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मेगा एंपायर-2 विदेशी इंजीनियर्स ने शुरू किया L&T ग्रुप: अयोध्या में राम मंदिर बनाने वाली कंपनी, रेवेन्यू 2 लाख करोड़ से ज्यादा


‘आप रविवार को घर पर बैठकर क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं?’

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‘मुझे खेद है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं। अगर मैं ऐसा कर पाऊं, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं।’

ये कहना है लार्सन एंड टुब्रो यानी L&T के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन का। सुब्रह्मण्यन ने अपने एंप्लॉइज को मीटिंग के दौरान एक हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी।

कंपनी मीटिंग में कर्मचारी ने सुब्रह्मण्यन से पूछा कि शनिवार को काम करने की क्या जरूरत है? इस पर सुब्रह्मण्यन ने कहा मुझे खेद है कि मैं आपको रविवार को काम करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। अगर मैं आपको रविवार को काम करने के लिए बाध्य कर सक सकूं, तो मुझे अधिक खुशी होगी, क्योंकि मैं रविवार को काम करता हूं। इसके बाद से सुब्रह्मण्यन चर्चा में बने हुए हैं।

देश के इंफ्रा प्रोजेक्ट्स में अहम भूमिका निभाने वाली लार्सन एंड टुब्रो एक भारतीय मल्टीनेशनल कंपनी है। ये अपने बेहतरीन आर्किटेक्ट डिजाइन के लिए जानी जाती है। L&T दुनियाभर के 50 से ज्यादा देशों में काम करती है।

आज मेगा एंपायर में कहानी इसी L&T ग्रुप के बारे में…

एक कमरे से शुरू हुआ था L&T ग्रुप साल 1934 में डेनमार्क की कंपनी ने सिविल इंजीनियर सोरेन क्रिस्टियन टुब्रो और केमिकल इंजीनियर हेनिंग होल्क लार्सन को सीमेंट कंपनी के इंस्टॉलेशन और मर्जर के सिलसिले में भारत भेजा था। दरअसल, लार्सन एंड टुब्रो दोनों कॉलेज फ्रेंड्स थे।

हेनिंग होल्क लार्सन और सोरेन क्रिस्टियन टुब्रो ने शुरू किया था L&T ग्रुप।

जब 1939 में सेकेंड वर्ल्ड वॉर शुरू हुई तो डेनमार्क पर जर्मनी का कब्जा हो गया और ये दोनों दोस्त वापस नहीं लौट सके। भारत में ही रुक कर बिजनेस स्टार्ट करने का फैसला लिया। उनके पास ज्यादा पैसे नहीं बचे थे, इसलिए मुंबई में एक छोटे से कमरे से उन्होंने एक पार्टनरशिप फर्म के रूप में L&T की शुरुआत की।

इम्पोर्ट के बिजनेस से की शुरुआत भारत में उस समय अंग्रेजों का शासन था। लार्सन और टुब्रो ने भारत की जरूरतों को समझा, जिससे उन्हें बिजनेस कैसे करना है ये पता लगा। वे दूसरे देशों से भारत के लोगों की जरूरत के हिसाब से सामान इम्पोर्ट करने लगे। डेनमार्क से भी डेयरी से संबंधित उत्पाद मंगा कर भारत में सप्लाई करते थे। 1940 में जर्मनी ने डेनमार्क पर आक्रमण कर इम्पोर्ट पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे उनका व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ। इसके बाद दोनों ने अपनी एक छोटी सी वर्कशॉप शुरू करने का फैसला किया।

युद्ध के समय जहाजों की मरम्मत का काम किया सेकेंड वर्ल्ड वॉर के दौरान काफी सारे जहाज डैमेज हो रहे थे। इन्हें मरम्मत की जरूरत थी। लार्सन और टुब्रो को इसमें भी एक मौका दिखा। उन्होंने अपनी वर्कशॉप में जहाजों की मरम्मत करना शुरू कर दिया।

टाटा ग्रुप ने दिया था पहला बड़ा ऑर्डर बात 1940 की है। टाटा ने एक जर्मन कंपनी को सोडा ऐश यानी वॉशिंग सोडा प्लांट लगाने का ऑर्डर दिया था। वर्ल्ड वॉर के कारण जर्मन इंजीनियर्स ने इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया। इसके बाद टाटा ने ये काम L&T को सौंप दिया।

यह L&T के लिए एक बड़ा मौका था और उन्होंने इसका पूरा फायदा उठाया। क्वालिटी के साथ कंपनी ने प्रोजेक्ट को समय से पहले ही पूरा कर दिया।

पूरे देश में L&T की तारीफ होने लगी। उन्हें और भी प्रोजेक्ट मिलने लगे। 1946 में ये प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनी और 1950 में पब्लिक कंपनी बन गई।

हालांकि L&T ने सिविल कंस्ट्रक्शन को प्राथमिकता पर रखा। कंपनी ने इंजीनियरिंग, कंस्ट्रक्शन एंड कॉन्ट्रैक्ट यानी ECC के नाम से एक अलग सब्सिडियरी बना दी, जो आज भी L&T की मेन कंस्ट्रक्शन डिवीजन है।

पूरा पेमेंट न देने पर डायरेक्टर को दे दिया था कोर्ट का नोटिस

ECC के बनाए गए पहले पुल की कहानी बड़ी ही दिलचस्प है। दरअसल, 1957 में अमेरिकन प्रोड्यूसर सैम स्पीगल की फिल्म आई थी ‘The Bridge on the River Kwai’। उस फिल्म में दिखाए गए लकड़ी के पुल को बनाने का कॉन्ट्रैक्ट L&T को मिला था। जिसे बनाने में लगभग आठ महीने का समय लगा और इस पुल को डायरेक्टर डेविड लीन की टीम ने सिर्फ 30 सेकेंड में उड़ा दिया था।

शुरुआत में इस पुल को बनाने का बजट 8 लाख रुपए था, लेकिन इस पर 16 लाख रुपए खर्च हो गए। जब सैम स्पीगल ने एक्स्ट्रा पैसे का पेमेंट करने से मना कर दिया, तब टूब्रो ने उन्हें कहा कि बिना पेमेंट किए आप क्लाइमैक्स सीन के लिए पुल को उड़ा नहीं पाएंगे। कंपनी ने डायरेक्टर को कोर्ट का स्टे ऑर्डर पकड़ा दिया था।

फिल्म ‘The Bridge on the River Kwai’ के लिए L&T ने बनाया था लकड़ी का पुल।

फिल्म ‘The Bridge on the River Kwai’ के लिए L&T ने बनाया था लकड़ी का पुल।

कुछ दिन तक शूटिंग रुकी रही और अंत में हार मान कर सैम स्पीगल ने पूरा पेमेंट किया। इस फिल्म ने ऑस्कर अवॉर्ड भी जीता और यह 1957 की हाईएस्ट ग्रॉसिंग फिल्म भी बनी।

55 एकड़ जंगल खरीद बनाया इंडस्ट्रियल हब आजादी के बाद कंपनी ने अपना एक्सपेंशन करते हुए कोलकाता, चेन्नई और दिल्ली में भी अपना ऑफिस शुरू कर दिया।

1950 में मुंबई के पवई इलाके में सरकार ने IIT मुंबई शुरू करने का फैसला लिया तो L&T ने भी आसपास खाली पड़ा 55 एकड़ जंगल खरीद लिया। इसके चारों तरफ दलदल और कूड़े का अंबार था। L&T ने उस एरिया को डेवलप कर इंडस्ट्रियल हब बना दिया, जिससे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला।

1950 में ही L&T एक पब्लिक कंपनी बन गई और कुछ दिनों बाद मुंबई ऑफिस को बलार्ड एस्टेट के ICI हाउस में शिफ्ट कर दिया गया, जिसे बाद में L&T ने ही खरीद कर अपना हेडक्वार्टर L&T हाउस बना दिया।

न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने में की थी मदद 1965 में डॉ. होमी भाभा ने लार्सन और टुब्रो को न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने में मदद करने के लिए कहा। हालांकि उस दौर में न्यूक्लियर रिएक्टर बनाना घाटे का सौदा था, लेकिन देश की जरूरत को देखते हुए L&T ने न्यूक्लियर रिएक्टर बनाया।

70 के दशक में विक्रम साराभाई ने L&T को इसरो के साथ काम करने का मौका दिया। इस तरह L&T देश की न्यूक्लियर और स्पेस प्रोग्राम के साथ भी जुड़ गई और 1985 तक L&T, DRDO के साथ डिफेंस इक्विपमेंट के डिजाइन और डेवलपमेंट पर भी काम करने लगी।

आज वह देश के लिए कई तरह के डिफेंस वेपंस, मिसाइल सिस्टम, कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम, इंजीनियरिंग सिस्टम और सबमरीन बना रही है।

L&T के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन।

L&T के मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरमैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन।

धीरुभाई अंबानी चाहते थे कंपनी पर होल्ड 90 के दशक में L&T, रिलायंस के हाथों में जाते-जाते रह गई थी। कंपनी के उस दौर के सीईओ एएम नाइक के मुताबिक धीरूभाई अंबानी ने अपने दोनों बेटों मुकेश और अनिल अंबानी को बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में जगह भी दिला दी थी। धीरे-धीरे कंपनी में अंबानी की हिस्सेदारी बढ़कर लगभग 19% तक हो गई।

L&T की सबसे बड़ी शेयरहोल्डर एलआईसी और सरकार के इंटरफियर के बाद अंबानी को L&T से बाहर जाना पड़ा और धीरूभाई अंबानी के हाथ से यह मौका निकल गया।

बिड़ला ग्रुप ने भी किया था L&T पर टेकओवर का प्रयास रिलायंस ने जब अपनी हिस्सेदारी कम की तो आदित्य बिड़ला ग्रुप ने उस हिस्सेदारी को खरीद लिया। ऐसे में एएम नाइक ने अपने कर्मचारियों को समझाया कि यदि हम सब मिलकर कंपनी के शेयर खरीद लें तो कोई बाहरी कंपनी हमें खरीदने की कोशिश नहीं करेगी।

उनकी बात का असर हुआ और L&T एम्प्लॉइज ट्रस्ट ने बिड़ला की पूरी हिस्सेदारी खरीद ली। इसके बाद L&T एम्प्लॉइज ट्रस्ट और बिड़ला के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत L&T ने अपना सीमेंट बिजनेस यानी कि अल्ट्राटेक सीमेंट बिड़ला को सौंप दिया।

रिसर्च-श्रेयांश गौर

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