Sunday, March 16, 2025
Sunday, March 16, 2025
Homeराजस्थानमेगा एंपायर-जब BSNL के पास सैलरी के पैसे नहीं थे: 17...

मेगा एंपायर-जब BSNL के पास सैलरी के पैसे नहीं थे: 17 साल बाद पहली बार 262 करोड़ का मुनाफा; रेवेन्यू 21 हजार करोड़


बात 2019 की है। नए साल का दूसरा ही महीना था। भारत संचार निगम लिमिटेड यानी BSNL के करीब 1.76 लाख कर्मचारियों को अपनी सैलरी का इंतजार था। आमतौर पर पहली तारीख को सैलरी मिल जाती थी, लेकिन हफ्ते दिन बीत जाने के बाद भी उनके अकाउंट में पैसा नहीं आया। सरकारी

.

अनूप श्रीवास्तव तब BSNL के CMD यानी चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर थे। वे बेहद परेशान थे। एक मीडिया रिपोर्ट में बताते हैं- ‘कंपनी कर्ज में डूबी थी। हमारे पास नकदी की कमी थी। हम कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए धन जुटा रहे थे। इधर, अखबारों में खबरें छप रही थीं कि BSNL के कर्मचारियों को 15 दिन बीत जाने के बाद भी सैलरी नहीं मिल रही। ये सिलसिला लंबा चलता, तो बैंक से कर्ज लेना भी मुश्किल हो जाता।’

सालों से घाटे में रहने वाली BSNL, 17 साल बाद मुनाफे में आई है। 2024-25 की तीसरी तिमाही में कंपनी को 262 करोड़ रुपए का फायदा हुआ है। फिलहाल BSNL का रेवेन्यू 21 हजार करोड़ रुपए है। देशभर में 9 करोड़ से ज्यादा इसके कस्टमर्स हैं।

आज मेगा एंपायर में कहानी भारत की सरकारी टेलीकॉम कंपनी BSNL की…

दिल्ली स्थित BSNL का दफ्तर। BSNL की शुरुआत सितंबर 2000 में हुई थी।

भारत में कम्युनिकेशन नेटवर्क की नींव अंग्रेजों ने 19वीं सदी में रखी। 1851 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने टेलीग्राफ लाइन की शुरुआत की थी। यह टेलीग्राफ लाइन कलकत्ता को बॉम्बे यानी अब के मुंबई को जोड़ती थी।

3 साल बाद यानी 1854 में ब्रिटिश सरकार ने टेलीग्राफ को टेकओवर कर लिया। 1881 में इंडियन टेलीग्राफ एक्ट बना और अगले साल यानी 1882 में टेलीफोन नेटवर्क की शुरुआत हुई। तब यह कलकत्ता यानी कोलकाता, बॉम्बे यानी मुंबई और मद्रास यानी चेन्नई जैसे शहरों के लिए था।

1947 में आजादी के बाद टेलीकम्युनिकेशन सर्विसेज भारत सरकार के पास आ गई। 1951 में डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट्स एंड टेलीग्राफ की शुरुआत हुई। यानी डाक और टेलीफोन दोनों सर्विसेज एक ही डिपार्टमेंट देखता था। 1986 में टेलीकम्युनिकेशन को एक अलग डिपार्टमेंट बना दिया गया।

BSNL ने इनकमिंग फ्री किया, सिम खरीदने के लिए लोग सिफारिश तक करवाने लगे

अक्टूबर 2000, देश में एनडीए की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री। सरकार ने टेलीकम्युनिकेशन डिपार्टमेंट को एक सरकारी कंपनी के रूप में बदलने का फैसला किया गया। नाम रखा गया भारत संचार निगम लिमिटेड यानी BSNL. इसमें सरकार की हिस्सेदारी 100% रखी गई।

ये वो दौर था, जब देश में कुछ प्राइवेट कंपनियां मोबाइल सर्विसेज शुरू कर चुकी थीं, लेकिन इनका इस्तेमाल गिने-चुने लोग ही कर पा रहे थे। तब आउट गोइंग कॉल्स के लिए प्रति मिनट 16 रुपए और इनकमिंग कॉल के हर मिनट 8 रुपए देने पड़ते थे।

2002 में BSNL ने भी मोबाइल सर्विसेज लॉन्च कर दिया। आउटगोइंग कॉल्स के लिए 1.5 रुपए प्रति मिनट और इनकमिंग कॉल्स फ्री। प्राइवेट कंपनियों के लिए यह किसी झटके से कम नहीं था। लोगों में BSNL सिम खरीदने की होड़ लग गई। BSNL सिम के लिए सिफारिश तक की जरूरत पड़ने लगी, लेकिन फिर वो भी दौर आया जब ये सरकारी कंपनी घाटे में जाने लगी।

19 अक्टूबर 2002, लखनऊ में BSNL मोबाइल सेवा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।

19 अक्टूबर 2002, लखनऊ में BSNL मोबाइल सेवा की शुरुआत करते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी।

सरकार पर घोटाले के आरोप, प्राइवेट रेट पर शेयर खरीदा, घाटे में आई कंपनी

एक रिपोर्ट के मुताबिक 2006 में भारत में करीब 24 करोड़ मोबाइल कनेक्शंस BSNL के थे और मार्केट शेयर 22% था। कंपनी ने 93 मिलियन लाइंस क्षमता बढ़ाने के लिए टेंडर निकाला, लेकिन किसी न किसी कारण से उसे अमल में लाने में महीनों लग गए। इसी बीच सरकार पर 2जी घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के आरोप लगे। कंपनी के मार्केट शेयर में गिरावट आई और प्राइवेट कंपनियां आगे निकल गईं।

2010 में 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई। सरकारी कंपनी होने के चलते BSNL ने हिस्सा नहीं लिया। जिस दाम पर निजी कंपनियों ने नीलामी में स्पेक्ट्रम खरीदे थे, BSNL से कहा गया कि वो भी वही दाम दे। BSNL ने इस नीलामी में करीब 18 हजार करोड़ रुपए खर्च किए, जिससे उसका खजाना खाली हो गया।

इसका फायदा प्राइवेट कंपनियों को मिला। एयरटेल ने भारत के बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। वोडाफोन और आइडिया जैसी कंपनियों ने भी अपनी धाक जमानी शुरू कर दी। वायर लाइन सर्विस, वाई-फाई , 2जी, 3जी, 4जी सर्विसेज के साथ प्राइवेट कंपनियां BSNL से काफी आगे निकल गईं। 2017 में 13 करोड़ यूजर्स के साथ जियो भारत की सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी बन गई।

2018-19 में BSNL करीब 14 हजार करोड़ रुपए का घाटा हुआ था। कंपनी को पिछले साल के मुकाबले करीब 19 हजार करोड़ रुपए कम रेवेन्यू मिला था।

BSNL लगातार घाटे में क्यों रहा, 7 पॉइंट्स में जानते हैं :

  • साल 2000 में BSNL के अधिकारी निजी ऑपरेटरों को चुनौती देने के लिए जल्द से जल्द मोबाइल सर्विस शुरू करना चाहते थे, लेकिन उन्हें जरूरी सरकारी सहमति नहीं मिली।
  • 2006-12 के बीच जहां BSNL की क्षमता में मामूली इजाफा हुआ, वहीं प्राइवेट ऑपरेटर्स कहीं ज्यादा आगे निकल गए।
  • लोगों ने नेटवर्क कंजेशन और अन्य समस्याओं के कारण BSNL छोड़ प्राइवेट कंपनियों की ओर रुख किया।
  • साल 2010 में जब 3G स्पेक्ट्रम की नीलामी हुई, तो सरकारी कंपनी होने के कारण BSNL ने हिस्सा नहीं लिया। बाद में BSNL को उसी दाम पर स्पेक्ट्रम मिले, जिस दाम पर निजी कंपनियों को मिले थे।
  • BSNL को वायमैक्स तकनीक पर आधारित ब्रॉडबैंड वायरलेस एक्सेस यानी BWA स्पेक्ट्रम के लिए भी भारी रकम देनी पड़ी। इसका सीधा असर BSNL की आर्थिक स्थिति पर पड़ा।
  • देश में मोबाइल क्रांति जोर पकड़ने के साथ ही लैंडलाइन कनेक्शन में तेजी से गिरावट हुई। 2006-07 में BSNL के 3.8 करोड़ लैंडलाइन ग्राहक थे, जो 2014-15 में घटकर 1.6 करोड़ रह गए।

4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से भी BSNL को बाहर रखा गया। इस देरी के कारण प्राइवेट कंपनियां 5G रोलआउट कर चुकी हैं, लेकिन BSNL 4G पर ही अटककर रह गई।

रिसर्च : विशाखा कुमारी

——————————————-

मेगा एंपायर की ये खबर भी पढ़िए…

मेगा एंपायर- 64 हजार करोड़ की जीरोधा ब्रोकर:कॉल सेंटर में नौकरी करने वाले दो भाइयों ने बनाई 1.6 करोड़ यूजर्स की कंपनी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पहला पॉडकास्ट इंटरव्यू हाल ही में बिजनेसमैन निखिल कामत ने लिया है। निखिल न तो कोई जर्नलिस्ट हैं, न ही कोई फेमस यूट्यूबर। वे तो स्टॉक ट्रेडिंग की दुनिया के जाने-माने खिलाड़ी हैं। पूरी खबर यहां पढ़ें…



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular