‘2020 का साल था। कोविड की वजह से वर्क फ्रॉम होम चल रहा था। मैं घर से ही ऑफिस का काम कर रहा था। इसी दौरान कुछ गांव की महिला किसानों से मिलना हुआ। महिला किसानों से जब बातचीत की, तो उनका कहना था- घर में एक शख्स ही कमाने वाला है, खेती करते हैं। इससे घर न
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हम लोग अपने खेतों में जितनी खेती करते हैं, उससे बमुश्किल से चूल्हा जल पाता है। बस पेट पल जाता है। अब इससे कहां बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, गुजर-बसर होने वाला है। हमें खेती करना तो आता है, लेकिन ज्यादा उपज कैसे करें? उपज के बाद फसल को कहां बेचे, कैसे बेचे, ये सब नहीं पता।
मैं कई दिनों तक सोचता रहा कि ये लोग अन्न उपजाते हैं, फिर भी इनकी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती है। मन ही मन जॉब छोड़ने का फैसला कर लिया। अचानक से एक दिन घरवालों को बताया कि मैं नौकरी छोड़ रहा हूं। सभी शॉक्ड हो गए कि कोरोना चल रहा है। अभी नौकरी छोड़ देगा, तो फिर करेगा क्या।
आज देखिए कि इसी खेती-किसानी से दो साल में 60 लाख से करीब बिजनेस कर चुका हूं। किसान के लिए ये कितनी बड़ी रकम है, समझ सकते हैं।’
उत्तर प्रदेश के बहराइच में हूं। तेज गर्म हवा चल रही है। एक फार्म हाउस में मेरे सामने अमित सिंह बैठे ये बातें दोहरा रहे हैं। उनके हाथ में हल्दी की गांठ वाला एक जार और हल्दी पाउडर का पैकेट है। अमित ‘शिवा एग्रो’ नाम से कंपनी चलाते हैं।
अमित सिंह उत्तर प्रदेश के 900 किसानों के साथ मिलकर ऑर्गेनिक खेती करते हैं।
उत्तर प्रदेश के बहराइच में अमित के इस 20 एकड़ के फार्म में अभी गेहूं, केला, चंदन, पुदीना के पेड़ लह-लहा रहे हैं। गेहूं की फसल तैयार हो रही है। कुछ महीने बाद इसकी कटाई होगी। अमित कहते हैं, ‘पापा ने यह जमीन खरीदी थी। वह पुलिस में थे। हम लोग बचपन में यहां आते थे। पापा के साथ कभी-कभी शौकिया तौर पर थोड़ी-बहुत खेती कर लेते थे।
इससे पहले तक कभी खेती-किसानी नहीं की थी। उत्तर-प्रदेश, बिहार का तो कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता है कि उसके घर में कोई खेती-किसानी करे। सभी चाहते हैं कि सरकारी नौकरी करे। IAS-IPS बने। मेरा भी यही हाल था। घर में पुलिस, सिविल सर्विसेज की तैयारी करने का माहौल था। जब 12वीं कम्प्लीट किया, तब सभी लोग कहने लगे- तुम्हारी हाइट अच्छी है। सिविल सर्विस की तैयारी करो।
घरवालों का भी कहना था कि बड़ी नौकरी करो। मैं दिल्ली चला गया। वहां करीब एक साल तक रहा। जिस तरह से पढ़ना पड़ रहा था, एक साल बाद ही समझ में आ गया कि मैं इसके लिए नहीं बना हूं। मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं वापस शहर आ गया। लखनऊ से ही ग्रेजुएशन किया, फिर MBA कर लिया।
पासआउट होते ही एक मल्टीनेशन कंपनी में जॉब लग गई। करीब 7 साल तक 3-4, अलग-अलग कंपनी में जॉब भी की। कोरोना में जब वापस घर आया और किसानों से मिला, तब खेती-किसानी का भूत चढ़ गया।’

अमित अपनी टीम के साथ गांव की महिला किसानों को फसल संबंधित जानकारी दे रहे हैं।
शादी हो चुकी थी?
‘हां, शादी तो 2015 में ही हो गई थी। अब जब जॉब छोड़ने और खेती करने की बात चली, तब सबसे पहले घरवालों ने ही विरोध करना शुरू किया। सभी यही कहने लगे- MBA करने के बाद खेती कौन करता है। इसी दिन के लिए पढ़े-लिखे हो। घर कैसे चलेगा।
खेती भी कोई बिजनेस है। मैंने खेती को बिजनेस में तब्दील करने का सोच लिया था। हर रोज किसानों के बीच उठने-बैठने लगा। तब किसानों को लगा कि यह सही व्यक्ति है। अब मैंने तो MBA किया था। खेती-किसानी से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था।
कुछ चीजें तो किसानों से ही सीखीं। बाकी टेक्निकल नॉलेज के लिए स्टेट एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की सपोर्टिव यूनिट EY और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन यानी BMGF है। इन्होंने मशीनरी और मार्केटिंग के लेवल पर काफी मदद की। अभी हाल ही में हमने एक बड़ी बिस्किट कंपनी के साथ टाइअप किया है।
शुरुआत में सबसे पहले मैंने किसानों को फ्री में बीज देना शुरू किया था। बहराइच के आसपास काला नमक चावल की खेती होती है। मैंने इसे प्रमोट करने लगा। लोकल किसानों, वेंडर से मिलने लगा। घरवाले बोलते भी थे कि इससे घर चल सकता है क्या…। मैं कुछ नहीं बोलता। कभी-कभी डर भी लगता था कि जो कर रहा हूं, ठीक कर रहा हूं या नहीं। दो साल तक बिना कमाई के काम किया।
शुरुआत में 5-10 महिलाओं के साथ मिलकर खेती करना शुरू कर दिया। उन्हें अपने घर से उपजे काला नमक धान भी देता था। ताकि वह इस किस्म की पैदावार के मुताबिक खेती करें। इस पर भी घर से सुनने को मिलता था कि कुछ कर तो नहीं रहा है। जो अपने घर का अनाज है, उसे भी बांट दे रहा है। बाद में महिला किसानों के साथ मिलकर ऑर्गेनिक तरीके से चावल, गेहूं, हल्दी उपजाने लगा।

गांव-गांव जाकर अमित महिला किसानों के साथ काम करते हैं। उनके साथ 450 से अधिक महिला किसान जुड़ी हुई हैं।
अमित कहते हैं, ‘बाद में घरवाले सपोर्ट करने लगे। पत्नी और बड़े भाई ने सबसे ज्यादा साथ दिया। मुझे वो दिन भी याद है, जब इन प्रोडक्ट्स को किसानों से लेकर मैं मार्केट में जाकर दुकान-दुकान बेचता था। अलग-अलग घरों में भी जाना पड़ता था। हमारा प्रोडक्ट शुद्ध है। इसे साबित करने के लिए मैं खुद मार्केट से कुछ पैक्ड प्रोडक्ट खरीदता। इसमें हल्दी पाउडर, दाल, मसाले होते थे।
फिर खुद के प्रोडक्ट और इसे लेकर लोगों के पास जाता। शुरुआत में तो सैंपल के तौर पर फ्री में भी प्रोडक्ट बांटता था। जब लोग यूज करते थे, फिर खरीदने लगते थे।
अमित के फार्म पर कुछ महिलाएं बैठी हुई हैं। बगल में एक कंटेनर और मशीनरी यूनिट जैसा कुछ दिख रहा है। पूछने पर अमित कहते हैं, ‘कुछ महीने पहले ही ये चैंबर लगा है। इसमें मशरूम की फार्मिंग होती है। इससे पहले केले के प्रोडक्शन के बाद इसे यहां पकाया जा रहा था।
15 लाख की ये मशीन है। इसकी कैपेसिटी करीब 15 टन है। अभी मशरूम की फार्मिंग कर रहे हैं। इसकी सबसे अच्छी खासियत है कि यह कचरे से चलती है। किसी बिजली, ऑयल की जरूरत नहीं। जितने टेंपरेचर की जरूरत हो, कस्टमाइज कर सकते हैं। फिर यह ऑटोमेटिक ऑपरेट होती है। अभी मशरूम की फार्मिंग के लिए 22 डिग्री टेंपरेचर की जरूरत है।’

अमित की फैमिली फोटो है। उनके पिता की 2018 में किडनी फेल होने से मौत हो गई थी।
अभी कितने किसान जुड़े हुए हैं?
अमित कहते हैं, ‘900 के करीब किसानों का ग्रुप मेरे साथ काम कर रहा है। 2022-23 में हमने कंपनी बनाई थी। दरअसल, किसान अनाज उपजाते तो हैं, लेकिन वह सिर्फ लोकल मार्केट पर निर्भर रहते हैं। हम उन्हें लोकल से ग्लोबल बनाने में मदद करते हैं। फाइनल प्रोडक्ट की पैकेजिंग के बाद इसे लखनऊ, दिल्ली, उत्तराखंड के मार्केट में सेल किया जाता है। कुछ ऐसे भी लोग है, जो रेगुलर बेसिस पर हमसे प्रोडक्ट खरीदते हैं।
शुरुआत में तो हम लोग वॉट्सएप ग्रुप में या स्टेटस लगाकर प्रोडक्ट सेल करते थे। अब ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के जरिए भी सेल कर रहे हैं।
अब हम लोग बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ गेहूं, चावल की डील कर रहे हैं। सालाना 25-30 लाख का बिजनेस हो रहा है। अब एक किसान के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है। जिस कंपनी में था, करीब 13 लाख का पैकेज था। अभी यदि जॉब कर रहा होता, तो 20 लाख से ऊपर का पैकेज रहता, लेकिन इससे मैं सिर्फ खुद की जिंदगी बदल रहा होता। आज जो एक हजार किसान जुड़े हैं, वह नहीं होते।

अमित ने अब मशरूम फार्मिंग के लिए एक यूनिट लगाई है। इसमें टेंपरेचर को कंट्रोल किया जाता है।
मुझे सुकून इसी में मिलता है। अगले कुछ सालों में गोट फार्मिंग और फिशिंग पर भी काम कर रहे हैं।’
अमित के फार्म हाउस के एंट्री गेट से अंदर आने पर रास्ते के दोनों तरफ कुछ-कुछ दूरी पर एक पेड़ लगे हुए हैं। अमित कहते हैं, ‘यह चंदन का पेड़ है। 15 साल बाद इसकी मार्केट कॉस्ट 20 लाख के करीब होगी। हमने महिला किसानों को चंदन के पेड़ लगाने के लिए अवेयर करना शुरू किया है। किसानों की यही सब तो कमाई है।’
