‘2014-15 की बात है। जहां मैं काम करता था, वहां के डायरेक्टर से एक रोज बात हो रही थी। वे बताने लगीं कि उनकी 6 एकड़ जमीन में इंडिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट लगा हुआ है।
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जमीन की कीमत 100 करोड़ है, जबकि सोलर प्लांट 10 करोड़ का लगा हुआ है। मैं तो शॉक्ड रह गया। मन ही मन सोचने लगा कि 100 करोड़ की जमीन पर 10 करोड़ का सोलर प्लांट…।
उसी के बाद से मुझे लगने लगा कि जिस तरह जमीन महंगी हो रही है। ऐसे में सोलर प्लांट लगाना तो मुश्किल हो जाएगा। इसलिए कुछ ऐसा सोचा जाए कि सोलर प्लांट लगाने के लिए अलग से जमीन की जरूरत न पड़े।
शुरुआत सोलर ट्री से की थी। पेड़ नुमा आकार के ऊपर सोलर पैनल लगाना शुरू किया। अब हम ऐसे सोलर टाइल्स बना रहे हैं, जिसे घर की बालकनी से लेकर दीवार, छत और सड़क… हर जगह लगाया जा सकता है।’
गुजरात के रहने वाले सन्नी पांडया के हाथ में काले रंग का सोलर पैनल की तरह दिखने वाला एक टाइल्स है। वह इस पर खड़े होकर इसकी मजबूती दिखा रहे हैं। कहते हैं, ‘जिस तरह से हम छत पर, बालकनी में टाइल्स लगाते हैं। उसी तरह से इसे लगाया जाता है।’
इमेजिन पावर ट्री कंपनी के फाउंडर सन्नी पांड्या सोलर टाइल्स दिखा रहे हैं। इस टाइल्स को उन जगहों पर लगाया जाता है, जहां सूर्य की रोशनी आती है।
सन्नी ने 2018 में अपनी सोलर कंपनी ‘इमेजिन पावर ट्री’ की शुरुआत की थी। कहते हैं, ‘छाते को हम एक हाथ से पकड़ते हैं। यदि चार अलग-अलग कोने से पकड़ना पड़ता, तब क्या यह हमारे लिए संभव होता।
उसी तरह मैंने सोलर ट्री की कल्पना की। फिर बाद में सोलर टाइल्स बनाने लगा। इस कंपनी को शुरू करने के लिए घर गिरवी रखना पड़ा। आज हम सालाना 7 करोड़ का बिजनेस कर रहे हैं।’
सोलर टाइल्स को सन्नी उलट-पुलट करके दिखा रहे हैं। कहते हैं, ‘सोलर प्लेट का निचला हिस्सा कचरे से बना हुआ है।’
कूड़े से सोलर टाइल्स? मैं सुनते ही दोहराता हूं।
सन्नी इसके पीछे की कहानी बताते हैं, ‘जब सोलर टाइल्स के कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरू किया, तो सोचा कि इसका बेस कैसे बनेगा। कॉन्क्रीट से बनाने पर वजन ज्यादा हो रहा था। कुछ साल बाद क्रैक भी आ जाता। लोगों को ले जाने में भी परेशानी होगी। कॉस्ट भी ज्यादा पड़ रही थी।
मार्केट में अगर हाई कॉस्ट प्रोडक्ट बेचेंगे, तो कोई इसे क्यों लगवाना चाहेगा। मेरे दोस्त की प्लास्टिक वेस्ट से ब्रिक्स बनाने की फैक्ट्री है। मैंने उसकी मदद से सोलर टाइल्स बनाना शरू किया।’
इन टाइल्स का बेस वेस्ट मटेरियल से बनाया जाता है।
आप शुरू से बिजनेस करना चाह रहे थे?
‘मुझसे पहले मेरे घर में किसी ने बिजनेस नहीं किया था। पापा-मम्मी सरकारी टीचर थे। मैं बचपन से पायलट बनना चाहता था। दरअसल, मेरे गांव में पढ़ने-लिखने की सुविधा नहीं थी।
पापा ने मुझे बुआ के यहां मुंबई भेज दिया। वहां जब मैं फ्लाइट को उड़ते हुए देखता था, तो सोचता था कि काश! मैं भी बड़ा होकर इसे उड़ाता। मैं पायलट बनने का सपना संजोने लगा। टीवी, मोबाइल कुछ नहीं देखता था, ताकि दोनों आंख की क्षमता बनी रहे।
बड़ा हुआ, तो वापस अपने शहर आ गया। 12वीं के बाद केमिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया। सच कहूं तो मुझे केमिकल के बारे में कोई समझ नहीं थी। सिर्फ इंजीनियरिंग कर रहा था।
इसी दौरान मुझे बिजनेस का चस्का लग गया। दरअसल, मेरा एक दोस्त बिजनेस फैमिली से आता था। गुजराती वैसे भी बिजनेस ही करना चाहते हैं। हम दोनों ने मिलकर कॉलेज में वड़ा पाव बेचना शुरू किया।’
सन्नी पांड्या की ये फैमिली फोटो है। उन्होंने गांधीनगर के पंडित दीनदयाल एनर्जी यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की है।
कॉलेज में वड़ा पाव?
‘कॉलेज के बच्चे हॉस्टल और कैंटीन के खाने से ऊब चुके थे। कॉलेज के आसपास अच्छी दुकानें भी नहीं थीं। हमने कुछ ऐसे दुकानदारों से टाइअप किया, जो खाने-पीने की चीजें बनाते थे।
कॉलेज के बच्चों से ऑर्डर लेने के बाद दोपहर 2 बजे हम वड़ा पाव, सैंडविच जैसी चीजें खरीदकर बेचते थे। ये सारी बातें घरवालों को भी नहीं पता थीं।
बाद में हमने चीन से पेन ड्राइव खरीदकर कॉलेज में बेचना शुरू किया। धीरे-धीरे बिजनेस समझने लगे। 2013 में पासआउट होते ही हमने कॉलेज लेवल पर इनक्यूबेशन सेंटर खोला। इसमें नए-नए स्टार्टअप्स को स्टेबल होने में मदद करते थे।
2018 में जब खुद का बिजनेस करने का सोचा, तो सबसे बड़ी दिक्कत फंड की थी। घरवालों का करीब 4 लाख रुपए का म्यूचुअल फंड तोड़कर पैसे जुटाए। कुछ महीने बाद ये बात घर में पता चली।
गुजरात से ही हमें एक सोलर प्रोजेक्ट मिला था। इसके लिए 90 लाख रुपए की जरूरत थी। बैंक से लोन लेने गया, तो उनका कहना था कि एसेट के बदले लोन मिल सकता है। आखिर में घर गिरवी रखना पड़ा।’
सन्नी ने इस तरह से सोलर ट्री प्लांट लगाना शुरू किया था। इसके साथ-साथ अब वे सोलर टाइल्स इंस्टॉल करते हैं।
केमिकल इंजीनियरिंग करके सोलर का बिजनेस?
‘सच कहूं, तो मैंने सिर्फ इंजीनियरिंग की है। 12वीं में केमिस्ट्री पढ़ना अच्छा लगता था इसलिए केमिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। तब पता चला कि केमिस्ट्री, केमिकल इंजीनियरिंग का एक फीसदी भी नहीं है।
जब सोलर इंडस्ट्री के बारे में सोचना शुरू किया, तो सबसे पहले टीम बनाई। मेरे टीम में कुछ ऐसे दोस्त हैं, जिन्होंने सोलर इंजीनियरिंग, मैकेनिकल इंजीनियरिंग और सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। इनके साथ प्रोडक्ट को डिजाइन करना शुरू किया।’
सोलर ट्री पैनल की डिजाइन तैयार की जा रही है।
सन्नी का कहना है कि उस वक्त इंडिया में बहुत कम ऐसे प्लेयर थे, जो इस तरह के सोलर बना रहे थे।
सन्नी कहते हैं, ‘ग्लोबली कुछ कंपनियां सोलर ट्री को लेकर काम कर रही थीं, लेकिन इंडिया में बहुत कम। कुछ-कुछ जगहों पर सोलर ट्री फैशन के तौर पर लगाए जाते थे, ताकि लोग इंस्पायर होकर अपने घर पर सोलर प्लांट लगाएं।
मैंने इसे बड़े लेवल पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया। मुझे याद है- गांधीनगर के गवर्नमेंट ऑफिस में स्कूटर पर सोलर प्लेट रखकर सैंपल दिखाने के लिए ले जाता था। बाद में मुझे लगा कि कोई ऐसा प्रोडक्ट होना चाहिए, जिसे कोई दूसरी कंपनी कॉपी न करे। एक यूएसपी होनी ही चाहिए। उसी के बाद सोलर टाइल्स बनाना शुरू किया।’
सन्नी की ये टीम फोटो है। उनके साथ 45 लोगों की टीम काम करती है।
सन्नी के जिस ऑफिस में हमारी बातचीत हो रही है, उसके एक हिस्से में सोलर प्लेट से बने स्लाइडर लगे हुए हैं। सन्नी कहते हैं, ‘अब हम सोलर टाइल्स के साथ-साथ स्लाइडर भी बना रहे हैं।
छत, बालकनी, बिल्डिंग के जिन बाहरी हिस्से पर टाइल्स लगती है, वहां हम सोलर टाइल्स लगाते हैं। इसकी लाइफ 25 साल से अधिक होती है। अभी तक हम 500 से ज्यादा क्लाइंट्स के साथ काम कर चुके हैं।
कंपनी में 45 लोगों की टीम काम कर रही है। पिछले साल हमने 7 करोड़ का बिजनेस किया था। इस साल 13 करोड़ के बिजनेस का टारगेट है।’
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1. पॉजिटिव स्टोरी-जली हुई सिगरेट से 100 करोड़ का बिजनेस:रोज 70 लाख सिगरेट बट्स रिसाइकिल कर बना रहे टेडी जैसे खिलौने
‘सिगरेट पीने के बाद लोग बचा हुआ हिस्सा कहीं भी फेंक देते हैं। इस हिस्से को बट्स कहते हैं। फेंके हुए सिगरेट के 0.2 ग्राम के टुकड़े को पूरी तरह से खत्म होने में 15 साल तक लग सकते हैं। इसे रिसाइकिल कर खिलौने और फैब्रिक बनाए जा सकते हैं। नमन पिछले 6 साल से रूई जैसे दिखने वाले इस फैब्रिक से कुशन, टेडी बियर, सॉफ्ट टॉयज, स्टेशनरी पेपर, डेनिम कपड़े बना रहे हैं। इससे वह सालाना 100 करोड़ का बिजनेस कर रहे हैं।’
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2. पॉजिटिव स्टोरी-कॉलेज में मोबाइल कवर बेचा,अब 5 करोड़ का बिजनेस:एक लाख उधार लेकर शुरू की स्पोर्ट्स इवेंट कंपनी; 250 लोग काम करते हैं
‘कॉलेज के दिनों की बात है। ग्रेजुएशन में था। बचपन से खेलकूद में खूब मन लगता था। एक बार कॉलेज में एक स्पोर्ट्स इवेंट हुआ। गेम स्टार्ट होने से पहले लगा कि सब कुछ बहुत अच्छा होगा, मजा आएगा, लेकिन जब गेम शुरू हुआ, तो सोचने लगा- इससे अच्छा तो मैं पूरा गेम प्लान कर देता। पूरा मैनेजमेंट खराब था। उसके बाद
कॉलेज में जितने भी स्पोर्ट्स इवेंट हुए, सब मैंने ऑर्गनाइज करना शुरू कर दिया। हालांकि, उस वक्त ऐसा सोचा नहीं था कि एक दिन यह कंपनी के तौर पर बन जाएगी और सालाना बिजनेस 5 करोड़ से अधिक का करने लगेंगे।’ पूरी खबर पढ़िए…