Saturday, April 5, 2025
Saturday, April 5, 2025
Homeराज्य-शहरमानसिक रोगी के नाम कंपनी खोल दी,54 करोड़ का लेनदेन: युवक...

मानसिक रोगी के नाम कंपनी खोल दी,54 करोड़ का लेनदेन: युवक 4 साल से बेरोजगार, नोटिस लेकर अफसर पहुंचे तब पता चला; ऐसे 100 मामले – Madhya Pradesh News


’23 अगस्त को दो अधिकारी मेरे घर पहुंचे। उनमें से एक ने कहा कि आपके नाम से मेसर्स एस के इंटरप्राइजेज कंपनी रजिस्टर्ड है। इस कंपनी ने 54 करोड़ रु. का ट्रांजैक्शन किया है। हमें कंपनी के दस्तावेज और बिल की कॉपी चाहिए। ये सुनकर मैं हैरान रह गया, क्योंकि म

.

ये आपबीती शिवपुरी के रहने वाले सुरेंद्र कुमार झा की है। दरअसल, सुरेंद्र फर्जी ITC यानी इनपुट टैक्स क्रेडिट की धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं। ये जीएसटी चोरी का तरीका है। जीएसटी विभाग हर साल 100 से ज्यादा संदिग्ध फर्म की जांच करता है, इस दौरान फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम के मामले सामने आते हैं।

विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस साल 15 अगस्त से लेकर अब तक करीब 100 बोगस फर्म मिली हैं। इनमें करीब 101 करोड़ रु. की टैक्स चोरी की गई। जीएसटी ने इस सभी फर्म का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया। आखिर इनपुट टैक्स क्रेडिट से जीएसटी चोरी कैसे होती है और कैसे आम लोग इसमें फंस रहे हैं। भास्कर ने जीएसटी के अधिकारियों और एक्सपर्ट्स से बात कर समझा। पढ़िए ये रिपोर्ट…

पहले जानिए क्या है इनपुट टैक्स क्रेडिट

एक मैन्युफैक्चरर जब कोई सामान खरीदता है तो उस पर टैक्स देता है। वह जब सामान बेचता है तो उस पर टैक्स कलेक्ट करता है। इन दोनों टैक्स के अंतर को इनपुट टैक्स क्रेडिट में एडजस्ट कर जीएसटी विभाग से पैसा वापस लिया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जीएसटी की देनदारी को घटाया जाता है।

इसे इस उदाहरण से समझिए- एक निर्माता ने सामान बेचा और उस पर 450 रु. टैक्स दिया। मान लीजिए इस सामान को बनाने के लिए उसने जो प्रोडक्ट खरीदा था, उस पर 300 रु. टैक्स दिया। निर्माता अब 450 रुपए में 300 रुपए घटाकर जीएसटी जमा करेगा यानी उसकी जीएसटी देनदारी केवल 150 रु. होगी न कि 450 रु. निर्माता इस स्थिति में 300 रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करता है।

इन दो केस से समझिए कैसे फर्जी ITC के दावों से हुई धोखाधड़ी

केस-1: बेरोजगार युवक को बना दिया फर्म का मालिक, 54 करोड़ का ट्रांजैक्शन

शिवपुरी के आरके पुरम हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी में सुरेंद्र कुमार झा अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। उनके पिता पीएचई विभाग में हेल्पर हैं। सुरेंद्र के घर 23 अगस्त को जीएसटी भोपाल ऑफिस के दो अधिकारी पहुंचे।

उन्होंने कहा कि सुरेंद्र कुमार मेसर्स एस के इंटरप्राइजेज नाम की फर्म के प्रौपराइटर हैं। इनकी फर्म का जीएसटी नंबर 23ASTPJ5991AZM और पता इसी मकान का है। उन्होंने ये भी कहा कि फर्म के नाम से 54 करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन किया गया है। वे दस्तावेजों की जांच के लिए आए हैं।

अधिकारियों की बातें सुनकर सुरेंद्र कुमार और उनके परिजन हैरान हो गए, क्योंकि उन्होंने किसी फर्म का रजिस्ट्रेशन नहीं किया था। सुरेंद्र कुमार ने अधिकारियों को कहा कि जीएसटी नंबर क्या होता है, मैं इसके बारे में नहीं जानता हूं। सुरेंद्र के पिता हरगोविंद ने अधिकारियों को बताया कि उनका बेटा तो बेरोजगार और मानसिक रूप से बीमार भी है। पिछले कई सालों से घर पर ही है।

हरगोविंद ने आशंका जताई कि किसी ने उनके बेटे के दस्तावेजों का इस्तेमाल कर फर्जी फर्म बनाई है। जीएसटी अधिकारियों ने दोनों को थाने में शिकायत करने की सलाह दी। इसके बाद सुरेंद्र और हरगोविंद ने एसपी को शिकायत की।

केस-2: जीवाजी विश्वविद्यालय के छात्र को 46 करोड़ का IT नोटिस

ग्वालियर जिले के हस्तिनापुर निवासी प्रमोद दंडोतिया जीवाजी विश्वविद्यालय से एमए अंग्रेजी की पढ़ाई कर रहे हैं। प्रमोद के पास 27 जनवरी 2024 को आयकर विभाग ने नोटिस भेजा। इस नोटिस में उनसे 46 करोड़ के लेन-देन का हिसाब मांगा गया। अफसरों ने प्रमोद पर आयकर चोरी करने का आरोप लगाया।

प्रमोद ने बताया कि वे अपनी फीस वगैरह जमा करने के लिए कई बार पैन कार्ड का इस्तेमाल करते रहे हैं। उन्हें आशंका है कि किसी ने उनके पैन कार्ड का गलत इस्तेमाल कर फर्जी फर्म बनाई और जीएसटी का रजिस्ट्रेशन कर फर्जी लेन-देन किया। प्रमोद ने ग्वालियर एसपी से इसकी शिकायत की।

शुरुआती जांच में सामने आया कि फर्म दिल्ली और पुणे में कारोबार करती हैं। इसी तरह ग्वालियर के ही रहने वाले चंदन के पैन नंबर का इस्तेमाल कर दिल्ली के पते पर एक फर्म बना ली गई। इस बोगस कंपनी ने 9 करोड़ रुपए से ज्यादा का कारोबार भी कर दिया। चंदन को आईटीआर (ITR) भरते वक्त पता चला कि उनके पैन कार्ड के जरिए एक जीएसटी नंबर लिया गया है।

अधिकारी बोले- हर महीने 100 फर्म्स की जांच करते हैं

भास्कर ने इस मामले में जीएसटी के जॉइंट कमिश्नर योगेश यादव से बात की तो उन्होंने कहा कि, यह रूटीन प्रक्रिया है। विभाग समय-समय पर फेक कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करता है। उन्होंने बताया कि विभाग लगातार डेटा एनालिसिस करता है।

जो फर्म रेगुलर रिटर्न दाखिल नहीं करती, उनकी लिस्टिंग की जाती है। अगर कोई फर्म संदिग्ध लगती है तो अधिकारी रजिस्टर्ड एड्रेस पर जाकर जांच करते हैं। ज्यादातर मामलों में बोगस फर्म मिलती है। इस तरह की फर्म के इनपुट सेंट्रल जीएसटी टीम भी शेयर करती है।

योगेश यादव बताते हैं कि, बोगस फर्म कागजों में व्यापार दिखाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करती है। फिर उसे दूसरी फर्म को ट्रांसफर किया जाता है। इस तरह से टैक्स चोरी की जाती है। कई बार सामान की सप्लाई दिखाई जाती है, मगर हकीकत में किसी माल या सर्विस का लेन-देन नहीं होता।

उनसे सवाल किया कि कंपनियों के रजिस्ट्रेशन के वक्त वैरिफिकेशन नहीं किया जाता, तो उन्होंने बताया कि दो तरीके से वैरिफिकेशन होता है। पहला- मोबाइल नंबर के साथ आधार को वेरिफाइड किया जाता है। दूसरा- विभाग फर्म का फिजिकल वैरिफिकेशन करता है।

उन्होंने बताया कि, इस साल 15 अगस्त से अब तक 70 बोगस फर्म मिली हैं। इनमें लगभग 101 करोड़ की फर्जी ITC को ब्लॉक किया गया है। विभाग ने तुरंत एक्शन लेते हुए सभी फर्म का रजिस्ट्रेशन कैंसिल कर दिया। साल 2023 में 130 बोगस फर्म मिली थीं, इनमें लिया गया 3. 33 करोड़ का ITC ब्लॉक कर दिया गया। इसमें 95 करोड़ का जीएसटी डिडक्शन हुआ था।

एक्सपर्ट बोले- सेटिंग से जीएसटी नंबर हासिल किया जाता है

एक आम आदमी इस धोखाधड़ी में कैसे फंस जाता है, उसके नाम से फर्जी फर्म कैसे रजिस्टर्ड हो जाती है? इसे लेकर भास्कर ने टैक्स कंसल्टेंट नीलेश कुशवाहा से बात की। उन्होंने कहा- जीएसटी नंबर के लिए आधार वैरिफिकेशन जरूरी होता है। बिना आधार वैरिफिकेशन के जीएसटी नंबर हासिल करने के लिए इंस्पेक्टर की रिपोर्ट होना जरूरी है।

इंस्पेक्टर आवेदक के पते का विजिट कर उसके डॉक्यूमेंट देखते हैं। फिर रिपोर्ट सबमिट करते हैं। इसी आधार पर जीएसटी नंबर मिलता है। नीलेश कहते हैं कि मोटे तौर पर देखें तो 100 में से 20 फीसदी मामलों में ही इंस्पेक्टर वैरिफिकेशन होता है, जबकि 80% केस में बिना इंस्पेक्टर रिपोर्ट वैरिफिकेशन के जीएसटी नंबर मिल जाते हैं।

वे बताते हैं कि कुछ कंसल्टेंट होते हैं, जिनकी जीएसटी ऑफिस में सेटिंग होती है। वे लोग पैसे लेकर इंस्पेक्टर रिपोर्ट तैयार कर जीएसटी नंबर जारी कर देते हैं। फर्जी फर्म ऐसे लोगों के नाम पर बनाई जाती है जो अवेयर नहीं होते। मजदूर और गरीब तबके के लोगों को टारगेट किया जाता है।

उन्हें थोड़े पैसों का लालच देकर उनके आधार नंबर का ओटीपी हासिल करते हैं। फिर दस्तावेजों के जरिए जीएसटी नंबर को अप्रूव करवाया जाता है।

फर्जी बिल इश्यू करके करते हैं टैक्स चोरी

नीलेश कुशवाहा बताते हैं कि, फर्जी इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करने वाले किसी तरह के गुड्स एंड सर्विस की सप्लाई नहीं करते हैं। केवल इसमें बिल इश्यू किया जाता है। इसे वे आगे बढ़ाते हैं। कुछ महीने तक उस जीएसटी नंबर से इनपुट टैक्स क्रेडिट क्लेम करते हैं। उसके बाद इससे ट्रांजैक्शन बंद कर दिया जाता है।



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular