Tuesday, June 17, 2025
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मेगा एंपायर- जर्मन तानाशाह हिटलर ने शुरू की फॉक्सवैगन: दूसरे विश्वयुद्ध में बंद हुई फैक्ट्री, ब्रिटिश आर्मी ने शुरू की; आज रेवेन्यू 31 लाख करोड़


6 मई 1938 की बात है। जर्मनी के एक शहर फॉलर्सलेबेन में नाजी पार्टी की भव्य रैली थी। रैली में जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने मंच से कहा- हम ऐसी कार बना रहे हैं जो हर जर्मन के लिए होगी। यह कार सस्ती, मजबूत और परिवार के लिए अच्छा ऑप्शन होगी।

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यहीं से शुरू हुई जर्मन ऑटोमोबाइल कंपनी फॉक्सवैगन। जिसका रेवेन्यू आज 30.72 लाख करोड़ है। इंडियन मार्केट में अब तक 10 से ज्यादा कैटेगरी की कारें लॉन्च कर चुकी फॉक्सवैगन 14 अप्रैल को 2 नई कार लॉन्च करने वाली है। गोल्फ GTI प्रीमियम हैचबैक कार की कीमत लगभग 52 लाख होगी। जबकि Tiguan R-line एसयूवी कार की कीमत लगभग 55 लाख रुपए होगी।

मेगा एंपायर में आज कहानी इसी जर्मन ऑटोमोबाइल कंपनी फॉक्सवैगन की…

साल 1930 में एडोल्फ हिटलर ने अपने देश के लोगों के लिए सस्ती कार बनाने का सपना देखा। एक ऐसी कार जिसे जर्मनी के मजदूर और किसान भी खरीद सकें। इसके लिए उन्हें एक अच्छे इंजीनियर और डिजाइनर की तलाश थी। तभी साल 1931 में फर्डिनेंड पोर्शे नाम के एक शख्स ने अपनी एक इंजीनियरिंग कंपनी शुरू की। कंपनी का नाम था Porsche, जो आगे चलकर स्पोर्ट्स कार मैन्युफैक्चरर पोर्शे एजी (Porsche AG) के नाम से फेमस हुई।

फर्डिनेंड पोर्शे ने एडोल्फ हिटलर के सामने फॉक्सवैगन कार की डिजाइन को पेश किया था।

1934 में जब हिटलर को फर्डिनेंड पोर्शे के बारे में पता चला, उन्होंने पोर्शे को मिलने के लिए बुलाया। हिटलर ने फर्डिनेंड को लोगों के लिए एक सस्ती और बेहतरीन कार डिजाइन करने का काम सौंपा और नाम तय हुआ फॉक्सवैगन।

Volkswagen यानी फॉक्सवैगन जर्मन वर्ड Volks और Wagen से मिलकर बना हुआ है। जर्मन में Volks का मतलब लोग और Wagen का मतलब गाड़ी होता है। हिटलर के माइंड में People’s Car यानी लोगों की कार कंसेप्ट था।

उसके बाद 1937 में फर्डिनेंड पोर्शे ने फॉक्सवैगन नाम से कंपनी की शुरुआत की। कंपनी शुरू होने के एक साल के भीतर ही फर्डिनेंड ने पहली कार KdF-Wagen डिजाइन कर ली। जिसे बाद में ‘बीटल’ कहा गया।

1938 में फॉक्सवैगन ने अपनी पहली कार KdF-Wagen लॉन्च की थी।

1938 में फॉक्सवैगन ने अपनी पहली कार KdF-Wagen लॉन्च की थी।

6 मई 1938 को एडोल्फ हिटलर ने फॉक्सवैगन फैक्ट्री की नींव रखी। शुरुआत में इसे ‘Gesellschaft zur Vorbereitung des Deutschen Volkswagens mbH’ के नाम से जाना जाता था। हिटलर ने मेड इन जर्मनी कार के लिए फैक्ट्री शुरू करने के साथ, वर्करों के लिए फैक्ट्री के पास ही एक अलग शहर बसा दिया।

शहर का नाम रखा गया Stadt des KdF-Wagens यानी कारों का शहर। यहां फैक्ट्री, मजदूरों के रहने के लिए घर, स्कूल, अस्पताल, सब कुछ प्लान करके बनाया गया। हिटलर का मानना था कि यह एक आदर्श औद्योगिक शहर बने। बाद में इसी शहर का नाम बदला गया और आज इसे Wolfsburg कहते हैं। फॉक्सवैगन का हेडक्वार्टर आज भी इसी शहर में है।

फॉक्सवैगन शुरू करने के लिए फंड का एक बड़ा हिस्सा नाजी सरकार ने दिया था और कुछ पैसा आम जनता से जुड़े सेविंग स्कीम के जरिए जुटाया गया था। इस सेविंग स्कीम का नाम था Kraft durch Freude, जो एक सरकारी संगठन था।

एडॉल्फ हिटलर ने घोषणा की थी कि यह कार आम जनता के लिए बनाई गई है।

एडॉल्फ हिटलर ने घोषणा की थी कि यह कार आम जनता के लिए बनाई गई है।

स्कीम को लेकर हिटलर ने कहा कि हर जर्मन कूपन सिस्टम से कार खरीद सकेगा। यानी लोग हर हफ्ते कुछ पैसे जमा करेंगे और जैसे ही रकम पूरी हो, उन्हें कार मिल जाएगी। इस स्कीम में लाखों लोगों ने पैसे जमा किए थे। हालांकि पैसा जमा करने वाले लोगों को कार कभी मिली ही नहीं। क्योंकि 1 सितंबर 1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया और फैक्ट्री में कार का प्रोडक्शन बंद हो गया। फैक्ट्री में युद्ध के दौरान सेना के वाहन बनने लगे।

1945 में जब वर्ल्ड वॉर खत्म हुई। जर्मनी युद्ध हार चुकी थी। नाजी राज का अंत हुआ तो फॉक्सवैगन की फैक्ट्री बमबारी और दूसरे हमलों की वजह से लगभग बर्बाद हो चुकी थी। यह फैक्ट्री ब्रिटिश आर्मी के कब्जे में आ गई, क्योंकि यह जर्मनी के उस हिस्से में थी जो ब्रिटिश नियंत्रण में था।

ब्रिटिश अधिकारियों ने पहले इसे बंद करने के बारे में सोचा। क्योंकि फॉक्सवैगन की कारों की क्वालिटी बहुत खराब मानी जा रही थी। फिर, ब्रिटिश सेना के मेजर इवान हर्स्ट (Ivan Hirst) ने फॉक्सवैगन फैक्ट्री को बंद करने के बदले, इसे चलाने का फैसला लिया। उन्होंने जर्मनी में ब्रिटिश सेना के लिए कार बनाना शुरू किया।

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटिश आर्मी के मेजर इवान हर्स्ट ने फॉक्सवैगन को चलाया।

सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटिश आर्मी के मेजर इवान हर्स्ट ने फॉक्सवैगन को चलाया।

इस तरह एक बार फिर फॉक्सवैगन की ‘बीटल’ कार बनने लगी। शुरुआती दौर में इसे केवल ब्रिटिश सेना के इस्तेमाल के लिए बनाया जा रहा था, लेकिन जल्द ही इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसे आम जनता के लिए बेचा जाने लगा।

युद्ध के बाद 1948 में, फॉक्सवैगन का प्रबंधन जर्मन सरकार के अधीन आ गया। अब इसे जर्मन ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाने लगा। धीरे-धीरे, फॉक्सवैगन बीटल पूरी दुनिया में मशहूर हो गई और इसे किफायती, भरोसेमंद और टिकाऊ कार के रूप में जाना जाने लगा।

1950 के दशक तक, फॉक्सवैगन इंटरनेशनल मार्केट में पहुंच गई। कई देशों में फॉक्सवैगन की कार बिकने लगीं। 1955 तक फॉक्सवैगन 10 लाख कार बना चुकी थी। यह कंपनी के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि थी।

1960 के दशक की शुरुआत में, फॉक्सवैगन बीटल अमेरिका में काफी लोकप्रिय हो गई। इसे अमेरिकी कस्टमर इकोनॉमिक और चलाने में आसान कार मानने लगे। जिससे कंपनी ने वहां एक मजबूत पकड़ बनाई। साल 1960 में, जर्मन सरकार ने फॉक्सवैगन को एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी बना दिया। इससे कंपनी को फंड जुटाने और विस्तार करने में मदद मिली।

युद्ध के बाद के सालों में फॉक्सवैगन बीटल कार दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कारों में से एक बन गई। 1972 में बीटल ने अमेरिका की कार Ford Model T को पीछे छोड़ दिया, जो पहले तक सबसे ज्यादा बिकने वाली कार थी।

फॉक्सवैगन ने 1950 से लेकर 2000 तक जबरदस्त ग्रोथ की। 30 जनवरी 1951 को 75 साल की उम्र में कंपनी के निर्माता फर्डिनेंड पोर्शे का पश्चिम जर्मनी के स्टटगार्ट में निधन हो गया।

फॉक्सवैगन अब तक इंडियन मार्केट में 10 से ज्यादा कैटेगरी की कारें लॉन्च कर चुकी है। अगले महीने 14 अप्रैल को Tiguan R-line SUV कार लॉन्च हो रही है।

फॉक्सवैगन अब तक इंडियन मार्केट में 10 से ज्यादा कैटेगरी की कारें लॉन्च कर चुकी है। अगले महीने 14 अप्रैल को Tiguan R-line SUV कार लॉन्च हो रही है।

साल 2001 में फॉक्सवैगन ने भारत में कदम रखा। हालांकि तब केवल कुछ प्रीमियम कारें CBU (Completely Built Units) के रूप में भारत में आयात की जाती थीं, यानी कार की मैन्युफैक्चरिंग विदेश में होती थी, और इसे इंडिया लाकर बेचा जाता था।

फिर 2007 में फॉक्सवैगन ने भारत में खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू की। महाराष्ट्र के पुणे में प्रोडक्शन प्लांट लगाया। दो साल बाद 2009 में पुणे प्लांट में कार का प्रोडक्शन शुरू हो गया। यह प्लांट भारत में कंपनी की इन्वेस्टमेंट का बड़ा हिस्सा माना गया। यहां से Polo, Vento जैसी कारें बननी शुरू हुई।

2016 और 2017 में, फॉक्सवैगन दुनिया की सबसे बड़ी कार बनाने वाली कंपनी बनी। इन सालों में इसकी सबसे ज्यादा गाड़ियां बिकी। 2019 में कंपनी ने 1.3% की बढ़ोतरी के साथ दुनिया भर में 1 करोड़ 9 लाख 74 हजार 600 गाड़ियां बेचीं।

20 साल में फॉक्सवैगन का टर्नओवर 4 गुना हुआ

  • 2000- 4.92 लाख करोड़ रुपए
  • 2005- 4.3 लाख करोड़ रुपए
  • 2010- 16.7 लाख करोड़ रुपए
  • 2015- 19.8 लाख करोड़ रुपए
  • 2020- 20.5 लाख करोड़ रुपए

फिलहाल, फॉक्सवैगन की कार दुनिया के 153 देशों में बिक रही है और 6 लाख 71 हजार कर्मचारी इस कंपनी में काम कर रहे हैं। लगभग 27 देशों में फॉक्सवैगन ग्रुप के 124 से ज्यादा प्रोडक्शन प्लांट्स हैं। ग्लोबल लेवल पर फॉक्सवैगन के 60 से ज्यादा अलग-अलग मॉडल्स हैं। अभी इस ग्रुप के सीईओ ओलिवर ब्लूम हैं।

आज यह कंपनी ऑडी, पोर्शे, लैम्बोर्गिनी, बेंटले, स्कोडा और बुगाटी, जैसी कंपनियों की पैरेंट कंपनी है। साल 2028 तक 70 से ज्यादा नई इलेक्ट्रिक कारें लॉन्च करने की तैयारी है। हर साल 10 लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें बेचने का टारगेट रखा है। इस टारगेट को पूरा करने के लिए कंपनी 3.12 लाख करोड़ का इन्वेस्ट कर रही है।

रिसर्च- रतन प्रिया

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