पूर्णिया के प्रसिद्ध पूजा पंडालों में से एक भट्टा दुर्गाबाड़ी में बंगाली समाज की महिलाओं ने सिंदूर खेला का आयोजन किया। बंगाली समाज की महिलाओं के अलावा आसपास की महिलाओं ने भी सिंदूर खेला में हिस्सा लिया।
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बंगाली समाज द्वारा इस जगह पर पिछले 109 सालों से परंपरा कायम है। सिंदूर खेला में इस साल काफी संख्याओं में महिलाओं की भीड़ देखने को मिली। जिस दौरान महिलाओं ने एक दूसरे को सिंदूर लगाकर मां दुर्गा से सदा सुहागन रहने की कामना की।
मां दुर्गा की विदाई से पहले भट्टा दुर्गाबाड़ी में सिंदूर खेला का आयोजन किया गया।
आजादी से पहले पहली बार स्थापित हुई मां की प्रतिमा
पूजा समिति की अध्यक्षा तपोती बनर्जी और सचिव प्रदीप्तो भट्टाचार्य ने बताया कि आजादी काल से भी पहले भट्ठा दुर्गाबाड़ी में साल 1916 में मां दुर्गा की प्रतिमा पहली बार स्थापित की गई थी। यहां बांग्ला रीति रिवाज से मां दुर्गा की पूजा अर्चना की जाती है। उसी साल दुर्गा बाड़ी में पहली बार सिंदूर खेला का आयोजन किया गया। तभी से यहां सिंदूर खेला की परंपरा चली आ रही है। इसके बाद यह 109वां साल है। यहां का सिंदूर खेला काफी प्रसिद्ध है। बांग्ला समुदाय के लिए सिंदूर खेला काफी महत्व रखता है। विजयादशमी पर मां की विदाई होती है। इसीलिए सिंदूर लगाकर मां दुर्गा से एक दूसरे की सदा सुहागिन रहने की कामना करते हैं। प्रार्थना करते हैं कि अगले वर्ष जल्दी आना और घर की सुख समृद्धि बनी रहे।
सचिव प्रदीप्तो भट्टाचार्य ने बताया कि साल 1916 से चली आ रही पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए वैदिक रीति से मां के सभी नौ रूप की पूजा होती है। यहां बांग्ला रीति रिवाज से षष्टी की रात्रि सप्तमी शुरू होने से पहले मंडप खोला जाता है। अष्टमी को 56 प्रकार के भोग लगाए जाते हैं। नवमी को महाप्रसाद का वितरण होता है। इस 56 प्रकार के भोग को महाप्रसाद के रूप में मिला दिया जाता है। नवमी को नारायण सेवा के रूप में बैठाकर प्रसाद खिलाया जाता है।

एक दूसरे को सिंदूर लगाती महिलाएं।
प्रसिद्ध कालीघाट शक्तिपीठ थीम पर बना पंडाल
जॉइंट सेक्रेटरी सुचित्र कुमार घोष और कार्यकर्ता ज्योति चटर्जी ने बताया कि भट्टा दुर्गाबाड़ी पूजा पंडाल शहर के प्रमुख पंडालों में से एक है। पिछली बार पंडाल को बंगाल के मशहूर मयूर टीम पर पंडाल को लाखों खर्च कर डेवलप किया गया था। वहीं इससे पहले देश के भक्ति और आस्था के केन्द्र केदारनाथ धाम का लुक दिया गया था। इस बार बंगाल के 30 से अधिक कारीगरों ने पूजा पंडाल को प्रसिद्ध कालीघाट शक्तिपीठ की शक्ल दी है। इसका बजट 25 लाख है। वैसे तो नवरात्र में षष्टी से लेकर दशमी तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है, लेकिन अंतिम दिन दशमी को मां दुर्गा को विदाई दी जारी है। इस दौरान सिंदूर खेला का आयोजन किया जाता है। जिस तरह से पूरे विधि विधान से मायके से बेटी को विदा किया जाता है, उसी तरह से सिंदूर खेलकर मां दुर्गा की विदाई करते हैं और यह कामना करते हैं कि अगले साल मां दुर्गा अपने साथ अपार खुशियां लेकर आए।
वहीं इस बार पूजा पंडाल को प्रसिद्ध कालीघाट शक्तिपीठ के थीम पर बनाया गया है। जिसका बजट 25 लाख है। जो 80 फीट लंबा और 150 फीट चौड़ा है। मां का सोने के आभूषण से साजो श्रृंगार किया गया है। बुधवार रात पट खुलते ही ऐतिहासिक भट्टा दुर्गाबाड़ी का बांग्ला मंडप ढाक के तेज स्वर से गूंज उठा। भट्टा दुर्गाबाड़ी पूजा पंडाल सबसे प्राचीन और प्रमुख पूजा पंडाल में से एक है। ऐसे में यहां मूर्तियों की कारीगरी से लेकर पंडाल की भव्य बनावट और पूजा पद्धति में बंगाली विधि विधान का समागम साफ देखा जा सकता है। भट्टा दुर्गाबाड़ी में आम लोगों के अलावा पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी आ चुके हैं।