अलग-अलग दो वीडियो में एवजी लोगों से पैसे वसूलते दिख रहे हैं।
भोपाल के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में सारा कामकाज ऑनलाइन और कैशलेस हो चुका है। यहां कैश पेमेंट की जरूरत ही नहीं है, लेकिन दैनिक भास्कर को मिले दो वीडियो में एवजी (एक्सटर्नल वेजवर्कर्स) आरटीओ दफ्तर में ही पैसे लेते नजर आ रहे हैं। दावा तो घूस
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एवजी को कटर के नाम से भी जाना जाता है। साफ कहें तो यह किराए के कर्मचारी होते हैं यानी ऐसे लोग जिन्हें सरकार नियुक्त नहीं करती, आरटीओ के कर्मचारी-अधिकारी इन्हें अपना काम करने के लिए रख लेते हैं। ये नियम के खिलाफ भी है।
पहले एजेंट और एवजी के बीच फर्क समझ लीजिए
एजेंट: एजेंट यानी दलाल। आरटीओ से जुड़े काम जैसे- लाइसेंस बनवाना, फिटनेस सर्टिफिकेट, परमिट दिलाना, ये सभी दलाल करते हैं। बदले में कमीशन लेते हैं। मान लीजिए कि आपको टू व्हीलर का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है। इसकी फीस 1400 रुपए है। अब यही काम दलाल के जरिए करवाते हैं तो दोगुना पैसा देना पड़ेगा। आरटीओ के अलग-अलग कामों के लिए दलालों का कमीशन भी अलग-अलग होता है।
एवजी: आरटीओ से जुड़े जो काम दलाल अपने हाथ में लेते हैं, उन्हें एवजी पूरा करते हैं। एवजी दफ्तर के अंदर मौजूद होते हैं। वे फाइलों को आगे बढ़ाने और उसे संबंधित अधिकारी तक पहुंचाने का काम करते हैं। दलाल आम आदमी से जो कमीशन लेता है, उसका एक हिस्सा अधिकारी का भी होता है। अधिकारी इसी हिस्से में से कुछ रकम एवजी को देता है।
वीडियो में पैसे लेते दिख रहे दो शख्स
दैनिक भास्कर को मिले एक वीडियो में मंटू नाम का शख्स आरटीओ के स्टोर रूम में दिख रहा है। यहां बहुत सारे एजेंट खड़े हैं। सबके काम करके मंटू लोगों से पैसे ले रहा है। उसे वहां मौजूद एजेंट पैसे दे रहे हैं। पैसे लेकर वह जेब में रख लेता है।
पैसे ले रहे शख्स का नाम मंटू है। दावा है कि वह एवजी है और एजेंट्स से कमीशन ले रहा है।
दूसरे वीडियो में दिख रहा है कि आरटीओ ऑफिस में आरटीआई भारती वर्मा काम कर रही हैं। आसपास कई लोग खड़े हैं। डॉक्यूमेंट्स में साइन कराकर एक शख्स बाहर की ओर जाता है। जाने से पहले जगदीश को पैसे देता है। दावा है कि यह आरटीआई का एवजी है।
दूसरे वीडियो में आरटीआई भारती वर्मा नजर आ रही हैं। इसके बाद जो शख्स पैसे लेते दिखाई दे रहा है, वो उनका एवजी जगदीश बताया जा रहा है।
दावा- अधिकारियों के लिए उगाही का काम करते हैं एवजी
एडवोकेट विशाल द्विवेदी ने दावा करते हुए कहा, ‘आरटीओ के अधिकारी और कर्मचारी ऐसे लोगों को लंबे समय से रखते आ रहे हैं। साफ तौर पर कहें तो ये अधिकारी-कर्मचारियों के लिए उगाही का काम करते हैं। हर काम का रेट फिक्स है।’
एडवोकेट विशाल द्विवेदी के मुताबिक, ‘एक वीडियो में जो शख्स पैसे लेते दिखाई दे रहा है, वो मंटू है। आरटीओ जितेंद्र शर्मा का खास है। ऑफिस में रोड ट्रांसपोर्ट इंस्पेक्टर (आरटीआई) भारती वर्मा वेरिफिकेशन का काम करती हैं। उनका एवजी जगदीश रुपए लेता है।’
दलाल लाते हैं काम, पूरा कराने की जिम्मेदारी एवजी की होती है
आरटीओ दफ्तर में आने वाले एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर कहा- परिवहन विभाग की शाखाओं में दलाल काम लेकर आते हैं। इन दलालों के काम कराने की जिम्मेदारी एवजियों की होती है। काम पूरा होने पर अफसर और बाबुओं के लिए रिश्वत की रकम वसूल करने का काम एवजी करते हैं।
इसके बदले बाबू उन्हें वेतन या कहें कि दलाली में हिस्सा देते हैं। वेतन की ये रकम एवजी के अनुभव और एजेंट से आए काम पर निर्भर करती है। एक एवजी की कमाई महीने के 30 हजार रुपए से ज्यादा की होती है। कई एवजियों को 40 हजार रुपए महीना तक मिल रहा है।
आरटीओ बोले- अधिकारी, कर्मचारियों पर लगाए जा रहे आरोप गलत
वीडियो को लेकर किए जा रहे दावे पर हमने आरटीआई भारती वर्मा का भी पक्ष जानना चाहा तो उनसे संपर्क नहीं हो सका। वहीं, क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी (आरटीओ) जितेंद्र शर्मा ने कहा- लोग यहां ऑनलाइन काम कराने आते हैं। वीडियोज को लेकर या इस संबंध में कुछ कह पाना संभव नहीं है। रहा सवाल अधिकारी-कर्मचारियों का, तो उन पर लगाए जा रहे आरोप पूरी तरह गलत हैं।
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