Monday, June 9, 2025
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राष्ट्रपति के पास पहुंचा बस्तर का दर्द: द्रौपदी मुर्मू बोलीं- हिंसा छोड़ें नक्सली, अटैक में अपाहिज हुए लोगों से मिलीं, बच्चों को दी चॉकलेट – Raipur News


शनिवार को बस्तर का दर्द राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक पहुंचा। बस्तर के अलग-अलग गांवों से 50 से अधिक ग्रामीण दिल्ली गए हुए हैं। राष्ट्रपति भवन पहुंचकर ग्रामीणों ने बताया कि कैसे नक्सली हमलों की वजह से वो अपाहिज हुए। उनके गांवों का विकास रुक गया। कई बच्

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूू ने राष्ट्रपति भवन के आशोक मंडप में सभी से मुलाकात की। उन्होंने एक-एककर सभी से बात की। जब उन्होंने बच्चों को देखा थो सभी के लिए चॉकलेट मंगवाई और बच्चों को अपने हाथों से चॉकलेट दी।

महात्मा गांधी के दिखाए रास्ते पर चलें नक्सली राष्ट्रपति ने ग्रामीणों से बात-चीत में कहा- कोई भी उद्देश्य हिंसा के रास्ते पर चलने को उचित नहीं ठहरा सकता, जो हमेशा समाज के लिए बहुत महंगा साबित होता है। वामपंथी उग्रवादियों को हिंसा का त्याग करना चाहिए, मुख्यधारा में शामिल होना चाहिए, और वे जो भी समस्याएँ उजागर करना चाहते हैं, उन्हें हल करने के लिए सभी प्रयास किए जाएँगे। यही लोकतंत्र का रास्ता है और यही रास्ता महात्मा गांधी ने हमें दिखाया था। हिंसा से त्रस्त इस दुनिया में हमें शांति के रास्ते पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

हालात सुनकर दुखी हुईं राष्ट्रपति ये ग्रामीण बस्तर शांति समिति के बैनर तले दिल्ली पहुंचे हैं। सभी ने राष्ट्रपति के सामने अपनी पीड़ा और व्यथा सुनाई। पीड़ितों ने राष्ट्रपति महोदया से कहा कि उनका बस्तर सदियों से शांत एवं सुंदर रहा है, लेकिन बीते 4 दशकों में माओवादियों के कारण अब यही बस्तर आतंकित हो चुका है। जिस बस्तर की पहचान यहां की आदिवासी संस्कृति और परंपरा रही है, उसे अब लाल आतंक के गढ़ से जाना जाता है। यह बस्तरवासियों का दुर्भाग्य है।

हमारा जीवन नर्क हो चुका है राष्ट्रपति से मिलने पहुँचे पीड़ितों ने कहा कि माओवादियों ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है। उन्होंने बताया कि बस्तर में माओवादी आतंक के कारण स्थितियां ऐसी है कि आम जन-जीवन जीना भी मुश्किल हो गया है। माओवादियों ने ग्रामीण एवं वन्य क्षेत्रों में बारूदी सुरंग बिछा रखे हैं, जिसकी चपेट में आने के कारण बस्तरवासी ना सिर्फ गंभीर रूप से घायल हो रहे हैं, बल्कि मारे भी जा रहे हैं।

मेरी आंख की रोशनी चली गई बस्तर से अपनी पीड़ा बताने राष्ट्रपति भवन पहुँची 16 साल की नक्सल पीड़िता राधा सलाम ने राष्ट्रपति को अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि माओवादी हिंसा के कारण उसने अपने एक आंख की रोशनी खो दी है। उसने पूछा कि आखिर इसमें मेरा क्या कसूर है ? राधा ने बताया कि जब उसके साथ घटना हुई तब वह केवल तीन वर्ष की थी। वहीं एक अन्य पीड़ित महादेव ने बताया कि जब वह बस से लौट रहा था तब माओवादियों ने बस में बम ब्लास्ट कर हमला किया था, जिसमें उसका एक पैर काटना पड़ा।

राष्ट्रपति से पहल की गुहार बस्तर शांति समिति की ओर से जयराम दास ने बताया कि आज जो पीड़ित राष्ट्रपति से मिलने पहुँचे वो सभी नक्सल हिंसा के शिकार हुए आम बस्तरवासी हैं। पीड़ितों में कुछ ऐसे हैं जिनकी आंखें नहीं हैं, तो कोई ऐसा है जिसने अपने एक पैर माओवादी हिंसा के चलते खो दिया है। कोई ऐसा है जिसके सामने उसके भाई की हत्या की गई, तो किसी बुजुर्ग के सामने उसके बेटे को माओवादियों ने नृशंसता से मारा है। पीड़ितों को ज्ञापन देकर राष्ट्रपति से मांग की कि राष्ट्रपति महोदया भी इस विषय को लेकर संज्ञान लें एवं बस्तर को माओवाद मुक्त करने के लिए पहल करें।

JNU में नक्सल विरोधी नारे लगे दिल्ली दौरे में ये ग्रामीण JNU भी गए। इस युनिवर्सिटी में अक्सर नक्सलियों के प्रति सॉफ्ट विचार रखने वाले अप्रत्यक्ष रूप से नक्सलियों के समर्थन में सभाएं करते हैं। यहां नक्सल इलाकों से गए इन ग्रामीणों ने अपना दर्द छात्रों के सामने रखा। युनिवर्सिटी के कैम्पस में नक्सल विरोधी नारे भी लगाए।

अमित शाह से भी हुई मुलाकात इस दौरे के दौरान ग्रामीणों ने देश के गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात की। सभी अपने-अपने गांव के हालात के बारे में उन्हें बताया। गृहमंत्री ने नक्सल पीड़ितों की समस्याओं पर गंभीरता दिखाई। उन्होंने इन लोगों के संघर्ष और साहस की प्रशंसा की। आश्वासन दिया कि सरकार उनकी समस्याओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाएगी।

क्या है सियासी मायने दिल्ली हमेशा से उन विचारकों का गढ़ रहा है जो नक्सलियों के साथ खड़े हो जाते हैं। नक्सलियों की नीतियों और करतूतों को सही बताते हैं। दिल्ली में अक्सर धरना प्रदर्शन कर ये दावा किया जाता है कि प्रशासन आदिवासियों पर अत्याचार कर रहा है। मगर आदिवासियों के इस दिल्ली विजिट में ये बताने की कोशिश है कि नक्लियों के हमलों की वजह से आदिवासी किस कदर परेशान हैं। ग्रामीणों ने जंतर-मंतर में जाकर घरना भी दिया। JNU जाकर अपना दुख भी साझा किया। छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद मिटाने और नक्सलियों के प्रति दिल में रहम रखने वाली सोच को चैलेंज करने इस यात्रा का प्लान समिति की ओर से किया गया है। 24 सितंबर तक ये सभी ग्रामीण छत्तीसगढ़ लौट सकते हैं।



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