Monday, June 16, 2025
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मां की कटी-फटी लाश के करीब मांस खाता बेटा: पुलिसवाले करने लगे उल्टी, कहानी कोल्हापुर मर्डर केस की; आज पार्ट-1


28 अगस्त 2017 की बात है। महाराष्ट्र में गणपति पूजा का तीसरा दिन था। दोपहर के करीब ढाई बज रहे थे। कोल्हापुर के शाहुपुरी पुलिस स्टेशन के फोन की घंटी बजी। हेड कॉन्स्टेबल तानाजी रामचंद्र चौंगले लगातार सुबह से फोन रिसीव कर रहे थे।

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इस बार भी उन्हें लगा कि गणपति पूजा को लेकर कोई कॉल होगा। थोड़ा रूककर चौंगले ने अपनी टोपी सरकाते हुए कॉल रिसीव की।

टेलीफोन के कान तक पहुंचने से पहले ही उधर से आवाज आई- एक मां का मर्डर हो गया है।

कॉन्स्टेबल चौंगले ने तेज आवाज में पूछा- कहां?

जवाब आया- ताराराणी चौक, कावला नाका, माकड़वाला बस्ती।

तानाजी फोन रखते हुए कुछ सोचते हैं, दबी जुबान में बुदबुदाते हैं- ये वही बस्ती तो है, जिसे कोल्हापुर के शाहू महाराज ने जानवरों का शिकार करने के लिए बसाया था। अब तक तो ये लोग कुत्ते-बिल्ली, बंदर ही मारते थे। खाते थे। अब मां का भी मर्डर करने लगे। खैर…

तानाजी टेबल पर रखा डंडा झटकते हुए थाना प्रभारी (SHO) संजय मोरे से कहते हैं- एक मां को मार दिया। चलना पड़ेगा सर…। पुलिस स्टेशन के सामने खड़ी जीप पर झटपट आधा दर्जन सिपाहियों के साथ तानाजी और मोरे निकल पड़े।

घरघराती हुई जीप बस्ती के पास पहुंची। बस्ती में कुचकोरवी आदिवासी समुदाय के करीब 200 लोग बसे हैं। पानी की टंकी, चारों ओर फैला कचरा, घनी बसावट, संकरी गली और एंट्री गेट पर एक मंदिर। लोग गली में जमा होने लगे थे।

उस वक्त घटनास्थल पर मौजूद पुलिस की टीम।

संजय मोरे और तानाजी दलबल के साथ आगे बढ़े तो गली के बाहर से खून की गंध आने लगी। एक बार में एक ही इंसान के घुसने लायक गली के किनारे से नाली थी, जिसमें लाल पानी बह रहा था।

नाली में खून जिस तरफ से आ रहा था, उस ओर पुलिस बढ़ रही थी। नजारा भी बदलता जा रहा था। टिन की छत वाला एक झोपड़ीनुमा घर। टिन की दीवार। प्लाई से दो हिस्सों में बंटा कमरा। सामने एक शख्स हाफ पैंट में खून से सना बैठा था।

करीब ही 3 धारदार चाकू रखे थे। दूसरी तरफ एक बूढ़ी की लाश पड़ी थी। शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं। आंत, कलेजा, दिल… सब बाहर। यहां तक की स्तन भी काटकर लाश के पास ही रखे थे। पूरे घर की जमीन खून से रंगी थी। नाली में यही खून बह रहा था। लाश के बगल में बगल में एक आदमी खून से सना बैठा है और मांस जैसा कुछ खा रहा है।

मंजर देख दो पुलिस कॉन्स्टेबल उल्टी करने लगे। मोरे और तानाजी को लगा कि यह मर्डर सामान्य नहीं है। पुलिस दूसरे कमरे में घुसी तो वहां नजारा और भी वीभत्स।

सामने रखे गैस-चूल्हे की धीमी आंच पर तवा चढ़ा था। मांस पकने की बदबू आ रही थी। तवे पर मांस का टुकड़ा पड़ा था। उस पर नमक, मिर्च और चटनी डली हुई थी। एक हड्डी का टुकड़ा तेल के बर्तन में पड़ी थी।

घटना के वक्त इसी नाली से खून बह रहा था।

घटना के वक्त इसी नाली से खून बह रहा था।

तभी भीड़ में सफेद शर्ट और लुंगी पहने एक शख्स बिलखते हुए हाथ जोड़े खड़ा था। वो कहने लगा- साहेब, मैं राजू कुचकोरवी। यह सुनील कुचकोरवी, मेरा भाई है। इसने मां का कत्ल कर दिया है। मेरी मां यल्लवा रामा कुचकोरवी को खा गया।

मेरी मां को मार दिया। हाय…! मेरी मां को मार दिया।

रोते-बिलखते राजू कुचकोरवी नीचे जमीन पर बैठ गया। लोग राजू को ढांढस बंधाने लगे और सुनील को कोसने लगे।

गहरी सांस लेते हुए SHO संजय मोरे तल्ख अंदाज में बोले- इस घर में और कौन-कौन रहता है?

भीड़ से आवाज आई- सुनील की बीवी और उसके चार बच्चे। अभी सब बंबई में हैं। सुनील उसे रोज मारता था, इसलिए वह चली गई।

मोरे ने राजू से कहा- पत्नी को खबर कर दो।

मोरे ने हेड कॉन्स्टेबल तानाजी से कहा कि मीडिया को बुला लो और साहब को फोन मिलाओ।

कुछ देर बाद कोल्हापुर के जर्नलिस्ट उद्धव गोडसे पहुंच गए। पूरा इलाका छावनी में तब्दील हो चुका था। कई थानों की पुलिस मौके पर मौजूद थी।

गोडसे याद करते हैं- उस समय मेरे दिमाग में एक ही बात घूम रही थी। 17 साल के करियर में कभी ऐसी खबर नहीं लिखी। ये खबर कैसे लिखूंगा?

बचपन से सिखाया गया कि कुछ भी करो, लेकिन मां पर कभी हाथ नहीं उठाना। यहां तो एक मां को काटकर मार दिया गया।

गोडसे ने कुछ देर बाद खबर की मराठी में हेडिंग दी- ‘माणुसकीला काळीमा’। यानी मानवता खत्म करने वाली घटना। यहां इंसानियत का ही मर्डर हो गया।

कमरे के हर एक कोने की फोटोग्राफी हो रही थी। तब तक फोरेंसिक टीम भी आ चुकी थी। सुनील के हाथ खून से रंगे थे। कपड़े भी खून से भीगे थे। फोरेंसिक टीम ने सुनील के कपड़े बदलवाकर एक थैले में पैक कर दिए और उसे दूसरे कपड़े पहनने को दिए गए। डेड बॉडी के पास रखे तीनों चाकू भी पैक कर लिए गए।

डेड बॉडी के पास पड़े अंग भी समेट लिए गए और बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया। टीम जब डेड बॉडी के बाहर पड़े अंग पैक कर रही थी तो उसे लगा कि इसके कुछ हिस्से गायब हैं।

तवे पर पड़े मांस के टुकड़े भी फोरेंसिक टीम ने समेट लिए। तब तक सुनील एक कोने में बैठा हुआ था। दरवाजे पर खड़ी भीड़ भड़क रही थी। कोई कह रहा था- इसे यहीं मार दो। सुनील एक शब्द नहीं बोला। वह बदहवास-सा भीड़ को एकटक देख रहा था। अब तक उसकी पत्नी, बच्चे नहीं आए थे।

भीड़ को हिंसक होता देख SHO संजय मोरे ने तानाजी से कहा- देख क्या रहे हो, सुनील को हथकड़ी लगाकर थाने ले चलो।

भीड़ के बीच से खींचते हुए पुलिस ने सुनील को जीप में बैठा लिया और शाहुपुरी थाने ले गए।

इधर, सुनील की पत्नी लक्ष्मी कुचकोरवी, खबर मिलते ही कोल्हापुर के लिए बस में बैठ गई। लक्ष्मी याद करती हैं कि उस समय यही चिंता थी- उसने मां को क्यों मारा। अब क्या होगा। पुलिस वाले ने सुनील के साथ क्या किया होगा।

रात के तकरीबन 8 बजे लक्ष्मी घर पहुंची। घर के पास अभी तक भीड़ जमा थी। चीखते हुए लक्ष्मी ने भीड़ से पूछा- कहां है सुनील?

लोगों ने बताया- उसे पुलिस ले गई। भाई राजू, पड़ोसी मयूर कंडले और सचिन नागप्पा जाधव भी गए हैं, FIR कराने।

बच्चों को छोड़कर लक्ष्मी माथे पर पल्लू खींचते हुए झटपट पैदल ही थाने पहुंच गई। वहां पहुंचते ही लक्ष्मी की नजर बैरक में खड़े सुनील पर पड़ी। वो बेसुध था, लक्ष्मी की किसी बात का जवाब नहीं दे पा रहा था।

लक्ष्मी पूरी रात थाने में बैठी रही। सुनील से उसकी दो दिन बाद बात हुई। लक्ष्मी के मुताबिक वह नशे में धुत था। जब होश आया, तब उसने पूछा- तुमने मां को क्यों मारा? सुनील ने कहा- मैंने तो बिल्ली मारी। मां को कहां मारा?

सुनील का ये जवाब सुनकर लक्ष्मी वापस बस्ती लौट गई। वह पढ़ी-लिखी भी नहीं है। अब आगे क्या होगा? ये सोच-सोचकर लक्ष्मी सन्न थी।

सुनील जेल चला गया तो बच्चे और घर की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से लक्ष्मी पर थी।

सुनील जेल चला गया तो बच्चे और घर की जिम्मेदारी अब पूरी तरह से लक्ष्मी पर थी।

इधर, SHO संजय मोरे के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी-

कोई बेटा अपनी मां की लाश के बगल में बैठकर मांस कैसे खा सकता है? लाश के कुछ अंग गायब हैं, ये मर्डर आखिर किसने किया?

भौंहे ताने इन्वेस्टिगेटिव ऑफिसर संजय मोरे के सामने ये सब अब तक एक पहेली की तरह था।

कल कोल्हापुर मर्डर केस के पार्ट-2 में पढ़िए, कैसे सुलझी इस केस की गुत्थी



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