Tuesday, June 3, 2025
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ब्लैकबोर्ड- प्रॉपर्टी की तरह लीज पर बिक रहीं बेटियां: कर्ज चुकाने के लिए पैसे लेकर मां-बाप कर रहे सौदा


मेरे तीन छोटे बच्चे थे और कमाई एक रुपए भी नहीं थी। कई साल ऐसे बीते जब मेरे पास कोई काम नहीं था। मेरे पास न खेती के लिए जमीन थी और न ही चराने के लिए कोई मवेशी। उधार लेकर और छोटे मोटे काम कर जैसे-तैसे अपने परिवार को एक वक्त का खाना खिला पाता था। धीरे-ध

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गांव के एक जानने वाले ने मुझे सन्नी से मिलवाया और कहा ये तुम्हारी मदद कर सकता है। सन्नी के पास गया तो उसने पूछा घर में कौन-कौन है। मैंने बताया दो बेटी, एक बेटा, मैं और मेरी पत्नी। उसने तुरंत कहा बड़ी बेटी मुझे दे दो और पैसे ले जाओ।

मैंने सन्नी को एक लाख रुपए के बदले एक साल के लिए बड़ी बेटी बिंदिया दे दी। उसने मेरी 10 साल की बेटी पता नहीं किसे बेच दी। मुझसे कहा था बीच-बीच में बिंदिया से मिलवाता रहेगा। उसे पढ़ाएगा-लिखाएगा। मिलवाना तो दूर उसने कभी फोन पर भी हमारी बात नहीं करवाई।

गोपीचंद के इतना बोलते ही उनकी पत्नी संगीता रोने लगती हैं। कहती हैं- मैं अपनी बच्ची को देखने के लिए तरस गई। सन्नी ने कहा था एक साल बाद पैसे लौटा देना, बेटी वापस ले जाना। सालों बीत गए, लेकिन बेटी घर नहीं आई।

ब्लैकबोर्ड में आज स्याह कहानी राजस्थान के उस गांव की जहां मां-बाप कर्ज उतारने के लिए लीज पर भेज रहे बेटियां…

शाम के अभी 6 ही बजे हैं, कोटा से 110 किलोमीटर दूर नादियाखेड़ी की कंजर बस्ती में सन्नाटा पसरा है। दिसंबर की सर्द रात में यहां दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता। अंधेरे को चीरते मेरी गाड़ी गोपीचंद के घर पहुंची।

गोपीचंद अपनी पत्नी संगीता के साथ घर के बाहर चूल्हे के पास बैठे हुए थे। मैंने पूछा पूरी बस्ती में अंधेरा है, लाइट कब तक आएगी। जवाब मिला यहां बिजली का कनेक्शन नहीं है।

इस बस्ती में कोटा पत्थर से बने हुए 10-15 मकान हैं और किसी भी मकान पर प्लास्टर नहीं है। यहां कंजर समुदाय के लोग रहते हैं जिनके पास आय का कोई स्थायी जरिया नहीं है। न खेत, न मवेशी और न ही कोई व्यवसाय।

मैंने गोपीचंद से पूछा आप क्या करते हैं? वो कहते हैं मेरे पास कोई काम नहीं है। कभी किसी के मवेशी चरा देता हूं या मजदूरी कर लेता हूं। कभी घर आ जाता हूं तो कभी घर भी नहीं आता।

घर में कौन कौन है? इस पर गोपीचंद बताते हैं मेरी बीवी और एक बच्ची। एक बेटा था जो अब शांत (गुजर) हो गया। फिर मैंने पूछा कि आपकी बड़ी बेटी कहां है? इस पर गोपीचंद थोड़ा घबरा जाते हैं। कहते हैं- मेरी एक ही बेटी है जो सामने बैठी है। बार-बार पूछने पर कहते हैं कि मैंने सन्नी को एक लाख रुपए के बदले बड़ी बेटी बिंदिया दे दी थी।

सन्नी हमारी बच्ची को जाने कहां ले गया और बेच दिया। मैंने बेटी उसको देने से पहले कई बार पूछा था कि मिलवाने तो लाएगा ना, उसने हां भी कहा था, फिर भी कभी वापस नहीं आया।

गोपीचंद कहते हैं कर्ज बढ़ गया था इसलिए एक लाख रुपए में दलाल को अपनी बेटी दे दी।

मैंने पूछा ये सन्नी कौन है? क्या आप इसको पहले से जानते थे? गोपीचंद ने कहा हमारे ऊपर कर्ज बहुत बढ़ गया था। कमाई का कोई साधन नहीं था इसलिए चुका नहीं पा रहे थे। गांव के जानने वाले ने हमे सन्नी से मिलवाया। मैं उससे पहले कभी नहीं मिला था। सन्नी ने कहा वो एनजीओ से है और हम जैसे गरीब लोगों की मदद करता है।

एक लाख रुपए के बदले उसने मेरी 10 साल की बिंदिया को रख लिया। सन्नी ने वादा किया था कि बिंदिया को पढ़ाएगा, लिखाएगा अच्छे कपड़े देंगे और साल भर बाद जब हम एक लाख रुपए वापस करेंगे तो बेटी वापस कर देगा। उसने कागज पर हमसे अंगूठा भी लगवाया था, वो कागज भी सन्नी अपने साथ ही ले गया।

बिंदिया की कोई तस्वीर है आपके पास? ये पूछते ही संगीता घर के अंदर गई। संगीता के घर में दीवारों के अलावा कुछ भी नहीं था। उन्हीं दीवारों के बीच बंधी रस्सी से संगीता ने एक गुलाबी पोटली खोलकर मुझे बिंदिया की तस्वीर दिखाई।

सांवला रंग, बड़ी-बड़ी सुंदर कजरारी आंखें, सफेद लहंगा-चोली पर बने गुलाबी फूल और हाथों में रंग बिरंगी चूड़ियां पहने बिंदिया फोटो में मां के साथ खड़ी है। आंखों में आंसू लिए संगीता कहती हैं मेरी बेटी अच्छी, समझदार थी। मेरा साथ देती थी और घर का काम करवाती थी। आज मेरे पास पैसे होते तो मैं अपनी बेटी को वापस ले आती। मेरे पास कमाई का कोई जरिया नहीं है, ये मकान है जिसकी छत से पानी रिसता है।

संगीता कहती हैं कि मेरे पास पैसे होते तो बेटी को घर ले आती। अब मेरी बेटी कहां है कुछ नहीं पता

संगीता कहती हैं कि मेरे पास पैसे होते तो बेटी को घर ले आती। अब मेरी बेटी कहां है कुछ नहीं पता

मैं संगीता से बात ही कर रही थी, पीछे से आवाज आई मैडम क्या आपको बिंदिया के बारे में कुछ पता है क्या? पलट के देखा तो, गुलाबी रंग का लहंगा चोली पहने एक लड़की खड़ी थी।

नाम पूछा तो बोली गुड्डी।

मेरे पास आकर गुड्डी मेरी तरफ उम्मीद भरी नजरों से देखती है। कुछ देर चुप रहती है, फिर कहती है, बिंदिया मेरी बहुत अच्छी सहेली थी, मुझे उसकी बहुत याद आती है। पता नहीं वो कहां होगी, कैसे जीती होगी। हम दोनों नीम के पेड़ पर झूला बांधकर घंटों झूलते थे। अब वो धंधे पर चली गई क्या?

गुड्डी के इतना बोलते ही संगीता तुरंत बोल पड़ी, वो धंधे पर नहीं गई, हमने उसे सन्नी को दिया था। हमारी बेटी एक दिन वापस आएगी।

धीरे-धीरे गोपीचंद के घर के बाहर भीड़ इकट्ठा होने लगती है। हमारे आने की खबर पूरी बस्ती में फैल जाती है। उसी भीड़ में से एक लड़का आकर हमें सलाह देता है कि जितना जल्दी हो आप यहां से निकल जाइए। जिसके बारे में आप लोग बात कर रहे हैं वो बहुत ही खतरनाक लोग हैं। उनको पता चल गया है कि आप यहां आई हैं। आपके लिए तो ये खतरनाक है ही, गोपीचंद और संगीता भी मुश्किल में पड़ सकते हैं।

गोपीचंद और संगीता भी आगे कुछ कहने से मना कर देते हैं, तो हम उठकर वहां से चल देते हैं। जाते-जाते संगीता मेरा हाथ पकड़कर कहती है मैडम आपके लंबे हाथ हैं, आप मेरी बिंदिया को ला सकती हो। मैं उसे गले लगाकर गाड़ी में बैठ गई और मुड़कर पीछे देखने की हिम्मत ना जुटा पाई।

ये कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं बल्कि आसपास के कई गांवों की है, जहां लोग कर्ज उतारने और रोजी-रोटी के लिए अपनी बेटियों को दूसरे राज्यों के दलालों को लीज पर देते हैं। ऐसे ही कुछ और परिवारों को ढूंढते हुए मैं बीड़ीयाखेरी गांव की कंजर बस्ती में पहुंची। इस बस्ती का हाल भी नादियाखेड़ी जैसा ही था।

मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जी रहे कंजर समुदाय के ये लोग एक वक्त की रोटी के लिए हर रोज संघर्ष करते हैं।

हाथ में बेटियों की पासपोर्ट साइज तस्वीर लिए रूपचंद कहते हैं, मेरी तीन बेटियां थीं। अब वो जाने किस नरक में हैं। मैंने पैसे के बदले तीनों बेटियों को लड़के पर दे दिया था।

मैंने पूछा लड़के पर दे दिया था का क्या मतलब? इस पर रूपचंद समझाते हैं, मतलब जिसको दी थी वो पढ़ा-लिखाकर लड़की के बड़ा होने पर उसकी अच्छी जगह शादी करवा देंगे। राजरानी ने वादा किया था कि वो बीच-बीच में बेटियों से मुझे मिलवाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजरानी ने मेरी लड़कियों को धंधे पर लगवा दिया। मैंने इसकी शिकायत पुलिस में भी की, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। मुझे पता चला है कि अब तो मेरी बड़ी बेटी के भी एक लड़की हो गई है।

रूपचंद ने पैसों के लिए अपनी तीनों बेटियां लीज पर दे दीं।

रूपचंद ने पैसों के लिए अपनी तीनों बेटियां लीज पर दे दीं।

आपकी बेटियों की उम्र क्या थी? मेरी बड़ी बेटी रीना की उम्र 15 साल थी और उसको घर से गए 15 साल बीत चुके हैं। पूजा की उम्र 10 साल थी और उसको दिए हुए 12 साल हो गए हैं। मेरी छोटी बेटी चंदा अब 13 साल की हो चुकी है, उसे 7 साल की उम्र में दिया था। हमें ये भी बोला गया था कि समय-समय पर तुम्हें और पैसे भी दिए जाएंगे। आज तक न बेटी आई और न पैसे मिले।

रीना को वो महज 5 हजार रुपए देकर ले गए थे। पूजा को 10 हजार और चंदा को 50 हजार देकर ले गए थे। इतने कम पैसों से हम अपना कर्ज भी नहीं उतार पाए। हमें कोई सही रास्ता दिखाने वाला नहीं था और परेशानी इतनी थी कि कोई दूसरा रास्ता सूझा ही नहीं। इसी मजबूरी का दलालों ने फायदा उठा लिया।

रूपचंद के पास अब अपनी तीनों बेटियों की केवल पासपोर्ट साइज तस्वीरें हैं।

रूपचंद के पास अब अपनी तीनों बेटियों की केवल पासपोर्ट साइज तस्वीरें हैं।

ऐसी क्या मजबूरी थी कि आपको अपनी बेटियां देनी पड़ीं? इस पर रूपचंद कहते हैं पुलिस वालों ने मेरे ऊपर केस लगा दिए थे। हम कंजर समुदाय से हैं हमारे साथ यही होता है। कहीं भी चोरी या लूट होती है तो पुलिस हमें उठाकर ले जाती है। बहुत पहले से ही हमारे समुदाय पर अपराधी होने का कलंक लगा हुआ है। गरीबी इतनी थी कि कुछ पैसों के लिए मैंने अपनी बेटियां दे दीं। लड़कियों को वापस लाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नहीं ला पाया और पुलिस वाले भी मदद नहीं करते। मुझे रात भर नींद नहीं आती। हर वक्त अपनी बेटियों रीना, पूजा और चंदा की याद आती है।

रूपचंद की पत्नी सरिता बेटियों को याद कर फूट-फूटकर रोने लगती हैं। वो कहती हैं कि हमने कभी सोचा नहीं था कि उनको धंधे पर लगा दिया जाएगा। वो मेरे साथ होतीं तो उनकी शादी करवाती और उनका घर बसाती। कई साल हो गए अपनी बेटियों को देखा तक नहीं। सरिता रूपचंद की तरफ इशारा करके कहती हैं आज इसकी वजह से मेरी बेटियां मेरे साथ नहीं हैं। मेरी दो बेटियां और हैं, मुझे डर लगा रहता है कि कहीं ये उनको भी लीज पर न रख दे।

बस्ती वालों से बात करने पर पता चला कि इसी बस्ती में राकेश नाम के व्यक्ति ने भी अपनी 6 साल की बेटी को लीज पर दे रखा है। हम राकेश के घर पहुंचे तो उसने हमसे बात करने से साफ मना कर दिया। हमने पूछा बेटी कहां है तो वो कहते हैं कि हमने राजी-खुशी से दूर की बुआ के घर भेज दिया। मैंने पूछा बुआ कौन से गांव में रहती है इस पर राकेश कहते हैं गांव का नाम मुझे याद नहीं। इतना कहते ही वो घर का दरवाजा बंद करने लगते हैं।

राकेश ने 50 हजार रुपए के लिए अपनी 6 साल की बेटी लीज पर दी है।

राकेश ने 50 हजार रुपए के लिए अपनी 6 साल की बेटी लीज पर दी है।

घर के अंदर से उनकी पत्नी सुधा चीखने लगती हैं। कहती हैं, झूठ क्यों बोलता है, बताता क्यों नहीं है कि पैसे के बदले बेटी दे दी है।

सुधा रोती हुई घर से बाहर आती हैं, मेरे पास आकर कहती हैं, मेरे पास अगर पैसे होते तो मैं अपनी लड़की वापस ले आती। इसने मेरी लड़की को 50 हजार में बेच दिया। इस पर राकेश कहता है बेचा नहीं है लड़के पर दी है, वहां उसका ख्याल रखा जाएगा। हम उसको यहां क्या खिलाते, हमारे पास तो खुद कुछ खाने को नहीं है। उसके इतना बोलते ही राकेश और सुधा में लड़ाई होने लगती है।

राकेश के घर के बाहर और लोग भी जुटने लगते हैं। लोग कहते हैं कि सच-सच क्यों नही बताता कि लड़की लीज पर दी है। क्या पता तेरे सच बोलने पर सरकार ही मदद कर दे। इस पर राकेश कहता है मुझे किसी को कुछ नहीं बताना, मैडम आप यहां से चली जाइए। अगर उन लोगों को पता चल गया कि मैने मीडिया से बात की है तो मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस जाऊगा। तब मेरी मदद के लिए कोई नहीं आएगा। हमारी तो न सरकार है और न पुलिस।

लड़कियों को लीज पर दिए जाने की पूरी प्रक्रिया (मोडस ऑपरेंडी) क्या है, ये जानने के लिए हम सामाजिक कार्यकर्ता विजय (बदला हुआ नाम) के पास पहुंचे। विजय बताते हैं कि अगर किसी के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, तो ये लोग उसे समझाकर लड़की ले जाते हैं। कहते हैं हम लड़की का लालन-पोषण कर अच्छे लड़के से शादी करवा देंगे। कुछ पैसे देकर ये लड़की ले जाते हैं और आगे बेच देते हैं जिसमें मोटी कमाई होती है।

बाद में परिवार कोशिश करता है लड़की को वापस लाने की, लेकिन लड़की नहीं मिलती। मामला पंचों तक भी पहुंचता है। वहां भी आपस में सुलह करवाकर परिवार को कुछ और रकम पकड़ाकर मामला रफा-दफा कर दिया जाता है।

हमने कॉल सेंटर पर फोन करके दो लड़कियों को वापस भी बुला लिया था, लेकिन माता-पिता ने वो लड़कियां कुछ टाइम बाद दलाल को दोबारा दे दी। ऐसे अधिकतर मामलों में सौदा ऑन पेपर यानी दस्तावेज के आधार पर होता है। अगर लड़की भागती है या वापस अपने माता-पिता के पास आ जाती है, तो माता-पिता की ये जिम्मेदारी होती है कि जब तक लीज पूरी ना हो, लड़की को वापस दलाल के पास भेज दें।

विजय बताते हैं कि यहां आसपास के गांव जरेले, चांदियाखेड़ी, नादियाखेड़ी, नारायणपुरा, किशनपुरा, बीड़ीयाखेड़ी में ये धंधा फल-फूल रहा है। गरीबी के कारण ये लोग अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा भी नहीं पाते। ये बोलते हैं कि हमने अपनी लड़की लीज पर दे दी तो कर्ज मुक्त हो जाएंगे, लेकिन इनको पैसे भी इतने नहीं मिल पाते कि ये कर्ज मुक्त हो जाएं। बिचौलिए इनको बेवकूफ बनाकर ठग लेते हैं।

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