राजस्थान के बड़े शहरों में तांबे-पीतल की ज्वेलरी को फर्जी हॉलमार्क लगाकर 22 कैरेट शुद्ध सोने का बताया जा रहा है। ये काम फर्जी हॉलमार्क लगाने वाले कई सेंटर कर रहे हैं। दैनिक भास्कर टीम ने करीब 2 महीने की पड़ताल कर पूरे मामले का खुलासा किया।
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भास्कर रिपोर्टर ज्वेलरी शोरूम का मालिक बनकर जोधपुर-जयपुर के दो हॉलमार्क सेंटर पर नकली ज्वेलरी लेकर पहुंचा। ये नकली गहने 37 हजार रुपए में खरीदे थे। पहले दोनों सेंटर पर जान-पहचान नहीं होने से संचालकों ने फर्जी हॉल मार्क लगाने से इनकार कर दिया। रिपोर्टर ने बाद में ज्वेलर की मदद ली तो दोनों ही सेंटर फर्जीवाड़ा करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद में नकली ज्वेलरी पर 22 कैरेट शुद्धता का हॉल मार्क भी लगा दिया। जोधपुर में तो गारंटी के तौर पर सर्टिफिकेट भी दिया। नकली गहनों पर हॉलमार्क लगते ही 37 हजार के ये गहने 1.53 लाख के हो गए।
भास्कर की Exclusive रिपोर्ट में पढ़िए- कैसे हो रहा फर्जी हॉलमार्किंग का पूरा खेल…
फर्जी हॉलमार्क सेंटर का खुलासा करने के लिए नकली ज्वेलरी खरीदी। इसमें सोने की परत होती है। स्थानीय भाषा में इसे बंधेल ज्वेलरी कहा जाता है। आमतौर पर लोग गिफ्ट देने में ये इस्तेमाल करते हैं। तीनों आइटम लेकर जोधपुर और जयपुर में कई ज्वेलरी शोरूम में गए। वहां बातचीत कर फर्जी हॉलमार्क लगाने वाले सेंटर का पता लगाया।
जोधपुर : हॉलमार्क सेंटर पर आम व्यक्ति से डील नहीं करते
सबसे पहले टीम जोधपुर शहर के घोड़ों के चौक ज्वेलर्स मार्केट पहुंची। नकली ज्वेलरी का पेंडल (18 कैरेट परत चढ़ा) लेकर हम सालासर बालाजी हॉलमार्क सेंटर पहुंचे। पूरे घटनाक्रम को हिडन कैमरे से रिकॉर्ड किया। बातचीत के कुछ अंश…

जोधपुर शहर के घोड़ों के चौक स्थित सालासर बालाजी हॉलमार्क सेंटर में बैठा कर्मचारी।
रिपोर्टर : ज्वेलरी की टेस्टिंग और हॉलमार्क करवाना है। सेंटर संचालक : हो जाएगा, ज्वेलरी दिखाओ….आपकी शॉप का नाम क्या है?
रिपोर्टर ने ज्वेलरी देकर एक डमी नाम ‘जगदंबा ज्वेलर्स’ बताया। हॉलमार्क सेंटर संचालक ने ज्वेलरी देखकर कहा नकली है, हॉलमार्क नहीं बनेगा।
कुछ लोगों से बातचीत की तो सामने आया कि नकली हॉलमार्क का खेल बहुत ही गुपचुप तरीके से होता है। पकड़े जाने के डर से हॉलमार्क सेंटर भरोसेमंद ज्वेलर्स के साथ ही यह डील करते हैं।
ऐसे में पहचान छुपाने का आश्वासन देकर एक ज्वेलर्स की मदद ली। कुछ दिन बाद उसी ज्वेलर्स को साथ लेकर सालासर बालाजी हॉलमार्क सेंटर पर दोबारा पहुंचे। संचालक 800 रुपए में फर्जी हॉलमार्क लगाने और कार्ड देने को तैयार हो गया।

जोधपुर के सालासर हॉल मार्किंग सेंटर पर ज्वेलरी हॉलमार्क के बाद रिटर्न देता कर्मचारी।
रिपोर्टर ने कहा- आइटम (पेंडल) की टेस्टिंग करानी है और हॉलमार्क सर्टिफिकेट बनवाना है। संचालक ने 800 रुपए की पर्ची काटकर पेंडल हॉलमार्क लगाने के लिए भिजवा दिया। एक घंटे बाद स्टाफ ज्वेलरी लेकर आया।
हॉलमार्क सेंटर संचालक ने पहले जो पर्ची दी थी वो मांगी। पर्ची देने पर उसने ज्वेलरी और फर्जी हॉलमार्क कार्ड दे दिया। इसके बाद संचालक ने वो पर्ची फाड़ दी।


यहां ज्वेलर की पहचान गुप्त रखी गई है।
जयपुर : ज्वेलर ने फोन किया, 150 रुपए में लगवाया 22 कैरेट का हॉलमार्क जोधपुर में पड़ताल के बाद जयपुर के जौहरी बाजार पहुंचे। यहां आरआर हॉलमार्क सेंटर पर नकली हॉलमार्किंग का पता चला। रिपोर्टर ने खुद को जगदम्बा ज्वेलर्स (डमी नाम) का संचालक बताते हुए 5 कैरेट गोल्ड की परत चढ़ी बंधेल ज्वेलरी पर 22 कैरेट गोल्ड की हॉलमार्किंग करने को कहा।
रिपोर्टर : ज्वेलरी पर हॉलमार्क लगाना है। सेंटर संचालक : कौन से ज्वेलर्स शॉप से हो?
रिपोर्टर : जगदम्बा ज्वेलर्स से। दो ईयररिंग पर हॉलमार्क लगाना है। कार्ड भी बनवाना है। (सेंटर संचालक ईयररिंग पर गोल्ड की जांच करने के लिए लैब में ले गया।)

जयपुर के आरआर हॉलमार्क सेंटर पर 150 रुपए देकर हॉलमार्क लगी नकली ज्वेलरी रिपोर्टर ने ले लिया।
(करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद)
सेंटर संचालक : यह ईयररिंग नकली हैं। गोल्ड है ही नहीं। हॉलमार्क नहीं लगेगा। रिपोर्टर : भाई साहब…लो रेफरेंस से बात करो।
(हमने रेफरेंस के तौर पर एक ज्वेलर से पहले ही बात कर ली थी। संचालक से उस ज्वेलर्स की फोन पर बात करवाई।)
सेंटर संचालक : आपका काम हो जाएगा, लेकिन इस आइटम में गोल्ड नहीं है। लेजर से हॉलमार्क लगा दूंगा। सर्टिफिकेट नहीं बना पाऊंगा। रिपोर्टर : ठीक है।
करीब आधा घंटा इंतजार करने के बाद स्टाफ ज्वेलरी लेकर आया।
रिपोर्टर: कितने पैसे हुए? हॉलमार्क सेंटर संचालक : 150 रुपए।

हॉलमार्क लगाते ही कीमत हुई चार गुना नकली सोने पर हॉलमार्क लगते ही उसकी कीमत कई गुना बढ़ जाती है। हॉलमार्क इस बात का पक्का सबूत माना जाता है कि 22 कैरेट असली सोना आइटम में लगा है। लेकिन जयपुर-जोधपुर के जिन दो सेंटर पर नकली ज्वेलरी पर हॉलमार्क लगाया, उसकी असली कीमत 4 गुना तक बढ़ गई थी।

दोनों ही सेंटर ने नहीं दिया HUID नंबर, हॉलमार्क कार्ड भी फर्जी निकला
जोधपुर में सालासर बालाजी हॉलमार्किंग सेंटर ने पेंडल पर हॉलमार्किंग कर सर्टिफिकेट दिया था। पड़ताल में फर्जी निकला। जयपुर में आरआर हॉलमार्क सेंटर ने ज्वेलरी पर जो हॉलमार्क लगाकर दिया वो भी फर्जी था।
- असली हॉलमार्क में भारतीय मानक ब्यूरो का सिंबल और 6 अंकों का HUID नंबर होता है। सेंटर ने जो हॉलमार्क लगाए वो बैन है।
- सेंटर संचालक को असली कार्ड की एंट्री भारतीय मानक ब्यूरो की वेबसाइट पर ऑनलाइन अपलोड करनी होती है। जिसे ग्राहक चेक कर सकता है।
असली सोने की पहचान का सही तरीका क्या है? ज्वेलरी आइटम पर 6 अंकों का हॉलमार्क कोड लेजर से लगाया जाता है। सबसे पहले बीआईएस का लोगो होता है। उसके बाद कितने कैरेट गोल्ड है, वह अंकित होता है। उसके बाद हॉलमार्क सेंटर का कोड। सबसे आखिरी में ज्वेलरी का आइडेंटी नंबर।


HUID नंबर की जांच करने का तरीका : एचयूआईडी हॉलमार्क लगी ज्वेलरी की जांच बीआईएस की ऐप ‘बीआईएस केयर’ पर भी कर सकते हैं। इस ऐप के जरिए एचयूआईडी के 6 अंकों की संख्या दर्ज करने पर हॉलमार्क की सारी जानकारी सामने आ जाती है।

आखिर क्यों चल रहा फर्जी हॉलमार्क का धंधा?
1. लाइसेंस वाले ज्वेलर्स ही लगवा सकते हैं HUID हॉलमार्क केवल जीएसटी रजिस्टर्ड ज्वेलरी फर्म ही हॉलमार्क सेंटर से हॉलमार्क लगवा सकते हैं। क्योंकि हॉलमार्क सेंटर पर फर्म को अपना रजिस्ट्रेशन नंबर बताना पड़ता है, उसी के नाम से बिल जारी होता है। छोटे कस्बों में अधिकांश ज्वेलर्स जीएसटी बचाने के लिए रजिस्ट्रेशन नहीं करवाते। ग्राहकों की डिमांड पर फर्जी हॉलमार्क लगाने का रास्ता चुनते हैं।
2. मिलावट का खुलासा नहीं हो, इसलिए असली HUID हॉलमार्क लगवाने के लिए ज्वेलर को बिल कटवाना पड़ता है। HUID कार्ड पर भी उसकी डिटेल लिखी जाती है। ज्वेलरी में मिलावट होने पर ग्राहक केस कर सकता है। शिकायत सही पाए जाने पर उसे ग्राहक को दोगुनी कीमत देनी पड़ती है। ऐसे में ज्वेलर्स ग्राहकों को फर्जी हॉलमार्क कार्ड बनवाकर देते हैं। क्योंकि कार्रवाई तभी संभव है जब असली कार्ड हो और ज्वेलरी नकली निकले।
3. टैक्स बचाने के लिए कई ज्वेलर्स टैक्स बचाने के लिए ग्राहकों को कच्चा बिल देते हैं। HUID हॉलमार्क लगाने पर ज्वेलरी का जीएसटी बिल बनाकर देना पड़ता है।

दो तरह के फर्जी हॉलमार्क कार्ड
1. ज्वेलरी असली लेकिन हॉलमार्क कार्ड नकली : ज्वेलरी तो शुद्ध 22 कैरेट गोल्ड है लेकिन ज्वेलर टैक्स बचाने के लिए फर्जी हॉलमार्क कार्ड बनवाते हैं। सर्टिफिकेट पर असली की तरह हॉलमार्क सेंटर का नाम लिखा होता है। सर्टिफिकेशन नंबर, कस्टमर या ज्वेलर्स का नाम, ज्वेलरी की डिटेल, गोल्ड की प्योरिटी, ज्वेलरी की फोटो लगी होती है। HUID नंबर नहीं होता है। ऐसे हॉलमार्क कार्ड बैन हैं।
2. ज्वेलरी भी मिलावट और हॉलमार्क कार्ड भी फर्जी : ऐसी ज्वेलरी जिस पर सिर्फ गोल्ड की हल्की परत होती है। पहले ज्वेलरी पर लेजर मशीन से वो हॉलमार्क लगाया जाता है, जिसे भारतीय मानक ब्यूरो ने बैन कर रखा है। फिर उसका फर्जी हॉलमार्क कार्ड बनाकर देते हैं। इस कार्ड पर हॉलमार्क सेंटर अपना नाम प्रिंट नहीं करते हैं। ऊपर XRF GOLD TESTING CERTIFICATE लिखा होता है।

फर्जी हॉलमार्क और कार्ड से करोड़ों की कमाई का खेल फर्जी हॉलमार्क से ज्वेलर ही नहीं सेंटर संचालक भी कमाई करते हैं। असली हॉलमार्क में ज्वेलर के नाम पर बिल काटकर रसीद देनी होती है। पूरा रिकॉर्ड मेंटेन रखना पड़ता है। असली HUID कार्ड की डिटेल भारतीय मानक ब्यूरो पर अपलोड करनी पड़ती है। फर्जी हॉलमार्क और कार्ड बनाने पर न बिल देना पड़ता है, न रसीद। ज्वेलर फर्जी हॉलमार्क बनवाकर असली सोने के दाम में बेच देते हैं।

सेंटर संचालक असली 22 कैरेट की ज्वेलरी पर हॉलमार्क के 45 से 60 रुपए लेते हैं। वहीं मिलावटी ज्वेलरी पर 22 कैरेट के हॉलमार्क के 500 से 800 रुपए प्रति आइटम वसूलते हैं। सेंटर वाले हर दिन 22 कैरेट ज्वेलरी के महज 300 आइटम का भी हॉलमार्क लगाए तो महीने के साढ़े 5 लाख रुपए कमा लेते हैं। बीते साल एक जयपुर में एक ज्वेलर पकड़ा गया था, जिसने 20 करोड़ की ठगी को इसी तरह से अंजाम दिया था।
डायमंड और गोल्ड ज्वेलरी पर फर्जी हॉलमार्क लगाकर 8 अमेरिकन से 20 करोड़ रुपए ठगे थे पिछले साल जयपुर के गोपालजी का रास्ते में रामा एक्सपोट्र्स और रामा एंड संस ज्वेलरी फर्म ने इसी तरह से 8 विदेशियों को ठगा था। राजेंद्र सोनी और उसके बेटे गौरव ने दो फर्म बनाकर नकली ज्वेलरी पर फर्जी हॉलमार्क लगाकर विदेशी क्लाइंट को बेच दी थी।
गौरव 9 कैरेट ज्वेलरी में 14 कैरेट का फर्जी हॉलमार्क लगाकर विदेशियों को बेच देता था। क्योंकि जिस तरह भारत में लोग 22 कैरेट गोल्ड की ज्वेलरी ज्यादा पसंद करते हैं, वैसे ही अमेरिका में 14 कैरेट की ज्यादा डिमांड है। एक अमेरिकन क्लाइंट चेरिश ने गौरव से करीब 6 करोड़ की ज्वेलरी खरीदी थी। यूएसए में ज्वेलरी एग्जीबिशन में जांच करवाई तो फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ था।

फर्जी हॉलमार्क से मुनाफा कमाने वालों की चेन
कौन बनाते हैं फर्जी हॉलमार्क? इसके 3 चैनल हैं
1. ज्वेलर्स : बड़े ज्वेलर्स अपनी ज्वेलरी खुद बनाते हैं। कुछ ज्वेलर सैंपल दिखाकर ग्राहकों से ऑर्डर लेते हैं। ज्वेलरी कहीं और से बनवाते हैं, जिसमें मिलावट की आशंका रहती है। ऐसे ज्वेलर सोने की परत चढ़ी ज्वेलरी पर 22 कैरेट गोल्ड का फर्जी हॉलमार्क लगवा देते हैं।
2. ठग : छोटे-छोटे गांवों में ज्वेलर्स शॉप खोलते हैं। असली काम नकली ज्वेलरी से ठगी का होता है। ये बंधेल गोल्ड ज्वेलरी पर फर्जी हॉलमार्क लगाकर ग्राहकों से लाखों रुपए ठग लेते हैं। समय गुजरने के बाद जब गोल्ड की चमक हटती है तब ग्राहक को ठगी का पता चलता है।
3. हॉलमार्क सेंटर : हॉलमार्क सेंटर ज्वेलरी की जांच कर लेजर से हॉलमार्क प्रिंट कर एक एचयूआईडी कार्ड जारी करते हैं। यह गोल्ड में बताई गई शुद्धता का प्रमाण पत्र माना जाता है। कुछ हॉलमार्क सेंटर संचालक ज्वेलर्स से मिलीभगत कर लेजर से हॉलमार्क लगाकर फर्जी हॉलमार्क कार्ड भी जारी कर देते हैं।

डिस्क्लेमर : इस खबर का उद्देश्य सभी ज्वेलर्स और हॉलमार्क सेंटर की प्रतिष्ठा पर सवाल उठाना नहीं है, बल्कि पड़ताल के जरिए उन चंद लोगों को सामने लाना है जो फर्जीवाड़ा कर बाजार की साख को धूमिल कर रहे हैं। साथ ही हॉल मार्किंग के नाम पर ग्राहकों को ठगने वालों को एक्सपोज करना ताकि खरीदारी के वक्त लोग सावधानी रखें। ज्वेलर को चाहिए कि वो आगे आकर HUID हॉलमार्क वाले गहने उपलब्ध करवाएं।