25 अप्रैल 2009 की सुबह 6 बजे का वक्त। जगह उत्तरप्रदेश के मोहनलालगंज जिले का गौरा गांव। मिट्टी के एक घर में खाना पका रही 30-35 साल की संतोषी, पति से बोली- ‘घर में न नमक है न तेल है। जबतक 20 बार न कहो तुम सुनते ही नहीं।’ ‘सुबह हुई नहीं कि ये कलह मचाने
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सुमन की बातें सुनते ही SHO का दिमाग फिर ठनका, उन्होंने जैसे ही नन्हा की तरफ देखा वो बोलने लगा- ‘ये झूठ बोल रही है साहब, मेरे बीवी, बच्चे हैं। मेरा उसके साथ कोई गलत रिश्ता नहीं।’ सरवन एक खेत में छुपा था। पुलिस पकड़कर उसे थाने ले गई। सरवन को देखते ही SHO ने दो थप्पड़ जड़ दिए। गुस्से से बोले- ‘तुमने ये सब किया है?’ ‘नहीं साहब, मैंने नहीं किया है। नन्हा ने किया है।’ SHO की भौंहे तन गई। बोले- ‘तुम फरार क्यों थे।’ ‘मैं डर गया था। इसलिए भाग गया।’, सरवन बोला। SHO अशोक कुमार के लिए ये केस एक पहेली बन चुका था। कत्ल किसने किया सरवन, सुमन या नन्हा?
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘मृत्युदंड’ में मोहनलालगंज मर्डर केस के पार्ट-1 और पार्ट-2 में इतनी कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-3 में आगे की कहानी…
नन्हा, सुमन और सरवन रातभर मोहनलालगंज थाने में बंद रहे। पुलिस ने रात में ही पोस्टमॉर्टम के बाद सभी 5 लाशों का अंतिम संस्कार करवा दिया। अगली सुबह थाने पहुंचते ही SHO अशोक कुमार ने कॉन्स्टेबल हरिलाल को बुलाया और बोले- ‘नन्हा जिस रिश्तेदार के घर गया था, उसे थाने ले आओ।’
उसी दिन कॉन्स्टेबल हरिलाल, नन्हा के रिश्तेदार को पकड़कर थाने ले आए। SHO अशोक कुमार ने कड़क आवाज में पूछा- ‘नन्हा तेरे यहां कब आया था?’
‘सुबह-सुबह आया था साहब’– नन्हा का रिश्तेदार बोला।
वापस घर कब गया? ‘मेरे घर में शादी थी। ये नन्हा मंडप डाल रहा था। सुबह के 7 बजे इसकी बहन गीता भागती हुई आई और बताया कि सरवन ने सबको मार दिया है। ये सुनते ही नन्हा काम छोड़कर चला गया।’ इतना सुनते ही SHO का शक सरवन पर और गहरा हो गया। उन्होंने कॉन्स्टेबल हरिलाल से कहा- ‘सरवन को मेरे पास लाओ।’
सरवन के आते ही SHO ने उस पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। शुरुआत में तो कहता रहा मैंने नहीं मारा, लेकिन कुछ ही देर बाद वो टूट गया।
SHO शुक्ला ने सरवन पर डंडे बरसाने शुरू किए तो कुछ ही देर में उसने पूरी कहानी बतानी शुरू कर दी। स्केच: संदीप पाल
गिड़गिड़ाते हुए बोला, ‘साहब छोड़ दो, मैं सब सच-सच बताता हूं…मैंने ही सबको मारा था।’
SHO ने फिर पूछा- ‘कैसे मारा था।’
‘सबको कुल्हाड़ी से काट दिया।’
सुमन भी तेरे साथ थी?
‘हां साहब… सुमन ने ही कुल्हाड़ी दी थी।’
SHO ने सुमन की तरफ कुर्सी घुमाई और गुस्से से पूछा- ‘सरवन को तूने कुल्हाड़ी दी थी?’
सुमन नजरें चुराते हुए बोली-‘नहीं साहब… मैं तो अपने घर में थी। ये झूठ बोल रहा है। इसकी औरत मुझे पसंद नहीं करती थी। सरवन को मुझसे मिलने-जुलने से रोकती थी। बात-बात पर लड़ाई करती थी। फिर वो नन्हा के करीब होने लगी। सरवन ने मुझे बताया था कि तीनों बच्चे उसके नहीं बल्कि नन्हा के हैं। इस बात पर संतोषी उसे चिढ़ाती भी थी।’
ये सुनते ही पड़ोसी नन्हा बोल पड़ा- ‘सर ये झूठ बोल रही है। मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं। मेरा सरवन की पत्नी से कोई रिश्ता नहीं है। मैंने कुछ नहीं किया है। इसके घर से हमारी पुरानी लड़ाई है। नाली और भैंस बांधने को लेकर झगड़े होते रहते थे। कई बार पुलिस में रिपोर्ट भी हो चुकी है। सरवन अपनी बीवी से लड़ता था, तो मेरी मां बीच-बचाव करने चली जाती थी। सरवन बार-बार धमकी देता था कि इन सब के साथ-साथ तुम्हारे परिवार को भी काट दूंगा।’
थोड़ा ठहरकर नन्हा फिर बोला- ‘साहब, गांववालों से पूछ लो, इसके आंगन से चीखने-चिल्लाने की आवाज आ रही थी। पहले भी कई बार इसने अपनी बीवी को पीटा था। मार-मार कर अधमरा कर देता था।’

नन्हा ने SHO से कहा-मैंने कुछ नहीं किया है, सुमन और सरवन झूठ बोल रहे हैं। स्केच: संदीप पाल
अब SHO ने सरवन से पूछा- ‘कुल्हाड़ी कहां है?’
‘उधर ही फेंक दी थी साहब।’ घबराया हुआ सरवन बोला।
SHO ने कॉन्स्टेबल हरिलाल से कहा- ‘इसे साथ लेकर जाओ और कुल्हाड़ी ढूंढो। गांव वालों से भी पूछना।’
कॉन्स्टेबल हरिलाल सरवन को लेकर गौरा गांव पहुंचे। उसके मिट्टी वाले घर के बगल में बने भूसा घर से कुल्हाड़ी बरामद हो गई। कॉन्स्टेबल ने SHO को फोन मिलाया और कहा- ‘साहब… कुल्हाड़ी मिल गई है। इस पर खून भी लगा है।’
उधर से SHO बोले- ‘कुल्हाड़ी फोरेंसिक टेस्ट के लिए लखनऊ भेज दो और सरवन को थाने ले आओ।’
कुल्हाड़ी फोरेंसिक टेस्ट के लिए भेज दी गई। थाने में सरवन से फिर पूछताछ शुरू हुई।
SHO अशोक कुमार ने सरवन से पूछा- ‘तूने अपनी बीवी को क्यों मारा?’
सरवन माथे का पसीना अपनी शर्ट में पोंछते हुए बोला- ‘सुमन भाभी के साथ मेरा कई सालों से संबंध था। फिर मेरी शादी संतोषी से हो गई। शादी के बाद भी मैं छुप-छुपकर उससे मिलता रहता था। संतोषी कहती रहती थी कि ये सब ठीक नहीं है। इस बात पर हर दूसरे-तीसरे दिन हमारे बीच झगड़ा होता था।’
डंडा दिखाते हुए SHO ने सुमन से कहा, ‘सच-सच बताएगी या तेरा भी ठीक से इलाज करूं।’
सुमन बोली- ‘साहब मैं सच बोल रही हूं। सबको नन्हा ने मारा है।’
SHO ने एक लेडी कॉन्स्टेबल को बुलाकर बोले- ‘सुमन को भी इसी भाषा में सबक सिखाओ। तभी दोनों सच बोलेंगे।’

SHO ने लेडी कॉन्स्टेबल से कहा- सुमन को भी सबक सिखाओ। स्केच: संदीप पाल
डंडे पड़ते ही सुमन बोल पड़ी- ‘जी साहब, ये सच कह रहा है। सरवन ने ही मारा है सबको।’
SHO अशोक कुमार ने फिर सरवन से पूछा- ‘उस दिन क्या हुआ था?’
सरवन कहने लगा- ‘सुबह संतोषी खाना बनाने जा रही थी। नमक खत्म था वो बार-बार लाने को कह चुकी थी। उस दिन इसी बात पर बहस हो गई। वो कहने कि मेरा किसी और से चक्कर है इसलिए घर पर ध्यान नहीं देता हूं। ये बात उसने कई बार कही, तब मैं गुस्से में घर से निकल गया।
रास्ते में सुमन भाभी मिल गई, कहने लगी- ‘संतोषी फिर से क्लेश करने लगी, कब तक ये सब सहता रहेगा। आज सबको खत्म ही कर दो। चल मैं भी तेरे साथ चलती हूं। तेरे भइया पवन भी बीमार ही रहते हैं। जल्द ही वे मर जाएंगे। फिर हम साथ रहेंगे।’
सरवन ने आगे बोला- ‘ये कहते हुए सुमन भाभी भी मेरे साथ चल पड़ी, कुल्हाड़ी भी उसने ही दी थी। फिर मैंने बारी-बारी से बीवी संतोषी और तीनों बच्चों को मार दिया।’
‘पड़ोसी कोलई की पत्नी माधुरी को क्यों मारा?’ SHO ने फिर सवाल किया
सरवन ने फिर बोलना शुरू किया- ‘कोलई मेरे घर के सामने रहता है। वो दूर के रिश्ते में चाचा लगता है और माधुरी चाची। मेरे और संतोषी के बीच जब भी झगड़ा होता तो माधुरी बीच-बचाव करने के लिए आ जाती। उस दिन भी यही हुआ था। चाची, संतोषी को बचाने लगी, इसलिए उसे भी मार दिया। थोड़ी देर बाद उसका बेटा राजेंद्र भी आ गया था। मैंने उस पर भी कुल्हाड़ी चला दी, लेकिन वो मरा नहीं।’
12 साल का राजेंद्र लखनऊ के बलरामपुर हॉस्पिटल में भर्ती था। SHO फौरन बलरामपुर हॉस्पिटल पहुंचे और राजेंद्र से पूछा- क्या हुआ था उस दिन?
राजेंद्र बोला- ‘मां की चीख सुनकर मैं वहां पहुंचा तो देखा कि सरवन कुल्हाड़ी लिए खड़ा है। मुझे देखते ही उसने मेरे सिर पर भी कुल्हाड़ी मार दी। उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं।’
घटना के 10 दिन बाद 4 मई 2009 की दोपहर राजेंद्र ने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया।
सरवन और सुमन ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था। फोरेंसिक जांच में कुल्हाड़ी पर लगा खून सरवन के कपड़ों पर लगे खून के छींटों से मैच कर गया।
सरवन और सुमन के खिलाफ IPC की धारा 302 यानी हत्या और 201 यानी सबूत मिटाने के तहत मुकदमा दर्ज हुआ। 1 जून 2009 को पुलिस ने लखनऊ सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी।
पड़ोसी कोलई की तरफ से एडवोकेट अशोक कुमार वर्मा ने केस लड़ना शुरू किया। एडवोकेट वर्मा ने कोर्ट में दलील दी- ‘सरवन का अपनी भाभी के साथ नाजायज संबंध था। हवस के लिए इसने अपने ही परिवार को खत्म कर दिया। इसने पड़ोस में रहने वाले मेरे मुव्वकिल की पत्नी और बच्चे को भी बेरहमी से मार डाला। जितनी बर्बरता के साथ इन दोनों ने 6 लोगों की हत्या की है, कुल्हाड़ी से सिर काटा है, ये काम कोई शैतान ही कर सकता है।’
थोड़ा रुककर एडवोकेट ने फिर कहा- ‘माय लॉर्ड, ये कैसा बाप है जिसने अपने ही छोटे-छोटे बच्चों को मार दिया। चार साल की बेटी का गला काट दिया। डेढ़ साल के मासूम के तो दो टुकड़े कर दिए। अगर फांसी से भी बड़ी कोई सजा है तो इस हैवान को वही सजा दी जानी चाहिए। ये आदमी जिंदा रह गया तो पूरे गांव को मार डालेगा।’

एडवोकेट अशोक कुमार ने कहा ये आदमी जिंदा रहा तो कई और कत्ल करेगा। स्केच: संदीप पाल
बचाव पक्ष के बोले- ‘पुलिस की थ्योरी तथ्यहीन है। सच्चाई तो कुछ और है। सरवन और कोलई के परिवारों के बीच बरसों से एक बीघा जमीन को लेकर दुश्मनी है। मुकदमा भी चल रहा है।
घटना वाले दिन जब सरवन नमक लेने घर से निकला, पीछे से कोलई का बेटा नन्हा कुल्हाड़ी लेकर आया और एक-एक करके सभी को काट डाला। जब सरवन लौटा, तो देखा कि आंगन में एक तरफ से उसकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी की लाशें पड़ी थीं।
नन्हा के पीछे-पीछे उसकी मां और भाई राजेंद्र भी थे। गुस्से में सरवन ने नन्हा के हाथ से कुल्हाड़ी छीन ली और कोलई की पत्नी, उसके बेटे पर चला दी।
पुलिस ने जबरदस्ती मेरे मुवक्किल सरवन और सुमन से जुर्म कबूल करवाया है। जबकि सच ये है कि कोलई के बेटे नन्हा ने सरवन के पूरे परिवार की हत्या की है।’
कोलई के वकील अशोक कुमार टोकते हुए बोले- ‘माय लॉर्ड, कोर्ट के सामने एक नया तर्क पेश किया जा रहा है। कोर्ट में 13 गवाहों ने बयान दिए हैं, जो ये साबित करने के लिए काफी हैं कि सभी कत्ल सुमन और सरवन ने किए हैं।
कुल्हाड़ी पर जो खून लगा था, वो मरने वाले सभी 6 लोगों के ब्लड सैंपल से मैच कर रहा है। गिरफ्तारी के वक्त सरवन के शरीर पर खून के हल्के-हल्के छींटे थे। इसका सैंपल भी इन सभी लाशों से मैच कर रहा है।
कोलई की बेटी संगीता और गीता, दोनों ने बताया है कि उस दिन सुबह-सुबह सरवन के घर से चीखने की आवाज आ रही थी। जब वे दोनों वहां पहुंची तो सुमन, सरवन से कह रही थी- माधुरी को मत छोड़ना। इसे भी मार दो।’
लखनऊ सेशन कोर्ट में यह केस करीब आठ साल चला। 25 अगस्त 2017 को एडिशनल सेशन जज हरीश त्रिपाठी ने सरवन और सुमन को दोषी करार दिया। फैसले में उन्होंने लिखा- ‘बचाव पक्ष की तरफ से जो तर्क दिए गए, उनका कोई आधार नहीं है। पुलिस की जांच रिपोर्ट, पीड़ित परिवार और गवाहों के बयान इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि इस नरसंहार के पीछे सरवन और सुमन ही हैं।
सुमन ने सरवन को न केवल अपनी पत्नी और बच्चों का कत्ल करने के लिए उकसाया बल्कि मर्डर करने का हथियार भी दिया। जिस तरह ये बर्बरता की गई, यह एक दिन में या उसी वक्त नहीं किया गया है। लंबे समय से दोनों मिलकर प्लान कर रहे थे।
बचाव पक्ष का कहना है कि सरवन का पूरा परिवार खत्म हो चुका है, इसलिए उस पर रहम किया जाए। कम-से-कम सजा दी जाए, लेकिन सवाल ये है कि सरवन अपने परिवार के साथ-साथ दूसरे के परिवार को खत्म करने पर आमादा था, उस वक्त उसके मन में ये ख्याल क्यों नहीं आया। इसने तो अपनी संतान का भी मोह नहीं किया, ये पैशाचिक कृत्य है…।
उनका प्लान था कि सभी को मारकर वो साथ रहेंगे। सरवन की संपत्ति भी सुमन की होगी। इसलिए उसने सरवन को कुल्हाड़ी देकर मर्डर करने के लिए उकसाया।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से साफ है कि दोनों ने सोच-विचार करके जान से मारने के लिए सभी निहत्थों पर वार किया। किसी के शरीर पर 3 जख्म, तो किसी के शरीर पर 6 जख्म मिले हैं।
जांच में ये बात भी सामने आई है कि घटना के बाद गांव में लोगों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया। बच्चों ने स्कूल जाना छोड़ दिया। यह व्यक्ति समाज के लिए खतरा है। ये जेल में भी जिंदा रहा, तो वहां भी इंसानों को मारेगा। बाहर रहा, तो किसी की भी हत्या कर सकता है। पीड़ित परिवार के लोगों को भी मार सकता है।
यह पूरा मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ यानी ‘विरल से विरलतम’ है। इसमें मृत्युदंड से कम कोई सजा नहीं दी जा सकती। ये अदालत सरवन को मरते दम तक फांसी पर लटकाने की सजा सुनाती है।
सुमन भी कम दोषी नहीं है। वो उकसाती नहीं तो, इतने लोग नहीं मारे जाते, लेकिन उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। इसलिए अदालत रहम करते हुए सुमन को 4 साल की जेल और एक हजार रुपए जुर्माना की सजा सुनाती है।’
सेशन कोर्ट ने सरवन की फांसी की सजा को कन्फर्म करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट भेज दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने 6 सिंतबर 2022 को सेशन कोर्ट के फैसले पर मुहर लगाते हुए फांसी की सजा को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट ने कहा- ‘ट्रायल कोर्ट की बातों से हम पूरी तरह से सहमत हैं। सरवन ने अपनी हवस के लिए 6 निहत्थे, असहाय लोगों की जान ले ली। जिस तरह की बर्बरता के साथ मर्डर किया गया, उसमें शैतानी और नृशंस प्रवृत्ति दिखाई देती है।’
29 अगस्त 2017 को सरवन और सुमन को लखनऊ सेंट्रल जेल भेज दिया गया। पांच महीने बाद 20 दिसंबर 2017 को सुमन को जमानत मिल गई, लेकिन 6 सितंबर 2022 को हाईकोर्ट ने कहा कि सुमन को चार साल जेल में ही काटने होंगे। तब से सुमन भी लखनऊ सेंट्रल जेल में बंद है।
(नोट- यह सच्ची कहानी, पुलिस चार्जशीट, केस के जजमेंट, एडवोकेट अशोक कुमार वर्मा, कोलई और उसके बेटे नन्हा से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करके इस घटना को कहानी के रूप में लिखा है।)
‘मृत्युदंड’ सीरीज में अगले हफ्ते पढ़िए एक और सच्ची कहानी…