हाईकोर्ट में जनहित याचिका पर हुई सुनवाई।
छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एयरपोर्ट के विकास को लेकर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने आज महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि सेना की जमीन पर राज्य सरकार 4-C लाइसेंस के लिए रन-का विस्तार सहित विकास के काम कराने के लिए स्वतंत्र है। हाईकोर्ट ने नाइट लैंडि
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दरअसल, हवाई सुविधा में विस्तार को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका भी लगी है, जिसकी लगातार सुनवाई चल रही है। इस दौरान याचिकाकर्ता के एडवोकेट सुदीप श्रीवास्तव ने एयरपोर्ट में बड़े विमानों की सुविधाएं शुरू करने के लिए यहां 4-C कैटेगरी लाइसेंस यानी की एयरपोर्ट के विस्तार की मांग की थी। साथ ही कहा था कि एयरपोर्ट में रक्षा मंत्रालय की जमीन है, जिसमें से 287 एकड़ जमीन लेकर रन-वे बढ़ाने सहित अन्य काम शुरू किया जा सकता है।
रक्षा मंत्रालय ने जमीन देने दी थी सहमति
पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और रक्षा मंत्रालय के बीच बनी सहमति की जानकारी दी गई थी।
इस दौरान हाईकोर्ट ने राज्य शासन को निर्देश दिया है कि सेना की जमीन लेने के लिए बिलासपुर कलेक्टर के माध्यम से एक सप्ताह में 90 करोड़ रुपये रक्षा मंत्रालय में जमा कराया जाए। साथ ही रक्षा मंत्रालय को निर्देश दिया है कि यह राशि जमा होने के सप्ताह भर में जमीन राज्य शासन को वापस की जाए। जिसके बाद इस जमीन का सीमांकन भी हुआ।
अब रक्षा मंत्रालय ने लगाया अड़ंगा
शुक्रवार को केस की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से एक बार फिर सेना की जमीन वापसी का मुद्दा उठाया गया, तब रक्षा मंत्रालय की तरफ से बताया गया कि राज्य शासन ने जमीन को लेकर पत्राचार का जवाब नहीं दे रही है, जिसके कारण शासन के चेक को लौटा दिया गया है।
हाईकोर्ट बोला- एक बार सहमति देने के बाद मुकर नहीं सकती रक्षा मंत्रालय
इस पर डिवीजन बेंच ने कहा कि एक बार जमीन देने के लिए रक्षा मंत्रालय ने सहमति दे दी है, जिससे वो अब मुकर नहीं सकती। कोर्ट ने राज्य शासन से कहा है कि वो एयरपोर्ट पर विकास कार्य करने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही कहा कि जमीन को लेकर राज्य और केंद्र सरकार यानी की रक्षा मंत्रालय के बीच जो विवाद है उसे आपस में निपटते रहे। लेकिन, इसकी वजह से एयरपोर्ट के काम में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा- 4-C के लिए क्या प्रोग्रेस है
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी बताया गया कि 4-C कैटेगरी लाइसेंस के लिए एयरपोर्ट अथार्टी ऑफ इंडिया के मापदंडो के अनुसार काम किया जाना है। ऐसे में राज्य शासन को DPR बनाने के लिए पहले काम करना होगा, जिसके लिए टेंडर जारी करना पड़ेगा। इसके बाद ही एयरपोर्ट में मापदंडो के आधार पर काम किया जा सकता है। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य शासन से पूछा है कि 4-C लाइसेंस के लिए अब तक क्या किया गया है, इसकी जानकारी शपथपत्र के साथ अगली सुनवाई के पहले प्रस्तुत करें।
नाइट लैंडिंग पर AII से मांगा शपथपत्र
सुनवाई के दौरान कोर्ट को यह भी बताया गया कि राज्य शासन और एयरपोर्ट अथार्टी ऑफ इंडिया ने कहा था कि साल 2024 तक नाइट लैंडिंग की सुविधा शुरू हो जाएगी। एयरपोर्ट में काम होने के बाद केवल DVOR मशीन नहीं लगने की वजह से नाइट लैंडिंग का काम अटका हुआ है। इस पर एयरपोर्ट अथार्टी ऑफ इंडिया की तरफ से कहा गया कि नाइट लैंडिंग में अभी दो साल का वक्त और लगेगा, जिस पर याचिकाकर्ताओं ने आपत्ति की। साथ ही राज्य शासन ने भी आपत्ति जताई। इस दौरान कहा गया कि AII जो उपकरण लगाने की बात कह रहा है उसे शीघ्र लगाकर नाइट लैंडिंग का काम पूरा करें, जिस पर हाईकोर्ट ने AAI को शपथपत्र के साथ DVOR उपकरण पर स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।
जानिए जमीन को लेकर क्या है अड़ंगा
दरअसल, रक्षा मंत्रालय और राज्य सरकार के बीच जमीन वापस करने पूर्व में सहमति बन गई थी, जिसके लिए सरकार ने केंद्र सरकार को पैसा भी दे दिया है। लेकिन, रक्षा मंत्रालय का कहना है कि सेना के लिए रायपुर में जमीन चाहिए। ऐसे में एयरपोर्ट की जमीन की कीमत और रायपुर की जमीन की कीमत को लेकर सहमति नहीं बन पाई, जिसके कारण रक्षा मंत्रालय ने सेना की जमीन के लिए दिए गए 90 करोड़ रुपए के चेक को लौटा दिया है। जिसके बाद रक्षा मंत्रालय एयरपोर्ट के लिए जमीन नहीं देने के लिए अड़ंगा लगा रहा था।