Friday, April 18, 2025
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भास्कर ओपिनियन: महाराष्ट्र चुनाव से पहले चर्चा में आया वोट जिहाद


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5 मिनट पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

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महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना सरकार ने राज्य में चुनाव घोषित होने से पहले शुक्रवार को मदरसों के शिक्षकों का वेतन बढ़ा दिया। राज्य के बाक़ी दल जो विपक्ष में हैं, उनका कहना है कि यह तो वोट जिहाद है। दरअसल, चुनावों से पहले लोक लुभावन घोषणाएं करने का प्रचलन वर्षों से चला आ रहा है। इस प्रचलन में तमाम राजनीतिक दल शामिल हैं। वर्षों पुरानी या ये कहें कि सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी इस तरह की घोषणाओं में पीछे नहीं रही और नई नवेली आप पार्टी भी किसी से कम नहीं है।

किसानों की क़र्ज़ माफ़ी क्या वोट जिहाद नहीं है? बेरोज़गारों को हज़ार रुपए महीने देने की घोषणा क्या वोट जिहाद नहीं है? केवल मदरसों का ज़िक्र आने मात्र से उसके साथ जिहाद शब्द जोड़ देना ठीक नहीं है। शाब्दिक अर्थ पर जाएँ तो किसी भी लोक लुभावन घोषणा के ज़रिए लोगों को वोट देने के लिए विवश करना या इस तरह का प्रयास करना एक तरह से जिहाद ही है।

महाराष्ट्र की कैबिनेट मीटिंग में महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति आयोग को वैधानिक दर्जा दिए जाने का भी निर्णय भी लिया गया।

महाराष्ट्र की कैबिनेट मीटिंग में महाराष्ट्र राज्य अनुसूचित जाति आयोग को वैधानिक दर्जा दिए जाने का भी निर्णय भी लिया गया।

कुछ महीनों पहले सुप्रीम कोर्ट में फ़्री बीज यानी मुफ्त की बंदरबाँट पर बहस चली थी। कोर्ट ने विभिन्न राजनीतिक दलों से पूछा था कि वे बताएँ कि किसे मुफ्त की बंदरबाँट कहा जाए और किसे नहीं। हालाँकि इस बारे में न तो कोई निर्णय आया और न ही राजनीतिक दलों की इस तरह की घोषणाओं पर कोई बंदिश या लगाम लगी।

महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना सरकार ने शुक्रवार को मदरसों के शिक्षकों का वेतन बढ़ा दिया।

महाराष्ट्र में भाजपा- शिवसेना सरकार ने शुक्रवार को मदरसों के शिक्षकों का वेतन बढ़ा दिया।

शायद सत्ताधारी या विपक्षी पार्टियां इस तरह की घोषणाओं की आदी हो चुकी हैं और उन्हें लगता है कि थोक में वोट कबाडने का सबसे अच्छा मंत्र ही यही है। वैसे भी कौन सी घोषणा मुफ्त की बंदरबाँट है और कौन सी लोकहित की है, इसे परिभाषित करना बड़ी टेढ़ी खीर है।

क्योंकि सत्ता में या विपक्ष में कोई भी पार्टी हो, विपक्ष जब इस तरह की घोषणा करता है तो इसे फ़्री बीज कहा जाता है और सरकारें जब इस तरह की घोषणाएं करती हैं तो कहा जाता है कि वे तो ज़रूरतमंदों की मदद कर रही हैं जिसके लिए जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है।

कोर्ट में फ़्री बीज का मामला उठा ज़रूर है लेकिन इस मामले में किसी निर्णय पर तभी पहुँचा जा सकता है जब सभी राजनीतिक दल इस दिशा में सकारात्मक सहयोग करें और साथ ही ऐसा करने के लिए उनमें इच्छाशक्ति भी हो।

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