Saturday, March 29, 2025
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लखनऊ की टीचर को 22 दिन रखा डिजिटल अरेस्ट: CBI अधिकारी बताया; 7 बार में ट्रांसफर कराया 78 लाख; बोला- जेल भेज दूंगा – Lucknow News


लखनऊ में साइबर ठगों ने एक महिला को सीबीआई अधिकारी बनकर 22 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रखा। इस दौरान महिला की हर गतिविधि को वॉट्सऐप कॉल और वीडियो कॉल से निगरानी की। ठगों ने महिला से सात बार में 78.50 लाख रुपए अपने खातों में मंगवा लिए। साइबर थाना पुलिस मुकद

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इंदिरानगर के लक्ष्मणपुरी विस्तार निवासी प्रमिला मानसिंह एक स्कूल में टीचर है। उन्होंने पुलिस को बताया कि एक मार्च को सुबह दस बजे उनके मोबाइल एक युवक ने वॉट्सऐप पर वीडियो कॉल किया। उसने खुद को सीबीआई अफसर बताया।

युवक ने कहा- आपके नाम पर दिल्ली में बैंक ऑफ बड़ौदा में कई अकाउंट खोले गए हैं। इस पर उन्होंने कहा- हम दिल्ली जाते ही नहीं है और न ही मैंने कोई खाता खुलवाया है। इस पर फोन करने वाले ने कहा- आपके बैंक अकाउंट की जांच की जाएगी, क्योंकि आप पर मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप हैं।

पूछताछ में मानसिक तौर पर किया परेशान

पीड़िता का कहना है कि फोन करने वाले ने पूछताछ के नाम पर मानिसक तौर पर परेशान किया। जेल जाने के डर से उसकी हर बात को मानती गई। उसने कहा- जेल जाने से बचना चाहती हो जांच में सहयोग करिए। जांच के दौरान किसी से बात नहीं करोगी।

उन्होंने बताया- इसके चलते 22 दिन तक वह फोन पर संपर्क में रहा। जांच के नाम पर मेरे खातों से चार बार में 78.50 लाख रुपए जमा करा लिए। साथ ही मेरी निगरानी के लिए वीडियो कॉल के साथ वॉट्सऐप पर मैसेज भेजता रहा। साइबर थाना प्रभारी ब्रजेश यादव ने बताया कि मामला दर्ज कर जांच की जा रही है।

अब जानिए क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?

साइबर क्राइम का ये नया तरीका है। इसमें साइबर अपराधी पुलिस ऑफिसर, कस्टम अधिकारी, सीबीआई, ED, मुंबई क्राइम ब्रांच, नारकोटिक्स विभाग के अधिकारी, RBI, दिल्ली और मुंबई पुलिस के अधिकारी बनकर लोगों को ठगते हैं।

ये लोग ऑडियो वीडियो कॉल करते हैं। AI जनरेटेड वॉयस या वीडियो कॉल के जरिए फंसाते हैं। साइबर ठग लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए कई हथकंडे आजमाते हैं। उदाहरण के तौर पर साइबर ठग पीड़ित से कहते हैं कि आपने चाइल्ड पोर्न देखा है या किसी ड्रग्स बुकिंग के मामले में आपके आधार कार्ड नंबर, पैन नंबर का इस्तेमाल हुआ है।

इसके बाद पूछताछ करने के लिए वीडियो कॉल पर बात करने को कहते हैं। फिर उन्हें फर्जी कोर्ट का अरेस्ट वारंट भेजकर डरा-धमकाकर कमरे में कैद कर लेते हैं। इतना परेशान करते हैं कि लोग बचने के लिए उनके दिए हुए टर्म एंड कंडीशन को फॉलो करने लगते हैं और ठगी का शिकार हो जाते हैं।

अब जानिए इन्वेस्टिगेशन के दौरान आने वाली चुनौतियों को

साइबर क्राइम के मामलों में कार्रवाई ज्यादा तेजी से आगे नहीं बढ़ पाती है। आमतौर पर ऐसे केस एक से ज्यादा राज्यों से जुड़े होते हैं। साथ ही जिस अकाउंट में पैसे मंगाए जाते हैं, उससे तुरंत ही दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए जाते हैं। ऐसे में पैसों की रिकवरी नहीं हो पाना मुश्किल होता है।

साइबर पुलिस के सूत्रों के मुताबिक, बिहार में अभी रिसोर्स की काफी कमी है। दूसरे राज्यों की पुलिस से कोऑर्डिनेशन बनाकर काम करने में भी चुनौती आ रही है। अधिकतर मामलों में साइबर पुलिस दूसरे राज्यों कि पुलिस पर डिपेंड है। क्योंकि यह स्टेट का सब्जेक्ट है। अपने राज्य में कार्रवाई करना साइबर पदाधिकारियों के लिए आसान है। लेकिन दूसरे राज्यों में जाकर कार्रवाई करना उतना ही कठिन है।

अधिकतर मामले पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हैदराबाद, उतर प्रदेश जैसे दूर-दराज के राज्यों से जुड़े हुए आ रहे हैं। जिसके चलते राज्य के साइबर अधिकारियों के सामने जांच में चुनौती आ रही है। साइबर अपराध से जुड़े हर एक लोकेशन पर साइबर पदाधिकारी नहीं पहुंच पा रहे हैं।

लोकल थाने की पुलिस के भरोसे रहना पड़ता है

सरकार की ओर से इन्वेस्टिगेशन के दौरान आने वाले खर्च के लिए प्रावधान तो जरूर है। लेकिन फ्लेक्सिबिलिटी नहीं है। पदाधिकारी अपने खर्च पर दूसरे राज्य में इन्वेस्टिगेशन करने जाने से भी कतराते हैं। हालांकि बड़े मामले में ही अधिकारी अपने खर्च पर इन्वेस्टिगेशन करने जाते हैं। जबकि, दूसरे मामलों में वहीं के लोकल थाने की पुलिस के भरोसे रहना पड़ता है। काम का प्रेशर होने की वजह से उन्हें भी वैरिफिकेशन में समय लगता है। जिससे अपराधियों को फरार होने का मौका मिल जाता है।

थाने की तरह सेट बनाते हैं अपराधी

साइबर अधिकारी के मुताबिक, साइबर अपराधी पहले से काफी शातिर और हाईटेक हो गए हैं। प्रॉपर स्टूडियो बनाकर लोगों को ठगा जाता है। थाने का सेट भी तैयार कर लिया जाता है। वर्दी में लोगों के सामने हू-ब-हू वैसे ही पेश आ रहे हैं, जैसे बड़े अधिकारी वर्दी में नजर आते हैं।

इसके अलावा वसूली गई मोटी रकम अधिक से अधिक अन्य दूसरे लोगों के खाते में ट्रांसफर कर रहे हैं, ताकि पुलिस को इन्वेस्टिगेशन के दौरान परेशानी हो और जांच को प्रभावित किया जा सके। हाल के दिनों में ऐसे मामले आए हैं, जिनमें ठगी गई रकम को 100 से अधिक खातों में रुपए भेजे गए हैं।

पुलिस कभी डिजिटल अरेस्ट नहीं करती- DSP

लखनऊ साइबर थाना पुलिस ने बताया कि BNS के प्रोविजन में डिजिटल अरेस्ट का कोई प्रावधान नहीं है। पुलिस या कोई भी जांच एजेंसी जैसे CID, सीबीआई, ED, क्राइम ब्रांच, आर्थिक अपराध इकाई, नारकोटिक्स विभाग किसी को भी डिजिटल अरेस्ट नहीं कर सकते हैं, उनको फिजिकल अरेस्ट करना होता है।

साइबर अपराधी लोगों को पुलिस ऑफिसर बनकर डराते हैं। सुप्रीम कोर्ट वगैरह का फर्जी डॉक्यूमेंट लेकर के लोगों को इस तरीके से डराते हैं कि लोग उनके टर्म एंड कंडीशन के अनुसार इससे बचने के लिए रुपए भेजने लगते हैं, जो बिल्कुल नहीं करना है। कॉन्टैक्ट लिस्ट में जो कॉल नहीं हैं, उन्हें रिसीव नहीं करें।

अगर आप इसके बारे में नहीं जानते हैं, आपके पास इस तरह के कॉल आ रहे हैं तो पहले लोकल थाने को इसके बारे में बताएं। जो लोग थाने में नहीं आना चाहते हैं तो अपने जानने वाले से जरूर इसपर मशवरा लें। हो सकता है उनके साथ इस तरीके की घटना हुई हो या दूसरे मध्यम से उनके पास ऐसी घटना के बारे में जानकारी हो और वो आपको इसमें सहायता कर दें।

यह खबर भी पढ़ें… लखनऊ में 8 जान लेने वाली इमारत की जांच पूरी:हरमिलाप टावर की स्लैब मोटी-बीम कमजोर थी, दो लोगों की जमीन पर रखे थे पिलर

लखनऊ के ट्रांसपोर्ट नगर में गिरी इमारत की फोरेंसिक जांच पूरी हो गई है। जांच टीम ने LDA को जांच रिपोर्ट सौंप दी है। जांच करने वाली गुजरात की गांधीनगर नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) की टीम ने बताया है कि इमारत नक्शे और मानकों के विपरीत बनी थी।

जांच में पाया गया कि इस इमारत में घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। स्लैब मोटी और बीम काफी कमजोर थी। जांच में ये सब गड़बडिय़ां सामने आने के बाद भी LDA ने बिल्डर या बिल्डिंग मालिक में से किसी को हादसे का जिम्मेदार अब तक नहीं माना।



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