मुंबई53 मिनट पहले
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महाराष्ट्र विधानसभा की 288 विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को सिंगल फेज में वोटिंग होगी। शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) में टूट के बाद कुल 158 दल चुनाव मैदान में हैं। इनमें 6 बड़ी पार्टियां दो गठबंधनों का हिस्सा बनकर चुनाव लड़ रही हैं।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुआई में शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की NCP महायुति का हिस्सा हैं। जबकि कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) और शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) यानी NCP(SP) महाविकास अघाड़ी का हिस्सा हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-शिवसेना का गठबंधन था। तब भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीती थीं। जबकि कांग्रेस को 44 और NCP को 54 सीटें मिलीं थीं। भाजपा-शिवसेना आसानी से सत्ता में आ जातीं, लेकिन गठबंधन टूट गया।
तमाम सियासी उठापटक के बाद 23 नवंबर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत परीक्षण से पहले ही 26 नवंबर को दोनों को इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद 28 नवंबर को शिवसेना, NCP और कांग्रेस की महाविकास अघाड़ी सरकार सत्ता में आई। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के CM बने।
करीब ढाई साल बाद शिवसेना और उसके एक साल बाद NCP में बगावत हुई और 2 पार्टियां 4 दलों में बंट गईं। इसी राजनीतिक पृष्ठभूमि पर हुए लोकसभा चुनाव में शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टियों को बढ़त मिली थी।
29% उम्मीदवार दागी, 412 पर हत्या-बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज चुनाव आयोग के मुताबिक निर्दलीय समेत विभिन्न पार्टियों के कुल 4136 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (ADR) ने इनमें से 2201 उम्मीदवारों के हलफनामों की जांच कर एक रिपोर्ट तैयार की है।
इसके मुताबिक करीब 29 फीसदी यानी 629 उम्मीदवार आपराधिक छवि के हैं। इनमें से 412 पर हत्या, किडनैपिंग, बलात्कार जैसे गंभीर मामले दर्ज हैं। 50 उम्मीदवार महिलाओं से जुड़े अपराधों के आरोपी हैं।
38 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति, 2201 में सिर्फ 204 महिलाएं ADR के अनुसार 829 यानी 38 फीसदी उम्मीदवार करोड़पति हैं। पिछले चुनाव में यह आंकड़ा 32% था। इनके पास औसतन 9.11 करोड़ रुपए की संपत्ति है। जबकि भाजपा उम्मीदवारों की औसत संपत्ति करीब 54 करोड़ रुपए है। 26 उम्मीदवारों ने अपनी संपत्ति शून्य बताई है।
वहीं, करीब 31% यानी 686 उम्मीदवारों ने अपनी उम्र 25 से 40 साल के बीच बताई है। 317 (14%) की 61 से 80 साल के बीच है, जबकि 2 उम्मीदवार की आयु 80 साल से भी ज्यादा है। इन 2201 में से सिर्फ 204 महिला उम्मीदवार हैं, जो करीब 9% होता है।
प्रत्याशियों के एजुकेशन क्वालिफिकेशन की बात करें तो 47% ने अपने आपको 5वीं से 12वीं के बीच घोषित किया है। 74 उम्मीदवारों ने खुद को डिप्लोमा धारक, 58 ने साक्षर और 10 ने असाक्षर बताया है।
राज्य की 19 हॉट सीटों पर एक नजर…
1. कोपरी-पचपखड़ी: असली वर्सेज नकली शिवसेना की जंग
ठाणे जिले में आने वाली इस सीट से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे चुनाव लड़ रहे हैं। इस जिले को शिवसेना का गढ़ माना जाता है। शिंदे 2004 में पहली बार ठाणे सीट से विधायक चुने गए थे। इसके बाद पिछले तीन चुनाव कोपरी-पचपखड़ी सीट से 50% से ज्यादा वोट पाकर जीत रहे हैं। 2019 के चुनाव में उन्हें करीब सवा लाख वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के संजय पांडुरंग ने सिर्फ 24,197 वोट पाए थे।
हालांकि, इस बार मुकाबला शिवसेना वर्सेज शिवसेना का है। पार्टी में टूट के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। उद्धव गुट ने शिंदे के खिलाफ उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे के भतीजे केदार दिघे को उतारा है। आनंद को ‘ठाणे का ठाकरे’ कहा जाता था। उनके देहांत के 21 साल बाद भी ठाणे के शिवसैनिकों में उनका काफी सम्मान है।
लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट की शिवसेना का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं था। पार्टी ने सिर्फ 7 सीटें जीती थीं, जबकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटें मिली थीं। इसके बाद कहा गया कि महाराष्ट्र के लोगों ने उद्धव गुट को असली शिवसेना माना है। अब विधानसभा चुनाव के बाद यह पूरी तरह से साफ हो जाएगा कि आम मराठी मानुष बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना का वारिस किसे मानता है।
2. नागपुर दक्षिण-पश्चिम: देवेंद्र छठी बार विधायकी के लिए दौड़ लगा रहे
विदर्भ के केंद्र और RSS के गढ़ नागपुर की इस सीट से देवेंद्र फडणवीस लगातार चौथी बार और कुल छठी बार विधायक बनने की रेस में हैं। 2008 में परिसीमन से पहले वे दो बार नागपुर पश्चिम सीट से विधायक रहे हैं।
सिर्फ 22 साल की उम्र में (साल 1992) पहली बार नागपुर नगर निगम के पार्षद बनने वाले फडणवीस अगले टर्म में शहर के मेयर बन गए थे। इसके 2 साल बाद ही वे नागपुर पश्चिम से पहली बार विधायक चुन लिए गए।
2014 में राज्य का मुख्यमंत्री बनने से पहले वे कभी राज्य मंत्री तक नहीं रहे थे। पूर्व CM और मौजूदा डिप्टी CM फडणवीस के सामने कांग्रेस ने अपने पार्षद प्रफुल गुडाधे को उतारा है। वे 2014 में फडणवीस से हार चुके हैं। खास बात यह है कि प्रफुल के पिता विनोद गुडाधे पूर्व भाजपाई हैं। उन्होंने ही नागपुर में पहली बार भाजपा को जीत दिलाई थी और शहर से पार्टी के पहले विधायक बने थे।
3. बारामती: युगेंद्र उस भूमिका में जिसमें कभी अजित थे
इस सीट पर मुकाबला और भी दिलचस्प है। यहां NCP वर्सेज NCP की लड़ाई में चाचा-भतीजे आमने-सामने हैं। यह सीट शरद पवार का गढ़ रही है। वे 1967 से 1990 तक लगातार 6 बार इस सीट से विधायक रहे थे। वहीं, 1991 में उपचुनाव के बाद से अब तक अजित पवार 7 बार यहां से जीत चुके हैं।
NCP का हाल भी शिवसेना की तरह ही है। फूट के बाद यह पार्टी का पहला विधानसभा चुनाव है। हालांकि, शिंदे की शिवसेना की अपेक्षा अजित की NCP को लोकसभा में ज्यादा नुकसान हुआ था। पार्टी सिर्फ एक सीट जीत पाई थी। वहीं, शरद पवार की NCP ने 8 सीटें जीती थीं।
एक बार सांसद, 7 बार विधायक और 5वीं बार के डिप्टी CM अजित के सामने चुनौती कड़ी है। बड़े भाई श्रीनिवास पवार के बेटे युगेंद्र पवार शरद गुट की NCP से उनके सामने हैं। युगेंद्र, शरद के साथ आज-कल उसी तरह नजर आ रहे हैं जैसे कभी अजित पवार दिखते थे।
अजित के लिए कड़ी चुनौती इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी सुनेत्रा और बहन सुप्रिया आमने-सामने थीं। तब जनता ने सुप्रिया को चुना था। इस हार से अजित को बड़ा झटका लगा था। बाद में उन्होंने बहन के खिलाफ पत्नी को चुनाव लड़ाने को अपनी गलती कहा था।
4. वर्ली: सिटिंग MLA आदित्य के सामने शिवसेना के राज्यसभा सांसद
उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। आदित्य ने 2019 के अपने पहले चुनाव में इसी सीट से जीत दर्ज की थी। उन्होंने NCP के सुरेश माने को करीब 67 हजार वोट से हराया था और महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे।
मुंबई की यह सीट 1990 से ही शिवसेना के पास रही है। सिर्फ 2009 में NCP के सचिन अहीर यहां से विधायक बने थे। शिंदे गुट की शिवसेना ने राज्यसभा सांसद मिलिंद देवरा को यहां से टिकट दिया है। उनका परिवार करीब 55 सालों से कांग्रेस में था। मिलिंद ने इसी साल जनवरी में कांग्रेस छोड़ी थी।
मनमोहन सरकार में राज्य मंत्री रहे देवरा मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे मुंबई दक्षिण लोकसभा सीट से दो बार कांग्रेस सांसद रहे हैं। 2014 और 2019 के चुनाव हारने के बाद 2024 में INDI गठबंधन के तहत यह सीट उद्धव गुट की शिवसेना के हिस्से चली गई। इससे नाराज देवरा ने कांग्रेस छोड़ दी थी।
5. बांद्रा पूर्व: त्रिकोणीय मुकाबला, शिवसेना का बागी भी मुकाबले में
बालासाहेब ठाकरे का घर मातोश्री इसी सीट में आता है। इस सीट को लेकर कांग्रेस और शिवसेना (UBT) के बीच काफी तनातनी भी रही। वजह यह थी कि पिछली बार यह सीट कांग्रेस ने जीती थी, लेकिन आखिर में सीट शिवसेना (UBT) के खाते में आई।
दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी ने कांग्रेस के टिकट पर सीट जीती थी। अगस्त, 2024 में जीशान को कांग्रेस ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा चुकी थी। इससे पहले उनके पिता बाबा सिद्दीकी अजित गुट की NCP में शामिल हो चुके थे।
बाबा सिद्दीकी की हत्या के बाद जीशान भी अजित गुट की NCP में शामिल हो गए और अब यहां से दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं, शिवसेना (UBT) से वरुण सरदेसाई चुनाव लड़ रहे हैं। वे आदित्य ठाकरे के मौसेरे भाई हैं। वरुण 2018 से ही पार्टी की यूथ विंग में सक्रिय हैं।
इसके अलावा 2009 और 2014 में यहां से शिवसेना (अविभाजित) के विधायक रहे प्रकाश सावंत की पत्नी तृप्ति सावंत महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं। 2015 में प्रकाश के निधन के बाद हुए उपचुनाव में शिवसेना (अविभाजित) की ओर से तृप्ति विधायक बनी थीं। बाद में वे भाजपा में चली गईं और 2019 का चुनाव निर्दलीय लड़ीं। तब वे तीसरे स्थान पर रही थीं।
दूसरी तरफ महायुति में यह सीट NCP के खाते में जाने से नाराज शिवसेना नेता कुणाल सरमलकर भी निर्दलीय ही मैदान में हैं।
6. मानखुर्द-शिवाजीनगर: भाजपा खिलाफ फिर भी NCP से मलिक को टिकट
मुंबई की इस मुस्लिम बहुल सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के अबू आजमी तीन बार से विधायक हैं और चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं। उन्हें MVA का समर्थन है। आजमी ने वादा किया है कि MVA सरकार आने पर हेट स्पीच के खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून जैसा सख्त कानून बनवाएंगे। वे 2002 से 2008 तक राज्यसभा सांसद भी रहे हैं।
इनके सामने कभी सपा में उनके साथी रहे नवाब मलिक, अजित गुट की NCP से चुनाव लड़ रहे हैं। मामला इसलिए दिलचस्प है क्योंकि भाजपा, मलिक के विरोध में है और शिवसेना के सुरेश पाटिल का समर्थन कर रही है।
दरअसल, नवाब मलिक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में साल 2022 से ED के घेरे में हैं। जांच एजेंसी ने फरवरी, 2022 में उन्हें गिरफ्तार किया था। इसके चलते उन्हें उद्धव सरकार के मंत्रिमंडल से इस्तीफा भी देना पड़ा था।
करीब 17 महीने जेल में रहने के बाद अगस्त, 2023 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। भाजपा शुरू से ही इस मामले में मुखर रही है। पार्टी ने मलिक के दाऊद इब्राहिम से संबंध होने के आरोप भी लगाए हैं। लंबे सियासी ड्रामे के बाद नामांकन के आखिरी दिन आखिरी मिनटों में मलिक ने नॉमिनेशन दाखिल किया था।
7. मुंबादेवी: 50% से ज्यादा मुस्लिम वोटर, फायदा कांग्रेस को मिलेगा
दक्षिण मुंबई से शिवसेना (UBT) सांसद अरविंद सावंत की अभद्र टिप्पणी के बाद शाइना एनसी लगातार चर्चा में हैं। महायुति की ओर से शिवसेना ने उन्हें मुंबादेवी सीट से टिकट दिया है। टिकट की घोषणा से पहले वे भाजपा में थीं। वे पार्टी प्रवक्ता भी थीं, लेकिन टिकट मिलने के बाद उन्होंने भाजपा से इस्तीफा देकर शिवसेना जॉइन कर ली।
कहा जा रहा है भाजपा-शिवसेना के शीर्ष नेतृत्व की सहमति से ही शाइना को टिकट मिला है। पेशे से फैशन डिजाइनर शाइना ग्लैमर जगत की चर्चित हस्ती हैं।
वहीं, कांग्रेस ने तीन बार से विधायक अमीन पटेल को चौथी बार प्रत्याशी बनाया है। उन्होंने पिछला चुनाव करीब 58 हजार वोटों से जीता था। इस सीट पर 50% से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिलेगा।
इस सीट पर सपा और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। इस वजह से शाइना को कड़ी चुनौती मिल रही है।
8. साकोली: विदर्भ की सीट पर कांग्रेस-भाजपा में कड़ी टक्कर
विदर्भ की इस सीट पर हर दफा कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर रहती है। यहां दोनों पार्टियों से विधायक चुने जाते रहे हैं। पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर नाना पटोले ने जीता था। वे इस समय महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हैं।
हालांकि, उससे पहले लगातार दो बार भाजपा जीती है। 2009 में भाजपा के टिकट पर नाना पटोले ही जीते थे। इसके बाद विधानसभा में विपक्ष के नेता रहते हुए OBC वर्ग के लिए आंदोलन भी चलाया। उन्होंने 2014 में भंडारा-गोंदिया लोकसभा चुनाव भी जीता।
पार्टी से अनबन के बाद दिसंबर, 2017 में उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया। जनवरी, 2018 में कांग्रेस में शामिल हुए और 2019 विधानसभा चुनाव में साकोली सीट से जीते।
वहीं, भाजपा की ओर से अविनाश ब्रह्मणकर चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर करीब 19% SC, 8% ST और 2% मुस्लिम हैं। इस लिहाज से कांग्रेस की स्थिति यहां मजबूत मानी जा रही है।
9. कामठी: भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की अपनी सीट पर वापसी, 2019 में कटा टिकट था
नागपुर लोकसभा में आने वाली इस सीट से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2004 से तीन बार इस सीट से विधायक रहे थे। 2019 में उनका टिकट काटकर टेकचंद सावरकर को दिया गया। सावरकर यह चुनाव मामूली अंतर से ही जीत पाए।
वहीं, विदर्भ की 62 सीटों में भाजपा 44 से 29 पर खिसक गई। माना गया कि चंद्रशेखर का टिकट कटने से तेली समाज नाराज था। वे पार्टी के बड़े OBC चेहरा हैं और तेली समाज से आते हैं। विदर्भ में कुनबी समाज के बाद तेली समाज OBC का दूसरा बड़ा वर्ग है।
कुनबी वर्ग को कांग्रेस का वोटर माना जाता है। तेली समाज भाजपा और RSS के साथ रहता आया है, लेकिन 2019 में भाजपा का साथ नहीं दिया। कांग्रेस ने इस बार भी 2019 के प्रत्याशी सुरेश भोयर पर भरोसा जताया है। उन्होंने भाजपा को कड़ी टक्कर दी और करीब 11 हजार वोटों के अंतर से हारे।
10. माहिम: भतीजे के सामने चाचा ने उतारा अपना कैंडिडेट
मुंबई की इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है। यह 30 साल से शिवसेना (अविभाजित) का गढ़ रही है। इस बार यहां शिवसेना के तीन गुटों यानी ठाकरे गुट, शिंदे गुट और राज ठाकरे की MNS में लड़ाई है।
MNS की ओर से राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे चुनाव मैदान में हैं। पहले भाजपा ने अमित को समर्थन देने की बात कही थी, लेकिन बाद में मुंबई भाजपा अध्यक्ष आशीष शेलार ने कहा कि पार्टी सिर्फ शिवडी सीट पर MNS को सपोर्ट करेगी। पार्टी माहिम सीट पर महायुति की ओर से शिवसेना प्रत्याशी सदा सरवणकर का साथ देगी।
सरवणकर दो बार से यह सीट शिवसेना (अविभाजित) के टिकट पर जीत रहे हैं। शिवसेना में टूट के बाद सरवणकर ने शिंदे का साथ दिया। इसके ईनाम में शिंदे ने उन्हें तीसरी बार मौका दिया है।
हालांकि, सीनियर जर्नलिस्ट जितेंद्र दीक्षित बताते हैं कि सरवणकर पर शिंदे और भाजपा दोनों तरफ से नाम वापस लेने का दबाव था। उन्होंने पर्चा वापस लेने का मन भी बनाया था। इसके लिए वे राज ठाकरे से मिलना चाहते थे। राज ने मिलने से इनकार कर दिया, इसलिए सरवणकर ने उम्मीदवारी वापस नहीं ली।
राज ठाकरे को दूसरा झटका तब लगा जब उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे ने भी अमित के सामने कैंडिडेट उतार दिया। राज ने 2019 विधानसभा चुनाव में उद्धव के बेटे आदित्य जब पहली बार चुनाव लड़े थे तो परिवार का हवाला देकर कैंडिडेट नहीं उतारा था।
यही कारण है कि राज को उम्मीद थी कि उद्धव इस सीट पर कैंडिडेट नहीं उतारेंगे, लेकिन उद्धव ने महेश सावंत को टिकट दे दिया। इसके बाद अमित के लिए विधानसभा की राह मुश्किल नजर आ रही है। अगर दोनों शिवसेना के बीच वोट बंटते हैं तो ही अमित ठाकरे ये सीट निकाल पाएंगे।
दरअसल, असली और नकली शिवसेना की लड़ाई में माहिम सीट काफी अहम है। वजह यह है कि दादर-माहिम बेल्ट से ही शिवसेना का उदय हुआ था और फिर पूरे प्रदेश में अपनी पैठ बनाई थी।
11. अणुशक्ति नगर: विधायक की बेटी के सामने बॉलीवुड एक्ट्रेस के पति
मुंबई की इस मुस्लिम बहुल सीट पर NCP के दिग्गज नेता नवाब मलिक की बेटी सना मलिक चुनाव लड़ रही हैं। नवाब के जेल जाने के बाद वे क्षेत्र में काफी सक्रिय रही थीं। कोरोना के समय भी वे आम लोगों की मदद के लिए आगे आई थीं।
पिछले चुनाव में मुंबई की सिर्फ यही सीट NCP (अविभाजित) को मिली थी। वे पार्टी के अकेले मुस्लिम विधायक थे। इसका उन्हें फायदा मिला और उद्धव सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। अब सना के सामने पिता की विरासत संभालने की चुनौती है।
वहीं, शरद पवार की NCP (SP) ने फहाद अहमद को टिकट दिया है। वे बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर के पति हैं। इससे पहले वे समाजवादी पार्टी से जुड़े थे और उसकी यूथ विंग के स्टेट हेड थे।
12. दिंडोशी: उत्तर भारतीय संजय के सामने मराठी मानुष सुनील प्रभु
इस सीट पर मुकाबला शिवसेना बनाम शिवसेना का है। शिंदे गुट की शिवसेना की ओर से संजय निरुपम चुनाव लड़ रहे हैं। मुंबई के दिग्गज कांग्रेसी नेता रहे संजय लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना में शामिल हुए थे।
उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिवसेना से ही की थी। संजय बिहार के रोहतास से ताल्लुक रखते हैं। वे पेशे से पत्रकार थे और 1993 में शिवसेना के हिंदी मुखपत्र दोपहर का सामना के संपादक के रूप में पार्टी से जुड़े थे।
वे 1996 में पहली बार राज्यसभा सांसद बनाए गए। संजय पार्टी में उत्तर भारतीयों का प्रमुख चेहरा थे। 2005 में शिवसेना से अनबन के बाद वे कांग्रेस में शामिल हुए और 2024 तक साथ रहे।
संजय के सामने पिछले दो बार से शिवसेना (अविभाजित) विधायक सुनील प्रभु हैं। वे शिवसेना (UBT) के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। सुनील बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) के चार बार पार्षद रहे हैं। साथ ही मुंबई के मेयर भी रह चुके हैं। मुस्लिम वोटर्स को लुभाने के लिए दोनों प्रत्याशियों ने उर्दू में पोस्टर छपवाए हैं।
13. येवला: शिवसेना के पहले विधायक थे भुजबल, 3 दशक से NCP में
नासिक की इस सीट पर पिछले 20 सालों से NCP के दिग्गज नेता छगन भुजबल का कब्जा है। पार्टी में टूट के बाद भुजबल अजित गुट की NCP में हैं और 5वीं बार जीत के लिए मैदान में हैं।
हालांकि, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत शिवसेना से की थी। वे साल 1972 में पहली बार शिवसेना से BMC के पार्षद बने। इसके बाद दो बार मुंबई के मेयर रहे। वे साल 1985 में शिवसेना के पहले विधायक बने थे। भुजबल मझगांव सीट से चुने गए थे। हालांकि, पार्टी ने उन्हें निर्दलीय ही चुनाव लड़ाया था।
पार्टी से अनबन के बाद 1991 में भुजबल शरद पवार की कांग्रेस में शामिल हो गए। तब से वे NCP के साथ हैं। दिग्गज OBC नेता भुजबल 2 बार डिप्टी CM भी रहे हैं।
वहीं, NCP (SP) ने मणिकराव शिंदे को टिकट दिया है। मणिकराव ने ही 2004 में भुजबल को इस सीट से लड़ने के लिए मनाया था। उनकी जीत में भी मणिकराव की अहम भूमिका थी। बाद में दोनों के रिश्ते खराब हो गए। मणिकराव 2009 में शिवसेना (अविभाजित) की ओर से भुजबल के खिलाफ चुनाव लड़कर हार चुके हैं।
14. कराड दक्षिण: बुजुर्ग चव्हाण के सामने उनसे आधी उम्र के अतुल
इस सीट से पूर्व CM पृथ्वीराज चव्हाण चुनाव लड़ रहे हैं। दिग्गज कांग्रेसी नेता दो बार से इस सीट से विधायक हैं। उनके माता-पिता भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। चव्हाण के पिता आनंदराव चव्हाण 1957 से 1971 तक कराड लोकसभा से सांसद रहे थे। वे जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल का हिस्सा भी रहे थे।
उनकी मां प्रेमलता चव्हाण को लोग सम्मान ने ‘ताई’ कहकर पुकारते थे। वे 1977, 1984 और 1989 में कराड सीट से सांसद रहीं। महाराष्ट्र कांग्रेस की अध्यक्ष भी रहीं। वहीं, पृथ्वीराज चव्हाण भारत लौटने से पहले अमेरिका में एंटी सब्मरीन एयरक्राफ्ट के लिए ऑडियो रिकॉर्डर डिजाइनिंग पर काम कर रहे थे।
1974 में भारत लौटकर आंत्रप्रेन्योर बन गए। राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आए और 1991, 1996 और 1998 में कराड सीट से सांसद रहे। 2002 और 2008 में राज्यसभा सांसद बने। इस दौरान UPA सरकार में मंत्री रहे। इसके बाद चव्हाण 2010 से 2014 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे।
भाजपा ने उनके सामने अतुलबाबा भोसले को उतारा है। वे 2014 और 2019 में भी चव्हाण के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। 2014 की अपेक्षा 2019 में उनकी हार का अंतर कम हुआ था। वे 2014 में करीब 16 हजार जबकि 2019 में 9 हजार वोट से हारे। इस बार उन्हें जीत की पूरी उम्मीद है।
15. बांद्रा पश्चिम: आशीष तीसरी बार मैदान में, आसिफ 3 बार के पार्षद
इस हाईप्रोफाइल इलाके में बॉलीवुड के कई फिल्मी सितारों के बंगले हैं। कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर दिग्गज नेता बाबा सिद्दीकी का दबदबा रहा है। वे 1999 से 2009 तक लगातार तीन बार कांग्रेस विधायक रहे थे।
हालांकि, 2014 में भाजपा के आशीष शेलार से हार गए थे। तब से आशीष ही इस सीट पर काबिज हैं और तीसरी बार मैदान में हैं। आशीष ने RSS के रास्ते विद्यार्थी परिषद और युवा मोर्चा से होते हुए मुंबई भाजपा अध्यक्ष तक का सफर तय किया है। वे लंबे समय तक मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (MCA) से भी जुड़े रहे। 2015 में वे MCA के उपाध्यक्ष भी चुने गए थे।
कांग्रेस ने उनके सामने तीन बार पार्षद रहे आसिफ जकारिया को उतारा है। वे 2019 में भी यहां से चुनाव लड़े थे। उस समय उन्हें करीब 26 हजार वोट से हार का सामना करना पड़ा था। इस इलाके में ईसाई, मुस्लिम, मराठा, OBC और SC का बड़ा तबका रहता है। इसका फायदा जकारिया को मिल सकता है। हालांकि, सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी है।
16. लातूर शहर: मराठवाड़ा की इस सीट पर लिंगायत और मुस्लिम निर्णायक
यह सीट 2008 में परिसीमन के बाद सामने आई। लातूर विधानसभा सीट को बांटकर दो सीटें लातूर शहर और लातूर ग्रामीण बनाई गई थीं। इन दो सीटों पर पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता विलासराव देशमुख के दो बेटे चुनाव लड़ रहे हैं।
विलासराव, लातूर सीट से पांच बार विधायक चुने गए थे। तीन बार से उनके बड़े बेटे अमित देशमुख लातूर शहर से जीत रहे हैं और चौथी बार मैदान में हैं। वहीं, लातूर ग्रामीण से छोटे बेटे धीरज देशमुख चुनाव लड़ रहे हैं।
लातूर शहर से अमित के खिलाफ एक और बड़े कांग्रेसी नेता शिवराज पाटिल की बहू डॉ अर्चना पाटिल भाजपा से चुनाव लड़ रही हैं। शिवराज लोकसभा स्पीकर रहे हैं। UPA-1 के समय वे देश के गृह मंत्री थे। 2008 में मुंबई हमले के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था। शिवराज दो बार लातूर सीट से विधायक भी रहे हैं।
मराठवाड़ा की इस सीट पर मुस्लिम और लिंगायत समुदाय का दबदबा है। यहां सबसे ज्यादा वोटर मुस्लिम समुदाय (करीब 1 लाख) के हैं। इसके बाद करीब 85 हजार लिंगायत वोटर हैं। वहीं, 65 हजार OBC और 55 हजार मराठा वोटर हैं।
भाजपा प्रत्याशी लिंगायत समुदाय से हैं। इस समुदाय को भाजपा का वोटर माना जाता है। पार्टी को OBC वोटरों का भी साथ मिलने की उम्मीद है। वहीं, मुस्लिम और मराठा देशमुख परिवार का साथ देते आए हैं। इस लिहाज से मुकाबला काफी रोचक हो गया है।
अमित तीन बार से विधायक हैं, इसलिए एंटी-इनकंबेंसी एक फैक्टर है। वहीं, आम लोगों के लिए उनका शहर में मौजूद न रहना भी बड़ा मुद्दा है। अमित की छोटी सी चूक उन्हें चुनाव हरा सकती है।
17. लातूर ग्रामीण: पिछले चुनाव में NOTA दूसरे नंबर पर था, भाजपा 1.20 लाख से हारी थी
धीरज देशमुख कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2019 में पहली बार विधायक बने थे। तब उन्होंने शिवसेना (अविभाजित) के सचिन देशमुख को करीब 1.20 लाख वोटों से हराया था। सचिन को सिर्फ 13,524 वोट मिले थे और वे तीसरे नंबर पर रहे थे। करीब 27 हजार वोट के साथ NOTA दूसरे नंबर पर था।
इस बार धीरज का मुकाबला भाजपा के रमेश कराड से है। वे OBC नेता हैं लेकिन दो बार इस सीट से चुनाव लड़कर हार चुके हैं। हालांकि, 2014 में वे करीब 10 हजार के मामूली अंतर से कांग्रेस कैंडिडेट त्रिबंकराव भीसे से हारे थे।
धीरज के बड़े भाई एक्टर रितेश देशमुख उनके लिए प्रचार कर रहे हैं। वे अपनी सभाओं में कहते आए हैं कि लातूर के खून में कांग्रेस है। हालांकि, लातूर के मन में क्या है यह 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद ही साफ हो सकेगा।
18. कणकवली: 42 वर्षीय भाजपा विधायक पर 38 क्रिमिनल केस, तीसरी बार मैदान में
कोंकण क्षेत्र के इस इलाके का नाम संस्कृत के ‘कनकवल्ली’ से आया है, जिसका अर्थ होता है ‘सोने की भूमि’। पूर्व CM नारायण राणे के छोटे बेटे नितेश राणे इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा ने उन्हें दूसरी बार टिकट दिया है। हालांकि, वे लगातार तीसरी बार इस सीट से मैदान में हैं। वे 2014 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे।
नितेश 2005 से सक्रिय राजनीति में हैं और अपने भड़काऊ बयानों को लेकर चर्चा में रहते हैं। उन्होंने साल 2010 में मुंबई के निजी पानी टैंकर माफियाओं के खिलाफ अभियान चलाया था। साथ ही आम लोगों की शिकायत के लिए टोल-फ्री नंबर भी जारी किया था।
शिवसेना (UBT) ने उनके सामने संदेश पारकर को उतारा है। वे NCP (अविभाजित), कांग्रेस और भाजपा में भी रहे हैं। संदेश, नारायण राणे के विरोधी रहे हैं। उन्होंने 1999 में तब के CM नारायण राणे के खिलाफ चुनाव भी लड़ा था। हालांकि संदेश हार गए थे। वे कणकवली के पहले मेयर बने थे।
19. कुडाल: पूर्व CM के बेटे ने भाजपा छोड़ी तो शिंदे ने टिकट दिया
पूर्व CM नारायण राणे के बड़े बेटे नीलेश राणे इस सीट से शिवसेना के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। वे कुछ दिन पहले ही भाजपा छोड़कर आए थे। उनके पिता रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से भाजपा सांसद हैं। वहीं, छोटे भाई नितेश को भाजपा ने कणकवली सीट से टिकट दिया है। इस वजह से नीलेश को टिकट नहीं मिला तो वे शिवसेना में शामिल हो गए।
नीलेश ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2009 में कांग्रेस के साथ की थी। वे रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि, 2014 में शिवसेना के विनायक राउत से हार गए। 2017 में उनके पिता ने कांग्रेस छोड़कर ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष’ नाम से नई पार्टी बनाई।
नीलेश ने 2019 में पिता की पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन विनायक राउत से दोबारा हार गए। इसके बाद अक्टूबर, 2019 में अपने पिता के साथ भाजपा में शामिल हुए थे।
शिवसेना (UBT) ने यहां से वैभव नाइक को उतारा है। उन्होंने 2014 में पांच बार के विधायक और पूर्व CM नारायण राणे को हराया था। राणे 1990 से लगातार इस सीट पर विधायक थे। वैभव उसके बाद से ही विधायक हैं।