उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने बीयू के दीक्षांत समारोह में वास्कोडिगामा की यात्रा को लेकर बयान दिया था।
‘भारत की खोज वास्कोडिगामा ने नहीं ,चंदन नाम के व्यापारी ने की थी। वास्कोडिगामा ने खुद लिखा है कि व्यापारी चंदन का जहाज उसके जहाज के आगे चल रहा था। हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया है।’ मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने हाल ही में एक यूनिवर
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हमने मंत्री परमार से इस बयान का आधार पूछा तो उन्होंने विस्तार से इसकी जानकारी उपलब्ध कराई। हमने इस आधार की पड़ताल की। उस डायरी को भी ढूंढ़ निकाला, जिसमें वास्कोडिगामा ने अपनी भारत यात्रा के दौरान रोजमर्रा की बातें लिखीं हैं।
पढ़िए इस कंट्रोवर्सी की पूरी कहानी …
मंत्री ने किस आधार पर दिया बयान, सबसे पहले ये जानिए-
मंत्री इंदर सिंह परमार ने प्रशांत पोल की किताब ‘भारतीय ज्ञान का खजाना’ का हवाला दिया है। इस किताब में प्रशांत लिखते हैं कि, ‘डॉ विष्णु श्रीधर वाकणकर जिन्हें भीमबेटका की खोज का श्रेय दिया जाता है, वो एक बार अपने शोध के सिलसिले में ब्रिटेन गए थे। वहां एक म्यूजियम में वास्कोडिगामा की डायरी मिली। उस डायरी में वास्कोडिगामा ने खुद लिखा है कि जब वह दक्षिण अफ्रीका के जंजीबार पहुंचा, तो उसने पानी के विशाल जहाज देखे। इन जहाजों के मालिक से मिला। उसका नाम चंदन था। चंदन ने ही उसे भारत तक का रास्ता बताया। चंदन का जहाज उसके जहाज के आगे चल रहा था। प्रशांत पोल ने यही बात अपनी दूसरी किताब विनाश पर्व में भी लिखी है।’
वास्कोडिगामा को यूरोप से भारत तक के समुद्री मार्ग की खोज का श्रेय दिया जाता है। (फोटो AI जनरेटेड है।)
वास्को की डायरी में चंदन नाम का जिक्र नहीं
अब क्योंकि सारी कहानी का आधार वास्को की डायरी पर टिका था, इसलिए हमने सबसे पहले उस डायरी की तलाश शुरू की। हमें वो डायरी इंटरनेट पर ‘काउंसल ऑफ द हकलुइट सोसायटी लंदन’ के जर्नल में मिल गई। उस डायरी में वास्को ने लिखा है कि, ‘मालिंदी (फिलहाल केन्या का एक शहर) के सम्राट ने मेरी शिप को भारत की ओर ले जाने के लिए पायलट दिए। वो क्रिश्चियन था।’
वास्को की पूरी डायरी में चंदन नाम के किसी व्यक्ति का जिक्र नहीं है। क्रिश्चियन को पुर्तगाली में क्रिस्ता या क्रिस्ताओ कहते हैं। ये चंदन से मिलता-जुलता नाम जरूर है, लेकिन इसके पुर्तगाली से अंग्रेजी अनुवाद में भी इतनी त्रुटि हो जाए कि वो क्रिस्ता चंदन हो जाए, ये संभव नहीं लगता।
मालिंदी से ही वास्को ने अफ्रीकी महाद्वीप की सीमा को छोड़ दिया। वास्को ने डायरी में आगे लिखा है कि 20 मई 1498 को भारत के कालीकट में उसके जहाज को पहुंचना था, लेकिन रात के अंधेरे की वजह से तीन-साढ़े तीन मील पहले वह रास्ता भटक गया। उसका जहाज पंड्रानी के आसपास भटकने लगा।
तट से दो-तीन जहाज आए और उन्होंने कालीकट का रास्ता बताया। वो अपना जहाज आगे लेकर चले। इस तरह वास्को हिंदुस्तान पहुंचा। यहां भी जो दो तीन जहाज उसकी मदद के लिए भारत से तीन मील दूर गए उनमें किसी के नाम का जिक्र नहीं है।
एक दावा गुजराती व्यापारी को लेकर भी…
इतिहासकार मकरंद मेहता ने करीब सात साल पहले ये दावा किया था कि वास्को को भारत लाने वाले गुजरात के व्यापारी कानजी मालम थे। उन्हें कच्छी व्यापारी कहा जाता था, क्योंकि वो गुजरात के कच्छ का सामान अफ्रीकी देशों तक ले जाते थे। हालांकि वास्को की डायरी में कानजी मालम का भी उल्लेख नहीं मिलता।

अब जानिए कि आखिर कौन से यात्री वास्को से पहले भारत आए
मार्को पोलो वेनिस का व्यापारी और अन्वेषक (एक्सप्लोरर) था, जिसने 13वीं शताब्दी में एशिया के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा की, खासतौर से चीन (तब के कूब लाई खान के शासनकाल में)। हालांकि, वह भारत भी आया था। मार्को पोलो से पहले मेगस्थनीज भारत आया।
मेगस्थनीज एक ग्रीक राजदूत और इतिहासकार था, जिसे मौर्य साम्राज्य के राजा चंद्रगुप्त मौर्य (चाणक्य के काल में) के दरबार में भेजा गया था। उसने भारत का वर्णन करते हुए एक पुस्तक “इंडिका” लिखी, जिसमें उस समय के भारतीय समाज, राजनीति और भूगोल की जानकारी दी गई।
पाइथियस एक ग्रीक भूगोलवेत्ता और नाविक थे, उन्होंने भी संभवतः भारत तक पहुंचने की कोशिश की थी, हालांकि उनके अभियानों के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
डायोनिसियस एक यूनानी दूत थे जिन्हें टॉलेमी द्वितीय (मिस्र का शासक) ने भारतीय दरबार में भेजा था। उनकी यात्रा का उद्देश्य भारत के साथ राजनयिक और व्यापारिक संबंध स्थापित करना था।
‘पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी’ ग्रीक नाविकों द्वारा लिखी गई एक किताब है जो पहली शताब्दी ईस्वी के दौरान भारतीय तट के साथ व्यापारिक मार्गों का वर्णन करती है। इस किताब में भारतीय तटों और बंदरगाहों के बारे में विस्तार से जानकारी है और यह दर्शाती है कि ग्रीक नाविक भारत आते थे।
तो क्या मंत्री का दूसरा दावा सही है?
मंत्री परमार की ये बात सही है कि वास्कोडिगामा से पहले कई विदेशी यात्री भारत आए। हालांकि विश्व के तमाम इतिहासकारों का ये मानना है कि वास्को से पहले भारत आए सभी यात्रियों का उद्देश्य राजनीतिक या व्यापारिक था न कि किसी मार्ग की खोज। वास्को पहला यूरोपीय व्यक्ति था, जिसने पुर्तगाल से भारत तक समुद्री मार्ग तलाशा।
इसके साथ ही उसने कम्पास की मदद से इस मार्ग का दस्तावेजीकरण भी किया कि कितने डिग्री नॉर्थ और कितने डिग्री साउथ पर कौन-कौन सी जगह हैं। इसकी जानकारी भी वास्को की डायरी में उपलब्ध है। वास्को से पहले स्थल और आंशिक समुद्र मार्ग का उपयोग करते हुए व्यापारी भारत आते थे।

पहली बार वास्को जहाज से कालीकट के तट पर पहुंचा। (फोटो AI जनरेटेड है।)
मंत्री परमार, लेखक पोल और डॉ वाकणकर के बारे में जानिए…
मंत्री परमार ने भले ही इतिहास से जुड़ा मामला उठाया है, लेकिन उनकी शिक्षा इतिहास की विशेषज्ञता की ओर इशारा नहीं करती। उन्होंने बीएससी और एलएलबी की शिक्षा संस्थागत तौर पर हासिल की है। इतिहास से उनका लगाव हाे सकता है, लेकिन ये उनकी विशेषज्ञता का विषय नहीं रहा। उन्होंने जिस किताब का हवाला दिया है उसके लेखक हैं प्रशांत पोल। पोल भी इतिहास विशेषज्ञ नहीं रहे हैं।
पोल ने इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलिकॉम की शिक्षा हासिल की है। इसके अलावा मराठी भाषा से एमए किया है। उन्होंने देश में कई अहम पदों पर काम किया है, लेकिन करीब सभी पद तकनीकी सेवा के रहे। उनकी जिस किताब का हवाला मंत्री परमार ने दिया है, उसकी प्रस्तावना आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने लिखी है।
पोल ने अपनी किताब में डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर का हवाला दिया है। डॉ. वाकणकर पद्मश्री प्राप्त देश के विख्यात पुरातत्वविद रहे। हालांकि उनकी किसी किताब में वास्को का उल्लेख उपलब्ध नहीं है।
वास्कोडीगामा की यात्रा की अहमियत
वास्को ने भारत तक पहुंचने का एक सीधा समुद्री मार्ग खोजा, जो यूरोप से अफ्रीका के दक्षिणी सिरे (Cape of Good Hope) को पार करके भारत के पश्चिमी तट तक जाता था। इस समुद्री मार्ग ने स्थल मार्ग की कठिनाइयों को खत्म कर दिया और यूरोप और भारत के बीच सीधे समुद्री व्यापार का मार्ग प्रशस्त किया। इसलिए वास्को को ही भारत की खोज का श्रेय ज्यादातर इतिहासकार देते हैं।
शोध के लिए गुंजाइश अब भी बाकी
वास्को की डायरी में जिस क्रिश्चियन पायलट का जिक्र है, उसका नाम उपलब्ध नहीं है। साथ ही वास्को जब कालीकट जो मौजूदा केरल का कोझिकोड शहर है, वहां पहुंचने से पहले भटक गया था और पंड्रानी जो फिलहाल केरल की एक तहसील कोइलेंडी के नाम से जाना जाता है, वहां पहुंच गया। उसे जो नाविक कालीकट तट तक लेकर आए उनके नाम का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। इसलिए मंत्री परमार की ये बात सही हैं, कि इसमें शोध की गुंजाइश बाकी है।

बीयू के दीक्षांत समारोह में परमार ने दिया था बयान
तीन दिन पहले भोपाल के बरकतउल्ला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा था कि ‘भारत की खोज वास्कोडिगामा ने नहीं ,चंदन नाम के व्यापारी ने की थी। वास्कोडिगामा ने खुद लिखा है कि, व्यापारी चंदन का जहाज उसके जहाज के आगे चल रहा था। हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया है। पढ़ें पूरी खबर…