प्रमुख सचिव खाद्य और नागरिक आपूर्ति निगम को मिलर्स ने 18 सूत्रीय मांगपत्र सौंपकर नई मिलर नीति में बदलाव करने के लिए कहा।
प्रदेश के मिलर्स ने सरकार से धान की आरक्षण नीति खत्म किए जाने और अंतरजिला मिलिंग सिस्टम में बदलाव करने के साथ मिलर्स को लगने वाली पेनाल्टी खत्म करने की मांग की है। प्रमुख सचिव खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग रश्मि अरुण शमी से चावल महासंघ के बैनर तले मि
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मध्य प्रदेश चावल उद्योग महासंघ के अध्यक्ष आशीष अग्रवाल और प्रतिनिधिमंडल ने आगामी खरीफ 2024-25 के लिए प्रस्तावित मिलिंग नीति के प्रारूप के संबंध में सुझाव देते हुए कहा है कि समर्थन मूल्य पर खरीदी के दौरान मिलर से पांच लाख के स्थान पर 3 लाख की बैंक गारंटी या एफडीआर लेकर धान दी जाए ताकि अधिक से अधिक धान समितियों से धान मिलर्स के पास जा सके। इससे सरकार का परिवहन खर्च बचेगा। साथ ही 4 टन मिलिंग कैपिसिटी वाले उद्योगों को धान दिए जाने की अधिकतम सीमा 15 लॉट, 8 टन क्षमता वाले प्लांट को 25 लॉट और इससे अधिक क्षमता वाले प्लांट को 35 लॉट से अधिक नहीं किए जाने की भी डिमांड की गई है ताकि सभी को समानुपातिक रूप से मिलिंग के लिए धान मिल सके। महासंघ के अध्यक्ष अग्रवाल ने बताया कि प्रमुख सचिव ने राज्य स्तर पर संभव मांगों पर अमल के लिए आश्वस्त किया है।
धान की आरक्षण नीति खत्म करे सरकार
मिलर्स से प्रमुख सचिव से मुलाकात के दौरान अपने कारोबार से संबंधित कई समस्याओं से उन्हें अवगत कराया। प्रमुख सचिव शमी को बताया गया कि प्रदेश के सभी जिलों में एफसीआई में चावल जमा करने का अनुपात समान होना चाहिए। मिलर्स ने कहा कि धान की आरक्षण नीति समाप्त की जाए क्योंकि प्रदेश में मिलिंग कैपिसिटी अब आवश्यकता से अधिक हो गई है। आरक्षण नीति लागू होने से पूंजीपति मिलर्स द्वारा धान आरक्षित करा ली जाती है और इससे पूंजीवाद को बढ़ावा मिलता है। ऐसे में छोटे मिलर्स को धान उपलब्ध नहीं हो पाती है और उनके उद्योग इसी कारण बंद होने की स्थिति में आ गए हैं।
चावल की परिवहन दर संबंधी आदेश भी मिलिंग नीति के साथ जारी किए जाएं ताकि मिलर्स को किसी प्रकार की असमंजस की स्थिति का सामना नहीं करना पड़े।
ब्रोकन को भी स्टॉक में शामिल करें, अंतर जिला मिलिंग में कंट्रोल हो
प्रमुख सचिव से कहा गया कि अंतर जिला मिलिंग की अनुमति केवल उन्हीं जिलों की दी जाए जिन जिलों में पूर्व के वर्षों में मिलिंग होने में कठिनाई सामने आई है या मिलर की संख्या समर्थन मूल्य पर खरीदी गई धान की तुलना में कम है। जहां पर्याप्त मिलें हैं वहां इसकी परमिशन न दी जाए। मिलर्स ने कहा कि मिलिंग के बाद चावल के साथ ब्रोकन मिलाकर 65 से 67 प्रतिशत निकलती है। इसलिए जब भी मिलों का फिजिकल वेरीफिकेशन किया जाए तो मिल के स्टॉक में रखी हुई और मिलर द्वारा बेची गई ब्रोकन को भी स्टॉक में शामिल किया जाए।
इनके द्वारा बताया गया कि नागरिक आपूर्ति निगम के क्वालिटी कंट्रोलर्स द्वारा पूरी जांच पड़ताल के बाद ही सीएमआर स्वीकार किया जाता है। यहां चावल जमा होने के बाद लंबे समय तक स्टोर रहने से चावल की क्वालिटी कमजोर हो जाती है और फिर किसी एजेंसी द्वारा चावल रिजेक्ट किया जाता है तो उसके लिए मिलर को दोषी मानकर पेनाल्टी लगाई जाती है। इसे रोका जाना चाहिए।
22 प्रतिशत मॉइश्चर होता है, 14 प्रतिशत मंजूर किया जाता है
महासंघ ने बताया कि खरीदी के समय समितियों से मिलिंग के लिए जो धान ली जाती है उसमें 17 से 22 प्रतिशत तक मॉइश्चर होता है जबकि नागरिक आपूर्ति निगम और भारतीय खाद्य निगम द्वारा 14 प्रतिशत तक मॉइश्चर ही स्वीकार किया जाता है। इसके बाद अधिक मॉइश्चर पर वजन काटा जाता है जो न्यायोचित नहीं है। इसलिए 15 प्रतिशत तक मॉइश्चर तक चावल स्वीकार करने पर कोई कटोत्रा नहीं किया जाए। मिलर्स को हर एग्रीमेंट खत्म होने पर मिलिंग, परिवहन, धान-चावल की लोडिंग अनलोडिंग का पेमेंट किया जाना चाहिए। इससे मिलर्स को आर्थिक सहयोग मिलेगा और मिलिंग तेजी से आगे बढ़ेगी।
पेनाल्टी काटने का नियम खत्म हो
शासन द्वारा मिलिंग नीति में धान उठने के 25 दिन हो जाने के बाद पेनाल्टी काटने का प्रावधान किया गया है। बारिश, पानी, शादी-विवाह कार्यक्रम की वजह से मजदूर और हम्माल की कमी होने और गेहूं उपार्जन के समय होने वाली परेशानियों, गोदामों में चावल भरे होने से स्थान नहीं होने के कारण भंडारण में दिक्कतें आती हैं। इससे विलंब होता है, इसलिए इस रूप में लगने वाली पेनाल्टी खत्म की जानी चाहिए।
छग, महाराष्ट्र की तरह पुराने बारदानों में हो खरीदी
छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की तर्ज पर एमपी में भी धान की खरीदी पुराने बारदानों में की जानी चाहिए। चावल जमा करने के लिए मिलर्स को नई गठान विभाग द्वारा दी जानी चाहिए क्योंक समिति वाले नई गठान को बाजार में बेचकर पुरान बारदानों में खरीदी करते हैं और आनलाइन चालान नए बारदाने का बना देते हैं। इससे मिलर्स को चावल जमा करने में दिक्कत होती है।