बिहार की चार सीटों रामगढ़, तरारी, बेलागंज और इमामगंज में उपचुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है। पहली बार प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज चुनाव मैदान में है, लेकिन सच यह है कि किसी भी सीट पर जनसुराज के उम्मीदवार जीतने वाली स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। ये ज
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भास्कर ने चारों विधानसभा सीटों पर एक्सपर्ट से बात की। इसमें चौंकाने वाले फैक्ट सामने आए और बदला हुआ पैटर्न भी दिखाई दिया।
प्रशांत किशोर जानते हैं कि बिहार चुनाव की रणनीति क्या है, इसलिए उन्होंने सामाजिक समीकरण का ख्याल रखते हुए उम्मीदवार दिए। गंभीर आरोप वाले उम्मीदवार से भी उन्होंने परहेज नहीं किया।
वोटिंग परसेंटेज 52.84 फीसदी रहने का मतलब यह निकला जा रहा है कि लोगों में वोटिंग के प्रति उत्साह बहुत ज्यादा नहीं रहा और जीत-हार का अंतर भी बहुत ज्यादा नहीं रहने वाला है। एक्सपर्ट की माने तो बेलागंज में जेडीयू, इमामगंज में आरजेडी आगे है। वहीं, तरारी सीट माले गंवा सकती है। पढ़िए उपचुनाव पर ये स्पेशल रिपोर्ट…
सबसे पहले बात बेलागंज और इमामगंज की
बेलागंज और इमामगंज की सीट गया में आती हैं। बेलागंज की सीट इसलिए हॉट है कि यह आरजेडी का गढ़ रही है। लालू प्रसाद उपचुनाव में कहीं चुनाव प्रचार को गए तो वह बेलागंज ही है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि यही एक सीट है, जहां से जेडीयू ने उम्मीदवार दिया है। यानी यहां से लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है।
आरजेडी के सुरेंद्र यादव 8 बार यहां से विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने अपने बेटे विश्वनाथ को आरजेडी से टिकट दिलवाया है। इस बार आरजेडी के गढ़ पर खतरा दिख रहा है। यहां बीजेपी और जेडीयू के अंदरुनी कॉर्डिनेशन की परीक्षा होनी है।
आरजेडी के विश्वनाथ का मुकाबला बिंदी यादव की पत्नी जेडीयू की मनोरमा देवी से है। विश्वनाथ पर परिवारवाद का आरोप है तो मनोरमा देवी को सहानुभूति वोट भी मिले हैं।
यहां 19 फीसदी के लगभग यादव हैं और मुसलमान 17 फीसदी के आसपास। उसके बाद बड़ी आबादी मुसहरों की है। मुसहर यहां 11 फीसदी हैं।
सवर्णों में भूमिहार सबसे ज्यादा सात फीसदी हैं, राजपूत 3.5 फीसदी, कोयरी छह फीसदी, बनिया दो फीसदी और बाकी ओबीसी छह फीसदी, ईबीसी 6 फीसदी हैं।
पासवानों का वोट बैंक ईबीसी के बराबर ही छह फीसदी है। चमार जाति के लोग पांच फीसदी हैं। सवर्ण यहां 14 फीसदी हैं।
परिवारवाद का आरोप सबसे ऊपर
इमामगंज की सीट से पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उन्होंने अपनी बहू को टिकट दिया है। इस वजह से हम पार्टी की दीपा मांझी पर परिवारवाद का आरोप खूब लगता रहा।
इमामगंज बिहार- झारखंड का बॉर्डर इलाका है और नक्सल प्रभावित रहा है। इमामगंज में मुसहर सबसे अधिक 18.6 प्रतिशत, दूसरे नंबर पर मुसलमान 15.3 प्रतिशत, तीसरे नंबर पर यादव 13.2 प्रतिशत, चौथे नंबर पर कुशवाहा 10.82 प्रतिशत हैं।
यहां ओबीसी 30 फीसदी के लगभग हैं। राजपूत 4.3 फीसदी, बाह्मण और भूमिहार की आबादी काफी कम है। सवर्ण 6 फीसदी के लगभग हैं।
जीतन राम मांझी के काम का फायदा उनकी बहू को मिल रहा है। लेकिन परिवारवाद की हदें पार कर दी हैं। यह आरोप लोग हम पार्टी पर लगा रहे हैं।
दोनों सीट पर एनडीए के वोट काट रही है जनसुराज
गया के वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल कादिर कहते हैं कि ‘बेलागंज में जेडीयू की मनोरमा देवी और इमामगंज में आरजेडी के रौशन मांझी की स्थिति मजबूत दिख रही है। जनसुराज दोनों जगह एनडीए के वोट काट रही है। इस उपचुनाव में नया ट्रेंड यह दिखा कि जनसुराज जैसी पार्टी ने उम्मीदवार को सीधे पैसा नहीं दिया, बल्कि खुद से खर्च किया। उनकी पूरी मशीनरी एक्टिव रही।’
इमामगंज उपचुनाव के बारे में अब्दुल कादिर कहते हैं कि ‘यहां मुसलमानों का वोट आरजेडी के उदय नारायण चौधरी को पूरी तरह से नहीं मिलता था, वे इस बार नहीं खड़े हैं। इस बार आरजेडी के रौशन मांझी को अधिकांश मुसलमानों का वोट मिला है। जनसुराज ने पासवान का वोट काटा है और इसका नुकसान हम पार्टी की उम्मीदवार दीपा मांझी को होने की आशंका है।’
‘बेलागंज और इमामगंज दोनों ही जगह जनसुराज को जो वोट मिले हैं, वे प्रशांत किशोर की वजह से कम उम्मीदवार की वजह से अधिक मिले हैं। बेलागंज में जनसुराज को मो.अमजद की वजह से वोट मिला और इमामगंज में जितेन्द्र पासवान की वजह से वोट मिला है। मुसलमान और पासवान उम्मीदवार उतारकर प्रशांत ने यहां खेल करने की पूरी कोशिश की। ‘
कादिर कहते हैं कि ‘चिराग पासवान ने मांझी के उम्मीदवार को हराने को लेकर इनडायरेक्ट अपने लोगों को इशारा किया है। ऐसी चर्चा इलाके में है। लेकिन इसमें क्या सच्चाई है कहा नहीं जा सकता।’
बेलागंज के स्थानीय पत्रकार राकेश कुमार कहते हैं ‘उपचुनाव में जेडीयू की मनोरमा देवी भारी दिख रही हैं। दूसरे नंबर पर आरजेडी के विश्वनाथ हैं। जेडीयू की मनोरमा देवी ने यादव का वोट काटा है। 70% मुसलमान ने जनसुराज के मो. अमजद को वोट दिया। वे शेख मुसलमान हैं और बेलागंज में शेख मुसलमानों की संख्या ज्यादा है।’
इमामगंज के स्थानीय पत्रकार निर्भय मिश्रा कहते हैं कि ‘आरजेडी का एम यानी मुसलमान वोट बैंक ध्वस्त हो गया है। यह वोट आरजेडी से कट गया, वाई यानी यादव वोट बैंक बना रहा। जनसुराज के जितेन्द्र पासवान को पासवान का वोट मिला है, बाह्मण, राजपूत का भी वोट मिला। मुसलमानों का भी अच्छा वोट मिला, बाकी कई जातियों का वोट मिला। हम पार्टी की दीपा मांझी को भुइयां का वोट मिला।’
इमामगंज के स्थानीय पत्रकार निर्भय मिश्रा कहते हैं कि ‘हम पार्टी की दीपा मांझी की स्थिति अच्छी है। इसके बाद जनसुराज के जितेन्द्र पासवान और तीसरे नंबर पर आरजेडी के रौशन मांझी हो सकते हैं।’
अब बात तरारी विधानसभा उपचुनाव की
तरारी में बीजेपी ने पूर्व बाहुबली विधायक सुनील पांडेय के बेटे विशाल प्रशांत को उतारा है, जबकि माले से राजू यादव ने चुनाव लड़ा है। जनसुराज से किरण सिंह लड़ीं। यह माले का गढ़ और इस गढ़ में सेंधमारी की कोशिश एनडीए की है। पूर्व सांसद आरके सिंह ने भी उपचुनाव में विशाल प्रशांत के लिए पूरी ताकत लगा दी। विशाल प्रशांत भूमिहार जाति से हैं, जबकि किरण सिंह राजपूत।
पिछले विधानसभा चुनाव में सुनील पांडेय निर्दलीय लड़ते हुए दूसरे नंबर पर रहे थे। यहां सबसे अधिक यादव 13.9 फीसदी, दूसरे नंबर पर ईबीसी 12.3 फीसदी, मुसलमान और भूमिहार बराबर हैं 10 फीसदी के लगभग। राजपूत 8 फीसदी हैं। पासवान 7 फीसदी हैं।
सवर्ण वोट बैंक 24 फीसदी है, पर यह वोट बंटता हुआ दिखा। यह नक्सल प्रभावित इलाका रहा है। रणवीर सेना का संस्थापक माने जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या मामले में सुनील पांडेय का नाम भी आया था।
माले के गढ़ तरारी में एनडीए की सेंधमारी
तरारी के पत्रकार भीम राय कहते हैं कि ‘विशाल प्रशांत को अच्छे वोट मिले हैं। माले के राजू यादव को हर जाति-धर्म के वोट नहीं मिले। तरारी माले का गढ़ है। पिछले 5 सालों में यहां काम कम हुआ है। इसे लोगों ने गंभीरता से लिया। माले का वोट टूटकर विशाल की तरफ भी गया। माले और बीजेपी दोनों का वोट जनसुराज ने काटा। जनसुराज के तीसरे नंबर पर रहने की उम्मीद है।’
तरारी उपचुनाव पर आरा के स्थानीय पत्रकार शुभम कहते हैं कि ‘तरारी उपचुनाव के परिणाम इस बार चौंकाने वाले होंगे, क्योंकि माले और बीजेपी की लड़ाई तो सीधे-सीधे है, लेकिन जनसुराज वोट काटने में सफल रहा है। दोनों पार्टियों को जनसुराज ने नुकसान पहुंचाया है। जनसुराज को 10 हजार से अधिक वोट आया तो बीजेपी और माले के बीच जीत का आंकड़ा काफी कम होगा। बीजेपी के पक्ष में कई नेता पहुंचे, जिसका फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है।
तरारी का चुनाव दिलचस्प रहा। तरारी को माले का गढ़ माना जाता है। जनसुराज की लहर जिस तरह से रही, वह वोट में नहीं बदली। माले का गढ़ जहां बाजार को माना जाता है, वहां परिवर्तन का वोट रहा। जनसुराज बहुत असर नहीं डाल रहा।’
इमामगंज की तरह रामगढ़ में भी परिवारवाद का आरोप
यहां आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह और बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। आरेजेडी के उम्मीदवार अजीत सिंह., जगदानंद सिंह के बेटे हैं। इसलिए आरजेडी पर परिवारवाद का आरोप खूब लगा है।
बसपा से पूर्व विधायक अंबिका यादव का भतीजा पिंटू यादव मैदान में हैं। बीजेपी से अशोक सिंह, राजपूत जाति से हैं। जनसुराज ने कुशवाहा कार्ड खेलते हुए सुशील सिंह कुशवाहा को उतारा है। बॉर्डर इलाका होने की वजह से बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक यहां अच्छा है।
यहां चमार जाति अकेले 22 फीसदी है। दलितों का वोट बैंक लगभग 29 फीसदी है और ये वोट बैंक जीत-हार में मायने रखता है। राजपूत 8 फीसदी, ब्राह्मण 6 फीसदी हैं। सवर्ण 17.5 फीसदी हैं। यादव वोट बैंक 12 फीसदी और मुसलमान 8 फीसदी हैं। कोयरी-कुर्मी मिलाकर 8 फीसदी हैं। इसमें कोयरी सात फीसदी हैं। इस वोट बैंक को साधकर जनसुराज खेल करने में लगी है।
रामगढ़ में बीएसपी और बीजेपी में दिख रहा टक्कर
रामगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार नरेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि ‘रामगढ़ उपचुनाव में बीएसपी और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर है। यादव वोट आरजेडी का काफी कटा है और बीएसपी की तरफ गया है। जनसुराज की एंट्री ठीक-ठाक रही। जनसुराज के उम्मीदवार सुशील कुशवाहा ने आरजेडी का वोट काटा। ब्राह्मण का वोट भी जनसुराज ने काटा है। बीजेपी को कुशवाहा वोट ठीक-ठाक मिला है। उपेन्द्र कुशवाहा यहां आए थे।
परिवारवाद का भी रिएक्शन रहा। सिम्पैथी वोट बीजेपी से जुड़ा। बीजेपी के उम्मीदवार अशोक सिंह का राजनीतिक कैरियर दांव पर दिखा और इसका फायदा उनको मिल सकता है। यहां का वोटिंग पैटर्न यह रहा है कि बसपा कई चुनाव से दूसरे नंबर पर रही है।‘
चारों सीटों पर एक्सपर्ट व्यू
तीनों सीटों को बचाना महागठबंधन के लिए चुनौती
चारों सीटों को लेकर भास्कर ने पटना में वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय से बात की। वे कहते हैं कि ‘कुल मिलाकर जो फिडबैक मिल रहा है आरजेडी के लिए रामगढ़ सीट पर जीत को बरकरार रखना चुनौती है। जनसुराज का लक्ष्य था एनडीए नहीं बल्कि आरजेडी को डैमेज करना।
बेलागंज में जनसुराज ने मुसलमान उम्मीदवार दे दिया था। जनसुराज को मुसलमानों का वोट मिलना बताता है कि आरजेडी का जनाधार मुसलमानों में घटा है। दो यादव उम्मीदवार वहां थे। लालू प्रसाद सिर्फ बेलागंज ही गए। ओसामा भी गए। तो बेलागंज में आरजेडी के लिए बड़ी चुनौती है।
रामगढ़ में राजपूत के वोट में डिवीजन दिख रहा है। अंबिका यादव का भतीजा बसपा से वहां लड़ा। जनसुराज ने कुशवाहा को टिकट दे दिया। इससे वहां चुनौती है। इस चुनाव में लड़ कोई और रहा था, चर्चा किसी और कि हो रही थी। तरारी में सुनील पांडेय, बेलागंज में सुरेन्द्र यादव, इमामगंज में जीतन राम मांझी, रामगढ़ में जगदानंद सिंह की चर्चा होती रही।’
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बिहार की चार विधानसभा सीटों बेलागंज, इमामगंज, तरारी और रामगढ़ में दो दिन बाद यानी 13 नवंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग होगी। इन चार सीटों में से 3 पर पिछली बार महागठबंधन का कब्जा था, जबकि इमामगंज से मांझी जीते थे। इस बार जो समीकरण बन रहे हैं, उसमें दो सीट (बेलागंज और इमामगंज) पर एनडीए का पलड़ा भारी दिख रहा है। वहीं तरारी और रामगढ़ में कांटे की टक्कर नजर आ रही है। पूरी खबर पढ़ें