Thursday, December 26, 2024
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प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- संवैधानिकता पर SC में सुनवाई आज: हिंदू बोले- एक्ट ने 3 मूल अधिकार छीने; CJI की स्पेशल बेंच मामला सुनेगी


नई दिल्ली6 मिनट पहले

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मामले की सुनवाई 5 दिसंबर को ही होनी थी, लेकिन बेंच मामला सुने बिना ही उठ गई।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- संवैधानिकता पर SC में सुनवाई आज

हिंदू बोले- एक्ट ने 3 मूल अधिकार छीने; CJI की स्पेशल बेंच मामला सुनेगी

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट- 1991 (पूजास्थल कानून ) की संवैधानिकता को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की स्पेशल बेंच मामला सुनेगी। यह बेंच 7 दिसंबर को बनी थी।

पहले 5 दिसंबर को ही मामले की सुनवाई होनी थी। उस दिन CJI संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस मनमोहन की बेंच को मामला सुनना था। लेकिन बेंच सुनवाई से पहले ही उठ गई।

एक्ट के खिलाफ याचिका दायर करने वालों में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर, भाजपा नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय समेत कई अन्य शामिल हैं। जबकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इन याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर की है।

हिंदू पक्ष का तर्क है कि यह कानून हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख समुदाय के खिलाफ है। इस कानून के चलते वे अपने ही पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों को अपने अधिकार में नहीं ले पाते हैं। इससे इन समुदायों के तीन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की याचिकाएं खारिज करने की मांग

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अलावा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ज्ञानवापी मस्जिद का रखरखाव करने वाली अंजुमन इंतजामिया मस्जिद मैनेजमेंट कमेटी ने भी इन याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। जमीयत का तर्क है कि एक्ट के खिलाफ याचिकाओं पर विचार करने से पूरे देश में मस्जिदों के खिलाफ मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।

एक्ट 3 मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा

1. अनुच्छेद 25 इसके तहत सभी नागरिकों और गैर-नागरिकों को अपने धर्म को मानने, उसके अनुसार आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार है। याचिकाओं में कहा गया है कि एक्ट हिंदुओं, जैनियों, बौद्धों और सिखों से यह अधिकार छीनता है

2. अनुच्छेद 26 यह हर धार्मिक समुदाय को उनके पूजा स्थलों और तीर्थयात्राओं के प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन करने का अधिकार देता है। याचिकाओं में कहा गया है कि एक्ट धार्मिक संपत्तियों (अन्य समुदायों द्वारा दुरुपयोग) के स्वामित्व/अधिग्रहण से वंचित करता है। उनके पूजा स्थलों, तीर्थ यात्राओं और देवता से संबंधित संपत्ति वापस लेने के अधिकार को भी छीनता है।

3. अनुच्छेद 29 यह सभी नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित करने और बढ़ावा देने का अधिकार देता है। इन समुदायों के सांस्कृतिक विरासत से जुड़े पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों को वापस लेने का अधिकार छीनता है।

UP, MP, राजस्थान समेत कई राज्यों में मंदिर-मस्जिद मामले सुप्रीम कोर्ट के वकील हरिशंकर जैन ने 19 नवंबर को उत्तर प्रदेश के संभल जिले के सिविल कोर्ट में याचिका दायर की। इसमें दावा किया कि संभल की जामा मस्जिद ही हरिहर मंदिर था। उसी दिन याचिका स्वीकार हो गई। अगले दिन कोर्ट ने जामा मस्जिद के सर्वे का आदेश दे दिया।

5 दिन बाद यानी 24 नवंबर को टीम सर्वे के लिए फिर जामा मस्जिद पहुंची। वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई। पथराव और गोलीबारी के बीच 5 लोगों की मौत हो गई। इसके 2 दिन बाद हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने राजस्थान की अजमेर शरीफ दरगाह के संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया।

कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में ये सिलसिला जारी है। इस मामलों से पहले वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह और मध्य प्रदेश के धार में भोजशाला में मस्जिद को लेकर मुकदमे दायर किए जा चुके हैं। राम मंदिर का फैसला आने के बाद इन मामलों में तेजी आई है।

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क्या 36 हजार मस्जिदों के नीचे मंदिर, बदल नहीं सकते तो संभल जैसे सर्वे की इजाजत क्यों

हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर शरीफ दरगाह के संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा कर दिया। कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। 2019 में अयोध्या में राम मंदिर का फैसला आने के बाद इसमें तेजी आई है। पूरी खबर पढ़ें…

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संभल में जामा मस्जिद में सर्वे के बाद भड़की हिंसा में 4 लोगों की मौत हो गई। संभल से पहले अयोध्या में बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर भी जानें गई थीं। अयोध्या का मसला कोर्ट के दखल से निपट चुका है। अयोध्या पर निर्णय आने के बाद पूरे देश में उन सभी धार्मिक स्थानों की जांच की मांग उठने लगी है, जहां इस प्रकार का विवाद है। पूरी खबर पढ़ें…

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