शारदीय नवरात्र की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो रही है। पुराणों के अनुसार नवरात्र में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। सनातन पद्धति के अनुसार महानवमी को हवन के बाद नौ कन्याओं की पूजा की जाती है। बंगाली समाज में कुंवारी कन्या पूजन का खास महत्व है। बंगाली समाज म
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श्रीजा मुखर्जी का कन्या पूजन के लिए हुआ चयन
5 साल की श्रीजा मुखर्जी का हुआ चयन
पटना के बंगाली अखाड़ा लंगरटोली के वाइस प्रेसिडेंट समीर राय ने बताया कि अष्टमी के दिन ही कुंवारी कन्या की पूजा की जाती है। इस साल अष्टमी और नवमी एक ही दिन पड़ रहा है। पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजे है। इस साल बंगाली अखाड़ा में कुंवारी पूजा के लिए 5 साल की श्रीजा मुखर्जी का चयन हुआ है।
जो लोग भी अपने बच्ची का नाम कन्या पूजन के लिए लिखा देते हैं, उसी का अगले साल पूजा होता है। एक साल पहले ही यह तय हो जाता है। यह पहले आओ, पहले पाओ के तौर पर रहता है। बंगाली पद्धति के अनुसार किसी भी कन्या के जीवन में एक ही बार कुंवारी पूजन होता है। पूजन के लिए कन्या की उम्र 5 से 10 वर्ष तक होनी चाहिए।
बंगाली अखाड़ा लंगर टोली के वाइस प्रेसिडेंट समीर राय
सिंहासन पर बिठाकर मां का स्वरूप दिया जाता है
उन्होंने आगे कहा कि कुंवारी को सिंहासन पर बिठाकर मां का रूप दिया जाता है। उसे साड़ी, रजनीगंधा फूल का माला, हाथ में रजनीगंधा फूल की चूड़ी, सिर पर मुकुट, पैर में आलता लगाकर सजाया जाता है। साक्षात देवी का स्वरूप दिया जाता है। कुंवारी पूजन के लिए दो ब्राह्मण की जरूरत होती है। एक पूजा करवाते हैं और दूसरा मंत्रोच्चारण करते हैं।
कुंवारी कन्या का सिंहासन
सिंहासन पर कोई और नहीं बैठ सकता
समीर राय ने बताया कि जिस सिंहासन पर कुंवारी कन्या बैठती हैं। उस पर कोई और नहीं बैठ सकता है। सिर्फ कुंवारी कन्या ही साल में एक बार बैठ सकती हैं। इस सिंहासन को कन्या पूजन के बाद सुरक्षित रख दिया जाता है। फिर इसके अगले साल निकाला जाता है। जब तक कुंवारी कन्या जमीन पर पैर नहीं रखती है, तब तक उसे साक्षात देवी दुर्गा का रूप माना जाता है। लोग उसके पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं। अपनी इच्छानुसार लोग कन्या को रुपए, कपड़ा और उपहार भेंट करते हैं।