एम्स भोपाल में मध्यप्रदेश की पहली Valve-in-Valve ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इंप्लांटेशन (TAVI) हार्ट सर्जरी की गई है। इस तकनीक से मरीज के दिल में खराब वॉल्व को फ्रेक्चर कर उसमें ही एक नया वाल्व पैरों की नसों के जरिए लगाया गया। अब तक ऐसी स्थिति में ओप
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TAVI यह एक मॉडर्न, गैर-सर्जिकल और मिनिमल इनवेसिव तकनीक है। जिसमें पुराने और खराब कृत्रिम हृदय वाल्व को हटाए बिना, नया वाल्व सीधे उसके भीतर ही इम्प्लांट किया गया। जिससे 62 वर्षीय महिला मरीज की जान बच सकी। पिछले कुछ महीनों से गंभीर सांस फूलने की समस्या थी।
क्या है TAVI TAVI एक नई हार्ट ट्रीटमेंट तकनीक है जो उन मरीजों के लिए लाई गई है जो ओपन हार्ट सर्जरी कराने की स्थिति में नहीं होते। इसमें कैथेटर के जरिए वॉल्व तक पहुंच बनाई जाती है। बिना चीरफाड़ के नया वॉल्व लगाया जाता है। अभी यह तकनीक केवल चुनिंदा मेट्रो शहरों में ही उपलब्ध है।
10 साल पहले हुई थी ओपन हार्ट सर्जरी एम्स से मिली जानकारी के अनुसार, महिला की 10 साल पहले रुमेटिक हार्ट डिजीज के चलते डबल वाल्व रिप्लेसमेंट की ओपन हार्ट सर्जरी हुई थी। उस दौरान लगाए गए वाल्व खराब हो जाने के कारण उनकी हालत फिर से गंभीर हो गई थी। उनकी उम्र और सेहत को देखते हुए दोबारा ओपन हार्ट सर्जरी करने पर मौत होने का खतरा था।
विशेषज्ञों की टीम इस प्रक्रिया का नेतृत्व एम्स भोपाल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रभारी डॉ. भूषण शाह ने किया। उनके साथ डॉ. हरीश कुमार, डॉ. सुदेश प्रजापति और डॉ. आशीष जैन की टीम शामिल रही। रेडियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. राजेश मलिक की देखरेख में इमेजिंग की गई, जिसने यह सुनिश्चित किया कि रोगी इस प्रक्रिया के लिए उपयुक्त है। हृदय शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. योगेश निवाड़िया, एनेस्थिसिया विभाग की प्रमुख डॉ. वैशाली वेंडेकर और डॉ. हरीश कुमार (एसोसिएट प्रोफेसर, एनेस्थीसिया) ने मिलकर पूरी प्रक्रिया की योजना बनाई और सफलतापूर्वक पूरी की।
सिर्फ डेढ़ घंटे में हुई सर्जरी यह TAVI प्रक्रिया पैर की धमनी के माध्यम से की गई, यानी छाती को खोले बिना ही हृदय तक पहुंच बनाकर पुराना क्षतिग्रस्त कृत्रिम वाल्व फ्रैक्चर किया गया और उसके भीतर नया वाल्व लगाया गया। इस प्रक्रिया में भारतीय तकनीक से बना वॉल्व इस्तेमाल किया गया और यह केवल डेढ़ घंटें में पूरी कर ली गई। जबकि ओपन हार्ट सर्जरी में 6 से 8 घंटे का समय लगता है।
इस तकनीक से नई उम्मीद मिली एम्स भोपाल के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहा कि यह प्रक्रिया न सिर्फ एक जीवन बचाने वाली है, बल्कि उन अनेक मरीजों के लिए आशा की किरण है, जिनके पुराने कृत्रिम वाल्व खराब हो चुके हैं और जो दोबारा ओपन हार्ट सर्जरी के लिए फिट नहीं माने जाते।
इस प्रक्रिया की खास बातें
- कम से कम चीरा, दर्द और जोखिम
- पुराने कृत्रिम वाल्व को हटाने की आवश्यकता नहीं
- उम्मीद से तेज रिकवरी, मरीज दूसरे दिन से चलने लगा
- भारतीय तकनीक से बना वॉल्व इस्तेमाल किया गया