क्रिकेट का मैदान हो या राजनीति की बिसात। इसमें टाइमिंग बड़ी अहम होती है। क्रिकेट में इसी टाइमिंग से चौके-छक्के लग जाते हैं तो राजनीति में नेताओं के दिन फिर जाते हैं। टाइमिंग का ये खेल बुंदेलखंड के एक बड़े जिले में देखने को मिला है।
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हुआ यूं कि जिला अध्यक्ष के लिए रायशुमारी चल रही थी। लोकल लीडर्स को तीन नामों का पैनल देना था। इसी बीच रायशुमारी करने आए बड़े लीडर ने कहा कि नियम के अनुसार एक महिला का नाम भी चाहिए। ये बात किसी को पता नहीं थी। किसी ने महिला का नाम भी सोचा नहीं था।
उस समय सभी को रायशुमारी की मीटिंग में मौजूद पूर्व महिला विधायक नजर आईं। सभी ने उन्हीं का नाम सुझा दिया। मैडम ने भी लगे हाथ राय देने वालों से कहा मेरा नाम पैनल में शामिल कर लिया जाए। अब सुनने में आ रहा है कि महिला दावेदारों में मैडम सबसे आगे दौड़ रही हैं। है न टाइमिंग का खेल
रेप के आरोपी की प्रेसिडेंट के साथ फोटो पर बवाल पार्टी विद डिफरेंस का स्लोगन देने वाली पार्टी की यूथ विंग के एक जिला अध्यक्ष पर रेप की एफआईआर दर्ज हुई। जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी के लिए विरोधी पार्टियों ने आंदोलन, प्रदर्शन तक किए। दलित वर्ग की टीचर से रेप के मामले के आरोपी को पार्टी ने पद से हटा दिया।
अब यूथ विंग के अध्यक्ष ने एक यात्रा की शुरुआत की। उस यात्रा में रेप के आरोप में घिरे पूर्व जिलाध्यक्ष भी नजर आए हैं। तस्वीरें सामने आने के बाद विरोधी फिर हमलावर हैं कि रेप के आरोपी को पार्टी की यूथ विंग के चीफ का फुल सपोर्ट है।
कांग्रेसी कर रहे ‘सरकार’ के दफ्तर की परिक्रमा विरोधी दल के एक नेता आजकल मंत्रालय की पांचवीं मंजिल पर अक्सर देखे जाते हैं। ये वो ही नेता है जो पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में राजधानी से सटे एक जिले की एक विधानसभा सीट से कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे।
इन्हें टिकट तो नहीं मिला। इधर सूबे में बीजेपी की सरकार रिपीट हो गई। सूबे के मुखिया भी इन्हीं की बिरादरी के बन गए। ऐसे में ये भले ही विपक्ष के हो, लेकिन इनके लिए लॉटरी लगने जैसी स्थिति बन गई है।
इन्होंने न तो अपनी पार्टी छोड़ी और न ही सत्ताधारी दल जॉइन किया। नेताजी ‘सरकार’ से रिश्तेदारी और उनके आसपास के अफसरों से कॉन्टेक्ट निकालकर ‘काम’ निकालते हुए देखे जा रहे हैं।

कचरा हटवाकर साहब ने बढ़वाए अपने नंबर भोपाल में 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का जहरीला कचरा उठा। यहां से करीब 337 मीट्रिक टन कचरा नष्ट करने के लिए पीथमपुर भेजा गया। इस काम में काफी समय से लूप लाइन में चल रहे एक आईएएस अधिकारी ने बढ़कर हिस्सा लिया और सरकार की नजर में अपने नंबर बढ़वाए।
सुना है कि ये अधिकारी कचरे की पैकिंग होने से लेकर कंटेनर्स में रखवाने तक यहीं डटे रहे। उन्होंने कचरा शिफ्टिंग के काम में लगे लोगों का हौसला भी बढ़ाने का काम किया है। अब देखना है कि अधिकारी को अपने इस कर्म का क्या फल मिलता है।
जूनियर आईएएस के लिए आ रहा गुड न्यूज वीक आने वाला हफ्ता प्रदेश के 2015-16 बैच के आईएएस अफसरों के लिए गुड न्यूज वीक साबित होने वाला है। इसकी वजह इस हफ्ते छह जनवरी के बाद होने वाली प्रशासनिक सर्जरी है। जिसमें दर्जनभर जिलों के कलेक्टर का तबादला होना तय है। इनके स्थान पर इस बैच के आईएएस अधिकारियों को कलेक्टरी सौंपी जाएगी।
उधर, जिलों में कलेक्टरी कर रहे अपर सचिव पद पर प्रमोट हो चुके आईएएस अफसरों का हटना भी तय माना जा रहा है। हालांकि ये अफसर अभी भी कलेक्टर बने रहने के लिए जोर लगाए हुए हैं। ग्वालियर, रीवा, शहडोल संभाग में ऐसे कलेक्टरों की संख्या ज्यादा है।
विंध्य में पोस्टेड रहे एडीजी साहब का कमाल परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा के माध्यम से प्रदेश के सभी आरटीओ की काली कमाई ठिकाने लगाने और उसकी बंदरबांट के पीछे एक एडीजी का दिमाग माना जा रहा है। यह वही एडीजी हैं जो खुद परिवहन आयुक्त बनना चाहते थे, लेकिन दिल्ली के दबाव के चलते ऐसा हो नहीं पाया।
फिर भी जुगाड़ से ये परिवहन मुख्यालय तक पहुंच गए और वहां से ऐसी जानकारी निकाली, जिससे न सिर्फ पूरे परिवहन महकमे की किरकिरी हो गई, बल्कि दिल्ली दरबार से परिवहन आयुक्त बनने का फैसला कराने वाले एडीजी को सरकार को हटाना भी पड़ गया।
सुना है कि जिन एडीजी साहब ने यह सारा खेल किया, वे विन्ध्य क्षेत्र में लंबे समय तक पदस्थ रहे हैं और कहा जा रहा है कि वहीं से सीखे पैंतरे से वे चुपचाप अपना नाम सामने आए बगैर सारा खेल करने में सफल भी रहे हैं।
और अंत में…
राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के मायने राज्य सरकार ने 31 दिसंबर को राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के आदेश जारी किए। अब इसके मायने इस समय मंत्रालय में तलाशे जा रहे हैं। ब्यूरोक्रेट्स में चर्चा है कि नए राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल खत्म होने के बाद जिस रिटायर्ड आईएएस को इस पद का जिम्मा मिल सकता है, उसके मद्देनजर नए राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कराई गई है।
मंत्रालय की लॉबी में इस बात की चर्चा है कि वर्तमान में ‘सरकार’ के सबसे करीबी अफसरों में शामिल एक अफसर उसी साल रिटायर होंगे, जिस साल वर्तमान में नियुक्त राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल खत्म होगा। ऐसे में रिटायर होने वाले अधिकारी का पुनर्वास इस पद पर होना तय है।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि वर्तमान राज्य निर्वाचन आयुक्त का कार्यकाल अप्रैल 2027 में खत्म होगा और उसके एक माह बाद संबंधित अफसर रिटायर होंगे। यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्य सचिव इस पद पर इसी के चलते नहीं काबिज हो सकीं क्योंकि आयुक्त बनतीं तो 2030 तक उनका कार्यकाल होता।