लखनऊ का अकबरनगर इलाका। 10 जून, 2024 को 12 बुलडोजर पहुंचे और घर गिराने शुरू कर दिए। अगले 9 दिन यानी 18 जून, 2024 को पूरा इलाका जमींदोज हो गया। साढ़े 24 एकड़ का एरिया मलबे से भर गया।
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1 हजार 169 घर, 101 कॉमर्शियल समेत कुल 1800 निर्माण अब अतीत में तब्दील हो चुके हैं। जिन लोगों का घर टूटे, उन्हें एलडीए के जरिए फ्लैट दिए गए। इस तोड़-फोड़ को 9 महीने बीत गए। जिनके घर टूटे, उनका जीवन नई जगह पर पटरी पर लौट आया। अकबरनगर भी खबरों से गायब हो गया।
अब सवाल है कि जहां से हजारों टन मलबा निकाला गया, अब वहां क्या स्थिति है? क्या बनाया जा रहा है? यह देखने दैनिक भास्कर की टीम अकबरनगर की उसी जगह पहुंची। पहले इसके बसने और उजड़ने की बात, फिर ताजा स्थिति को समझते हैं…
जून, 2024 में यहां बने सारे मकान ढहा दिए गए थे। इसका मलबा हटाने में भी कई महीने लगे थे।

अब इसी जगह पर पार्क बनाया गया है, जिसका नाम भगवान राम के भाई लक्ष्मण के नाम पर सौमित्र वन रखा गया है।
1972 से पहले यहां जंगल हुआ करता था 1970 के दशक में लखनऊ के एक बड़े हिस्से में जंगल हुआ करता था। उस वक्त कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलापति त्रिपाठी प्रदेश के सीएम थे। उन्होंने तय किया कि गोमती नदी को कुकरैल नदी से जोड़ा जाएगा। काम शुरू हुआ। बड़ी संख्या में पेड़ काट दिए गए।

ये पार्क का दृश्य है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने एरिया में यह बनाया जा रहा है।
अकबरनगर में भी साफ-सफाई हुई। वहां लोग टीन डालकर रहने लगे। उस वक्त अकबर अली खान यूपी के गवर्नर थे। उन्होंने यहां के लोगों को सहूलियत दी। फिर यहां के लोगों ने इलाके का नाम उन्हीं के नाम से कर दिया। 1985 तक यहां बिजली-पानी की सुविधा नहीं थी। 1972 से लेकर 2024 तक यहां 2 हजार से ज्यादा परिवार रहने लगे।

पार्क के पास ही कुकरैल नदी बहती है, इसे भी साफ किया जा रहा है।
सीएम योगी ने फैसला किया कि कुकरैल नदी के किनारों को रिवर फ्रंट में तब्दील किया जाएगा। यह गुजरात के साबरमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर किया जाएगा। दिसंबर, 2023 में सर्वे हुआ। कहा गया कि जो लोग अवैध रूप से रह रहे, वो कब्जा छोड़ दें।
लोग इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट चले गए। कोर्ट ने सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया। फिर यहां 10 से लेकर 18 जून तक बुलडोजर से अतिक्रमण हटाया गया। इसमें 6 मस्जिद-मदरसे, 4 मंदिर, 3 प्राइवेट स्कूल और 5 हॉस्पिटल भी तोड़े गए।

ये पार्क के अंदर की तस्वीर है। इसमें तरह-तरह के पौधे लगाए जा रहे हैं।
अकबरनगर अतीत, अब सौमित्र नई पहचान 9 महीने पहले जहां तोड़-फोड़ हुई, अब यहां अकबरनगर नहीं है। एक बड़े हिस्से पर पार्क बन रहा है, जिसे सौमित्र वन नाम दिया गया है। सौमित्र भगवान राम के भाई लक्ष्मणजी का नाम है। करीब 100 फीट लंबा गेट तैयार हो रहा है। इसमें बीम का काम पूरा हो चुका है। हम साइड से अंदर गए। गेट के ठीक पीछे वाले हिस्से पर अभी निर्माण चल रहा है। ऑफिस और बैठक रूम तैयार किया जा रहा है। इस पूरे काम में करीब 25 मजदूर लगे हैं।

पार्क का मुख्य गेट अभी बनाया जा रहा है। गेट के ठीक पीछे वाले हिस्से पर भी निर्माण चल रहा है।
करीब 10 एकड़ में फैले इस पार्क का दूसरा हिस्सा तैयार नजर आता है। पूरे एरिया में हरी घास उगाई गई है। लोगों के चलने के लिए सीमेंट की सड़क बनाई गई है। इन्हीं सड़कों के बगल कुर्सियां लगाई जाएंगी, जिसके लिए पक्की जमीन बनाई जा रही है। हमने इसे बना रहे एक व्यक्ति से पूछा कि आप यह काम कब तक पूरा कर लेंगे? वह कहते हैं- यह काम अपने आखिरी दौर में है। 15 दिन में पूरा कर लिया जाएगा।
पार्क में बनी सीमेंटेड सड़क के दोनों साइड नारियल के पेड़ लगाए गए हैं। ये आंधी आने पर गिरें, न इसके लिए साथ में बल्लियां लगाई गई हैं। हालांकि अब पेड़ तैयार हो गए हैं। चारों तरफ व्यवस्थित तरह से क्यारियां बनाकर सजावटी फूल लगाए गए हैं। इन सबका ध्यान दीपू यादव रखते हैं। हमने उनसे बात की। वह कहते हैं, लखनऊ शहर के बीचों-बीच पार्क बना है। हम तीन लोग इन पेड़ों का ख्याल रखते हैं।

पेड़ों के रखरखाव की जिम्मेदारी राकेश (माली) भी संभालते हैं। वह एलडीए की तरफ से शुरुआत से यहां नियुक्त किए गए हैं। वह कहते हैं- हमारी ड्यूटी 8 घंटे की होती है। सुबह आ जाते हैं और फिर पेड़-पौधों का ख्याल रखते हैं। उन्हें पानी देकर हरा करते रहते हैं।

जापानी तकनीक से पेड़ लगाए गए इस पूरे पार्क में 6 हजार बड़े और 4 हजार छोटे पौधे लगाए गए हैं। बड़े पौधों में आम, इमली, शीशम, जामुन, बेल, अर्जुन, कटहल, आंवला, अमरूद के पेड़ लगाए गए हैं। इन्हें लगाने के लिए जापानी तकनीक मियावाकी का प्रयोग किया गया है। इस विधि में एक वर्गमीटर में 3 से 4 पेड़ लगाए जाते हैं और सारे अलग-अलग होते हैं। यहां करीब 2 एकड़ के एरिया में इस विधि को अपनाकर पेड़ लगाया गया है।

दावा किया जा रहा है कि 3 साल में ये पौधे बड़े पेड़ का रूप ले लेंगे।
पार्क में काम करवाने की जिम्मेदारी कैलाश जोशी देख रहे हैं। वह ऑफ कैमरा इस तकनीक के बारे में कहते हैं- मैंने भी इसके बारे में इंटरनेट से जानकारी हासिल की। ऐसा करने से पेड़ 3 साल में अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं। इन्हें बहुत खाद-पानी देने की भी जरूरत नहीं पड़ती।

30 नवंबर तक पूरा करने का लक्ष्य साढ़े 24 एकड़ एरिया से अतिक्रमण हटाया गया था। इसे 3 भागों में बांट दिया गया। जैसे जो सौमित्र वन पार्क तैयार हो रहा, उसे एलडीए संभाल रहा। इसी तरह से सड़क के दूसरे वाले हिस्से पर शक्ति वन पार्क तैयार होना है। इसे नगर निगम बनाएगा। लेकिन, अभी तक यहां सिर्फ मिट्टी डाली गई है। तीसरा हिस्सा जल निगम को दिया गया है। यह सौमित्र पार्क के पीछे ही है। इस पर जल निगम STP प्लांट बना रहा है। इसका काम अभी चल रहा है।

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