दिव्यांग दिवस पर हम मनेन्द्रगढ़ जिले में पदस्थ दिव्यांग शिक्षक शिवकुमार तिलक और पवन दुबे की कहानी बताने जा रहे हैं। पैरों में दिक्कत के बावजूद शिवकुमार तिलक शासकीय विद्यालय उजियारपुर और पवन दुबे शासकीय विद्यालय चैनपुर में बच्चों का भविष्य संवार रहे है
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ठंड हो या बरसात, ये दोनों शिक्षक स्कूल जाना नहीं छोड़ते हैं। दिव्यांग होने के बावजूद ट्राइसाइकिल व लाठी के सहारे स्कूल आकर ये दोनों शिक्षक ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं। उनके इस हौसले को छात्रा- छात्राओं के साथ-साथ दूसरे शिक्षक भी सलाम करते हैं।
शिक्षक पवन दुबे।
बचपन में रिक्शे से स्कूल जाने पर लोग हंसते थे
पवन दुबे शारीरिक अपंगता के बावजूद शिक्षक के रूप में समाज को नई दिशा देने का काम कर रहे हैं। हैरान कर देने वाली बात यह है कि पवन बचपन से ही दिव्यांग थे, लेकिन उनके मन में हमेशा आगे बढ़ने की इच्छा थी। यही वजह है कि आज वह एक सफल शिक्षक के रूप में समाज में ज्ञान का उजियारा फैला रहे हैं।
पवन दुबे बचपन से चलने फिरने में असमर्थ थे। इसके बाद भी वह रोजाना रिक्शे से स्कूल जाते थे और तमाम मुश्किलों के बावजूद अपनी पढ़ाई पूरी की। इसकी बदौलत आज वे मनेंद्रगढ़ विकासखंड के प्राथमिक शाला शंकरगढ़ में शिक्षक के तौर पर पदस्थ होकर समाज को दिशा देने का काम कर रहे हैं।

शिक्षक शिवकुमार तिलक।
ट्राइसाइकिल से स्कूल जाते हैं शिवकुमार
नगर पंचायत शिवपुर चरचा के रहने वाले दिव्यांग शिक्षक शिवकुमार तिलक पैरों से लाचार हैं। लेकिन शिक्षा देने के रास्ते में उनके सामने यह कभी बाधा साबित नहीं हुई। वर्ष 1998 में उन्होंने अपने शहर के नजदीक गांव सरडी के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षाकर्मी वर्ग 3 के तौर पर कार्य की शुरुआत की। तब वे पैदल ही लाठी के सहारे स्कूल जाया करते थे।
2008 से वो अपने शहर से 15 किलोमीटर का ट्राइसाइकिल से तय कर स्कूल जाते हैं। सफर मौसम जैसे भी हो, वह स्कूल पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते हैं।

स्कूल में शिक्षक पवन दुबे।