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रिक्‍शा चलाने वाले लड़के ने क्रैक किया NEET: एक ही भाई पढ़ सकता था इसलिए पढ़ाई छोड़ी, हिंदी में पढ़कर अंग्रेजी में क्लियर किया एग्‍जाम


12 मिनट पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी

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मुजफ्फरनगर के रहने वाले मोहम्मद सौहेल ने अपने भाई के साथ साल 2021 में 12वीं पास की थी। परिवार दोनों बेटों को पढ़ाने का खर्च नहीं उठा सकता था। इसलिए सिर्फ भाई ने कॉलेज में एडमिशन लिया। सौहेल ने पढ़ाई छोड़ दी और परिवार को सपोर्ट करने के लिए वो पिता का ई-रिक्शा चलाने लगे।

ई-रिक्शा चलाने वाले सौहेल अब जल्द ही डॉक्टर बनेंगे। NEET UG 2025 में उन्होंने 720 में से 552 मार्क्स हासिल किए हैं। पिछले साल सौहेल के 600 से ज्यादा मार्क्स आए थे लेकिन उन्हें कोई कॉलेज नहीं मिल सका था।

परिवार में 12वीं से ज्यादा कोई नहीं पढ़ा

सौहेल के परिवार में उनकी मां, पिता और दो भाई हैं। आर्थिक कारणों से उनके बड़े भाई ने कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

परिवार में पढ़ाई-लिखाई का माहौल नहीं है। सौहेल की भी यही स्थिति थी। वो सोचते थे कि 12वीं तक पढ़कर फिर नौकरी करेंगे लेकिन उनकी मां उन्हें पढ़-लिखकर डॉक्टर बनते हुए देखना चाहती थी। उनकी मां का मानना था कि किसी भी तरह बच्चों को पढ़ाना है।

सौहेल कहते हैं, ‘मैं एक लोअर मिडिल क्लास फैमिली से आता हूं। मेरे परिवार क्या खानदान में कोई पढ़ा-लिखा नहीं है। मेरे दादा की ओर या चाहे नाना की ओर की बात करें, कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि वो डॉक्टर बने। मैंने भी नहीं सोचा था कि मैं 1 करोड़ की MBBS की डिग्री हासिल कर पाऊंगा।’

सौहेल कहते हैं कि उनके परिवार में किसी ने नहीं सोचा था कि कोई डॉक्टर भी बन सकता है।

सौहेल कहते हैं कि उनके परिवार में किसी ने नहीं सोचा था कि कोई डॉक्टर भी बन सकता है।

12वीं के बाद ई-रिक्‍शा चलाया, लोग बच्‍चा समझकर धमका लेते थे

ई-रिक्शा चलाने वाले अपने दिनों को याद करते हुए सौहेल बताते हैं, ‘एक बार मैं रिक्शा चला रहा था। तभी एक बस आई। उससे सवारियां उतरने लगी। मैं एक जगह रिक्शा रोककर आवाज लगाने लगा।

किसी ने रिक्शे को पीछे से धक्का दे दिया और हैंड ब्रेक न होने की वजह से रिक्शा चलने लगी। पीछे खड़ी एक बाइक पर रिक्शा जा लगा और उसका मडगार्ड टूट गया। बाइक का मालिक आया और मेरे रिक्शे की चाबी निकाल ली। बोलने लगा कि चाबी तभी दूंगा जब बाइक की मरम्मत करा दोगे।

मैंने बोला कि मैं खुद रिक्शा चला रहा हूं मैं कैसे ठीक कराऊंगा। मैं सुबह से रिक्शा चला रहा था। मैंने तब तक 200-250 रुपए कमाए थे। जब बाइक ठीक कराने पहुंचा तो उसने कहा कि 300 रुपए लगेंगे। मेरे तो चेहरे की हवाइयां उड़ गईं।

मैं सुबह से लोगों को आवाज लगाकर, रिक्शा चला रहा था। तब जाकर 200 रुपए कमाए थे। वो मेरे पूरे दिन की मेहनत थी जो मेरे हाथ से चली गई। लोग मुझे बच्‍चा समझकर आसानी से धमका लेते थे।’

हिंदी मीडियम में पढ़कर अंग्रेजी में की तैयारी

सौहेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती घर की आर्थिक स्थिति थी। वो कहते हैं, ‘12वीं के बाद पता चला कि NEET जैसा भी कोई एग्जाम होता है। तब मैंने इसकी तैयारी के लिए पता करना शुरू किया।

मैंने कुछ कोचिंग सेंटर्स में पता किया। हर जगह की फीस बहुत ज्यादा ही थी। कहीं 60 हजार तो कहीं 80 हजार फीस थी। तब मैंने अपने स्कूल के टीचर्स के पास जाकर पढ़ना शुरू किया।

इसके बाद ऑनलाइन ही कोचिंग ली क्योंकि वो अफोर्डेबल थी। ऑनलाइन कोचिंग की फीस 3-4 हजार रुपए ही थी।’

सौहेल के सामने दूसरी बड़ी समस्या भाषा की थी। उन्होंने पहली से 12वीं तक पूरी पढ़ाई हिंदी में की। ऐसे में अचानक तैयारी के समय उनके सामने सब कुछ अंग्रेजी में रखा गया। इंग्लिश न आने की वजह से वो सोचने लगे कि कैसे पढ़ पाएंगे। कोई गाइड करने वाला भी नहीं था।

MBBS डॉक्टर बनना नामुमकिन लगता था

सौहेल कहते हैं, ‘मेरी मम्मी ने बोला था कि डॉक्टर बनना है लेकिन कभी ये नहीं बोला था कि MBBS डॉक्टर बनना है। हम लोअर मिडिल क्लास परिवार से थे तो कभी वहां तक सोच ही नहीं पाते थे।

मम्मी का यही था कि गली-मोहल्ले में जो डॉक्टर होते हैं हम भी वैसे ही बनकर बैठ जाए। तब मुझे NEET के बारे में पता चला। मैंने सोच लिया था करना है तो MBBS ही करना है।’

सौहेल कोई शेड्यूल फॉलो नहीं करते थे। उनका मानना है कि जब समय मिले बस पढ़ने बैठ जाओ और जब तक टॉपिक खत्म न हो जाए पढ़ते रहो। सौहेल खुद को एक कमरे में बंद कर लेते और रात में 12-1 बजे तक पढ़ाई किया करते थे।

सौहेल कोई शेड्यूल फॉलो नहीं करते थे। उनका मानना है कि जब समय मिले बस पढ़ने बैठ जाओ और जब तक टॉपिक खत्म न हो जाए पढ़ते रहो। सौहेल खुद को एक कमरे में बंद कर लेते और रात में 12-1 बजे तक पढ़ाई किया करते थे।

टाइमटेबल फॉलो करना बंधन लगता है

सौहेल तैयारी के फर्स्ट ईयर में रिक्शा चलाते थे। सुबह रिक्शा चलाने घर से निकल जाते। शाम को 4-5 बजे तक लौट आते थे। इसके बाद एक टीचर के पास पढ़ने जाया करते। शाम 5-6 बजे से शुरू होकर वो रात के 12-1 बजे तक पढ़ाई करते थे लेकिन यह काफी नहीं लग रहा था। उसके बाद ऑनलाइन पढ़ाई की और रिक्शा चलाना छोड़ दिया।

सौहेल कहते हैं, ‘ पढ़ाई करने के लिए मेरा कोई प्लान, कोई शेड्यूल नहीं था। एक बार पढ़ने बैठता था तो पूरा टॉपिक खत्म करके ही उठता था। ये नहीं देखा कि लंच टाइम है या रात हो गई है। शुरू करता था तो खत्म करके ही वहां से खड़ा होता था।

मैं टाइम टेबल नहीं बनाता था। जब समय मिलता था बस पढ़ने बैठ जाता था। मैं खुद को किसी समय में नहीं बांधना चाहता था क्योंकि इससे आप एक बाउंड्री में फंस जाते हैं जोकि तैयारी के लिए सही नहीं है। मैंने PW एप्लिकेशन से पढ़ाई की है। बैच खरीदा ताकि तैयारी करके टेस्ट दे सकूं। त्योहारों के समय पर प्राइज ड्रॉप होते हैं। उसी समय पर बैच खरीदा।’

इग्नोर न करें अंदर की आवाज

किसी चीज के लिए मेहनत कर रहे लोगों से सौहेल कहते हैं कि अपने मन की बात को ध्यान से सुनें और कतई इग्नोर न करें।

सौहेल कहते हैं, ‘ऐसा नहीं सोचना है कि हम गांव से आ रहे हैं या हम गरीब परिवार से आ रहे हैं तो हम अफोर्ड नहीं कर सकते हैं। पहले एक अटेम्प्ट देकर देखो। उससे समझ आ जाएगा कि क्या तुम तैयारी कर सकते हो।

अगर MBBS सोच लिया है तो उससे हिलो मत चाहे कोई कुछ भी बोलता रहे। अगर अपने अंदर से फीलिंग आ रही है तो जरूर करो। अपने लक्ष्य से डिगो मत। चाहे परिवार भी आपको रुकने के लिए बोले लेकिन अगर आपको लगे कि आप कर सकते हैं तो जरूर करें।’

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