो जाते हैं।

जानिए पितृपक्ष और गया में पिंडदान को लेकर क्या है मान्यता

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दुनियाभर में प्रसिद्ध गया का पितृपक्ष मेला 17 सितंबर से शुरू हो रहा है। मेला 2 अक्टूबर यानी कुल 16 दिनों तक चलेगा। इस दौरान देश-विदेश से गया आने वाले लोग अपने पूर्वजों-पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान से कामना करते हैं। इस साल 10 लाख से ज्यादा पिंडदानी गया पहुंच सकते हैं। गया कैसे पहुंचे, कहां रुके, वहां खाने-पीने का क्या इंतजाम है, सरकार कितनी तैयार है ऐसे तमाम सवालों के लिए पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट। क्लिक कर पढ़ें पूरी खबर



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