कैलारस तहसील में सरकारी जमीनों के फर्जी नामांतरण का खुलासा हुआ है। वर्ष 2003 में पट्टा व्यवस्थापन पर रोक के बावजूद तहसीलदार भोलाराम माहौर, प्रदीप शर्मा, सर्वेश यादव, भरत कुमार और भूदेव महोबिया ने अपने कार्यकाल में 40 सर्वे नंबरों की करीब 20 करोड़ कीमत
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सेमई में रेलवे स्टेशन बनाने के लिए अधिग्रहित की गई जमीन भी इसी का हिस्सा है। जब रेलवे ने मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की तो सुल्तान धाकड़ ने कलेक्टर अंकित अस्थाना से फर्जीवाड़े की शिकायत की। इसके बाद कलेक्टर भुगतान रोक दिया। अब रेलवे की जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया होने से सेमई स्टेशन का निर्माण अटक गया है।
रेलवे वहां सिर्फ चबूतरा बना रहा है, क्योंकि अप्रैल से सबलगढ़ तक ट्रेन संचालन शुरू होने की संभावना है। अब इस फर्जीवाड़े की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) कर रहा है। दैनिक भास्कर ने जब मामले की पड़ताल की तो कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए।
4 उदाहरणों से समझिए… भाई, पत्नी और परिचितों को कैसे दी जमीन
1. कैलारस में पदस्थ रहे पटवारी माखन अर्गल ने सेमई की 10 बीघा जमीन अपने भाई गादीपाल निवासी नरौली के नाम कर दी, जबकि गादीपाल सेमई के रहने वाले ही नहीं हैं।
2. पटवारी अर्गल ने ही रामनिवास रावत बधरेंटा के नाम सरकारी जमीन का पट्टा कर दिया। जबकि रामनिवास के पास पहले से ही 30 बीघा खुद की जमीन है। वहीं सेमई के अशोक, देवेंद्र और बनवारी शर्मा के नाम भी 10 बीघा जमीन का पट्टा कर दिया।
3. कैलारस के गुलपुरा गांव में पट्टे की कोई जमीन नहीं है, फिर भी राजस्व अधिकारी ने गुलपुरा के रामनिवास, बनवारी शर्मा, गीता अर्गल, बनवारी धाकड़ और जयप्रकाश शर्मा के नाम जमीन का व्यवस्थापन कर दिया।
4. पटवारी माखन अर्गल की पत्नी गीता अर्गल ने किसी से पट्टे की जमीन खरीद ली, लेकिन नामांतरण में गीता का नाम नहीं था। इस कृत्य को लेकर 2019 में पटवारी अर्गल के खिलाफ एफआईआर हुई, लेकिन कार्रवाई अब तक नहीं हुई।