छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में ब्रह्म यज्ञ की राख से होली खेली जा रही है। कांडसर गौशाला में यह अनूठी परंपरा पिछले 16 सालों से चली आ रही है। यहां होली से 3 दिन पहले अलग-अलग कार्यक्रम किए गए, जो ब्रह्म यज्ञ की पूर्णाहुति तक चलते रहे।
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इसके पहले भक्तों के ऊपर से गाय माता गुजरी। भक्तों ने गोपद से आशीर्वाद लिया। 4 दिन तक होने वाले इस आयोजन में लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। कार्यक्रम का मकसद गो-सेवा को बढ़ावा देना, गौ-माता की रक्षा, उसके महत्व को लोगों को समझाना और उसका प्रचार प्रसार करना है।
शोभायात्रा से पहले गायों की पूजा की गई
अब जानिए कौन-कौन से कार्यक्रम किए गए?
- गौशाला में 10 मार्च को स्वागत कार्यक्रम हुआ।
- 11 मार्च को कलश यात्रा और गौमाता की शोभा यात्रा।
- 12 मार्च को पलाश, धान के पौधे, तितली रानी को मुख्य अतिथि बनाकर मंच पर बिठाया गया।
- 13 मार्च से ब्रह्म यज्ञ शुरू हुआ और सुबह समाप्त हुआ। यज्ञ में गाय के गोबर से बनी लकड़ियों की आहुति दी गई।
ये सभी आयोजन गौ-सेवक बाबा उदयनाथ करा रहे हैं, जिसमें उनके अनुयायी और प्रदेशभर के साथ ही पड़ोसी राज्य ओडिशा के लोग भी शामिल होते हैं। यहां गौ-माता के प्रचार प्रसार के संबंध में बात की जाती है। गायों से संबंधित ही प्रवचन होता है।

गौमाता की शोभा यात्रा के दौरान भक्तों ने गाय माता से गौपद लेकर आशीर्वाद लिया।
शोभायात्रा में गौ माता तीन किलोमीटर तक चलीं
पहले दिन मंगलवार को गौ माता की भव्य शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में गौ माता तीन किलोमीटर तक चलीं। इससे पहले गायों की पूजा की गई। बाबा के अनुयायी बैंड-बाजे के साथ गौ माता के जयकारे लगाते हुए गांव भ्रमण पर निकले। गौ माता की यात्रा में पूरे गांव में सूती कपड़े बिछाए गए।
गौ-माता के रास्ते में पेट के बल लेटे भक्त
यात्रा के दौरान जगह-जगह गायों का पूजन कर स्वागत किया गया। श्रद्धालु गौ माता के मार्ग में पेट के बल लेट गए और उनके चरणों से आशीर्वाद (गोपद) लिया। मान्यता है कि इससे शारीरिक कष्ट और सभी बाधाएं दूर होती हैं, जिसके कारण यहां की होली काफी लोकप्रिय है।

गौ-माता के रास्ते में पेट के बल लेटे भक्त ।
औषधीय काष्ठ से हुआ यज्ञ अनुष्ठान
प्रकृति प्रेम जागृत करने के लिए बनाई गई इस परंपरा में लगातार तीन दिनों तक यज्ञ अनुष्ठान किए गए। यहां सिर्फ औषधीय काष्ठ से ही यज्ञ होता है। इसलिए हवन में गौ-काष्ठ और आयुर्वेदिक विभिन्न औषधियों को डाला गया।
समापन के दिन सुबह पहले यज्ञ की पूर्णाहुति हुई। पूर्णाहुति के बाद हवन कुंड के राख से होली खेली गई। होली खेलने के पहले राख को ठंडा किया जाता है। इसके बाद यहां भजन कीर्तन और भंडारा का कार्यक्रम किया गया।

गरियाबंद जिले के काडसर गौशाला में होली पर विशेष आयोजन
गौ-सेवक के 7 हजार अनुयायी
सम्मेलन में गौ-माता के प्रचार प्रसार के संबंध में बात की जाती है। गायों से संबंधित ही प्रवचन होता है। बताया जाता है कि गौ-सेवक बाबा उदयनाथ के अकेले गरियाबंद के देवभोग इलाके में 7 हजार परिवार अनुयायी हैं। जो यहां हर साल शामिल होते हैं।
इन अनुयायी के अलावा यहां राज्य भर के गौ-सेवा से जुड़े लोग, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं। बाबा के अनुयायियों की खास बात ये है कि ये नशा नहीं करते। हमेशा गेरुआ वस्त्र धारण किए रहते हैं।

शोभा यात्रा में भाजपा प्रदेश संगठन मंत्री पवन साय शामिल हुए
गायों को उनके नामों से बुलाया जाता है
कांडसर गौ-सेवा केंद्र में कुल 300 गाय हैं, जिनकी सेवा यहां रह रहे बाबा करते हैं। इन 300 गायों का नाम भी रखा गया है। जिनके नाम से उन्हें बुलाया जाता है। यहां होने वाले दूध, दही, घी की काफी डिमांड है। लोग कहते हैं यहां पर सबसे शुध्द दूध, दही और घी मिलता है।