गांव में 1 चर्च था, 20 साल में 200 परिवारों ने धर्म बदला, घर-घर लगे ईसाई झंडे
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छत्तीसगढ़ के जशपुर स्थित ग्राम सिटोंगा में घरों व झोपड़ियों तक पर ईसाई झंडे लगे हैं। यहां 400 में से करीब 270 परिवार ईसाई हैं। 20 साल में यहां 200 से ज्यादा परिवारों ने धर्म बदला है।
मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले, दूसरी तरफ रायपुर में धर्मांतरण करवाने के आरोप में कुल 10 लोगों पर एफआईआर हुई है। हालांकि धर्मांतरण के नए मामले केवल इन जिलों तक सीमित नहीं हैं। इन प्रदेशों व राजस्थान के कई गांवों में एक दशक में ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या बढ़ी है। मप्र के झाबुआ स्थित डूंगरा धन्ना में भी अधिकांश लोगों के नाम ईसाई हैं, लेकिन पिता का नाम व सरनेम हिंदू है।
गांव का थॉमस पिता जयराम सिंघारिया बताता है कि कुछ साल पहले वह बीमार हुआ था। तब ईसाई प्रचारकों ने चर्च जाकर प्रार्थना करने के लिए कहा। कुछ दिन बाद ठीक हो गया तो ईसाई धर्म मानने लगा। वहीं मिशनरी स्कूल में नौकरी करने वाला जेवियर निनामा कहता है कि ईसाई धर्म अपना लिया, लेकिन आदिवासी धर्म भी मानता हूं। इस तरह यहां गांव की 25% आबादी धर्म बदल चुकी है। यही स्थिति अलीराजपुर, धार, रतलाम व छतरपुर की है।
बाइबिल के संदेश के साथ हैंडपंप लगवा रहीं मिशनरी संस्थाएं, 2 से 5 हजार तक मदद भी
राजस्थान
गंगानगर जिले के तीन केडी गांव की सुमन बताती हैं कि उन्हें दिल्ली ले जाकर बपतिस्मा रस्म करवाई और कहा तुम ईसाई बन गई हो। उसे 2-5 हजार रुपए की मदद भी कई बार दी गई। ऐसे मामले बांसवाड़ा जिले के गडोली, जाम्बुड़ी, शिवपुरा तथा उदयपुर जिले के जगनाथपुरा, माकड़ा देव व ओबरा से भी सामने आए।
इन 6 गांव में 8 साल पहले 800 में से करीब 70 परिवार ईसाई थे। अब 900 में से 450 के करीब हैं। यह बढ़ोतरी 41% है। चर्च भी 4 गुना हो गए हैं। हालंकि पास्टर वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष कुलविंद्रसिंह का कहना है कि धर्मांतरण नहीं हो रहा। जिसे चर्च बताया जाता है, वे प्रार्थना भवन हैं।
बांसवाड़ा जिले के कई गांवों में ईसा मसीह संस्था ने हैंडपंप लगवाए हैं। साथ में बाइबिल के संदेश वाला एक शिला लेख है। लिखा है कि- इस जल को पीने वाले को तो फिर प्यास लगेगी, लेकिन उस जल (यीशु के कुएं) से पीने वाला अनंत काल तक प्यासा नहीं रहता। तस्वीर बड़ी सेंद गांव की है।
धर्म बदल ईसाई बने, तो गांव में दफनाने पर रोक
छत्तीसगढ़
बढ़ते धर्मांतरण के कारण बस्तर के कई गांवों में शव दफनाने के लिए चर्चयार्ड की नौबत महसूस होने लगी है। लेकिन हिंदू संगठन चाहते हैं कि धर्मांतरण कर ईसाई बने व्यक्ति का शव गांव में दफन नहीं करने दिया जाए। इसे लेकर झड़प हो रही हैं। नारायणपुर जिले में भी टकराव बढ़ गया है। पूर्व विधायक तथा आदिवासी नेता राजाराम तोड़ेम बताते हैं कि बस्तर में कई समुदाय ऐसे हैं, जिनकी 50% तक आबादी धर्मांतरित हो चुकी है।
अंबिकापुर के बेहरापारा में 25 घर हैं। बीते 10 साल में यहां 19 परिवारों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। इधर, हिन्दू संगठनों की रोक और विरोध पर छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल का कहना है कि यह जुल्म सरकार ढा रही है।
ये अनुसूचित जाति, जनजाति के लाभों के हकदार हैं या नहीं, क्या है कानून?
हाईकोर्ट एडवोकेट हिमांश निगम बताते हैं कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश- 1950 के अनुसार, एससी वर्ग का दर्जा हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म वालों को ही मिलता है। लेकिन एफिडेविट के जरिए या कानूनी तरीके से धर्म नहीं बदला है तो दर्जा बना रहेगा या नहीं, यह अदालत पर निर्भर करता है। वहीं एसटी वर्ग का व्यक्ति धर्मांतरण के बाद भी जनजातीय रीति-रिवाजों का पालन करता है, तो जनजाति का उसका दर्जा बना रह सकता है।