Tuesday, March 25, 2025
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मुफ्त में घर मिला, अब जमीन भी चाहते हैं माननीय: जिस पटना में जमीन मिनिमम 70 लाख रुपए कट्ठा, वहां फ्री में विधायकों को चाहिए – Bihar News


‘चुनिंदा विशेष लोगों के समूहों को मामूली कीमत पर जमीन देना ‘मनमौजी’ और ‘तर्कहीन’ नजरिया है। यह मनमानी का एक क्लासिक उदाहरण है। राज्य सरकार की यह पॉलिसी सत्ता का दुरुपयोग है। कुछ लोगों को तरजीह देकर जमीन देना समाज में असमानता को बढ़ावा देता है। इससे स

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इसके उलट बिहार में विधायकों (MLA) और विधान पार्षदों (MLC) को सरकारी आवास के अलावा आजीवन रहने के लिए पटना में फ्री जमीन चाहिए।

वो भी उस पटना में जहां तत्काल रहने वाली सोसाइटी में कम से कम 70 लाख रुपए कट्ठा जमीन बिक रही है। लोकेशन के आधार पर तो करोड़ों रुपए कट्ठा जमीन है।

हालांकि, माननीयों की मांग पर नीतीश सरकार ने फ्री में जमीन देने की कवायद तेज कर दी है। इसको लेकर सरकार ने बैठक बुलाई है।

दरअसल, बजट सत्र के दौरान बिहार विधान परिषद में 21 MLC ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के तहत मांग की कि हाउसिंग सोसाइटी के माध्यम से एक आदर्श छत की व्यवस्था की जाए, उसके लिए जमीन दी जाए। इस पर सभापति अवधेश नारायण सिंह ने सहमति जताई।

इस स्पेशल स्टोरी में जानिए, विधायकों के घर के लिए क्या हैं तर्क, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामले में क्या आदेश दिया था?

पार्षदों और सभापति का तर्क जानिए…

सदन में विधान पार्षदों ने कहा, ‘अधिकांश वर्तमान और पूर्व सदस्यों के लिए कार्यकाल समाप्त होने के बाद घर ढूंढना मुश्किल भरा काम होता है। प्राइवेट आवास की व्यवस्था के लिए पहले को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी थी। वह जमीन की व्यवस्था करती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है। कार्यकाल पूरा होने यानी चुनाव हारने या राजनीति छोड़ने के बाद सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के लिए राजधानी पटना में घर की आवश्यकता होती है, जिसे सहकारी हाउसिंग सोसाइटी के माध्यम से जमीन एवं मकान की व्यवस्था की जाए।’

RJD एमएलसी सौरभ कुमार ने विधान परिषद में जमीन का मामला उठाया। इसका सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक ने समर्थन किया।

खास बात है कि इस मामले पर पक्ष हो या विपक्ष, सभी दल के सदस्य एकजुट हो गए और सहमति जताई।

इस पर सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा…

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राजनीति करने वालों को लोग पटना में किराये पर मकान नहीं देते हैं। हमारे बच्चे भी पूछते हैं कि पिता जी ने क्या राजनीति की, एक छत भी हमारे लिए नहीं जुटा पाए।

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बता दें, सरकार ने विधान पार्षदों को 6 साल (कार्यकाल) और विधायकों को 5 साल के लिए पटना में आवास दिया है। इसके इतर विधायकों-MLC को अपने पूरे जीवन ही नहीं बल्कि आने वाली अपनी पीढ़ियों के लिए भी पटना में जमीन चाहिए।

सहकारिता मंत्री बोले- हम देंगे जमीन

19 मार्च को विधान परिषद में जब यह मांग रखी गई तो नगर विकास एवं आवास विभाग के मंत्री जीवेश कुमार ने कहा, ‘1983 की नियमावली में दो फीसदी आवास आवंटन की व्यवस्था माननीयों के लिए थी। 1998 में राजद सरकार ने रद्द कर दिया। 2016 में जब राजद सरकार साथ हुई तो कड़े नियम बनाए गए, जिसमें सदस्यों को शामिल नहीं किया गया।’

इसके बाद सहकारिता विभाग के मंत्री मंत्री प्रेम कुमार ने कहा, ‘ विगत वर्षों में राजनीति करने वालों को पटना में जमीन मिली है। सहकारिता विभाग इसकी व्यवस्था कराएगा। सोमवार को यानी 24 मार्च को संबंधित अधिकारियों और नेताओं के साथ बैठक की जाएगी। इसमें इसके लिए रास्ता निकाला जाएगा।’ इस पर सभापति ने कहा, ‘ इसकी मॉनिटरिंग हमारा ऑफिस करेगा।’

विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा है कि हमारा कार्यालय जमीन के मामले की मॉनिटरिंग करेगा।

विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा है कि हमारा कार्यालय जमीन के मामले की मॉनिटरिंग करेगा।

इन 21 विधान पार्षदों ने की मांग

सौरभ कुमार, अंबिका गुलाब यादव, अजय कुमार सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी, राधा चरण साह, राजीव कुमार, अफाक अहमद खां, प्रो. संजय कुमार सिंह, अशोक कुमार, कार्तिकेय कुमार, रेखा कुमारी, संजय सिंह, मुन्नी देवी, डॉ. कुमुद वर्मा, डॉ.मदन मोहन झा, डॉ. समीर कुमार सिंह, महेश्वर सिंह, अशोक कुमार पांडेय, तरुण कुमार, डॉ. उर्मिला ठाकुर, भीष्म साहनी।

कम से कम 222 करोड़ होगा खर्च

पटना में अगर माननीयों को जमीन दी गई है तो नीतीश सरकार पर कम से कम 222 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भार पड़ेगा। इसका हिसाब यूं समझिए, अभी पटना में रहने वाली कॉलोनियों में कम से कम 70 लाख रुपए कट्ठा जमीन की रेट है। कुछ कॉलोनियों में तो करोड़ों रुपए कट्ठा है।

बिहार में 243 विधायक और 75 विधान पार्षद हैं। टोटल 318 हुए। अगर इनको एक कट्ठा भी जमीन दी गई तो वो कम से कम 222 करोड़ रुपए की होगी। रेट अनुमानित है। लोकेशन के आधार पर रेट घटती-बढ़ती है।

पटना के कौटिल्य नगर में सरकार 1986-87 में विधायकों को जमीन आवंटित कर चुकी है। इसका मामला पटना हाईकोर्ट में चल रहा है।

पटना के कौटिल्य नगर में सरकार 1986-87 में विधायकों को जमीन आवंटित कर चुकी है। इसका मामला पटना हाईकोर्ट में चल रहा है।

पहले भी फ्री में जमीन ले चुके हैं माननीय

ऐसा नहीं है कि पटना में माननीयों (विधायकों-MCL) को पहले जमीन नहीं दी गई है। 1986 से 1990 के बीच कौटिल्य नगर में को-ऑपरेटिव के जरिए सरकार 30 साल के लिए लीज पर जमीन दे चुकी है। जब ये जमीन दी गई थी तब जगन्नाथ मिश्रा की सरकार थी। इसके तहत 20 एकड़ जमीन बांटी गईं। जमीन वेटनरी कॉलेज की थी।

जमीन की लीज अवधि अप्रैल 2016 में खत्म हो चुकी है। इसके बावजूद अभी भी माननीय का परिवार रह रहा है। इस जमीन पर आवास बनाकर रह रहे कई माननीयों को सरकारी आवास भी अलग से दिया गया है।

यह मामला पटना हाईकोर्ट में लंबित है। केस लड़ रहे सोशल एक्टिविस्ट गुड्डू बाबा कहते हैं, ‘नैतिकता की बात अब किताबों में रह गई है। 2016 से पटना हाईकोर्ट में इस मामले की लड़ाई लड़ रहा हूं। मुझे कोई यह समझा दे कि सरकारी संस्था (वेटनरी कॉलेज) की जमीन किसी व्यक्ति विशेष (एमपी, एमएलए, एमएलसी) की कैसे हो सकती है?’

तेलंगाना सरकार के आवंटन को रद्द कर चुका है सुप्रीम कोर्ट

जमीन के बंदरबांट के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में 25 नवंबर को हैदराबाद नगर निगम की सीमा के भीतर सांसदों, विधायकों, सिविल सेवकों, न्यायाधीशों, डिफेंस कर्मचारियों, पत्रकारों आदि को आवंटित जमीन को रद्द कर दिया था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार के जीओएम 2005 को रद्द कर दिया। साथ ही कोर्ट ने ऐसी नीति को मनमानी बताया और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया।

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