तेलंगाना के नागरकुर्नूल में निर्माणाधीन श्रीशैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (SLBC) टनल में 8 जिंदगियां फंसी हैं। उसमें से 4 लोग झारखंड के गुमला के रहने वाले हैं।
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हादसे के 8 दिन बाद भी इनका कुछ पता नहीं चल सका है। अभी भी तलाश जारी है। परिजन टनल के बाहर बेबस और लाचर है। प्रशासन भी वहीं है, लेकिन कुछ बताने को तैयार नहीं है। परिवार वालों को यह पता नहीं है कि अंदर वो जिंदा भी हैं या नहीं।
भास्कर झारखंड के टनल में फंसे 4 मजदूरों में से 3 के घर पहुंचा। उनके परिजनों से बात की और हाल जाना। ग्राउंड रिपोर्ट में आगे की कहानी उनकी जुबानी पढ़िए और देखिए…
कहानी-1ः उम्मीद कम है कि अनुज जिंदा लौटेगा
टनल के भीतर गुमला के रहने वाले 25 साल के अनुज साहू फंसे हैं। रांची से गुमला के रास्ते में नागफनी नदी है। हाइवे से मुर्ग के रास्ते बढ़ने के बाद सड़क खत्म हो जाती है। गाड़ियों के लीक के सहारे कुम्बाटोली का रास्ता उभरता है। प्राइमरी स्कूल के ठीक बगल में मिडिल स्कूल बंद पड़ा है। उसी परिसर में आधे बने मकान में अनुज के दादा जी चमार साहू (65) मिले।
चमार साहू राज मिस्री हैं और रांची में रहकर काम करते हैं। घर के सबसे बड़े नाती के टनल में फंसने की खबर के बाद घर लौट आए हैं।
बताते हैं कि घर के सभी लोग कुंभ गए थे, लौटकर ज्यों ही घर आए, पता चला कि ये हादसा हो गया है।
अनुज की मां कुंभ गई थी। लौटकर आने पर पता चला कि ये हादसा हो गया है। दो दिन बाद बड़े बेटे को श्रम विभाग के एक अधिकारी का फोन आया था। उन्होंने कहा कि हादसे वाली जगह जाना होगा।
पिता के वहां जाने के बाद घर में सिर्फ अनुज के दादा और मां हैं। पिता ने अनुज की बुआओं को भी घर बुला लिया है।
उन्होंने बताया, ‘उसकी मां खाना-पीना छोड़ चुकी है। गुमशुम रह रही है। बड़ा बेटा है, चिंता होती होगी। घर में अकेले थे तो बेटी को बुला लिए ताकि कम से कम मन लगे।’
ट्रोली के जरिए टनल में जाते अधिकारी और कर्मचारी।
‘तेलंगाना गए बेटे से बात तो हुई है, लेकिन उसे भी कुछ पता नहीं है। उसे वहां अंदर जाने नहीं दे रहे हैं। कहते हैं- शाम को बताया जाएगा। शाम को कहते हैं कि काम चालू है- सुबह बताया जाएगा। आज 8 दिन हो गया।’
आगे कहते हैं,

हमको तो अब लाश की भी उम्मीद नहीं है। 8 दिन हो गया, कुछ बातचीत भीतर से नहीं हो पा रही है, ना ही इस बात की कहीं चर्चा हो रही है। उम्मीद कम है। लेकिन उसकी मां को ठीक रखने के लिए मजबूत बने रहना पड़ता है।
8 दिन से बात नहीं हुई
जब हम अनुज के घर पहुंचे, उनकी मां गायत्री देवी कुंए पर पानी लाने गई थीं। चल सकने में लगभग असमर्थ गायत्री देवी का चेहरा मुरझाया हुआ है।
वह कहती हैं,
‘हमको कुछ नहीं चाहिए, हमारा बेटा चाहिए। दो बार वहां जा चुका है। गांव वालों के साथ सितंबर में गया था। अब तो सब लोग वहां से भाग कर आ रहे हैं, मेरा बेटा अंदर फंसा है। 8 दिन से बात नहीं हुई है, हमको रोज सुबह फोन करता था। उस दिन भी फोन किया था, हम कुंभ से लौट रहे थे तो बात अच्छे से नहीं हो पाई।’
कहानी-2ः घर में अकेले कमाने वाले वही हैं, उन्हें कुछ हुआ तो कैसे रहूंगी
गुमला जिला मुख्यालय से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर तिर्रा गांव के संतोष साहू (30) भी टनल में फंसे हैं। पति-पत्नी और 12 साल से कम उम्र के तीन बच्चों के साथ उनकी पत्नी संतोषी देवी (27) घर में अकेले हैं।
वह कहती हैं,

हमारे घर में उसी दिन से झाड़ू नहीं लगा है। हमारा मन टूट गया है। किसके भरोसे रहें? मेरा भाई वहां गया है, लेकिन वो भी कुछ नहीं बताता है। कहता है- निकल जाएंगे। कम से कम एक बार आवाज तो सुन लेते। हमारा कोई नहीं है। खुद ही कमाना है- खाना है। उनको कुछ हो जाएगा तो कंधा देने वाला भी नहीं है।
संतोषी देवी हमसे कहते हुए रो पड़ती हैं। कहती हैं, ‘बच्चों के सामने मजबूत बने रहना पड़ता है।’ बगल में 12 साल की बड़ी बेटी उन्हें ढांढस बंधाती है।
संतोषी आगे कहती हैं, ‘बच्चे पूछ रहे हैं कि पापा कब आएंगे। फोन से बात करा दो, वीडियो कॉल करा दो। हम किसको कहें। किससे पूछे।’
शनिवार को (22 फरवरी) सुबह आखिरी बार बात हुई थी। रात में उन्होंने कहा था कि सुबह 5 बजे से जाना है, जगा देना। हमने पांच बजे जगा दिया। उधर वो ड्यूटी के लिए निकले होंगे, हम बाल-बच्चा में लग गए। फिर हमको शाम को मेरे जेठ (संतोष के बड़े भाई ) का फोन आया कि तुमको कुछ पता चला? जेठ ही बताए कि ऐसा-ऐसा हो गया है।’

संतोष के बड़े भाई अशोक साहू की अपने भाई से आखिरी बातचीत एक जनवरी को हुई थी। उसके बाद सीधे टनल में फंस जाने की सूचना आई। वो कहते हैं,
‘गांव के बहुत सारे लोग वहां काम कर रहे हैं। मुझे वहीं का एक लड़का बताया कि ये घटना हुई है। मैंने इसको (संतोष की पत्नी को ) बताया और फिर हम लोग इंतजार करने लगे। अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं।’
आप लोगों को प्रशासन की तरफ से क्या अपडेट मिली है?

अभी तक कोई अपडेट नहीं है। एक-एक लोग ले गए हैं, इसका साला गया है। उसको भी कुछ खास पता नहीं है।
कहानी-3ः अंदर बचने की उम्मीद कम, कंपनी तो अब पैसा भी नहीं दे रही
इसके बाद हम (भास्कर रिपोर्टर) तीसरे परिवार से मिलने गुमला के पालकोट थाना क्षेत्र पहुंचे। यहां के नत्थी टोला के संदीप (30) अपने मामा के कहने पर तेलंगाना गए थे। यहां भी घर के बाहर भारी माहौल था। किसी अनहोनी से भरी खबर के इंतजार में सबकी आंखें हमारी तरफ थी।
यहां बीते 8 दिन में सिर्फ श्रम विभाग के अधिकारी ही आए हैं। हमने संदीप की मां से बात करने की कोशिश की, मगर वो चुप ही रहीं। भगवान का भरोसा लेकर वो सिर्फ रोती जा रही थीं। हमने संदीप की बहन पूर्णिमा से बात की। पूर्णिमा ने कहा,

घर में सबका बुरा हाल है। भइया ही कमाने वाला था। तीन महीने से सैलरी नहीं मिली थी। कंपनी वाले कहते थे कि आज मिलेगी-कल मिलेगी। इसी उम्मीद में लगे थे कि एक साथ कुछ पैसा आ जाएगा। खर्चा तो चल ही रहा है। भइया रोज सुबह-शाम फोन करते थे। आज आठ दिन हो गया, एक बार भी बात नहीं हुई है। मामा भी लौट कर आ रहे हैं।
संदीप के मामा राजू साहू भी उसी जगह काम कर रहे थे। बल्कि उन्होंने ही संदीप की वहां नौकरी लगाई थी। हमने उनसे भी बात की। वो हादसे के वक्त टनल के भीतर ही थे।

टनल के अंदर की तस्वीर। जब मजदूर काम पर जाते थे।
हमसे बातचीत में उन्होंने कहा, ‘उस दिन हमलोगों की आठ बजे से शिफ्ट थी। इसमें से 15-20 लोग आगे थे, हमलोग पीछे थे। देखे कि अचानक ऊपर से पानी गिरने लगा। नदी जैसी आवाज आने लगी तो हम लोग उल्टे पांव भागने लगे। इसी में दो चार लोगों को खींच कर भी निकाला गया। सात-आठ लोग आगे-आगे चल रहे थे तो उन्हें खींच नहीं पाए।’
आपको क्या उम्मीद है?

जो मैं देखा हूं, उस हिसाब से तो उम्मीद कम है। न मलबा बाहर निकल रहा है और ना ही उन लोगों से बात ही हुई है। भीतर पानी भर गया है। कुछ उम्मीद होगी भी तो एक-दो लोग ही बचे होंगे।
आप लोग लौट के क्यों आ रहे हैं?

रह के क्या करें? सैलरी भी नहीं मिली है। 15 हजार रुपए के लिए जान जोखिम में डाल ही चुके हैं। पैसा मांगने पर कंपनी अब कह रही है कि एक दो दिन में दे देते, लेकिन अभी हादसा हो गया है तो कुछ दिन और रुको। अब काम होगा नहीं तो पैसा भी नहीं मिलेगा। रूम भाड़ा से लेकर खाने-पीने तक सब खरीद कर ही काम चलाना है तो घर ही लौट आते हैं।

सुरंग से बाहर निकलते बचावकर्मी। सभी 24 घंटे से अंदर ही थे।
जिला प्रशासन परिजनों को लेकर गया तेलंगाना
गुमला DC कर्ण सत्यार्थी ने बताया, ‘गुमला जिला प्रशासन के नेतृत्व में चारों परिवारों के एक-एक सदस्य, पुलिस अधिकारी और इएमएफटी का एक सदस्य फ्लाइट से तेलंगाना गए हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश पर श्रम विभाग के अधिकारी स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं।’
परिजनों को साथ लेकर गए डीएमएफआरटी फेलो अविनाश पाठक ने बताया, ‘बीती रात तीन बजे तक कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला है। रेस्क्यू जारी है। हमारा ऑफिस टनल वाले इलाके से पांच किलोमीटर ऊपर है। फैमिली मेंबर्स को हम टनल के गेट तक दो-तीन बार ले जा चुके हैं। घटना टनल के 13 कीलोमीटर अंदर हुई है। वहां रेस्क्यू टीम के अलावा किसी के जाने की अनुमति नहीं है।’
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