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- Assembly Election 2024 Update; Jharkhand Wayanad | BJP Congress JMM Candidates
41 मिनट पहले
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रातें लम्बी होती जा रही है। साँसें सिकुड़ रही हैं। जी, ये सर्दियाँ हैं। सूखे पत्ते आवाज़ की नक़ल करते फिरते हैं। सूरज भी चाँद की तरह शरमाता है। हल्की, सुस्त- सी हवा। शाख़- शाख़ पौधों को जगाती है। दरिया सारे कल- कल करते समुन्दर की तरफ़ दौड़ते फिरते हैं। …और सुबह अपनी आधी आँखें खोलकर भी गुनगुनी धूप के चढ़ आने की खबर देती फिरती है।
एक तरफ़ ऐसी सुहानी छटा… ऊपर से ये कानफोड़ू चुनावी मौसम। एकदम कंट्रास। कहीं प्रचार परवान पर है। कहीं ठण्डा पड़ चुका। नेता सब अपनी-अपनी सुना गए। अब लोगों की बारी है। वे खुद अपनी सुन लें तो लोकतंत्र और बड़ा हो जाएगा! वो नेता जिन्हें ज़िन्दा रखना चाहा हमने अपनी पलकों पर। मगर इनमें से कई ऐसे भी हैं जिन्होंने खुद हमारी नज़रों से गिरकर लोट लगा ली।
राहुल गांधी वायनाड में बहन प्रियंका की चुनावी रैली में शामिल हुए थे। रैली के दौरान प्रियंका ने राहुल को अपनी टीशर्ट दिखाने को कहा, जिसके बाद राहुल घूम गए।
पलक उठाकर देखते हैं तो घरों के दरवाज़ों पर, दफ़्तरों की सीढ़ियों पर और रास्तों पर, कितने ही औंधे मुँह पड़े मिलते हैं, जिनसे बचकर रोज़ गुजरना पड़ता है। डरते- डरते। सहमते- सहमते। बात चुनाव की करें तो कोई किसी के घर पर डाका डाल रहा है। कोई छापा मार रहा है। कोई किसी के खीसे में हाथ डाल रहा है। न किसी का ख़ौफ़ किसी को। न किसी का डर किसी को। चीख – पुकार मची है हर तरफ़। मुद्दे… जिनपर कभी चुनाव लड़े जाते थे। जीते जाते थे, सब के सब गौण हो गए हैं। न आम मतदाता इन मुद्दों को लेकर कोई प्रश्न उठाता और पार्टियों, नेताओं ने तो जाने कब से इन मुद्दों की काकडा आरती कर दी है।
यही वजह है कि पूरे चुनावी आसमान में अब बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे गूंज रहे हैं। इसका मतलब क्या है? दरअसल, ये नारा एक पार्टी विशेष द्वारा जगाए गए जातीय जनगणना के अलख का करारा जवाब है। इस जवाब का कोई मुक़ाबला किसी को सूझ नहीं रहा है। यही वजह है कि ये नारा हर तरफ़ गूंज रहा है। आखिर वे मतदाता जिन्हें इन नारा- नवाज़ नेताओं का भविष्य तय करना है, उनमें से कोई तो आगे आए और कहे कि हमें अच्छा नहीं लगता ये मौसम।
यूपी के CM योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को झारखंड में रैली करते हुए एक बार फिर ‘एक रहेंगे, नेक रहेंगे’ के नारे को दोहराया।
हमारी आँखों में जो धूल झोंके! हमारे पेड – पौधों पर जो कोड़े लगाए… और वे चीखा करें। हमें नफ़रत है ऐसे मौसम से, जिसमें झुकानी पड़ती है राय, हमें नेताओं की चलती हवा के आगे। ऊपर से सब वादे कर रहे हैं लुभावने। कोई 2100 रु. महीना, कोई तीन हज़ार कौन देगा, कौन नहीं, कोई खबर नहीं। कुछ भी नक्की नहीं। कहा तो येजाता है कि फ़्री बीज यानी मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटना चुनाव आचार संहिता के खिलाफ है।
इस बारे में कोई सख़्त क़ानून बनना चाहिए लेकिन बनाए कौन? आगे आए कौन? सब के सब इन रेवड़ियों के भरोसे ही रोटियाँ सेंक रहे हैं। वोटों के बँटवारे के लिए नई- नई जुगत भिड़ाई जा रही है। कुछ पार्टियाँ अपनी तरफ़ से निर्दलीय और पक्षद्रोही खडे करती फिरती हैं क्योंकि वोट बंटने में ही उनकी भलाई या जीत छिपी होती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरदार वल्लभभाई पटेल की 149वीं जयंती पर कहा कि एक हैं तो सेफ हैं।
वोट बटेंगे, वोट कटेंगे तो जीतेंगे। समय के बीतते – बीतते चुनाव मैदान में भी जीत के नए- नए फ़ण्डे आ गए हैं। वे सब के सब सफल भी हैं। जहां तक जनता या आम मतदाता का सवाल है, उसे तो किसी से कोई मतलब ही नहीं है। बेचारा जाने कब से चुप बैठा है। यही वजह है कि नेता बोल रहे हैं और केवल वे ही बोलते जा रहे हैं। वो दिन कब आएगा जब लोग बोलेंगे और नेता सुनेंगे… हर तबके की आवाज़। हर गरीब का दर्द। हर मोहताज की इच्छा- आकांक्षा…!