वट सावित्री व्रत सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं. यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को होता है. हालांकि उत्तर भारत में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्या को रखते हैं, जबकि दक्षिण भारत में यह ज्येष्ठ पूर्णिमा को होता है. स्कंद और भविष्योत्तर पुराण के अनुसार, वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को होता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार, ज्येष्ठ अमावस्या को वट सावित्री व्रत होता है. इस व्रत को सुहागन महिलाओं के अलावा विधवा, बालिका, वृद्धा, सपुत्र, अपुत्र यानि जिसका पुत्र न हो, सभी प्रकार की महिलाएं कर सकती हैं. आइए जानते हैं कि वट सावित्री व्रत कब है? वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं? वट सावित्री व्रत का मुहूर्त और महत्व क्या है?
वट सावित्री व्रत 2025 तारीख
उज्जैन के महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य डॉ. मृत्युञ्जय तिवारी का कहना है कि यह व्रत सावित्री से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपने अखंड पतिव्रत और दृढ़ प्रतिज्ञा के बल पर अपने पति सत्यवान को मृत्यु के द्वार से वापस लेकर चली आई थीं.
पंचांग के अनुसार, वट सावित्री व्रत के लिए ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि 26 मई सोमवार को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से शुरू होगी और यह 27 मई मंगलवार को सुबह 8 बजकर 31 मिनट तक रहेगी. ऐसे में वट सावित्री व्रत का व्रत 26 मई सोमवार को रखा जाएगा. दिवाकरपंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत 26 मई को है.
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वट सावित्री व्रत 2025 मुहूर्त
वट सावित्री व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त 04:03 ए एम से 04:44 ए एम तक है, वहीं उस दिन का शुभ समय अभिजीत मुहूर्त 11:51 ए एम से 12:46 पी एम तक है. वट सावित्री व्रत के दिन अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त 05:25 ए एम से 07:08 ए एम तक है. शुभ-उत्तम मुहूर्त 08:52 ए एम से 10:35 ए एम तक है. लाभ-उन्नति मुहूर्त 03:45 पी एम से 05:28 पी एम तक है.
शोभन योग में वट सावित्री व्रत 2025
वट सावित्री व्रत के दिन शोभन योग और भरणी नक्षत्र है. शोभन योग प्रात:काल से लेकर सुबह 7 बजकर 02 मिनट तक है. उसके बाद से अतिगंड योग है, जो अगले दिन 27 मई को 2:55 एएम तक है. उसके बाद सुकर्मा योग होगा. वट सावित्री व्रत पर भरणी नक्षत्र सुबह 8 बजकर 23 तक है, उसके बाद से कृत्तिका नक्षत्र है.
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वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट वृक्ष यानि बरगद के पेड़ में त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है, इसलिए इसे देव वृक्ष भी कहते हैं. बरगद के पेड़ की पूजा करने से व्यक्ति की मनोकमानाएं पूरी होती हैं और पति के अकाल मृत्यु का संकट टल जाता है. जब सत्यवान के जीवन पर संकट आया था, तब वे वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए थे.