पिछले पांच सालों में ऐसे 12 हजार बच्चों की थेरेपी की जा चुकी है।
समाज के हर उम्र के लोग मोबाइल के कैद में हैं। लेकिन चिंता कि बात यह है कि मोबाइल और स्क्रीन का अत्यधिक उपयोग बच्चों में अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) के मामलों को तेजी से बढ़ा रहा है। जिससे बच्चों का बर्ताव भी सामान्य नहीं रह गया है।
.
डॉक्टरों ने बताया कि पिछले पांच सालों में ऐसे 12 हजार बच्चों की थेरेपी की जा चुकी है। आलम यह है कि अब हर दिन 5 से 10 नए मामले सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में इसकी संख्या सैकड़ों में हो सकती है। इस डिसऑर्डर के लक्षणों में ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अत्यधिक चंचलता, चिड़चिड़ापन, असामान्य व्यवहार, और मोबाइल की जिद करना है। बच्चों में यह समस्या लगातार स्क्रीन देखने, गेम खेलने, कार्टून देखने और वीडियो देखने की लत के कारण बढ़ रही है।
एक जगह पर नहीं बैठ पा रहे बच्चे इसके चलते बच्चे एक जगह पर नहीं बैठ पा रहे हैं, बात नहीं सुन रहे, और गुस्से में आकर मोबाइल की मांग कर रहे हैं। जिसमें बच्चों को ध्यान केंद्रित करने, एक जगह पर बैठने, और सामान्य व्यवहार बनाए रखने में कठिनाई होती है। यह समस्या स्क्रीन टाइम की अधिकता से बच्चों में बढ़ती जा रही है। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिशियन की मानें तो 100 बच्चों में से 1 से 10 प्रतिशत बच्चे माइल्ड ADHD के शिकार हो सकते हैं। जबकि 1 प्रतिशत बच्चे गंभीर ADHD से प्रभावित हो सकते हैं।
रेटीना पर ब्लू लाइट का गंभीर असर मोबाइल, टैबलेट, और कंप्यूटर जैसे डिजिटल उपकरणों का अत्यधिक उपयोग बच्चों की आंखों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। इन उपकरणों से निकलने वाली ब्लू लाइट सीधे रेटिना पर प्रभाव डालती है, जिससे बच्चों में मायोपिया (नजदीक की चीजें स्पष्ट और दूर की धुंधली दिखना) और ड्राई आई (आंखों में नमी की कमी) जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, छोटे बच्चों की आंखें विकसित होती रहती हैं, इसलिए उन पर ब्लू लाइट का प्रभाव और भी अधिक हानिकारक होता है। इससे बचाव जरूरी है।

गाइडलाइन के तहत होती है काउंसलिंग डॉक्टर का कहना है कि इन बच्चों का इलाज 18 स्कोर आइटम गाइडलाइन के तहत किया जाता है। अगर बच्चा एक ही तरह का छ नकारात्मक उत्तर देता है, तो उसे हाइपरएक्टिविटी का मरीज मान लिया जाता है। इसके लिए तीन से छह माह तक काउंसलिंग की जाती है। माइल्ड मरीज को एक्टिविटी थेरेपी दी जाती है जबकि सीवियर मरीज की दवाई शुरू करनी पड़ती है।
इस समय कई माता-पिता बच्चों में सामान्य व्यवहार में कमी की शिकायत लेकर आ रहे हैं। वे बताते हैं कि बच्चे मोबाइल की जिद करते हैं, बात नहीं सुनते, और एक जगह पर बैठ नहीं पाते। इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिशियन की गाइडलाइन के अनुसार 0 से 2 साल के बच्चे को 0 स्क्रीन। 2 से 6 साल के बच्चे को अधिकतम 1 घंटा स्क्रीन दिखाया जा सकता है वह भी पेरेंट्स के साथ में। ताकि उन्हें गाइड किया जाता रहे। अगर गंभीर स्थिति है तो ऐसे मरीज को डेवलपमेंटल पीडियाट्रिशियन को रेफर कर दिया जाता है। – डॉ. प्रशांत कारिया, पीडियाट्रिशियन

क्या कहती है गाइड लाइन
- 0-2 साल के बच्चे को किसी भी तरह की स्क्रीन का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। जरूरी कंडीशन में माता पिता से वीडियो काल पर दिखाया जा सकता है।
- 2-6 साल के बच्चे को अधिकतम 1 घंटे का स्क्रीन टाइम, वह भी माता-पिता की निगरानी में।
- हर हाल में बच्चो को कम से कम दो घंटे की फिजिकल एक्टिविटी कराई जाए।
डॉक्टरों की माता पिता को सलाह
- स्क्रीन टाइम कम करें: बच्चों को मोबाइल, टीवी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस से दूर रखें।
- क्रिएटिव और शारीरिक गतिविधियां बढ़ाएं: बच्चों को खेल, संगीत, पेंटिंग जैसी रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त करें।
- परिवार के साथ समय बिताएं: बच्चों के साथ समय बिताकर उन्हें मोबाइल से दूर रखें और उनके मानसिक विकास में मदद करें।
- समय पर इलाज: अगर बच्चे में ADHD के लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।