Friday, April 25, 2025
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राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू वेटिकन के लिए रवाना: पोप फ्रांसिस के फ्यूनरल में शामिल होगीं, अल्पसंख्यक मंत्री किरण रिजिजू भी साथ गए


14 मिनट पहले

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राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू कैथोलिक ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस के फ्यूनरल में शामिल होने के लिए आज वेटिकन रवाना हो गई हैं। उनके साथ अल्पसंख्यक मंत्री किरण रिजिजू, राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन और गोवा विधानसभा के उपाध्यक्ष जोशुआ डी सूजा भी गए हैं।

पोप का 21 अप्रैल को 88 साल की उम्र में स्ट्रोक और हार्ट फैलियर से निधन हुआ था। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शनों के लिए सेंट पीटर्स बेसिलिका में रखा गया है।

आज अंतिम दर्शन का आखिरी दिन हैं। इसके बाद आज शाम उनके ताबूत को बंद कर दिया जाएगा। पोप का अंतिम संस्कार 26 अप्रैल यानी कल किया जाएगा। अंतिम संस्कार में दुनियाभर के नेता और आम लोग जुटेंगे।

अपनी मृत्यु से एक दिन पहले पोप फ्रांसिस ने ईस्टर संडे के लिए मौन आशीर्वाद दिया। उन्होंने एक बयान जारी कर गाजा समेत दुनिया भर में चल रहे संघर्ष पर बात की और शांति की अपील की। पोप के निधन पर भारतीय गृह मंत्रालय ने 3 दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है।

निधन के बाद पोप के पार्थिव शरीर की पहली तस्वीर

निधन के बाद पोप के पार्थिव शरीर की पहली तस्वीर

पोप की आखिरी पब्लिक अपियरेंस, ईस्टर पर शुभकामनाएं दीं

पोप फ्रांसिस ने रविवार को ईस्टर के मौके पर वेटिकन की बालकनी से लोगों को शुभकामनाएं दी थीं। इस दौरान वे व्हीलचेयर पर नजर आए थे।

पोप फ्रांसिस ने रविवार को ईस्टर के मौके पर वेटिकन की बालकनी से लोगों को शुभकामनाएं दी थीं। इस दौरान वे व्हीलचेयर पर नजर आए थे।

वेटिकन में नहीं दफनाया जाएगा पोप का शव

पोप फ्रांसिस को वेटिकन में नहीं दफनाया जाएगा। वे एक सदी से भी ज्यादा वक्त में वेटिकन के बाहर दफन होने वाले पहले पोप होंगे। आमतौर पर पोप को वेटिकन सिटी में सेंट पीटर्स बेसिलिका के नीचे गुफाओं में दफनाया जाता है। लेकिन पोप फ्रांसिस को रोम में टाइबर नदी के दूसरी तरफ मौजूद सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में दफनाया जाएगा।

पोप ने सांता मारिया मैगीगोर बेसिलिका में अपने दफन होने का बात का खुलासा दिसंबर 2023 में किया था। उन्होंने बताया था कि वे मैगीगोर बेसिलिका से खास जुड़ाव महसूस करते हैं। वे यहां वर्जिन मैरी के सम्मान में रविवार की सुबह जाते थे।

सांता मारिया मैगीगोर में 7 अन्य पोप को भी दफनाया गया है। पोप लियो XIII आखिरी पोप थे जिन्हें वेटिकन से बाहर दफनाया गया था। उनकी मृत्यु 1903 में हुई थी।

पोप फेफड़ों में इन्फेक्शन से भी जूझ रहे थे

पिछले कई महीनों से पोप स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। उन्हें14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनका निमोनिया और एनीमिया का इलाज भी चल रहा था। वे 5 हफ्ते तक फेफड़ों में इन्फेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती थे।

इलाज के दौरान कैथलिक चर्च के हेडक्वॉर्टर वेटिकन ने बताया था कि पोप की ब्लड टेस्ट रिपोर्ट में किडनी फेल होने के लक्षण दिख रहे थे। हालांकि, 14 मार्च को उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था।

पोप को रोम के जेमेली अस्पताल से 23 मार्च को डिस्चार्ज किया गया था। तब उन्होंने वेटिकन में लोगों को संबोधित किया था।

पोप को रोम के जेमेली अस्पताल से 23 मार्च को डिस्चार्ज किया गया था। तब उन्होंने वेटिकन में लोगों को संबोधित किया था।

अगले पोप की चयन प्रक्रिया को पैपल कॉन्क्लेव कहा जाता है

नए पोप के चयन की प्रक्रिया को ‘पैपल कॉन्क्लेव’ कहा जाता है। इसका मतलब पोप का चुनाव कराने के लिए कार्डिनल्स की गुप्त बैठक होता है। यह सम्मेलन आम तौर पर पोप का पद खाली होने के 15 से 20 दिन बाद होता है।

कार्डिनल्स बड़े पादरियों का एक ग्रुप है। इनका काम पोप को सलाह देना है। हर बार इन्हीं कार्डिनल्स में से पोप चुना जाता है। हालांकि, पोप बनने के लिए कार्डिनल होना जरूरी नहीं है। 1379 में अर्बन VI आखिरी पोप थे, जिन्हें कार्डिनल्स कॉलेज से नहीं चुना गया था।

निधन से पहले अमेरिकी उपराष्ट्रपति से मिले थे

रविवार को ईस्टर के मौके पर पोप ने वेंस को गिफ्ट भी दिए थे।

रविवार को ईस्टर के मौके पर पोप ने वेंस को गिफ्ट भी दिए थे।

वेटिकन के सेंट पीटर्स स्क्वायर पर लोग जुटना शुरू हो गए हैं।

वेटिकन के सेंट पीटर्स स्क्वायर पर लोग जुटना शुरू हो गए हैं।

1000 साल में पोप बनने वाले पहले गैर-यूरोपीय

पोप फ्रांसिस अर्जेंटीना के एक जेसुइट पादरी थे, वो 2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप बने थे। उन्हें पोप बेनेडिक्ट सोलहवें का उत्तराधिकारी चुना गया था। पोप फ्रांसिस बीते 1000 साल में पहले ऐसे इंसान थे जो गैर-यूरोपीय होते हुए भी कैथोलिक धर्म के सर्वोच्च पद पर पहुंचे।

पोप ने समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने, सेम-सेक्स कपल्स को आशीर्वाद देने, पुनर्विवाह को धार्मिक मंजूरी देने जैसे बड़े फैसले लिए। उन्होंने चर्चों में बच्चों के यौन शोषण पर माफी भी मांगी थी।

पोप का जन्म 17 दिसम्बर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। पोप बनने से पहले उन्होंने जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो नाम से जाना जाता था। पोप फ्रांसिस के दादा-दादी तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी से बचने के लिए इटली छोड़कर अर्जेंटीना चले गए थे। पोप ने अपना ज्यादातर जीवन अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में बिताया है।

वे सोसाइटी ऑफ जीसस (जेसुइट्स) के सदस्य बनने वाले और अमेरिकी महाद्वीप से आने वाले पहले पोप थे। उन्होंने ब्यूनस आयर्स यूनिवर्सिटी से दर्शनशास्त्र और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की थी। साल 1998 में वे ब्यूनस आयर्स के आर्कबिशप बने थे। साल 2001 में पोप जॉन पॉल सेकेंड ने उन्हें कार्डिनल बनाया था।

पोप फ्रांसिस के बड़े फैसले

समलैंगिक व्यक्तियों के चर्च आने पर: पद संभालने के 4 महीने बाद ही पोप से समलैंगिकता के मुद्दे पर सवाल किया था। इस पर उन्होंने कहा, ‘अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज कर रहा है, तो मैं उसे जज करने वाला कौन होता हूं।’

पुनर्विवाह को धार्मिक मंजूरी: पोप ने दोबारा शादी करने वाले तलाकशुदा कैथोलिक लोगों को धार्मिक मान्यता दी। उन्होंने सामाजिक बहिष्कार को खत्म करने के लिए ऐसे लोगों को कम्यूनियन हासिल करने का अधिकार दिया। कम्यूनियन एक प्रथा है जिसमें यीशु के अंतिम भोज को याद करने के लिए ब्रेड/पवित्र रोटी और वाइन/अंगूर के रस का सेवन किया जाता है। इसे प्रभु भोज या यूकरिस्ट के नाम से भी जाना जाता है।

बच्चों के यौन शोषण पर माफी मांगी: पोप फ्रांसिस ने अप्रैल 2014 में पहली बार चर्चों में बच्चों के साथ होने वाले यौन शोषण की बात स्वीकार की और सार्वजनिक माफी भी मांगी। चर्च के पादरियों की तरफ से किए गए इस अपराध को उन्होंने नैतिक मूल्यों की गिरावट कहा था। इससे पहले तक किसी पोप की तरफ से इस मामले पर प्रतिक्रिया नहीं देने की वजह से वेटिकन की आलोचना की जाती थी।

पिछले साल 27 सितंबर को बेल्जियम की यात्रा के दौरान बच्चों के यौन शोषण पर कैथोलिक चर्चों से माफी मांगने के लिए कहा। उन्होंने ब्रुसेल्स में पादरियों से यौन उत्पीड़न के शिकार 15 लोगों से मुलाकात भी की।

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कैथोलिक ईसाइयों के धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का सोमवार को 88 साल की उम्र में निधन हो गया। अर्जेंटीना में 1936 में इटैलियन माता-पिता के घर जन्मे जॉर्ज मारियो बेर्गोग्लियो बचपन से धार्मिक रहे, हालांकि ये किसी ने नहीं सोचा था कि वे एक दिन ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु के पद पर बैठेंगे, खुद उन्होंने भी नहीं। पूरी खबर यहां पढ़ें…

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