Saturday, June 14, 2025
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बिजनौर में डेढ़, हस्तिनापुर में 6 KM शिफ्ट हो गई: बहाव कम हुआ, टापू ज्यादा बने; रेत खोदकर गंगा को छलनी किया …पार्ट-1 – Bijnor News


यह पार्क है, बच्चे यहां झूला झूल रहे हैं और सैलानी आकर खाना खा रहे हैं। कुछ साल पहले तक यहां गंगा बहती थी। यह दृश्य है यूपी के बिजनौर जिले की विदुर कुटी का। विदुर पार्क भी बन गया है। गंगा इस विदुर कुटी से डेढ़ किलोमीटर दूर पश्चिम में शिफ्ट हो गई। विद

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‘दैनिक भास्कर’ उत्तर प्रदेश में 1450 किलोमीटर लंबी ‘गंगा यात्रा’ पर निकला है। यात्रा की शुरुआत उत्तराखंड–यूपी के बॉर्डर भागूवाला (बिजनौर) से हुई। यात्रा के पहले दिन आज हम भागूवाला से लेकर हस्तिनापुर तक, करीब 300 किलोमीटर गंगा का हाल बताएंगे, पढ़िए ये खास रिपोर्ट…

उत्तराखंड-यूपी बॉर्डर पर बिजनौर जिले में गंगा इस तरह सिमट गई है।

उत्तराखंड में खनन, यूपी बॉर्डर पर चल रही JCB…..

अपनी गंगा यात्रा के दौरान हम सबसे पहले बिजनौर के भागूवाला पहुंचे। ये वो स्थान है, जहां गंगा उत्तराखंड के रास्ते यूपी में एंट्री करती है। बिजनौर मुख्यालय से ये पॉइंट करीब 50 किलोमीटर और हरिद्वार से करीब 30 किलोमीटर दूर घने जंगलों में है। कई किलोमीटर खादर क्षेत्र में ऊंचे–नीचे, टेढ़े–मेढ़े रास्तों पर चलते हुए हम इस जगह पहुंचे। यहां गंगा दो धारा में आकर मिल रही है। एक धारा करीब 200 मीटर चौड़ी है तो दूसरी एकदम नाले जैसी। उत्तराखंड सीमा की तरफ एक JCB मशीन चल रही है।

भागूवाला पर उत्तराखंड की तरफ मशीनें खनन कर रही थीं। हमने करीब 3 KM खादर में ड्रोन उड़ाया, तब ये दृश्य कैद हो सका।

भागूवाला पर उत्तराखंड की तरफ मशीनें खनन कर रही थीं। हमने करीब 3 KM खादर में ड्रोन उड़ाया, तब ये दृश्य कैद हो सका।

हमने देखा कि यहां रेत खनन हो रहा है। भागूवाला गांव और इस पॉइंट के बीच में करीब 6 किलोमीटर की दूरी है। ये 6 किलोमीटर का एरिया गंगा खादर क्षेत्र है, जहां पर तमाम पेड़–पौधे उगे हुए हैं। ऊंचे–नीचे मैदान हैं। स्थानीय लोग बताते हैं– कभी ये गंगा इसी गांव से सटकर बहती थी। वक्त के साथ गंगा गांव से दूर होती गई। बदली धारा का मुख्य कारण रेत खनन है।

बिजनौर : विदुर कुटी से डेढ़ किलोमीटर दूर पहुंच गई गंगा

यहां का हाल देखने के बाद हम गंगा किनारे सफर करते हुए करीब 64 किलोमीटर दूर बिजनौर जिले में ही विदुर कुटी पर पहुंचे। हमें बताया गया था कि विदुर कुटी में गंगा बहती है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला। करीब डेढ़ किलोमीटर पश्चिम दिशा में पैदल चलने पर गंगा की एक धारा देखने को मिली। इस धारा की चौड़ाई करीब 100 मीटर होगी। इसके बाद रेतीले टापू बने हुए हैं, जिन पर हमें फसल लहलहाती हुई मिली। इस टापू को पार करने के बाद गंगा की मुख्य धारा बह रही है।

यहां महात्मा विदुर का प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है। हमारी मुलाकात मंदिर के मुख्य पुजारी अनुज कुमार शर्मा से हुई। वे बताते हैं– हमारा परिवार 40 से भी ज्यादा वर्षों से इस मंदिर की देखरेख कर रहा है। मैं तीसरी पीढ़ी का सेवादार हूं। मुझे खूब याद है, जब गंगा नदी मंदिर से सटकर बहती थी। विदुर कुटी पर ही गंगा स्नान करने के लिए पक्का घाट बना हुआ था, जिसमें कुछ सीढ़ियां भी थीं। अब पिछले 20 साल में गंगा दूर जा चुकी हैं। ऐसे में पक्के घाट का अस्तित्व खत्म हो गया है। उसकी जगह अब विदुर पार्क बन गया है। वहां बच्चों के खेलने के लिए झूले आदि लगे हुए हैं।

अनुज शर्मा कहते हैं– हम विदुर कुटी पर फिर गंगा लाने का प्रयास कर रहे हैं। पिछले दिनों एक डेलिगेशन सीएम योगी आदित्यनाथ से मिला था। उन्होंने इस दिशा में ठोस काम कराने का आश्वासन दिया है। इसके बाद एक टीम विदुर कुटी पर आकर सर्वे भी कर गई है। हमें उम्मीद है कि सरकार के प्रयासों से गंगा फिर विदुर कुटी से सटकर बहेंगी। इसके लिए कई किलोमीटर पीछे से ही गंगा की धारा को मोड़कर विदुर कुटी तक लाना होगा।

मंदिर के पुजारी ने बताया– ये स्थान पौराणिक और महाभारतकालीन है। यहां महात्मा विदुर ने कुटी बनाकर निवास किया था। भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन का मेवा छोड़कर विदुर के घर बथुए का साग खाया था। पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी इस मंदिर में आ चुके हैं।

गंगा जहां सबसे गहरी, वहां 5-5 फीट ऊंचे रेत के टापू

विदुर कुटी से करीब 13 किलोमीटर दूर हम चौधरी चरण सिंह गंगा बैराज पर पहुंचे। ये बिजनौर–मेरठ हाईवे पर बना है। बैराज पुल की लंबाई करीब एक किलोमीटर है। पुल पर खड़े होकर एक नजर देखने मात्र से गंगा में रेत के टापू स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। कई जगह तो इन टापुओं की ऊंचाई करीब पांच फीट तक है। ये स्थिति तब है, जब बैराज पर ही गंगा की सबसे ज्यादा गहराई मानी जाती है। बैराज पर इस तरह टापू बनने की वजह हमने कई नाविकों से पूछी।

मेरठ के पास हस्तिनापुर में गंगा में दूर-दूर तक रेतीले टापू नजर आ रहे हैं।

मेरठ के पास हस्तिनापुर में गंगा में दूर-दूर तक रेतीले टापू नजर आ रहे हैं।

वे बताते हैं- गंगा बैराज से करीब एक किलोमीटर दूर गंगा के ऊपर ही दूसरा ब्रिज बन रहा है। अभी पुल के पिलर बनाने का काम चल रहा है। इस वजह से गंगा की धारा मोड़ी गई है, ताकि काम में कोई रुकावट न आए। धारा मुड़ने की वजह से ही बैराज पर गंगा में टापू बन गए हैं।

गंगा किनारे वाले लोगों के लिए स्पेशल कैंपेन

बिजनौर गंगा किनारे चलते–चलते हमें जलज कोआर्डिनेटर पंकज कुमार मिले। नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत गंगा की साफ–सफाई का काम चलता है। इसके तहत जलज कार्यक्रम भी चलाया गया है।

पंकज कुमार ने बताया– हमने बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ जिले में गंगा नदी से सटे गांवों में अनेक बार जागरूकता अभियान चलाए हैं। इस दौरान ग्रामवासियों को बताते हैं कि वो गंगा में गंदगी न डालें। जलीय जीवों को न पकड़ें। गंगा को बचाने के लिए शपथ या संकल्प कार्यक्रम भी कराए जाते हैं। इस कैंपेन का असर दिख भी रहा है। लोग अब गंगा को लेकर बेहद जागरूक हैं।

हस्तिनापुर : जिस कर्ण घाट पर बहती थी गंगा, वह अब 6 KM दूर

बिजनौर बैराज से गंगा किनारे वाले गांवों में होते हुए हम करीब 60 किलोमीटर दूर मेरठ के हस्तिनापुर पहुंचे। यहां पर गंगा नदी पीछे से दो धाराओं में बहती हुई आ रही है। चौड़ाई इतनी कम है कि गंगा सिर्फ पुल के नीचे बह रही है। यहां भी गंगा में रेत के चौड़े–चौड़े टापू बने हुए हैं। इस पुल से हस्तिनापुर कस्बे की दूरी करीब 5 किलोमीटर से ज्यादा है।

ये हस्तिनापुर का कर्ण घाट है। कभी यहां तक गंगा बहती थी। अब गंगा यहां से काफी दूर चली गई है।

ये हस्तिनापुर का कर्ण घाट है। कभी यहां तक गंगा बहती थी। अब गंगा यहां से काफी दूर चली गई है।

हस्तिनापुर में एंट्री करते ही दानवीर कर्ण का मंदिर मिला। मंदिर पर एक बोर्ड लगा है। उस पर लिखा है– ‘इस मंदिर में दानवीर राजा कर्ण सवा मन सोना प्रतिदिन दान किया करते थे। कर्ण ने इंद्र को कवच–कुंडल दान किए थे। यह प्रसिद्ध घटना इसी स्थान पर हुई थी।’ मंदिर पर लगे बोर्ड पर ही ये जगह कर्ण घाट के नाम से दर्शायी गई है।

श्री कर्ण मंदिर के पुजारी स्वामी शंकर देव ने बताया- कर्ण घाट का मतलब है कि कभी यहां गंगा घाट तक बहती थी। इसीलिए ये जगह कर्ण घाट के नाम से जानी गई होगी। लेकिन, आज गंगा यहां से 7–8 किलोमीटर से भी ज्यादा दूर बह रही है। मैं पिछले 10 साल से इस मंदिर की सेवा कर रहा हूं। मैंने आज तक सिर्फ बाढ़ के वक्त ही मंदिर के नजदीक तक गंगा देखी है। बाढ़ के अलावा बाकी दिनों में इस जमीन पर खेती होती है। मौजूदा वक्त में भी खेती हो रही है।

स्टडी रिपोर्ट : गंगा के घुमाव और चौड़ाई कम हो रही

साल 1958 से 1972 के बीच अमेरिका की एजेंसी CIA ने गंगा बेसिन की करीब 8 हजार सैटेलाइट तस्वीरें ली थीं। इन्हीं तस्वीरों को आधार बनाकर सर्वे ऑफ इंडिया के साथ मिलकर नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ। उस वक्त की तस्वीरों का साल–2018 की तस्वीरों से मिलान किया गया। इससे पता चलता है कि गंगा के बहाव का पैटर्न बदल चुका है। कहीं गंगा का बहाव घटा तो कहीं बढ़ा है। नदी के घुमाव खत्म हो रहे हैं। चौड़ाई में काफी कमी दर्ज हुई है। इसकी वजह पर्यावरण में बदलाव और गंगा पर अतिक्रमण है।

ये सैटेलाइट तस्वीर बिजनौर की है। इसमें साफ तौर पर दिख रहा है कि किस तरह गंगा की चौड़ाई कम हो गई।

ये सैटेलाइट तस्वीर बिजनौर की है। इसमें साफ तौर पर दिख रहा है कि किस तरह गंगा की चौड़ाई कम हो गई।

इस रिपोर्ट के बारे में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के इंजीनियर पीयूष गुप्ता ने बताया– साल 1965 में हरिद्वार में नदी का बार यानी बहाव राेकने वाला किनारा 17.85 वर्ग किलोमीटर था, जो अब घटकर अब 6.67 वर्ग किलोमीटर रह गया है। सैटेलाइट इमेज से पता चलता है कि बिजनौर में गंगा कछार का इलाका 4 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 9 वर्ग किलोमीटर हो गया है।

गंगा में रेत खनन बढ़ा है। जबकि बहाव रोकने वाला किनारा 38 वर्ग किलोमीटर से घटकर 15 वर्ग किलोमीटर रह गया है। यानी 23 वर्ग किलोमीटर घट गया है। यूनाइटेड नेशन (UN) की एक रिपोर्ट भी बताती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में ठोस कदम नहीं उठाए गए तो गंगा 2050 तक सूख सकती है। ये रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है।

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