‘2019 का साल, ठंड का महीना बीत रहा था। मेरी बेटी शान्वी महज कुछ दिनों की थी। उस वक्त मैं अपने पति के साथ नोएडा में रहती थी। बच्चे की देखभाल में मदद करने के लिए मेरी सासू-मां लखनऊ से नोएडा आ गईं।
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ठंड में नवजात को संभालना कितना मुश्किल है, सभी को पता है। एक तो हफ्ते-हफ्तेभर धूप नहीं निकलती। ऊपर से दिनभर में 10-10 बार बच्चे की सूसू-पॉटी। बिछावन पर जो गद्दे हम इस्तेमाल करते, वह धोने के बाद सूखता ही नहीं। बड़ी दिक्कत थी।
मैं बेटी को संभालती। सासू-मां दिनभर धूप में, छत पर, हीटर में कपड़े, बेड-शीट, गद्दे सुखाने की जद्दोजहद करतीं, फिर भी नहीं सूखता। डायपर पहनाने से बच्ची को इन्फेक्शन हो रहा था। इसलिए हम डायपर भी नहीं यूज कर सकते थे। सोचने लगी- कोई ऐसी ड्राई-शीट हो, जो बच्चे की सूसू को सोख ले।
मार्केट में, ऑनलाइन दर्जनों ऐसे प्रोडक्ट देखे, लेकिन क्वालिटी और दाम के लिहाज से ड्राई-शीट नहीं मिली। जो मिली, वह भी एक-दो बार इस्तेमाल के बाद गीली हो जाती थी। उस दिन यदि अच्छा प्रोडक्ट मिल गया रहता, तो आज हमारी यह नवजात बच्चों के लिए ड्राई-शीट समेत 15 से अधिक प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनी नहीं होती।
नोएडा के ‘न्यूनेट केयर’ की सीईओ शैलजा बंसल ये बातें बता रही हैं। साथ में उनकी सास और इस कंपनी की को-फाउंडर रेणु अग्रवाल भी हैं। सास और बहू की इस जोड़ी को देखकर लग रहा है, जैसे दोनों मां-बेटी हों। रेणु कहती हैं, ‘जब हमने इस बिजनेस की शुरुआत की थी, तब सभी को लगता था कि हम दोनों मां-बेटी हैं।’
शैलजा बंसल बेबी बॉर्न कंपनी न्यूनेट केयर की सीईओ हैं। वह ड्राई-शीट दिखा रही हैं। इसका इस्तेमाल नवजात शिशु के सोने के लिए किया जाता है।
शैलजा अभी प्रेग्नेंट हैं। उनके गर्भ में 7 महीने का बच्चा पल रहा है। वह ड्राई-शीट दिखाते हुए कहती हैं, ‘यह मेरा दूसरा बच्चा है। हर मां अपने बच्चे को 9 महीने के लिए गर्भ में पालती है। जब बच्चा इस दुनिया में आता है, तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है।
हम इन्हीं नवजात बच्चों के लिए अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। ये सारे प्रोडक्ट पैदा होने से लेकर एक साल तक के बच्चों के लिए होता है।’
शैलजा मुझे वेयरहाउस लेकर चलती हैं। यहां सेग्मेंटवाइज बेबी केयर प्रोडक्ट रखे हुए हैं। कुछ और प्रोडक्ट्स दिखाते हुए वह कहती हैं, ‘पहले के जमाने में बच्चा जॉइंट फैमिली में पैदा होता था। परिवार का कोई न कोई सदस्य बच्चे को गोद में लिए रहता था, लेकिन आज यह पॉसिबल नहीं है। हर कोई अकेला है। न्यूट्रल फैमिली है।
यदि मां-बाप, दोनों जॉब करने वाले हैं, तब तो बच्चे को संभालना और भी कठिन। पहले फर्श भी मिट्टी के होते थे। अब पक्के होते हैं। नवजात के जमीन पर गिरने का या किसी चीज से टकराने का डर लगा रहता है। इसलिए हमने हेड एंड सोल्जर प्रोटेक्टर भी बच्चों के लिए बनाया है। उसके साथ में हेलमेट भी है।’

शैलजा अपनी बेटी शान्वी और सास रेणु अग्रवाल के साथ हैं। रेणु अग्रवाल के पति लखनऊ में किराने की दुकान चलाते हैं।
बातचीत करते-करते अब दोपहर के तकरीबन एक बज रहे हैं। कूरियर कंपनी डिलीवरी लेने के लिए आई हुई है।
पूछने पर शैलजा कहती हैं, ‘अभी हम हर रोज 200 के करीब ऑर्डर डिलीवर कर रहे हैं। एक प्रॉब्लम से इतनी बड़ी कंपनी खड़ी हो जाएगी, कभी सोचा नहीं था। सबसे ज्यादा ड्राई-शीट और हेलमेट की डिमांड है। यह ड्राई-शीट पॉलिस्टर से बना मुलायम और मोटी परत वाला होता है। इसके बॉटम को मल्टीलेयर बनाया जाता है ताकि लिक्विड को आसानी से सोख ले।’
परिवार में पहले से किसी का बिजनेस रहा है क्या?
‘मैं उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर की रहने वाली हूं। ससुराल लखनऊ में है। पापा का अंबेडकर नगर में लूम का बिजनेस रहा है। इसे मेरे दादाजी ने शुरू किया था। दरअसल वह बहुत कम उम्र में घर छोड़कर शहर आ गए थे।
यहां उन्होंने एक दुकान खोली थी, फिर बाद में धीरे-धीरे कपड़े बनाने की फैक्ट्री शुरू की। गमछा, लुंगी… इस तरह के गारमेंट्स हमारी फैक्ट्री में बनते हैं। उन्हें देखकर कभी नहीं लगा कि मैं भी कोई बिजनेस करूं। बचपन से तो यही था कि पढ़ना है और कोई अच्छी जॉब करनी है।
2008-10 की बात है। 12वीं के बाद BCA में एडमिशन ले लिया। उस वक्त कंप्यूटर कोर्स का क्रेज था। घरवाले चाहते थे कि कोई स्किल्ड कोर्स कर लूं, ताकि ढंग की जॉब मिल जाए। मैंने BCA के बाद MCA कर लिया, फिर जॉब करने लगी। तकरीबन 5 साल नौकरी की थी। 2017 में मेरी शादी हो गई। ब्याह के बाद लखनऊ और फिर मैं अपने पति के साथ नोएडा आ गई।’

शैलजा की ये कुछ पुरानी तस्वीरे हैं। शैलजा ने MCA के बाद 5 साल तक प्राइवेट सेक्टर में जॉब की।
शैलजा की सास रेणु अग्रवाल की उम्र 60 के करीब है, लेकिन उनका जज्बा एक सफल बिजनेसवुमन की तरह है। उनके ख्यालात बिल्कुल नए हैं। कहती हैं, ‘जैसा बेटा-बेटी हैं, वैसी बहू भी। यह बिजनेस ही सास-बहू की जोड़ी का नतीजा है। जब मेरी पोती यानी शैलजा की बेटी का जन्म हुआ और जिस परेशानी को हमने फेस किया, तब लगा कि यह सिर्फ हमारी नहीं, हर मां की परेशानी है।’
इस बिजनेस को शुरू करने में किस तरह की परेशानी आई?
‘न्यू बॉर्न बेबी केयर बेस्ड प्रोडक्ट के मार्केट गैप का पता चला। कुछ कंपनियां हैं, जो ऐसे प्रोडक्ट्स बनाती हैं, लेकिन उसे खरीदना हर किसी के बजट से बाहर है। हमने क्वालिटी के साथ-साथ अफोर्डेबल रेंज में प्रोडक्ट बनाने के बारे में सोचा।
बहू शैलजा ने MCA किया है और मैं तो टीचर रही हूं।
हमें तो इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। सबसे पहले मार्केट में मौजूद दूसरे कई बेबी केयर प्रोडक्ट को हमने खरीदा। इसकी रिसर्च की। फिर दिल्ली के ही कुछ मेन्युफैक्चरर से मिली, जो ड्राई-शीट समेत दूसरे बेबी केयर प्रोडक्ट बनाते थे।
शुरुआत में तो ऐसा हुआ कि मेन्युफैक्चरर हमसे बात तक नहीं करना चाहते थे। कहते थे- हम आपके लिए प्रोडक्ट क्यों बनाएं। आप दो-चार प्रोडक्ट बनवाएंगी। हम थोक में बनाते हैं। काफी मशक्कत के बाद एक मेन्युफैक्चरर तैयार हुआ।
लोग हमारी सास-बहू की जोड़ी को देखकर भी चौंक जाते थे। घर पर बच्चे को संभालना, फिर हम दोनों मार्केट बिजनेस के लिए निकल जाते थे।’

शैलजा की बेबी केयर कंपनी सोल्जर प्रोटेक्टर के अलावा हेलमेट, मस्टर्ड पिलो समेत 12 से अधिक प्रोडक्ट सेल करती है।
शैलजा की कंपनी हेड एंड सोल्जर प्रोटेक्टर और बेबी हेलमेट की खुद से मेन्युफैक्चरिंग करती है। जबकि मस्टर्ड पिलो, बेबी बेड, बेबी कैरियर, ड्राई शीट समेत 12 से अधिक प्रोडक्ट वे सोर्स करते हैं। कुछ बेबी टॉयज चीन से भी इम्पोर्ट करते हैं।
इतने पैसे थे? मैं शैलजा से पूछता हूं।
शैलजा बताती हैं, ‘प्रेग्नेंट होने के बाद मैंने जॉब छोड़ दिया था। अब सेविंग्स के करीब 5 लाख रुपए थे। हम दोनों ने मिलकर इन्वेस्ट किया। अब एक डर ये भी था कि पैसा लगाने के बाद भी मार्केट में प्रोडक्ट बिकेगा या नहीं।
शुरुआत में तो हम सिर्फ ड्राई शीट ही सोर्स करके बेचते थे। हर रोज बमुश्किल दो-चार ऑर्डर आते थे। कई बार ऐसा भी लगता था कि कंपनी चलेगी या नहीं चलेगी, लेकिन हमने जिस रेंज में प्रोडक्ट बेचना शुरू किया, धीरे-धीरे ऑर्डर बढ़ने लगे।’

ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए वे अपना प्रोडक्ट बेचते हैं। उनके पास हर रोज करीब 200 ऑर्डर आते हैं।
शैलजा कहती हैं, ‘हमारे प्रोडक्ट ऑनलाइन बिकते हैं। शुरुआत में अपनी वेबसाइट के जरिए प्रोडक्ट बेचना शुरू किया था। फिर ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए प्रोडक्ट बेचने लगी।
जब सेल नहीं बढ़ रही थी, तो हमने सोशल मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग पर फोकस करना शुरू किया। धीरे-धीरे आज हमारे प्रोडक्ट सभी ई-कॉमर्स पर हैं। अब हमारा टारगेट है कि जिन प्रोडक्ट्स को हम सोर्स कर रहे हैं, उसकी मेन्युफैक्चरिंग भी करें।
इस साल हम डेढ़ करोड़ का बिजनेस करने वाले हैं। पिछले 10 दिनों में ही हमने 5 लाख की सेल कर ली है। बीते साल यह टर्नओवर 50 लाख के करीब था। जबकि आप देखें तो जब हमने कंपनी शुरू की थी, तो पहले साल 5 लाख की सेल की थी।’
